"राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त": अवतरणों में अंतर

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पंक्ति ११८:
मेरी कुटिया में राज-भवन मन भाया॥</poem>
 
1932 गुप्त जी की एक और शानदार प्रसूति यशोधरा स्त्री संवेदना की बारीक और मार्मिक अभिव्यक्ति। गौतम बुद्ध के गृह त्याग और उनकी पत्नी यशोधरा की पीड़ा को ध्यान में रख कर लिखी हुई इस रचना में वो सिद्धार्थ यामी गौतम बुद्ध के रात में अपने महल से चुपचाप चले जाने पर यशोधरा यशोधरा के मन काकी हालत बयान करते हैं। यशोधरा का सवाल है।
 
<Poem>सखि, वे मुझसे कहकर जाते,
कह, तो क्या मुझको वे अपनी पथ-बाधा ही पाते?
 
मुझको बहुत उन्होंने माना
फिर भी क्या पूरा पहचाना?
मैंने मुख्य उसी को जाना
जो वे मन में लाते।
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।
 
स्वयं सुसज्जित करके क्षण में,
प्रियतम को, प्राणों के पण में,
हमीं भेज देती हैं रण में -
क्षात्र-धर्म के नाते
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।</poem>