'''व्याख्या :-''' चिंतन के विषय में उनका कथन है कि चिंता शरीर की वह ज्वाला है जो मानव शरीर को भीतर ही भीतर जलाती रहती है |है। ऊपर से मनुष्य समान दिखता है लेकिन अंदर धुआं उठता रहता है|है। जैसे भट्टी में बर्तन पकता है|है। चिंता में अंदर ही अंदर रक्त, माँस जल जाता है और ऊपर हाड का पिंजर ही नजर आता है |है। गिरिधर कहते हैं कि ऐसे मनुष्य कैसे जीवन जी सकते हैं जिन्हें चिंता लगी रहती है |है।
'''साईं, बैर न कीजिए, गुरु, पंडित, कवि, यार ।यार।'''
'''बेटा, बनिता, पँवरिया, यज्ञ–करावनहार ॥यज्ञ–करावनहार॥'''
'''यज्ञ–करावनहार, राजमंत्री जो होई ।होई।'''
'''विप्र, पड़ोसी, वैद्य, आपकी तपै रसोई ॥रसोई॥'''
'''कह गिरिधर कविराय, जुगन ते यह चलि आई,'''
'''इअन तेरह सों तरह दिये बनि आवे साईं ॥साईं॥'''
'''व्याख्या :-''' गिरधर कविराय जी कहते हैं कि हमें अपने जीवन में कुछ लोगो से कभी बैर नही करना चाहिए |चाहिए। इनकी संख्या 13 है|है। इसमें गुरु, पंडित, कवि, यार, बेटा, बनिता अर्थात स्त्री, पाँवरिया, यज्ञ करने वाला, राज मंत्री, विप्र, पड़ोसी, वैद, रसोइयाँ आदि|आदि। इन लोगों से वैर करने से स्वयं ही हानि होती है
'''प्रसंग :-''' इस पद के माध्यम से मतलबी संसार की रीति का वर्णन करते हुए कवि गिरिधर कविराय बताते हैं कि संसार कितना मतलबी हो गया है|है। प्रस्तुत कुंडली में गिरिधर कविराय ने समाज की रीति पर व्यंग्य किया है तथा स्वार्थी मित्र के संबंध में बताया है।
'''व्याख्या :-''' संसार में सभी लोग स्वार्थ और मतलब से बात करते हैं|हैं। जब तक हमारे पास पैसा है जब तक सभी दोस्त बने रहते हैं हमारे साथ साथ चलते हैं परंतु जब पैसा ना रहे तो मुंह फेर लेते हैं| हैं। सीधे मुंह बात भी नहीं करते |करते। गिरधर कविराय कहते हैं कि संसार की यही रीति है|है। बिना मतलब के कोई विरला ही दोस्ती निभाता है | है। (यहां '''विरला''' का अर्थ अनेक लोगों में से कोई एक है) कवि कहते हैं कि इस संसार में सभी मतलबी हैं। बिना स्वार्थ के कोई किसी से मित्रता नहीं करता है। जब तक मित्र के पास धन-दौलत है तब तक सारे मित्र उसके आस-पास घूमते हैं। मित्र के पास जैसे ही धन समाप्त हो जाता है सब उससे मुँह मोड़ लेते हैं। संकट के समय भी उसका साथ नहीं देते हैं। अत: कवि कहते हैं कि संसार का यही नियम है कि बिना स्वार्थ के कोई किसी का सगा-संबंधी नहीं होता।
'''प्रसंग :-''' कवि गिरधर का कथन है कि हमें कोई भी काम बिना सोचे- विचार के नहीं करना चाहिए|चाहिए। जिसके कारण निकट भविष्य में हमें उसका पछतावा हो|हो।
'''व्याख्या :-''' बिना बिसारे जो करें सो पाछे पछताय से तात्पर्य है कि जो मनुष्य किसी भी कार्य को करने से पहले कुछ भी नहीं सोचता है व उस कार्य को पहचानता नहीं है और उसे कर ही देता है. फिर उसे अपनी गलती का एहसास होने लगता है तो वह उस समय पछताता हैं|हैं। फिर तो अब पछताए क्या होत जब चिड़ियाँ चुग गई खेत. मनुष्य को अपने किसी कार्य को करने से पूर्व सोच समझकर ही निर्णय लेना चाहिए ताकि उसे बाद में पछताना न पड़े|पड़े। यदि हम बिना विचारे कोई काम करते हैं तो अपना काम तो खराब करते ही हैं साथ ही संसार में हंसी के पात्र भी बनते हैं|हैं। हमारा मन कभी चैन नहीं प्राप्त करता और हमारा मन किसी कार्य में नहीं लगेगा |लगेगा। बिना विचार किया गया काम हमें हर समय दु :ख देगा और सदैव खटकता रहेगा|रहेगा। अत: हमें कोई भी काम खूब सोच-विचारकर करना चाहिए|चाहिए।
'''प्रसंग :-''' कवि कहते हैं कि जो बीत गया उसको सोच कर उदास नहीं रहना चाहिए आगे बढ़ना चाहिए|चाहिए।
'''व्याख्या :-''' गिरधर जी कहते हैं कि हमें बीती बातों को भूलकर आगे की सुध लेनी चाहिए|चाहिए। जो लोग एक ही बात को लेकर दुखी होते रहते हैं तो वे हंसी के पात्र बनते हैं अंतः जो बीत गई सो बात गई |गई। जो बीत गया उसे भूल जाओ और आगे की सोचो, जो हो सकता है। जो चीजें सरलतापूर्वक हो जाएं और जिसमें अपना मन लगता हो उन्हीं विषयों पर सोच-विचार करना हितकारी होता है। ऐसा करने पर कोई हँसेगा नहीं और आप मनपूर्वक अपने कार्य को संपन्न कर पाओगे। इसलिए गिरिधर कविराय कहते हैं कि जो मन कहे वही करो बस आगे का देखो, पीछे जो गया उसे बीत जाने दो।
'''प्रसंग :-''' गिरिधर परम ब्रह्मा परमात्मा की स्तुति करते हुए इस पद की व्याख्या करते हैंहैं।
'''व्याख्या :-''' गिरधर कहते हैं कि तुम्हारे भीतर ही यह सारा जग समाहित है तू ही कृष्ण, राम, देवों के देव, ब्रह्मा, शक्ति स्वामी, सेवक पुरुष, स्त्री तुम ही लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न सीता राम हो|हो। सारा जगत तुम्हारा ही प्रतिरूप है|है। अनेक रूपों में है ईश्वर तुम्हारी ही छवि विद्यमान है|है।
|