"राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त": अवतरणों में अंतर
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पंक्ति १००:
शून्य श्याम-तनु जिससे उसका, नया रूप झलकाता है।</poem>
पंचवटी के बाद 1927 में हिंदू, सौरन्ध्री, वकसंहार, धन-वैभव और शक्ति। 1929 झंकार कविता के जरिए सारे देश में देशभक्ति की लहर दौड़ गई। 1931 में मैथिलीशरण गुप्त का एक और खंडकाव्य साकेत पाठकों के सामने आया। साकेत में उन्हें अठारह साल लगे थे। जब साकेत प्रकाशित हुई तो हिंदुस्तान के साहित्य जगत में जैसे धमाका हो गया। विद्वानों ने इसे महाकाव्य माना। दरअसल इसका नाम साकेत इस लिए रखा गया क्योंकि इसमें अधिकतर अयोध्या की घटनाओं के प्रसंग है। गुप्तजी ने राम और सीता की जगह लक्ष्मण और उर्मिला को इस महाकाव्य में नायक और नायिका की तरह पेश किया
▲पंचवटी के बाद 1927 में हिंदू, सौरन्ध्री, वकसंहार, धन-वैभव और शक्ति। 1929 झंकार कविता के जरिए सारे देश में देशभक्ति की लहर दौड़ गई। 1931 में मैथिलीशरण गुप्त का एक और खंडकाव्य साकेत पाठकों के सामने आया। साकेत में उन्हें अठारह साल लगे थे। जब साकेत प्रकाशित हुई तो हिंदुस्तान के साहित्य जगत में जैसे धमाका हो गया। विद्वानों ने इसे महाकाव्य माना। दरअसल इसका नाम साकेत इस लिए रखा गया क्योंकि इसमें अधिकतर अयोध्या की घटनाओं के प्रसंग है। गुप्तजी ने राम और सीता की जगह लक्ष्मण और उर्मिला को इस महाकाव्य में नायक और नायिका की तरह पेश किया है
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