"राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त": अवतरणों में अंतर

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{{}}{{center|'''मैथिलीशरण गुप्त'''}}
अट्ठारह सौ सत्तावन (१८५७) से पहले की बात है। गोरी हुकूमत और छोटे रजवाड़ों के जुल्म चरम पर थे। मध्य भारत का चंबल इलाका भी इसका शिकार था। कारोबार करना जोखिम भरा था डाकुओं और ठगो की तरह पिंडारी भी लुटेरे थे। गांव गांव में इन पंडारियों का आतंक था। अमीर और संपन्न घराने पिंडारीयों के निशाने पर रहते थे। ग्वालियर के पास भाड़े रियासत का धनवान कनकने परिवार इन पिंडलियों से दुखी होकर झांसी के पास चिरगांव जा बसा।
 
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गुप्त जी की रचनाएं सरस्वती के अलावा इंदु, प्रताप और प्रभा जैसी महत्वपूर्ण पत्रिकाओं में छप रही थी। लोग उनकी एक एक कविता के दीवाने थे। इसी बीच उन्होंने एक प्रयोग और किया अहिंदीभाषी साहित्यकारों की रचनाओं का हिंदी अनुवाद करने लगे ये अनुवाद उन्होंने मधुप के नाम से किया। इसी दौरान उन्होंने तीन नाटक तिलोत्तमा, चंद्रहार, अनघ लिखे यह नाटक बहुत पसंद किए गए।
 
1925 में मैथिलीशरण गुप्त ने अपने ऐतिहासिक खंडकाव्य '''पंचवटी''' की रचना की। इसमें उन्होंने राम-सीता और लक्ष्मण के 14 साल की बनवास के दौरान पंचवटी दिनों का सजीव चित्रण किया। खास तौर पर लक्ष्मण के किरदार पर गुप्तजी ने जैसी कलम चलाई हिंदी साहित्य में वैसा काम किसी और ने नहीं कियाकिया। इतना ही नहीं पंचवटी मैथिलीशरण गुप्त की वो रचना है जिसमें उन्होंने कुदरत के अनमोल खजाने को खोला है।