"अस्मितामूलक विमर्श और हिंदी साहित्य/दलित कविता": अवतरणों में अंतर

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तो रोटी-बेटी से फिर 'हरिहर' कहो तो कब तक फिरे रहेंगे?<ref>{{cite book|author=राजपाल सिंह 'राज'|title=हिन्दू आन्दोलन के प्रवर्तक स्वामी अछूतानन्द हरिहर|url=https://books.google.com/books?id=i2ZuaOSvNJUC&pg=PA73|year=2009|publisher=सिद्धार्थ बुक|location=दिल्ली|isbn=978-81-908753-9-4|pages=73–74}}</ref></poem>
=== नगीना सिंह ===
'''कितनी व्यथा'''
<poem>कितनी व्यथा झरी आज तक बदली से,
रोक सका है कौन अरे मधुमास को?
जाने कितने टूटे है अहसास मगर,
तोड़ सका है कौन अनश्वर को?
 
मत ठोकर खाकर पथिक पथ शेष है,
हर ठोकर आभास है तेरी मंजिल का!
शंकित हो मत बैठ कूल पर ओ मांझी,
तेरी यह पतवार रूप है साहिल का!
यह तो सच, हर भोर सांध्य सन्देश है,
रोक सका पर कौन प्रचण्ड प्रकाश को?
 
आज कल्पना विचा रही हेमालय में,
दीख रहा प्रासाद कुटी के छेद से!
वैभव मिले सरलता से तो ठीक है,
वैभव नहीं मिले जो, अरे विभेद से!
कितने सावन आए, आकर लौट गए,
कौन बुझा पाया प्यासे की प्यास को?
 
भरा नहीं जो आज आँसुओं से दामन
कल सिहरेगा देख अतुल मुस्कान को!
यदि चाहते हो शैल शिखर निज पांव में,
चढ़ना होगा तुम्हें हर एक सौपान को!
श्रम, बस अनमोल निधि है जीवन की,
और अधिक दृढ़ करो इसी अहसास को!</poem>
 
=== माता प्रसाद ===
==संदर्भ==