समसामयिकी 2020/आधारभूत संरचना:ऊर्जा,बंदरगाह,सडंक,विमानपत्तन,रेलवे

  • राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन' पर गठित ‘टास्क फोर्स’ (Task Force) द्वारा अपनी अंतिम रिपोर्ट वित्त मंत्री को सौंपी गई। टास्क फोर्स ने वित्त वर्ष 2019-25 के लिये NIP पर अपनी अंतिम रिपोर्ट पेश की है। रिपोर्ट के अनुसार पाँच वित्तीय वर्षों में अर्थात वर्ष 2020-25 की अवधि के दौरान ‘अवसंरचना’ (Infrastructure) पर 111 लाख करोड़ रुपए के निवेश का अनुमान है।

पृष्ठभूमि:-वर्ष 2019 के स्वतंत्रता दिवस पर भारतीय प्रधानमंत्री ने कहा था कि अगले 5 वर्षों में आधारभूत अवसंरचना पर 100 लाख करोड़ रुपए का निवेश किया जाएगा। इसी का अनुसरण करते हुए 31 दिसंबर,2019 को 103 करोड़ रुपए की लागत वाली राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन शुरू की गई। इसमें विभिन्न क्षेत्रों के अंतर्गत 6500 से अधिक परियोजनाएँ शुरू की जाएगी। विजन:-अवसंरचना सेवाओं के माध्यम से लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना तथा वैश्विक मानकों के अनुरूप ‘जीवन सुगमता’ (Ease of Living) को प्राप्त करना। मिशन (Mission): प्रमुख क्षेत्रों में भारत की आधारभूत अवसंरचना के विकास की 5 वर्षीय योजना विकसित करना। वैश्विक मानकों के अनुसार सार्वजनिक अवसंरचना के डिज़ाइन, वितरण और रखरखाव को सुगम बनाना। सार्वजनिक अवसंरचना सेवाओं के विनियमन और प्रशासन में सुधार करना। सार्वजनिक अवसंरचना के क्षेत्र में वैश्विक रैंकिंग में भारत की स्थिति में सुधार करना।

‘राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन’ में आवास, सुरक्षित पेयजल, स्वच्छ पेयजल, स्वच्छ और सस्ती ऊर्जा उपलब्धता और आधुनिक रेलवे स्टेशन जैसी परियोजनाएँ शामिल हैं।

रिपोर्ट के अनुसार ऊर्जा (24%), शहरी नियोजन (17%), रेलवे (12%) और सड़क (18%) जैसे क्षेत्रों पर कुल परियोजना पूंजीगत व्यय के 70% निवेश की आवश्यकता होगी। NIP के कार्यान्वयन में केंद्र (39%) और राज्यों (39%) की लगभग समान हिस्सेदारी होगी साथ ही निजी क्षेत्र से लगभग 22% तक सहयोग होने की उम्मीद है। NIP में 100 करोड़ रुपए से अधिक की लागत वाली सभी ग्रीनफील्ड या ब्राउनफील्ड परियोजनाओं को शामिल किया जाएगा। अगले पाँच वर्षों में अवसंरचना क्षेत्र में निवेश को बढ़ाने के लिये ‘म्यूनिसपल बॉण्ड’ बाज़ार, परिसंपत्ति की बिक्री द्वारा आय, आधारभूत ढाँचे की संपत्ति का मुद्रीकरण, ‘कॉर्पोरेट बॉण्ड’ बाज़ार और आधारभूत अवसंरचना के क्षेत्र के लिये वित्तीय संस्थान की स्थापना करना जैसे उपायों को अपनाना होगा। समितियों का गठन: NIP की प्रगति की निगरानी करने तथा कार्यों का समय पर पूरा करने की दिशा में एक समिति; परियोजना में समन्वयन के लिये प्रत्येक अवसंरचना के लिये मंत्रालय स्तर पर एक संचालन समिति; वित्तीय संसाधन जुटाने के लिये ‘आर्थिक मामलों का विभाग’ (Department of Economic Affairs- DEA) के नियंत्रण में एक संचालन समिति;

