"समसामयिकी 2020/भौतिक भूगोल": अवतरणों में अंतर

'अमेरिकन एस्ट्रोनॉमिकल सोसायटी (American Astronomical Society) के शोध...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
 
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पृथ्वी से सूर्य की दूरी लगभग 148 मिलियन किमी. होने के कारण यह शांत और स्थिर प्रतीत होता है लेकिन वास्तविकता में सूर्य की सतह से विशाल सौर फ्लेयर्स एवं कोरोनल मास इजेक्शन्स (Coronal Mass Ejections- CMEs) का बाहरी अंतरिक्ष में उत्सर्जन होता है।
इनकी उत्पति सूर्य के आंतरिक भागों से होती है लेकिन ये तभी दिखाई देते हैं जब ये सतह पर उत्पन्न होते हैं। वर्ष 2019 तक खगोलविदों ने 24 सौर चक्रों का दस्तावेज़ीकरण किया है।
 
 
सौर प्रज्वला (Solar Flares)
सौर प्रज्वला सूर्य के निकट चुंबकीय क्षेत्र की रेखाओं के स्पर्श, क्रॉसिंग या पुनर्गठन के कारण होने वाली ऊर्जा का अचानक विस्फोट है।
कोरोनल मास इजेक्शन्स (CMEs)
कोरोनल मास इजेक्शन्स (CME) सूर्य के कोरोना से प्लाज़्मा एवं चुंबकीय क्षेत्र का विस्फोट है जिसमें अरबों टन कोरोनल सामग्री उत्सर्जित होती है तथा इससे पिंडों के चुंबकीय क्षेत्र में परिवर्तन हो सकता है।
माउंडर मिनिमम (Maunder Minimum)
जब न्यूनतम सौर कलंक सक्रियता की अवधि दीर्घकाल तक रहती है तो इसे ‘माउंडर मिनिमम’ कहते हैं।
वर्ष 1645-1715 के बीच की अवधि में सौर कलंक परिघटना में विराम देखा गया जिसे ‘माउंडर मिनिमम’ कहा जाता है। यह अवधि तीव्र शीतकाल से युक्त रही, अत: सौर कलंक अवधारणा को जलवायु परिवर्तन के साथ जोड़ा जाता है।
माउंडर मिनिमम के समय धरातलीय सतह तथा उसके वायुमंडल का शीतलन, जबकि अधिकतम सौर कलंक सक्रियता काल के समय वायुमंडलीय उष्मन होता है।
इस तरह के संबंधों का कम महत्त्व है, लेकिन सौर गतिविधि निश्चित रूप से अंतरिक्ष मौसम को प्रभावित करती है तथा इससे अंतरिक्ष-आधारित उपग्रह, जीपीएस, पावर ग्रिड प्रभावित हो सकते हैं।
डाल्टन मिनिमम (Dalton Minimum)
यह वर्ष 1790-1830 के बीच की अवधि है जिसमे सौर कलंक की तीव्रता कम रही, परंतु इस अवधि में सौर कलंकों की संख्या ‘माउंडर मिनिमम’ से अधिक थी।
सौर गतिकी (Solar dynamo)
सूर्य में उच्च तापमान के कारण पदार्थ प्लाज़्मा के रूप में उत्सर्जित होते हैं, सूर्य गर्म आयनित प्लाज़्मा से बना होता है, सूर्य की गतिकी के कारण प्लाज़्मा में दोलन के कारण चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है।
सौर डायनेमो की इस प्रकृति के कारण चुंबकीय क्षेत्र में भी परिवर्तन होता है तथा इस चुंबकीय क्षेत्र में परिवर्तन के साथ सौर कलंक की संख्या में भी परिवर्तन होता है।
25वाँ सौर चक्र
सौर कलंक जोडे़ के रूप में पाए जाते हैं, शोधकर्त्ताओं ने चुंबकीय क्षेत्रों के ऐसे 74 जोड़ों के अध्ययन में पाया कि इनमें से 41 का अभिविन्यास 24वें चक्र के अनुरूप एवं 33 का अभिविन्यास 25वें चक्र के अनुरूप है। अत: इस प्रकार वे निष्कर्ष निकालते हैं कि सौर कलंक का 25वाँ चक्र सूर्य के आंतरिक भाग में चल रहा है।
छोटे चुंबकीय क्षेत्र और चुंबकीय ध्रुवीयता अभिविन्यास के साथ कुछ पूर्ण विकसित सौर कलंक दिखाई देने लगे हैं जो बताते हैं कि सौर कलंक चक्र का 25वाँ चक्र सौर सतह पर दिखाई देना शुरू हो गया है और यह 25वें सौर चक्र के प्रारंभ को बताता है।