"हिंदी भाषा और साहित्य ख/पदावली": अवतरणों में अंतर
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पंक्ति २२:
तनक हरि चितवाँ म्हारी ओर ।। टेक।।
हम चितवाँ थें चितवो णा हरि, हिवड़ों बड़ो कठोर।
म्हारी आसा चितवणि थारी, ओर णा दूजा
उभ्याँ ठाढ़ी अरज करूँ छूँ करताँ करताँ भोर।
मीराँ रे प्रभु हरि अविनासी देस्यूँ प्राण अकोर ।। 5 ।। </poem>
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