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हिन्दी भाषा पर

हिन्दी पुस्तक में मेरे सदस्य पृष्ठ को खोल कर पढ़ने के लिए धन्यवाद। लेकिन मैंने जब हिन्दी पुस्तक को पहली बार खोला तब इस पर कुछ ही लेख थे और कोई भी सक्रिय सदस्य नहीं मिला। कुछ ऐसा ही हाल अन्य हिन्दी परियोजना का है। लेकिन मीडियाविकि संस्थान की सबसे अधिक उपयोग की जाने वाली परियोजना तो हिन्दी विकिपीडिया ही है। लेकिन उसमें कई वर्षों से एक लाख लेख ही हैं।

हिन्दी शब्द कोश में भी 12 हजार के आस पास ही दिखे। सभी हिन्दी परियोजनाओं में हिन्दी बहुत ही पीछे है। जबकि इससे कम उपयोग होने वाले भाषा भी हिन्दी से कई गुणा आगे निकल गए हैं। हिन्दी तो दुनिया की चौथी सबसे अधिक बोले जाने वाली भाषा है, तो उसका इतना बुरा हाल कैसे हो सकता है। वैसे भी आज कल तो कई उपकरण हैं। जिससे कोई भी देवनागरी लिपि को भी आसानी से लिख सकता है। गई शब्द कोश भी उपलब्ध है, जिससे कोई बिना अधिक त्रुटि के हिन्दी लिख सकता है। अब यदि उसे हिन्दी आती है तो वह उसका व्याकरण भी कुछ पुस्तक पढ़ कर और अधिक सीख सकता है। कुछ स्थानों पर हिन्दी बोलने वालों की संख्या 50 करोड़ है। लेकिन यदि इस संख्या का 1 प्रतिशत भी कोई हिन्दी विकिपीडिया पर योगदान दे तो यह एक ही दिन में 10 लाख हो जाएगी। फिर भी ऐसा तो नहीं हुआ। अब यदि कोई एक हजार लोग भी हिन्दी में योगदान करते हैं, तो भी एक दिन में कम से कम एक हजार तो बनने ही थे। ऐसा भी नहीं दिखा कभी। अब यदि कम से कम 100 लोग भी हैं, तो वह एक दिन में क्या 100 लेख नहीं बना सकते?

वैसे प्रतिदिन लेख बनाने में अन्य विकि की तुलना करने पर हिन्दी बहुत पीछे है। हिन्दी के बहुत पीछे रहने पर तो में एक बहुत मोटी पुस्तक भी लिख सकता हूँ। जहाँ भी देखता हूँ हिन्दी बहुत पीछे ही दिखती है। कई परियोजनाओं में जब हिन्दी का अनुवाद करने का सोचता हूँ तो दिखता है कि हिन्दी का अनुवाद बहुत कम हुआ है। कभी कभी अनुवाद बहुत सारा हुए रहता है, लेकिन देखने पर मिलता है कि वह आधा से ज्यादा अंग्रेज़ी है। कई प्रकार के मात्रा में त्रुटि तो रहती ही है। अंग्रेज़ी के कई शब्दों को हिन्दी में इस तरह से लिखा जाता है जैसे हिन्दी में कोई शब्द ही नहीं बचे हैं। इतने सरल सरल हिन्दी शब्दों के स्थान पर अंग्रेज़ी के कई शब्दों को जोड़ दिया जाता है।

अब कौन देवनागरी में अंग्रेज़ी के शब्दों का कचरा पढ़ेगा। उसमें भी व्याकरण की गलती तो होती ही है, शब्दों में भी इतनी गलती होती है, कि पता ही नहीं चलता है कि उसे किसी बड़े ने लिखा है। मेरी हिन्दी भी बहुत कमजोर है, लेकिन इतना तो है कि इतनी अधिक गलती नहीं होती कि में ही उसे पढ़ न पाऊँ।

हिन्दी का विकास

लोग हमेशा हिन्दी का विकास का अर्थ समझते हैं कि हिन्दी के लेख बना देना, कोई शब्द कोश का निर्माण या कोई औज़ार बना देना। या कुछ लोग इसे हिन्दी दिवस या हिन्दी बोलने आदि को हिन्दी का विकास समझते हैं।

यूनिकोड के बिना

लेकिन हिन्दी का विकास तो तभी होगा जब उसे यूनिकोड के जाल से मुक्ति मिल जाए। अर्थात जिस तरह से कम्प्यूटर, मोबाइल में अंग्रेज़ी भाषा के लिए पहले से ही उसकी लिपि मौजूद होती है, उसे कोई अनुवाद की आवश्यकता ही नहीं होती है। हर उपकरण में चाहे कोई और भाषा हो या न हो अंग्रेज़ी होती ही है। बस यही इसी को दूर करना है। हमें इस तरह के उपकरण की आवश्यकता है, जिसमें केवल हिन्दी भाषा और लिपि के लिए समर्थन हो। उसे निर्माण के लिए सारे शब्द भी हिन्दी में ही हो। जिस तरह से जालस्थल के पते, ईमेल आदि रोमन लिपि में ही होते हैं। उसी प्रकार के देवनागरी लिपि में ही होने चाहिए। जब ऐसा होगा तब लोग स्वयं ही देवनागरी का ही उपयोग करेंगे।

