शासन : चुनौतियाँ और मुद्दे/लोकतंत्र, शासन एवं सुशासन

1980 के दशक से प्रारंभ हुए वैश्विक आर्थिक एकीकरण ने विकास की प्रक्रिया से जनमानस के एक बड़े हिस्से को हाशिये पर ला दिया। सुशासन का उद्भव उप-सहारा अफ्रीका के देशों में दी जाने वाली आर्थिक सहायता के संदर्भ में विश्व बैंक के दस्तावेजों में हुआ। विकास के उद्देश्यों की प्राप्ति में आर्थिक सहायता की प्रभाविता को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से विश्व बैंक ने सुशासन की अवधारणा का पक्ष लिया। इस परिप्रेक्ष्य में सुशासन का तात्पर्य सामाजिक एवं आर्थिक संसाधनों के विकास के उद्देश्यों के लिए समुचित प्रयोग से है। वैश्वीकरण जनित विकास की प्रक्रिया से बहिष्कृत सामाजिक वर्गा को लोकतांत्रिक प्रक्रिया से जोड़े रखने के लिए नव-उदारवादी राज्यों ने शासन एवं सुशासन की अवधारणाओं को क्रियान्वित किया। अब यह तर्क दिया जाने लगा कि, जहां लोकतंत्र सरकार की वैधता, वहीं सुशासन सरकार की प्रभावशीलता का सूचक है। जहां शासन को प्रक्रिया के रूप में समझा जाता है, वहीं सुशासन एक नैतिक अवधारणा है। सुशासन ने शासन की संकल्पना में गुणात्मक आयाम जोड़ दिया। विश्व बैंक के अनुसार, सुशासन के छह आयाम हैं। इसके अंतर्गत : विचार और जवाबदेयता, राजनीतिक स्थिरता एवं हिसी का अभाव, सरकार की प्रभावशीलता नियामक गुणवत्ता, कानून का शासन एवं न्यायालयों की स्वतंत्रता और भ्रष्टाचार पर नियंत्रण शामिल हैं।'


विकासशील देशों ने सुशासन के अंतर्गत मुख्य रूप से विधिक और न्यायिक सुधारों के साथ विकेंद्रीकरण के उपाय और लोक सेवा सुधारों पर बल दिया। यह लोकतंत्र की व्यापक समझ को दर्शाता है जो अब सिर्फ नियमित चुनावों तक ही सीमित नहीं है। लोकतांत्रिक राज्य सुशासन को दो प्रकार से स्थापित कर सकता है-एक, विकेंद्रीकरण द्वारा और दूसरा, नागरिक समाज संगठनों के साथ साझेदारी द्वारा। सुशासन की अवधारणा राज्य और नागरिक समाज दोनों में सहभागिता, जवाबदेही और पारदर्शिता के सिद्धांतों द्वारा लोकतांत्रिकरण की सिफारिश करती है।