ई-शासन द्वारा सरकारी सेवाओं, वस्तुओं और सूचनाओं को जन जन तक सुलभ करवाए जाने का प्रयास किया जा रहा है। ई-शासन सुशासन का आधार है। इसके तहत शासन प्रणाली के तकनीकीकरण द्वारा शासन में गति और पारदर्शिता लाई जाती है। इससे शासन में लोकतांत्रिक सहभागिता बढ़ती है। यह सरकारों के बीच के समन्वय एवं संचार, नागरिक एवं सरकार, व्यवसायिक एवं सरकार, तथा सरकार एवं कार्मिकों के बीच सूचना के संचार का प्रभावी साधन उपलब्ध कराता है। ई-शासन शासन में नैतिकता और जवाबदेही को भी सुनिश्चित करता है। सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 भारत में डिजिटल शासन को वैधता प्रदान करता है। भारत सरकार द्वारा 2008 में नई ई-शासन नीति की शुरुआत की गई है। इसके माध्यम से ई-व्यवसाय, इं-शासन, ई-हस्ताक्षर, ई-शिक्षा, ई-भुगतान, ई-पहचान, आदि को वैधता प्रदान की गई है। सरकार ने न्यूनतम-नकद अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए डिजिटल भुगतान को प्रोत्साहित किया है। कराधान पर आधारित राष्ट्रीय राजस्व को बढ़ावा देने के लिए जुलाई 2017 से वस्तु एवं सेवा कर को लागू किया गया, जिससे कराधान से संबंधित सहकारी संघीय कानून व्यवस्था लागू हुई तथा कर के विभिन्न स्तरों पर हो रहे भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने का प्रयास किया गया हैं।


भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के उद्देश्य से मोदी सरकार ने 8 नवंबर 2016 को 500 रूपये एवं 1000 रूपये के मूल्य की मुद्राओं का विमुद्रीकरण किया। इसके अतिरिक्त, यूपीए सरकार द्वारा लाए गए आधर कार्ड, जिसमें हरेक नागरिक को उसकी अलग राष्ट्रीय पहचान सुनिश्चित करने के उद्देश्य से विशिष्ट पहचान क्रमांक दिया जाता है, जिसे आधार (Aadhaar) क्रमांक कहा जाता है. को मोदी सरकार द्वारा वृहत स्तर पर आर्थिक लेन-देन से जोड़ दिया गया है।


ई-शासन एवं डिजिटल शासन के तहत व्यक्तिगत सूचनाओं, निजी विवरणों एवं आंकड़ों के दुरूपयोग का खतरा बना रहता है। इस कारण उच्चतम न्यायालय ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश के. एस. पुत्तास्वामी द्वारा दाखिल जनहित याचिका की सुनवाई में 24 अगस्त 2017 को 9 न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा यह फैसला दिया कि निजता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार है।"