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कीर्ति चौधरी
सीमा रेखा
कात्यायनी
सात भाइयों के बीच चंपा

सात भाइयों के बीच
चंपा सयानी हुई।
बाँस की टहनी-सी लचक वाली,
बाप की छाती पर साँप-सी लोटती
सपनों में
काली छाया-सी डोलती
सात भाइयों के बीच
चंपा सयानी हुई।
ओखल में धान के साथ
कूट दी गई
भूसी के साथ कूड़े पर
फेंक दी गई।
वहाँ अमरबेल बनकर उगी।
झरबेरी के सात कँटीले झाड़ो के बीच
चंपा अमरबेल बन सयानी हुई।
फिर से घर आ धमकी।
सात भाइयों के बीच सयानी चंपा
एक दिन घर की छत पर
लटकती पाई गई।
तालाब में जलकुंभी के जालों के बीच
दबा दी गई।
वहाँ एक नीलकमल उग आया।
जलकुंभी के जालों से ऊपर उठकर
चंपा फिर घर आ गई,
देवता पर चढ़ाई गई
मुरझाने पर मसलकर फेंक दी गई,
जलाई गई।
उसकी राख बिखेर दी गई
पूरे गाँव में।
रात को बारिश हुई झमड़कर।
अगले ही दिन
हर दरवाजे के बाहर
नागफनी के बीहड़ घेरों के बीच
निर्भय-निस्संग चंपा
मुस्कुराती पाई गई।