  • केंद्रीय गृह राज्य मंत्री की अध्यक्षता में नई दिल्ली में भारतीय भूमि पत्तन प्राधिकरण (Land Ports Authority of India-LPAI) के 8वें स्थापना दिवस का आयोजन किया गया।

केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सीमा पार व्यापार की सुविधा हेतु सीमावर्ती बुनियादी ढाँचे के निर्माण और भारत की भूमि सीमाओं पर यात्रा हेतु किये गए उत्कृष्ट कार्य के लिये LPAI की सराहना की। ज्ञात हो कि भारतीय भूमि पत्तन प्राधिकरण (LPAI) ने करतारपुर साहिब कॉरिडोर में यात्री टर्मिनल भवन के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। करतारपुर गलियारा गुरुद्वारा दरबार साहिब, करतारपुर पाकिस्तान में रावी नदी के तट पर स्थित है और पाकिस्तान में भारत-पाकिस्तान सीमा से लगभग 3-4 किमी. दूर है। यह भारत के गुरदासपुर ज़िले में डेरा बाबा नानक से लगभग 4 किमी. दूर है और पाकिस्तान के लाहौर से लगभग 120 किमी. उत्तर-पूर्व में है। कहा जाता है कि सिख समुदाय के पहले गुरु ने अपने जीवन के महत्त्वपूर्ण वर्ष यहाँ गुज़ारे जिसके कारण यह स्थान सिख धर्म के अनुयायियों के लिये काफी महत्त्वपूर्ण है। भारतीय सिख तीर्थयात्रियों के लिये करतारपुर साहिब की ओर जाने वाले गलियारे को खोलने की मांग भारत द्वारा कई अवसरों पर उठाई जाती रही है। इसके पश्चात् नवंबर 2018 में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में भारतीय केंद्रीय मंत्रिमंडल ने वर्ष 2019 में गुरु नानक देव जी की 550वीं जयंती मनाने का प्रस्ताव पारित किया और साथ ही गुरदासपुर जिले में डेरा बाबा नानक से अंतर्राष्ट्रीय सीमा तक करतारपुर गलियारे के निर्माण और विकास को मंज़ूरी दी गई।

इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में भूमि पत्तन से संबंधित विभिन्न पहलुओं जैसे- यात्रा और क्षेत्रीय संपर्क, एकीकृत चेक पोस्ट (ICPs) पर कार्गो संचालन में चुनौतियाँ और एकीकृत चेक पोस्ट के बुनियादी ढाँचे संबंधी आवश्यकताएँ आदि पर चर्चा की गई। भारतीय भूमि पत्तन प्राधिकरण (Land Ports Authority of India) भारत की अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, चीन, म्याँमार, नेपाल और पाकिस्तान के साथ लगभग 15000 किलोमीटर लंबी अंतर्राष्ट्रीय सीमा है। सीमा क्षेत्र में विभिन्न स्थानों पर व्यक्तियों, माल और वाहनों के आवागमन के लिये कई निर्दिष्ट प्रवेश और निकास स्थान हैं। इस संबंध में विभिन्न सरकारी कार्यों जैसे- सुरक्षा, आव्रजन और सीमा शुल्क आदि के समन्वय तथा नियंत्रण हेतु 1 मार्च, 2012 को भारतीय भूमि पत्तन प्राधिकरण (LPAI) की स्थापना की गई थी। भारतीय भूमि पत्तन प्राधिकरण (LPAI) सीमा प्रबंधन विभाग, गृह मंत्रालय के अधीन एक सांविधिक निकाय है। भारतीय भूमि पत्तन प्राधिकरण अधिनियम, 2010 की धारा 11 के तहत LPAI को भारत की अंतर्राष्ट्रीय सीमा क्षेत्रों में निर्दिष्ट बिंदुओं पर यात्रियों और सामानों की सीमा पार आवाजाही के लिये सुविधाओं को विकसित एवं प्रबंधित करने की शक्तियाँ प्रदान की गई हैं। पृष्ठभूमि वर्ष 2003 में व्यक्तियों, वाहनों और सामानों की सीमा पार आवाजाही के लिये अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे पर चिंता व्यक्त करते हुए सचिव स्तर की एक समिति ने भारत की भूमि सीमाओं के प्रमुख प्रवेश बिंदुओं पर एकीकृत चेक पोस्ट (ICPs) स्थापित करने की सिफारिश की। इसके पश्चात् इस कार्य को करने के लिये एक स्वायत्त एजेंसी की संरचना की सिफारिश करने हेतु एक अंतर-मंत्रालयी कार्यदल का गठन किया गया। अंतर-मंत्रालयी कार्यदल ने विभिन्न विकल्पों पर विचार कर ICPs के निर्माण, प्रबंधन और रखरखाव के लिये एजेंसी हेतु सबसे उपयुक्त मॉडल के रूप में एक सांविधिक निकाय की सिफारिश की। इस प्रकार भारतीय भूमि पत्तन प्राधिकरण (LPAI) का गठन किया गया।

