"समसामयिकी 2020/भौतिक भूगोल": अवतरणों में अंतर

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अमेरिकन एस्ट्रोनॉमिकल सोसायटी (American Astronomical Society) के शोध पत्र के अनुसार, ‘भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं शोध संस्थान’ (Indian Institute of Science Education and Research- IISER) कोलकाता के शोधकर्त्ताओं ने सौर कलंक के नवीन सौर चक्र (Solar Cycle) की पहचान की है।
 
मुख्य बिंदु
पिछले कुछ सौर चक्रों में सौर कलंक की तीव्रता कम रही है, जिससे ऐसा अनुमान था कि एक लंबे सौर ह्रास काल के साथ यह चक्र समाप्त हो जाएगा। हालाँकि IISER की शोध टीम के अनुसार, ऐसे संकेत हैं कि 25वाँ सौर चक्र हाल ही में प्रारंभ हुआ है।
पिछले तीन सौर चक्रों पर सौर गतिविधियाँ कमज़ोर रही हैं अत: 25वें सौर चक्र के प्रारंभ होने से समय को लेकर अनेक विवाद जुड़ गए हैं।
IISER ने इस शोध कार्य में नासा के अंतरिक्ष-आधारित ‘सोलर डायनेमिक्स ऑब्ज़र्वेटरी’ के डेटा का इस्तेमाल किया।
 
सौर कलंक
: सौर कलंक सूर्य की सतह पर अपेक्षाकृत ठंडे स्थान होते हैं, जिनकी संख्या में लगभग 11 वर्षों के चक्र में वृद्धि तथा कमी होती है जिन्हें क्रमशः सौर कलंक के विकास तथा ह्रास का चरण कहा जाता है, वर्तमान में इस चक्र की न्यूनतम संख्या या ह्रास का चरण चल रहा है।
पृथ्वी से सूर्य की दूरी लगभग 148 मिलियन किमी. होने के कारण यह शांत और स्थिर प्रतीत होता है लेकिन वास्तविकता में सूर्य की सतह से विशाल सौर फ्लेयर्स एवं कोरोनल मास इजेक्शन्स (Coronal Mass Ejections- CMEs) का बाहरी अंतरिक्ष में उत्सर्जन होता है।
इनकी उत्पति सूर्य के आंतरिक भागों से होती है लेकिन ये तभी दिखाई देते हैं जब ये सतह पर उत्पन्न होते हैं। वर्ष 2019 तक खगोलविदों ने 24 सौर चक्रों का दस्तावेज़ीकरण किया है।
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सौर प्रज्वला (Solar Flares)
सौर प्रज्वला सूर्य के निकट चुंबकीय क्षेत्र की रेखाओं के स्पर्श, क्रॉसिंग या पुनर्गठन के कारण होने वाली ऊर्जा का अचानक विस्फोट है।
कोरोनल मास इजेक्शन्स (CMEs)
कोरोनल मास इजेक्शन्स (CME) सूर्य के कोरोना से प्लाज़्मा एवं चुंबकीय क्षेत्र का विस्फोट है जिसमें अरबों टन कोरोनल सामग्री उत्सर्जित होती है तथा इससे पिंडों के चुंबकीय क्षेत्र में परिवर्तन हो सकता है।
माउंडर मिनिमम (Maunder Minimum)