"राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
No edit summary |
No edit summary |
||
पंक्ति ८८:
स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है अवनि और अम्बरतल में।
पुलक प्रकट करती है धरती, हरित तृणों की नोकों से,
मानों झीम रहे हैं तरु भी, मन्द पवन के झोंकों से॥<
|