"हिंदी कविता (रीतिकालीन) सहायिका/केशवदास": अवतरणों में अंतर

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पंक्ति १३२:
'''प्रसंग :''' केशवदास मनुष्य को संसार की परिस्थितियों से परिचित कराते हुए इस सवैया को लिखते हैं
 
'''व्याख्या :''' तेरे साथी ये हाथी-घोडे और नौकर-चाकर नहीं है । न गाँव और घर ही तेरा साथ देगे, इनका तो नाम तक लुप्त हो जायगा। पिता, माता, पुत्र मित्र और धन मे से कोई भी तेरे साथ न रहेगा। 'केशवदास' कहते हैं कि तू काम आनेवाले राम को भूल रहा है और तो सब व्यर्थ है, तेरे काम न आवेंगे । अब भी मन मे सावधान हो जा, क्योकि यमलोक को तो तुझे अकेला ही जाना पडेगापडेगा।
 
'''विशेष १.''' भक्ति को पद है संसार में सब कुछ व्यर्थ है क्षीणकता का प्रभाव डाला है क्षीणकता के साथ-साथ ईश्वर की महामाया पर प्रभाव डाला है मृत्यु अंतिम सत्य हैहै।
 
'''२.''' मार्मिक पद है
पंक्ति १५८:
 
 
'''संदर्भ :''' प्रस्तुत पद्यांश केशवदास द्वारा रचित वंदना के शीर्षक गणेश वंदना से उत्कृष्ट हैहै।
 
'''प्रसंग :''' यहां पर कवि केशवदास ने गणेश जी की वंदना की हैहै।
 
'''व्याख्या :''' कवि कहता है कि जैसे पालक कमल की डाल को किसी भी समय आसानी से तोड़ डालता है उसी प्रकार गणेश असमय में आए विकराल दुख को भी दूर कर देते हैं जैसे कमल के पत्ते पानी में फैले कीचड़ को नीचे भेज देते हैं और स्वयं स्वच्छ होकर ऊपर रहते हैं उसी प्रकार गणेश हर विपत्ति को दूर कर देते हैं जिस प्रकार चंद्रमा को निष्कलंक कर शिव जी ने अपने शीश पर धारण किया उसी प्रकार गणेश जी अपने दास को कलंक रहित कर पवित्र कर देते हैं गणेश जी वंदना से अनेक दास मुक्त कर देते हैं रावण भी गणेश जी के मुख की तरफ देखकर अपनी बाधाओं को दूर करने की आशा रखता था था।
 
'''विशेष १.''' भक्ति रस का प्रयोग हुआ है
पंक्ति १८३:
'''देवता प्रसिद्ध सिद्ध ऋषिराज तप वृद्ध,''''
 
'''कहि कहि हारे सब कहि न काहू लई ।लई।'''
 
'''भावी, भूत, वर्तमान, जगत बखानत है,'''
पंक्ति १९३:
'''नाती वर्णे षटमुख, तदपि नई नई||'''
 
'''संदर्भ :''' यह पद हिंदी साहित्य के रीतिकाल के रीतिबद्ध कवि केशवदास द्वारा रचित कविप्रिया के छठा प्रभाव के गिरा का दान वर्णन के कवित्त से संकलित किया गया हैहै।
 
'''प्रसंग :''' इस पद के माध्यम से केशवदास मां सरस्वती की वंदना करते हैं
 
'''व्याख्या :''' जगत की स्वामिनी श्री सरस्वती जी की उदारता का जो वर्णन कर सके, ऐसी उदार बुद्धि किसकी हुई है ? बडे-बडे प्रसिद्ध देवता, सिद्ध लोग, तथा तपोबद्ध ऋषिराज उनकी उदारता का वर्णन करते करते हार गये, परन्तु कोई भी वर्णन न कर सका । भावी, भूत, वर्तमान जगत सभी ने उनकी उदारता का वर्णन करने की चेष्टा की परन्तु किसी से भी वर्णन करते न बना । उस उदारता का वर्णन उनके पति ब्रह्माजी चार मुख से करते है, पुत्र महादेव जी पाँच मुख से करते है और नाती ( सोमकार्तिकेय ) छ मुख से करते है, परन्तु फिर भी दिन-दिन नई ही बनी रहती हैहै।
 
'''विशेष १.''' सरस्वती वंदना की गई है