"राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त": अवतरणों में अंतर

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पंक्ति ११०:
 
साकेत में वह सिर्फ पुरुष का गुणगान ही नहीं करते थे बल्कि गांधीवादी विचारों और आंदोलनों से प्रेरित होकर सीता के हाथों में चरखा, तकली देकर शारीरिक श्रम और स्वावलंबन का पाठ पढ़ाते हैं।
 
<Poem>औरों के हाथों यहाँ नहीं पलती हूँ,
अपने पैरों पर खड़ी आप चलती हूँ।
श्रमवारिविन्दुफल, स्वास्थ्यशुक्ति फलती हूँ,
अपने अंचल से व्यजन आप झलती हूँ॥
तनु-लता-सफलता-स्वादु आज ही आया,
मेरी कुटिया में राज-भवन मन भाया॥</poem>