"हिंदी भाषा और साहित्य ख/कबीर": अवतरणों में अंतर
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पंक्ति १३:
धरती सब कागद करौं हरि गुण लिखा न जाइ॥</poem>
*साधु ऐसा चाहिए,जैसा सूप
सार-सार को गहि रहै,थोथा देई उड़ाय||
▲सतगुरु हम सूँ रीझि करि, कहा एक प्रसंग|
▲बरसी बादल प्रेम का, भीजि गया सव अंग||
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