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निर्मला पुतुल

सुशीला समद

अनुज लुगुन

ससन दिरी*

इन मृत पत्थरों पर जीवित हैं
हमारी सैकड़ों पुश्तों की विरासत
लेकिन
सरकारी पट्टों पर
इनका कुछ पता नहीं है
ये हमारे घर हैं
और इस तरह
हम बेघर हैं सरकारी पट्टों पर,
हमारी विरासत पर दखल हुई
सरकारी पट्टों की
एक बार फिर
हम लड़े
अपनी तदाद से
हथियार बंद राजाओं के खिलाफ
समय की पगडंडियों पर चलते हुए
इसी तरह इतिहास रचते गए
पुरखों के नाम पत्थर गाड़ कर
हम तैयार होते गए
नए मोर्चों पर लड़ाई के लिए,
ये सरकारी चेहरे की तरह पत्थर नहीं हैं
इनमें जंगल के लिए लड़ते हुए
एक पेड़ की कहानी है
जो धराशायी हो गया नफरत की कुल्हाड़ी से
एक डाल की कहानी है
जो पंछियों को पनाह देते-देते टूट गई
एक फूल की कहानी है
जो वसंत के आने से पहले झुलस गया
धरती को बचाने की
फेहरिस्त में की गई न्यायपूर्ण हस्तक्षेप है उनकी
उन्हीं हस्तक्षेपों के साथ जीवित हैं
साखू के पेड़ के नीचे सैकड़ों पत्थर
जो हमें मरने नहीं देते।

(* ससन दिरी : मुंडाओं की सांस्कृतिक विरासत वाला पत्थर। अपने पुरखों की स्मृति में उनके सम्मान में उनके कब्र पर गाड़ा जाने वाला यह पत्थर मुंडाओं के गाँव का मालिकाना चिह्न है। कहा जाता है कि अंग्रेजी समय में जब मुंडाओं से उनके गाँव का मालिकाना पट्टा माँगा गया था तो वे इसी पत्थर को ढोकर कलकत्ता की अदालत में पहुँच गए थे।)