"हिंदी भाषा और साहित्य ख/घनानंद कवित्त": अवतरणों में अंतर

No edit summary
No edit summary
पंक्ति ८:
1 ।
</poem>
== २ ==
<poem> (2)
आँखि ही मेरी पैं चेरी भई लखि फेरी फिरै न सुजान की घेरी ।
रूप-छकी तित ही बिथकी, अब ऐसी अनेरी पत्यति न नेरी ।
प्राण लै साथ परी पर-हाथ बिकानि की बानि पैं कानि बखेरी ।
पायनि पारि लई घनआँनद चायनि, बावरी प्रीति की बेरी ।
2 ।
</poem>