"मध्यकालीन भारत/मुग़ल वंश": अवतरणों में अंतर

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=== खानवा का युद्ध ===
[[File:DepictionMaharana ofSangram kingSingh RanaRiding Sangaa Prize Stallion.jpg|thumb|left|राणा सांगा]]
राणा सांगा के नेतृत्व में राजपूत काफी शक्तिशाली बन चुके थे। राजपूतों ने एक बड़ा-सा क्षेत्र स्वतंत्र कर दिल्ली की सत्ता पर काबिज़ होने की चाहत दिखाई। बाबर की सेना राजपूतों की आधी भी नहीं थी। १७ मार्च १५२७ में खानवा की लड़ाई राजपूतों तथा बाबर की सेना के बीच लड़ी गई। इस युद्ध में राणा सांगा के साथ मुस्लिम यदुवंशी राजपूत उस वक़्त के मेवात के शासक खानजादा राजा हसन खान मेवाती और इब्राहिम लोदी के भाई मेहमूद लोदी थे। इस युद्ध में मारवाड़, अम्बर, ग्वालियर, अजमेर, बसीन चंदेरी भी मेवाड़ का साथ दे रहे थे। राजपूतों का जीतना निश्चित था पर राणा सांगा के घायल होने पर घायल अवस्था मे उनके साथियो ने उन्हें युद्ध से बाहर कर दिया और एक आसान-सी लग रही जीत उसके हाथों से निकल गई। बाबर ने युद्ध के दौरान अपने सैनिकों के उत्साह को बढ़ाने के लिए शराब पीने और बेचने पर प्रतिबन्ध की घोषणा कर शराब के सभी पात्रों को तुड़वा कर शराब न पीने की कसम ली। उसने मुस्लिमों से "तमगा कर" न लेने की भी घोषणा की। तमगा एक प्रकार का व्यापारिक कर था, जो राज्य द्वारा लिया जाता था।[[File:Babur’s army in battle against the army of Rana Sanga at.jpg|thumb|right|खानवा का युद्ध]]
बाबर २०,०००० मुग़ल सैनिकों को लेकर साँगा से युद्ध करने उतरा था। उसने साँगा की सेना के लोदी सेनापति को प्रलोभन दिया, जिससे वह साँगा को धोखा देकर सेना सहित बाबर से जा मिला। बाबर और साँगा की पहली मुठभेड़ बयाना में और दूसरी खानवा नामक स्थान पर हुई। इस तरह 'खानवा के युद्ध' में भी पानीपत युद्ध की रणनीति का उपयोग करके बाबर ने राणा साँगा के विरुद्ध एक सफल युद्ध की रणनीति तय की।