प्राधिकरण के कार्य भारतीय भूमि पत्तन प्राधिकरण अधिनियम, 2010 की धारा 11 की उप-धारा (2) में भारतीय भूमि पत्तन प्राधिकरण के विभिन्न कार्यों का उल्लेख किया गया है:

एकीकृत चेक पोस्ट पर राष्ट्रीय राजमार्गों, राज्य राजमार्गों और रेलवे के अतिरिक्त सड़कों, टर्मिनलों एवं सहायक भवनों की योजना, निर्माण तथा रखरखाव करना; एकीकृत चेक पोस्ट पर संचार, सुरक्षा, माल की हैंडलिंग और स्कैनिंग उपकरणों को खरीदना, स्थापित करना और उनका रखरखाव करना; एकीकृत चेक पोस्ट पर नियुक्त कर्मचारियों के लिये आवास की व्यवस्था करना; प्राधिकरण को सौंपे गए किसी भी कार्य के निर्वहन के लिये संयुक्त उपक्रम स्थापित करना।

‘विश्व आर्थिक मंच’ (WEF) द्वारा जारी‘ऊर्जा संक्रमण सूचकांक’ (Energy Transition Index- ETI)- 2020 में भारत को 74 स्थान प्राप्त हुआ सम्पादन

यह सूचकांक ऊर्जा क्षेत्र में 115 देशों 'नेट-शून्य उत्सर्जन' (Net-Zero Emissions) की दौड़ में अग्रणी देशों तथा उनकी स्थिति का विश्लेषण करती है। ‘नेट-शून्य उत्सर्जन’ उस स्थिति को कहा जाता है,जब मानव द्वारा उत्सर्जित ‘ग्रीनहाउस गैस’ (Greenhouse Gas- GHG) को वायुमंडल से हटाकर संतुलित कर दिया जाए। विश्व आर्थिक मंच वर्ष 1971 में स्थापित एक गैर-लाभकारी संस्था है। ऊर्जा संक्रमण की दिशा में देशों की तैयारी की गणना निम्नलिखित 6 संकेतकों के आधार पर की जाती है:

  1. पूंजी और निवेश;
  2. विनियमन और राजनीतिक प्रतिबद्धता;
  3. संस्थान और शासन;
  4. संस्थान और अभिनव व्यावसायिक वातावरण;
  5. मानव पूंजी एवं उपभोक्ता भागीदारी;
  6. ऊर्जा प्रणाली संरचना;

महत्त्वपूर्ण प्रणालियों का प्रदर्शन मापन:-इसका मापन ऊर्जा त्रिकोण (Energy Triangle) के निम्नलिखित संकेतकों के आधार पर किया जाता है।

  1. आर्थिक विकास और वृद्धि;
  2. ऊर्जा की पहुँच और सुरक्षा;
  3. पर्यावरणीय स्थिरता;

