"अस्मितामूलक विमर्श और हिंदी साहित्य/आदिवासी कविता": अवतरणों में अंतर

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===निर्मला पुतुल===
'''तुम्हारे एहसान लेने से पहले सोचना पड़ेगा हमें'''
<poem>अगर हमारे विकास का मतलब
हमारी बस्तियों को उजाड़कर कल-कारखाने बनाना है
तालाबों को भोथकर राजमार्ग
जंगलों का सफाया कर ऑफिसर्स कॉलोनियाँ बसानी हैं
और पुनर्वास के नाम पर हमें
हमारे ही शहर की सीमा से बाहर हाशिए पर धकेलना है
तो तुम्हारे तथाकथित विकास की मुख्यधारा में
शामिल होने के लिए
सौ बार सोचना पड़ेगा हमें।
सोचना पड़ेगा, अपनी झोपड़ी के बदले
तुम्हारा आवास लेने से पहले
तुम्हारे हर प्रस्ताव पर ग़ौर करना पड़ेगा
समझना पड़ेगा न समझ में आने वाली बात
और तुम्हारे समझाने के तरीकों को भी
समझना पड़ेगा
कि मेरे गाँव को मुख्यमार्ग से जोड़ने के लिए
सड़क बनाना चाहते तो तुम
या मेरे गाँव को मुख्यमार्ग से जोड़ने के लिए
हमें बाजार उपलब्ध कराना है
या बाजार को हम तक पहुँचने का देना है रास्ता
हमीं से हमारे पत्थरों को तोड़वाकर
शहर ले जाने का इरादा है तुम्हारा
या दिख गई है किसी नयी खदान की संभावना
या फिर हमारे जंगलों की लकड़ियों
और गाँव की लड़कियों पर लग गई है तुम्हारी नज़र
ठीक-ठाक समझना पड़ेगा हमें
संशय में हूँ कि तुम सचमुच हमारा विकास चाहते हो
या फिर अपने और अपने उन पालतू लोगों का
जो इन दिनों विकास का नया-नया मतलब समझा रहे हैं हमें
जानती हूँ तुम्हें
बहुत कड़वा लगता है असहमति का स्वर
बढ़ जाएगा एक और
नाम तुम्हारे विरोधियों की सूची में
तुम तर्क दोगे
बताओगे हमारे ही लोगों को हमारे बारे में
कि उनका विकास नहीं होने देना चाहते हम
विकासरोधी है हमारी सोच
जंगली असभ्य और पिछड़े ही बने रहना चाहते हैं हम
पता है तुम्हारी हर तीसरी बात में
आएगा जिक्र विकसित लोगों और उनके देशों का
उनके सामने खड़ा कर बताओगे तुम
कि कितने पिछड़े हैं हम
पर अफसोस
तुम कभी नहीं बताओगे कि
विकास के मॉडल को
उसके गड्ढों और परजीवीपन की चर्चा
तक न होगी तुम्हारी बातों में
जानती हूँ तुम यह भी छिपाओगे कि
तुम इस विकास के मॉडल के पीछे
किसका उर्वर मस्तिष्क काम कर रहा है
छिपाओगे उन विकसित लोगों और देशों के विकास का राज
कि किस तरह तुम्हारे ही माध्यम से
हमारे संसाधनों को हमसे छीनकर
विकास के ऊँचे शिखर तक पहुँचे हैं वे
जानती हूँ, सब जानती हूँ
क्षमा करना
नकारती हूँ तुम्हारे इस विकास के प्रस्ताव को
जो पटना, रांची, दिल्ली से बनाकर लाए हो तुम हमारे लिए।</poem>
 
=== सुशीला सामद ===
'''सन्ध्या'''