"राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त": अवतरणों में अंतर
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पंक्ति १०८:
संदेश यहाँ मैं नहीं स्वर्ग का लाया,
इस भूतल को ही स्वर्ग बनाने आया।</poem>
साकेत में वह सिर्फ पुरुष का गुणगान ही नहीं करते थे बल्कि गांधीवादी विचारों और आंदोलनों से प्रेरित होकर सीता के हाथों में चरखा, तकली देकर शारीरिक श्रम और स्वावलंबन का पाठ पढ़ाते हैं।
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