स्वीडन लगातार तीसरे वर्ष समग्र ETI रैंकिंग में शीर्ष पर स्थान पर रहा है, उसके बाद स्विट्जरलैंड और फिनलैंड का स्थान हैं। शीर्ष स्थान पर वे देश रहे हैं जिन्होंने अपने ऊर्जा आयात तथा ऊर्जा सब्सिडी में कमी की है तथा राष्ट्रीय जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने की दिशा में मज़बूत राजनीतिक प्रतिबद्धता व्यक्त की है। G-20 देशों में से केवल यूनाइटेड किंगडम और फ्रांँस ही शीर्ष 10 में शामिल हैं, जबकि शेष अन्य छोटे राष्ट्र हैं। प्रमुख देशों की रैंकिंग: देश-ऊर्जा संक्रमण सूचकांक- 2020 में स्थान

  1. अमेरिका -32
  2. भारत -74
  3. चीन-78

वर्ष 2015 के बाद से 115 देशों में से केवल 11 देशों के ETI स्कोर में लगातार सुधार देखा गया है। अर्जेंटीना, चीन, भारत और इटली ऊर्जा संक्रमण की दिशा में लगातार सुधार करने वाले प्रमुख देशों में से हैं। अमेरिका पहली बार शीर्ष 25 देशों की सूची से बाहर रहा है क्योंकि अमेरिका की ‘ऊर्जा संक्रमण नीतियों’ में हाल ही में अनिश्चितता देखी गई है। भारत की रैंकिंग और कारण: भारत ने ऊर्जा त्रिभुज के तीनों आयामों में सुधार किया है तथा भारत ETI-2019 के 76 वें स्थान से दो स्थानों का सुधार करके 74 वें स्थान पर आ गया है। भारत सरकार वर्ष 2027 तक 275 GW नवीनीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य प्राप्ति की दिशा में उठाए गए कदमों के कारण ही भारत की रैंकिंग में सुधार देखा गया है। COVID-19 महामारी का प्रभाव: COVID-19 महामारी के ऊर्जा क्षेत्र को निम्नलिखित तरीकों से प्रभावित किया है: वैश्विक ऊर्जा मांग में लगभग एक तिहाई की गिरावट; ऊर्जा निवेश तथा परियोजनाओं का रूकना या विलंबित होना; ऊर्जा क्षेत्र से जुड़े लोगों के रोजगार का प्रभावित होना; परंतु भविष्य की ऊर्जा की ज़रूरतों को कैसे पूरा किया जाए, महामारी इस पर पुनर्विचार करने का अवसर प्रदान करता है।

COVID-19 के कारण लॉकडाउन और विद्युत की मांग में गिरावट के मद्देनज़र कुछ राज्यों ने अक्षय ऊर्जा (Renewable Energy) खरीद में कटौती एवं उत्पादकों को भुगतान न करने को लेकर नोटिस जारी किये हैं। राज्यों ने विद्युत खरीद समझौते (Power Purchase Agreements-PPA) में फोर्स मेजर प्रावधान (Force Majeure clause-FMC) का प्रयोग करते हुये विद्युत खरीद में कटौती एवं अक्षय ऊर्जा उत्पादकों को भुगतान न करने का निर्णय लिया है।

पंजाब ने राज्य को विद्युत आपूर्ति करने वाले कुछ अक्षय ऊर्जा उत्पादकों को नोटिस भेजा है कि वह विद्युत खरीद में कमी करें।
उत्तर प्रदेश पहला राज्य है, जिसने फोर्स मेजर और राजस्व घटने की वजह से भुगतान करने में सक्षम न होने के कारण सौर ऊर्जा परियोजनाओं को भुगतान करने से इनकार कर दिया था। भारतीय सौर ऊर्जा निगम (Solar Energy Corporation of India-SECI) ने इससे जुड़े आवेदन को खारिज कर दिया था।
मध्य प्रदेश देश का प्रमुख अक्षय ऊर्जा उत्पादक राज्य है,उसने सभी अक्षय ऊर्जा उत्पादकों को नोटिस भेजा है कि विद्युत खरीद समझौते के तहत वह बाध्यताएँ (ऊर्जा वितरण संबंधी) पूरी करने में सक्षम नहीं है क्योंकि विद्युत बिल संग्रह से आने वाले राजस्व में बहुत कमी आई है।

