"राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त": अवतरणों में अंतर

No edit summary
No edit summary
पंक्ति १४१:
 
1933 में उन्होंने द्वापर और सिद्धराज जैसे पौराणिक और ऐतिहासिक काव्य संग्रह लिखें। वे अब तक कहानी, उपन्यास, कविता, निबंध पत्र, आत्मकथा अंश, महाकाव्य की लगभग 10000 पंक्तियां लिख चुके थे। इसी बीच जिंदगी के 50 साल पूरे हुए। देशभर के साहित्य प्रेमियों ने बनारस से लेकर चिरगांव तक मैथिलीशरण गुप्त की 50 वीं वर्षगांठ धूमधाम से मनाई। इस अवसर पर राष्ट्रपिता महात्मा ने मैथिलीशरण गुप्त को राष्ट्रीय कवि की उपाधि से सम्मानित किया। इसके बाद से मैथिलीशरण गुप्त राष्ट्रकवि हो गए। 50 वीं वर्षगांठ का जश्न समाप्त नहीं हुआ था की 1937 एक ओर कामयाबी लेकर आया।
 
साकेत के लिए मैथिलीशरण गुप्त को हिंदी के सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उसके बाद 1936 में द्वापर, 1940 में नहुष, 1941 में कुणाल गीत, 1942 में विश्व वेदना, अर्जन और विसर्जन, काबा और कर्बला, 1952 में जब भारत और युद्ध, 1956 में राजा प्रजा, 1957 में विष्णुप्रिया प्रकाशित हुई।