कुंजी पटल

अंग्रेज़ी के अनेक कुंजीपटल आपको मिल जाएँगे। उसमें रोमन लिपि भी रहती है। क्वेर्टी नामक कुंजी पटल को लोगों ने मानक रूप में माना है। लेकिन हिन्दी में ऐसा कुछ है? नहीं है। मुझे अब तक तो कोई ऐसा कुंजी पटल नहीं मिला जिसमें देवनागरी में लिखा हो। लेकिन विंडोज के प्रणाली में जो कुंजी पटल होता है वह भी बेकार है। क्यों? क्योंकि उसमें आप हिन्दी में लिखते लिखते ? प्रश्न का चिन्ह नहीं लगा सकते हो। हो सकता कि आपके में कुछ अलग हो, लेकिन मैंने कई बार कोशिश किया लेकिन नहीं मिला। गूगल द्वारा प्रदान किया औज़ार तो आधे से ज्यादा अंग्रेज़ी शब्दों को लिखता है। पूर्ण विराम जैसी सुविधा भी नहीं मिला। कई ऐसे जगह हैं जहाँ पूर्ण विराम को भी लिखना कठिन हो गया है।

एक और परेशानी

कई लोगों को हिन्दी में टंकण हेतु जो कुंजी पटल दिया जाता है वह रोमन लिपि में होता है और उसमें मुख्य रूप से कृति देव नामक फॉन्ट मुद्रलिपि द्वारा लिखा जाता है। इसका अर्थ है कि उससे कोई विकिपीडिया पर या किसी अन्य जगह पर योगदान नहीं दे सकता है। उसे केवल प्रिंट निकालने में अपना योगदान देना होता है।

अब कोई इतनी मेहनत कर अपनी तेज टंकण क्षमता को छोड़ कर हिन्दी विकिपीडिया पर कैसे योगदान कर सकता है। तो हिन्दी के हिन्दी विकिपीडिया और अन्य जगह पर हिन्दी के कम होने के कारण कुछ इस तरह से है।

