"उत्तर मध्यकाल ( रीति काल : संवत् 1700-1900)": अवतरणों में अंतर

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==सामान्य परिचय==
Toh kaise hain aap log pehli fursat main nikal noobde bot
हिन्दी काव्य अब पूर्ण प्रौढ़ता को पहुँच गया था। संवत् 1598 में कृपाराम थोड़ा बहुत रसनिरूपण भी कर चुके थे। उसी समय के लगभग चरखारी के मोहनलाल मिश्र ने 'श्रृंगारसागर', नामक एक ग्रंथ श्रृंगारसंबंधी लिखा। नरहरि कवि के साथी करनेस कवि ने 'कर्णाभरण', श्रुतिभूषण' और 'भूपभूषण' नामक तीन ग्रंथ अलंकार संबंधी लिखे। रसनिरूपण और अलंकारनिरूपण का इस प्रकार सूत्रपात हो जाने पर केशवदासजी ने काव्य के सब अंग का निरूपण शास्त्रीय पद्ध ति पर किया। इसमें संदेह नहीं कि काव्यरीति का सम्यक् समावेश पहले पहल आचार्य केशव ने ही किया। पर हिन्दी में रीतिग्रंथों की अविरल और अखंडित परंपरा का प्रवाह केशव की 'कविप्रिया' के प्राय: 50 वर्ष पीछे चला और वह भी एक भिन्न आदर्श को लेकर, केशव के आदर्श को लेकर नहीं।
 
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ऐसे-ऐसे कविन की बानी हू सों जानिए
 
Maid
 
मिलीजुली भाषा के प्रमाण में दासजी कहते हैं कि तुलसी और गंग तक ने, जो कवियों के शिरोमणि हुए हैं, ऐसी भाषा का व्यवहार किया है,
 
तुलसी गंग दुवौ भए, सुकविन के सरदार।
 
Maja aagya noobdon
इनके काव्यन में मिली, भाषा विविधा प्रकार