"हिंदी 'ग':वाणिज्य स्नातक कार्यक्रम/सूरदास": अवतरणों में अंतर

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पंक्ति १:
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मैया मैं नहिं माखन खायौ ।
ख्याल परैं ये सखा सबै मिलि, मेरै मुख लपटायौ ।
देखि तुही सींके पर भाजन, ऊँचे धरि लटकायौ ।
हौं जु कहत नान्हे कर अपनैं मैं कैसें करि पायौ ।
मुख दधि पोंछि, बुद्धि एक कीन्ही, दोना पीठि दुरायौ ।
डारि साँटि मुसुकाइ जसोदा, स्यामहिं कंठ लगायौ ।
बालबिनोद मोद मन मोह्यौ, भक्ति प्रताप दिखायौ ।
सूरदास जसुमत कौ यह सुख, सिव बिरञ्चि नहिं पायौ ॥60॥</poem>
 
भावार्थ:-
इस पद मे सूरदास जी ने कृष्ण की उस बाल लीला का वर्णन करते हैं जब वह माखन चुराकर खाया करते थे। कृष्ण इस पद मे कहते हैं मइया मैंने माखन नही खाया यह माखन जो तू मेरे मुँह पर लगा देख रही है वह माखन तो मेरे दोस्तों ने मेरे मुँह पर लगा दिया है। मै माखन कैसे खाऊँगा मै छोटा सा नन्हा सा बालक हूँ ।तू तो माखन इतना ऊँचा लटका देती है तू भी माखन निकालने के लिए किसी साधन का प्रयोग करती है,तो मै कैसे निकाल पाऊँगा मेरे छोटे-छोटे हाथ व पैर है।तूने माखन इतना ऊँचा लटका रखा है।कन्हैया ने मुख से लिपटा माखन पोंछ छिपा लिया ।कन्हैया की इस चतुराई को देखकर यशोदा मन ही मन मुस्कराने लगी और कन्हैया की बात सुनकर उन्होंने छडी फेंक कर उन्हें गले से लगा लेती है, कन्हैया माता यशोदा को कहते हैं कि मै सौतेला हूँ न इसलिए तू मेरे साथ ऐसा व्यवहार करती है ।सूरदास जी को जिस सुख की अनुभूति हुई वह सुख शिव व ब्रह्मा को भी दुर्लभ है । श्रीकृष्ण ने बाल लीलाओ के माध्यम से यह सिद्ध किया है कि भक्ति का प्रभाव कितना महत्वपूर्ण है ।
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ऊधौ, तुम हौ अति बड़भागी।