  1. हिन्दी टंकण सीखने वाले कृति देव फॉन्ट से टंकण करते हैं, जो केवल प्रिंट में ही काम आती है। विकिपीडिया या अन्य जालस्थल पर नहीं।
  2. हिन्दी भाषा लिखने हेतु कोई निर्धारित कुंजी पटल नहीं है, तो कोई भी अपने लिए उपयुक्त कुंजी पटल के खोज में ही अपना समय व्यर्थ कर लेगा।
  3. केवल रोमन लिपि में ही कुंजी पटल उपलब्ध है, हिन्दी में नहीं मिलता है।
  4. हिन्दी भाषा को लिखने में यूनिकोड बहुत बड़ी बाधा है, जो कुछ ही जगह लिखने देती है। रोमन लिपि में ऐसा नहीं है।
  5. जब तक जालस्थल के नाम पूर्ण रूप से रोमन में ही होंगे तब तक लोगों को रोमन लिपि में लिखने की आदत तो डालनी ही पड़ेगी।
  6. हिन्दी भाषा को लोग समझते हैं, लेकिन विद्यालय से जाने के बाद उनका पूरा जीवन बिना हिन्दी को देखे ही बीत जाता है। अब ऐसे लोग हिन्दी में क्यों योगदान देंगे।
  7. हिन्दी को सरल करने के चक्कर में ०-९ जैसे अंकों को भी पढ़ाई से हटा दिया गया और साथ ही कई उच्चारण को भी गलत तरीके से लिखना शुरू कर दिया गया। लेकिन कई शब्द ऐसे हैं जो हिन्दी में अलग अलग अक्षरों में होते हैं। उसका कोई भी हल नहीं निकाला गया है।
  8. अंग्रेज़ी भाषा अपने आवश्यकतानुसार किसी भी भाषा से शब्द को ले लेता है। उसे उसके अनुरूप न लगे तो बदलाव कर उसे ले लेता है। (लेकिन ऐसे शब्दों को जो अंग्रेज़ी में न हो)
  9. हिन्दी में लोग अंग्रेज़ी शब्दों को इस तरह से ले लेते हैं जैसे कोई परेशानी ही नहीं है। जबकि केवल उन्हीं शब्दों को लेना चाहिए, जिसका हिन्दी में कोई शब्द न मिले। इस तरह से अंग्रेज़ी को मिला कर लोग एक कचरा बना देते हैं। जिसे कोई हिन्दी भाषा जानने वाला पढ़ कर उसे हटा के अंग्रेज़ी लेख को पढ़ने का सोचेगा।
  10. लोग अंग्रेज़ी भाषा का हिन्दी भाषा में इस तरह से अनुवाद करते हैं कि लगभग एक जैसा ही हो। लेकिन कई अनुवादकों का मानना है कि अनुवाद को केवल लेख में छिपे ज्ञान को अपनी भाषा में पहुँचना होता है।
  11. हिन्दी में लिखने वाले हमेशा यह सोचते हैं कि हिन्दी में किसी भी भाषा से कोई भी शब्द ले लेने से कुछ नहीं होता है। जबकि लोग इसे किराए के शब्द कहते हैं। अर्थात जिस भाषा में जीतने दूसरे भाषा के शब्द होंगे। वह भाषा उतनी कमजोर होगी।
  12. हिन्दी में कुछ भी लिखने के कारण आप देख सकते हैं कि कहीं भी आपको एक तरह की हिन्दी भाषा नहीं मिलेगी। हाँ, पुस्तक में कुछ हद तक एक जैसी हिन्दी मिल जाती है।
परेशानी इतना ही नहीं है
  1. परेशानी बहुत है, लेकिन उसके लिए हमें बहुत अधिक मेहनत करने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन जो थोड़ी सी मेहनत है उसे भी लोग नहीं करते हैं। नीचे कुछ कार्य है, जिसे सभी को करना चाहिए। मैंने तो पहले ही करना शुरू कर दिया है। लेकिन यह कार्य किसी एक दो लोगों के द्वारा पूरे नहीं हो सकते हैं। इसके लिए सभी को मिलकर कार्य करना होगा।
  2. सबसे पहले अपने ब्राउज़र (जाल विचरक) को हिन्दी में करें। इसे हिन्दी में अपने कम्प्यूटर में स्थापित करने पर आप जिस जालस्थल पर जाओगे, उसे इस बात का पता चलेगा कि आपको हिन्दी आती है। इससे हिन्दी का प्रचार होगा और कभी कभी स्वतः ही हिन्दी में लेख खुल जाएगा।
  3. अपने सभी जालस्थल जैसे गूगल, फेसबूक आदि को हिन्दी में करें। गूगल को तो हिन्दी में ही कर दे। इसके अन्दर जाकर एक और व्यवस्था में बदलाव करने। कुछ भी खोजते हैं तो दायें ओर एक गोल चिन्ह होगा जिसमें नट जैसा कोई निशान है उसके अन्दर जाकर आप परिणाम को हिन्दी में ही दिखाएँ करें। इससे आप कभी अंग्रेज़ी में भी कुछ खोजोगे तो उसका परिणाम यदि हिन्दी में भी होगा तो भी दिखेगा।
  4. वैसे गूगल में आप कुछ भी कर लें। वह अंग्रेज़ी तो दिखाता ही है। लेकिन उसे जितना हिन्दी करेंगे। उतना ही हिन्दी भाषा के लिए अच्छा है। इसका लाभ यह भी है कि आप अंग्रेज़ी के साथ साथ हिन्दी के परिणाम भी देख सकेंगे।
  5. वैसे यदि आप हर खोज को पहले हिन्दी में एक बार खोज लें। तो उससे हिन्दी जालस्थल तक आप सीधे पहुँच सकेंगे। यह बहुत सरल है, में हमेशा स्रोत हेतु पहले हिन्दी में खोज करता हूँ। यदि न मिले तो ही अंग्रेज़ी में भी खोज लेता हूँ।
  6. यदि आप हिन्दी में खोज रहे हो तो आप अच्छे हिन्दी शब्दों का उपयोग करें। आप ब्राउज़र के लिए शब्द कोश ले लें। मेरे सदस्य पृष्ठ पर फायर फॉक्स हेतु एक कड़ी है। इससे हिन्दी में आपको अधिक गलती नहीं होगी।
  7. अपने मित्रों से वार्तालाप हेतु हिन्दी भाषा और लिपि का उपयोग करें। इससे अधिक लोग हिन्दी के प्रति आकर्षित होंगे।
  8. सबसे महत्वपूर्ण बात, कृपया हर दिन यह प्रयत्न करें कि आप हिन्दी में अंग्रेज़ी शब्दों का उपयोग नहीं करें। केवल हिन्दी भाषा के उपयोग से ही हिन्दी का विकास होगा।

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अंग्रेज़ी भाषा का विकास केवल इस कारण हुआ कि उसके शब्दों को संरक्षित रखा गया और अंग्रेजों ने कई देशों को गुलाम बनाया था। वैसे इसका और मुख्य कारण है इंटरनेट और कम्प्यूटर... जब तक इन दोनों में पूरी तरह से हिन्दी नहीं आ जाती तब तक हिन्दी का विकास नहीं विनाश ही हो सकता है। वो भी जिस तरह से हम हिन्दी के सरल शब्दों को अंग्रेज़ी के शब्दों से परिवर्तित कर रहे हैं। उस तरह से तो यह बहुत जल्दी हो जाएगा।

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महत्वपूर्ण कड़ी

साँचे

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