"हिंदी भाषा और साहित्य ख/घनानंद कवित्त": अवतरणों में अंतर

पंक्ति २५:
 
== ४ ==
<poem>हीन भएँ जलमीन अधीन कहा कछु मो अकुलानि समानै ।
नीर सनेही को लाय कलंक निरास द्दवै कायर त्यागत प्रानै ।
प्रीति की रीति सु क्यों समझै जड़ मति के पानि की प्रमानै ।
या मन की जु दसा घनआँनद जीव की जीवनि जान ही जानै ।
</poem>
 
== ५ ==