सबके लिए सुन्दर आवाजें
सबके लिए सुन्दर आवाजें कवि नरेश अग्रवाल द्वारा रचित एक काव्य पुस्तक हैं। यह सन २००६ में प्रकाशन संस्थान, नई दिल्ली से प्रकाशित हुआ था।
विडम्बना
- यह विडम्बना थी कि
- इन सुंदर दृश्यों को छोडक़र
- वापस मुझे आना होता था
- मेरे ठहराव में उतनी गहराई नहीं थी
- कि स्थापित कर लेता मैं वहीं, अपने आपको
- केवल उनके रंगों से रंगता अपने आपको
- और धीरे-धीरे वापस लौटने पर
- चढ़ जाते थे इन पर, दूसरे ही रंग।
- फिर भी मैंने कभी सोचा नहीं
- एक जगह चुपचाप रहना ही अच्छा होगा
- बल्कि फिर से तलाशी दूसरी धरती
- और पाया ये भी वैसे ही हैं
- पृथ्वी के रंगीन टुकड़े।
- जीवन सभी जगह पर रह सकता था
- क्या तो कठोरता में या क्या तो तरलता में
- और जहां दोनों थे
- वहीं अद्भुत दृश्य बन सके
- और हमें दोनों से तादात्म्य बैठाना था।
चिनार के पेड़
- वे चिनार के पेड़, एक साथ चार की संख्या में
- जैसे एक परिवार और उन पर ढलते हुए सूर्य की रोशनी
- अभी दूर थे हम उनसे
- लेकिन कितना अधिक था
- उनके पास जाने का मोह
- वे काले-काले तने विशाल कद में
- लदे हुए हरे-हरे पत्तों से
- जैसे कई शक्तिशाली पुरुष खड़े हों एक साथ
- कहीं भी देखो
- आंखें फिर उनकी तरफ खिंच जाती
- उनकी जड़ें बड़े गोलाकार चबूतरे सी
- एक-दूसरे से मिली हुई
- झील का पानी उनके समतल बहता हुआ
- और सामने बादल सघन
- कुहासे से सारा आकाश ढक़े हुए
- हम जल्दी से जल्दी पहुंचना चाहते थे इन पेड़ों तक
- बैठना चाहते थे कुछ देर उनके पास
- और अचानक बारिश इतनी तेज
- पहुंच गयी नाव वापस दूसरे किनारे पर
- सारा मोह भंग हो गया एकाएक
- हम भी भींग रहे थे और साथ-साथ वे पेड़ भी
- जो लग रहे थे पहले से अधिक खूबसूरत।