शासन : चुनौतियाँ और मुद्दे/समीक्षात्मक निष्कर्ष
भारत में विकास की प्रक्रिया की दशा और दिशा पर एक नजर डालें तो हम पाते हैं कि एक निश्चित पैटर्न का अभाव है। आजादी के बाद की अधिकतर रणनीतियां ऐतिहासिक आपात निर्णयों का परिणाम दिखती हैं, जिसका असर भी अनिश्चित और अनियमित रहा है। एक लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत लिए गए निर्णय जन समर्थन और अल्पकालीन सोच के परिणाम रहे हैं, जिन पर व्यक्तिगत पसंदों का भी असर रहा है। कविराज का कहना है कि यद्यपि नेहरू की नीतियां अपने तत्कालीन उद्देश्यों के हिसाब से सही प्रतीत होती हैं लेकिन उनके उत्तराधिकारियों ने इन नीतियों में समयगत समीक्षा और परिवर्तन के लिए उपलब्ध अवसरों का उचित लाभ नहीं उठाया, जिसके कारण उपयुक्त समय पर आवश्यक निर्णय नहीं लिए जा सके, जिसके लिए एक लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत अल्पकालीन नीतियां और दूरदर्शी सोच का अभाव जिम्मेदार है। फिर भी यह आशा की जा सकती है कि आने वाले समय में नव-उदारवादी नीतियों का विस्तृत लाभ मिलेगा, लेकिन इसे समावेशी बनाने के लिए राज्य की पर्याप्त और सटीक भूमिका अपेक्षित है, जिसकी कमी पूर्व की नीतियों को लागू करने में भी रही है जैसा कि अतुल कोहली का मानना है।