"समसामयिकी 2020/पर्यावरण और भारत": अवतरणों में अंतर

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'''स्टेट ऑफ इंडियाज़ एन्वायरनमेंट रिपोर्ट, सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट एवं डाउन टू अर्थ द्वारा जारी''' की जाती है।
इस रिपोर्ट में वनों, वन्य जीवन, कृषि, ग्रामीण विकास, जल एवं स्वच्छता और जलवायु परिवर्तन से संबंधित पहलू शामिल होते हैं।
==जैव विविधता और उसका संरक्षण==
15-22 फरवरी, 2020 तक गुजरात की राजधानी '''गांधीनगर''' में ‘वन्यजीवों की प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण (Conservation of Migratory Species of Wild Animals-CMS) की शीर्ष निर्णय निर्मात्री निकाय कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ (COP) के 13वें सत्र का आयोजन किया गया।
विषय (Theme):-“प्रवासी प्रजातियाँ पृथ्वी को जोड़ती हैं और हम मिलकर उनका अपने घर में स्वागत करते हैं।”
(Migratory species connect the planet and together we welcome them home)
शुभंकर (Mascot):-गिबी (ग्रेट इंडियन बस्टर्ड)
COP-13 के प्रतीक चिह्न में दक्षिण भारत की एक पारंपरिक कला ‘कोलम’ का प्रयोग करते हुए भारत के महत्त्वपूर्ण प्रवासी जीवों-अमूर फाल्कन, मरीन टर्टल को दर्शाया गया है।
 
CMS सदस्य देशों का यह सम्मेलन प्रवासी पक्षियों, उनके प्रवास स्थान और प्रवास मार्ग के संरक्षण पर होने वाला विश्व का एकमात्र सम्मेलन है। इस सम्मेलन का आयोजन '''हर 3 वर्ष''' में किया जाता है।
यह सम्मेलन इसलिये भी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि मई 2019 में ‘जैव-विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिये '''अंतर-सरकारी विज्ञान नीति मंच (IPBES)’''' द्वारा जैव-विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र पर जारी एक समीक्षा रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्तमान में वन्यजीवों और वनस्पतियों की लगभग 10 लाख प्रजातियाँ लुप्तप्राय की स्थिति में हैं।
सम्मेलन में लिये गए निर्णय ‘पोस्ट 2020 वैश्विक जैव-विविधता फ्रेमवर्क’ रणनीति के लिये आधार प्रदान करेंगे।
वर्ष 2020 में ही ‘पोस्ट 2020 वैश्विक जैव विविधता फ्रेमवर्क’ के तहत भविष्य की नीतियों की रूपरेखा तथा संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) के अंतिम दशक (2020-2030) के लक्ष्य निर्धारित किये जायेंगे। अतः COP-13 सम्मेलन में लिये गए निर्णय आगामी दशक में विकास और प्रकृति के बीच समन्वय के लिये महत्त्वपूर्ण होंगे।
== पर्यावरण प्रभाव आकलन ==
NGT) ने असम के ‘डिब्रू-सैखोवा राष्टीय उद्यान’ में प्रस्तावित सात उत्खनन ड्रिलिंग साइटों को पर्यावरणीय मंज़ूरी दिये जाने पर संबंधित संस्थाओं/इकाइयों से जवाब तलब किया है।
 
प्रमुख बिंदु:
NGT द्वारा इस संबंध में ‘पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय’ (Ministry of Environment, Forest and Climate Change- MoEFCC), ‘ऑयल इंडिया लिमिटेड’ (Oil India Limited- OIL) और असम राज्य के ‘प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड’ एवं ‘राज्य जैव विविधता बोर्ड’ से जवाब तलब किया गया है।
NGT के ये निर्देश असम के दो पर्यावरण संरक्षणवादियों की याचिका पर आधारित थे।
याचिकाकर्त्ताओं का पक्ष:
NGT ने याचिकाकर्त्ताओं के इस तर्क पर ध्यान दिया कि OIL द्वारा 'पर्यावरणीय प्रभाव आकलन' (EnvironmentEnvironmenउt Impact Assessment- EIA)-2006, अधिसूचना के तहत सभी चरणों यथा; सार्वजनिक सुनवाई' (Public Hearing) तथा 'जैव विविधता मूल्यांकन' (Biodiversity Assessment) अध्ययन, का पालन नहीं किया गया है।
=== राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं समुद्री अनुसंधान केंद्र’ (National Centre for Polar and Ocean Research- NCPOR) द्वारा प्राचीन सूक्ष्म समुद्री शैवाल ‘कोकोलिथोफोरस’ का अध्ययन ===
NCPOR ने पाया कि इस शैवाल के कारण दक्षिणी हिंद महासागर में कैल्शियम कार्बोनेट (CaCO3) की सांद्रता में कमी आई है। कोकोलिथोफोरस (Coccolithophores), विश्व के महासागरों की ऊपरी परतों में निवास करने वाला '''एकल-कोशिकीय शैवाल''' है। ये समुद्री फाइटोप्लैंकटन को चूने में परिवर्तित करते हैं जो खुले महासागरों में 40% तक कैल्शियम कार्बोनेट का उत्पादन करते हैं और वैश्विक निवल समुद्री प्राथमिक उत्पादकता (Global Net Marine Primary Productivity) के 20% के लिये ज़िम्मेदार हैं।