किसी भी क्षेत्र में शोध करने के लिए विभिन्न तरीकों का प्रयोग किया जाता है। ये विभिन्न तरीके ही शोध की पद्धति कहलाते हैं। शोध-पद्धति विभिन्न प्रकार की होती है जैसे-

  • तुलनात्मक शोध पद्धति- शोध की इस पद्धति के अंतर्गत एक ही भाषा तथा दो या उससे अधिक भिन्न भाषा के समान कवियों अथवा लेखकों, कृतियों और प्रवृत्तियों की आपसी तुलना करके अध्ययन किया जाता है। जैसे- आचार्य रामचंद्र शुक्ल तथा हजारीप्रसाद द्विवेदी की आलोचनात्मक कृतियों का तुलनात्मक अध्ययन।
  • समाजशास्त्रीय शोध पद्धति- इसमें शोध के दौरान साहित्य का सामाजिक तत्त्वों और सामाजिक परिवेश के साथ नैतिक तथा दार्शनिक तत्त्वों का अध्ययन किया जाता है।
  • भाषावैज्ञानिक शोध पद्धति- यह शोध की शास्त्रीय पद्धति है। इसके अंतर्गत भाषा की संरचना का अध्ययन और विश्लेषण किया जाता है।
  • मनोवैज्ञानिक शोध पद्धति- शोध की इस पद्धति के द्वारा रचनाकार तथा उसकी रचना के पात्रों की अंतर्चेतना का मनोवैज्ञानिक ढँग से अध्ययन तथा विश्लेषण किया जाता है।
  • अंतरानुशासनिक- अनुसंधान के अंतर्गत जब प्रत्येक विषय को एक पूर्ण इकाई के रूप में भिन्न-भिन्न न लेकर विभिन्न विषयों को एक समूह में रखा जाए, जिनका लक्ष्य एक ही हो अन्तर-अनुशासनात्मक अनुसन्धान कहलाता है।[१]
  • पाठालोचनात्मक- साहित्यिक क्षेत्र में, पाठालोचन (= पाठ+आलोचन, टेक्सचुअल क्रिटिसिज़म) इस बात का वैज्ञानिक अनुसन्धान या विवेचन करता है कि किसी साहित्यिक कृति के संदिग्ध अंश का मूलपाठ वास्तव में कैसा और क्या रहा होगा। अर्थात किसी ग्रंथ के मूल और वास्तविक पाठ का ऐसा निर्धारण जो पूरा छान-बीन करके किया जाय। इस प्रकार का पाठालोचन मुख्यतः प्राचीन हस्तलिखित ग्रन्थों की अनेक प्रतिलिपियों के मामले में किया जाता है अथवा ऐसी साहित्यिक कृतियों के सम्बन्ध में होता है जिनका प्रकाशन तथा मुद्रण स्वयं लेखक की देख-रेख में न हुआ हो। ग्रन्थों की भूमिकाओं में पाठ तय करने के लिए प्रयुक्त साधनों, सामग्रियों, सिद्धान्तों एवं विधियों आदि का विवरण दिया जाता है।[२]
  • ऐतिहासिक- ऐतिहासिक विधि (Historical method) उन तकनीकों और दिशानिर्देशों का समुच्चय है जिनका उपयोग इतिहासकार अतीत के इतिहास के अनुसन्धान तथा लेखन के लिए करते हैं। इसके लिए प्राथमिक स्रोतों और पुरातत्व सहित अन्य साक्ष्यों का उपयोग किया जाता है।[३]
  • सांस्कृतिक

संदर्भ सम्पादन

  1. अनुसंधान
  2. पाठालोचन
  3. ऐतिहासिक विधि