"हिंदी भाषा और साहित्य ख/घनानंद कवित्त": अवतरणों में अंतर
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आँखि ही मेरी पैं चेरी भई लखि फेरी फिरै न सुजान की घेरी ।
रूप-छकी तित ही बिथकी, अब ऐसी अनेरी पत्यति न नेरी ।
प्राण लै साथ परी पर-हाथ बिकानि की बानि पैं कानि बखेरी ।
पायनि पारि लई घनआँनद चायनि, बावरी प्रीति की बेरी ।
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