अक्षय ऊर्जा में सौर, पवन, छोटी पनबिजली परियोजनाएँऔर बॉयोमास शामिल हैं। इनका संचालन अनिवार्य होता है जिसका मतलब यह है कि इन्हें किसी भी स्थिति में रोका या बंद नहीं किया जा सकता है। आपूर्ति में फोर्स मेजर प्रावधान या परियोजना चालू करने के प्रावधान में तमाम वजहें और परिस्थितियाँ दी गई हैं, जो मानव के नियंत्रण से बाहर हैं। इन प्रावधानों में उत्पादन संबंधी किसी पक्ष को पूरी तरह से हटाने का प्रावधान नहीं है, बल्कि इस नियम से आपूर्ति को कुछ समय के लिये रोका जा सकता है।

भारतीय सौर ऊर्जा निगम लिमिटेड (Solar Energy Corporation of India):- 20 सितंबर 2011को स्थापित नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के अधीन एक केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम है। इसकी स्थापना जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय सौर मिशन के क्रियान्वयन और उसमें निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये की गई थी।

यह सौर ऊर्जा क्षेत्र को समर्पित एकमात्र केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम है। इसे मूल रूप में कंपनी अधिनियम, 1956 की धारा 25 की कंपनी (नॉट फॉर प्रॉफिट) के तहत निगमित किया गया था।

बंदरगाह सम्पादन

  • अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत आने से पहले गुजरात के कच्छ ज़िले में दीनदयाल बंदरगाह (कांडला बंदरगाह) के पास पपरवा द्वीप (Paparva Island) पर एक सैटेलाइट फोन मिला।

गुजरात राज्य के कच्छ ज़िले में गांधीधाम शहर के निकट स्थित एक समुद्री बंदरगाह है। यह गुजरात राज्य के कच्छ की खाड़ी में अवस्थित एक ज्वारीय पत्तन है जिसे कांडला बंदरगाह ट्रस्ट के नाम से भी जाना जाता है। यह देश के सबसे बड़े बंदरगाहों में से एक है। दीनदयाल पोर्ट कांडला क्रीक में स्थित है और यह कच्छ की खाड़ी के मुहाने से 90 किलोमीटर की दूरी पर है। वर्ष 1947 में विभाजन के बाद देश के पश्चिमी तट का सबसे बड़ा बंदरगाह ‘कराची बंदरगाह’ पाकिस्तान में चला गया, जिसके बाद वर्ष 1950 में भारत के उत्तर-पश्चिम भाग में कांडला बंदरगाह का निर्माण किया गया। यह बंदरगाह भारत सरकार के जहाज़रानी मंत्रालय के अंतर्गत आता है। 4 अक्तूबर, 2017 को इसका नाम ‘कांडला बंदरगाह’ से बदल कर ‘दीनदयाल बंदरगाह’ कर दिया गया था। दीनदयाल बंदरगाह पाकिस्तान के कराची बंदरगाह से 256 समुद्री मील (दक्षिण-पूर्व में) एवं मुंबई बंदरगाह से 430 समुद्री मील (उत्तर-पश्चिम में) की दूरी पर अवस्थित है। पपरवा द्वीप दीनदयाल बंदरगाह के पास कच्छ की खाड़ी में स्थित है। काकीनाडा पोर्ट (Kakinada Port) भारत के पूर्वी तट पर आंध्र प्रदेश के काकीनाडा में स्थित है। काकीनाडा पोर्ट, विशाखापत्तनम पोर्ट के दक्षिण में 170 किमी. की दूरी पर स्थित है। काकीनाडा पोर्ट पूर्व और पश्चिम गोदावरी ज़िलों, कृष्णा, गुंटूर और पूरे तेलंगाना क्षेत्र को सुविधा प्रदान करता है। इस क्षेत्र से आयात-निर्यात किये जाने वाले उत्पादों में कृषि उत्पाद, खनिज, कोयला और उर्वरक शामिल हैं। यह नवंबर 1997 में आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा स्थापित किया गया था किंतु वर्ष 1999 में इसका निजीकरण कर दिया गया।

  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने महाराष्ट्र के दहानु (Dahanu) के पास वधावन बंदरगाह (Vadhavan Port) स्थापित करने के लिये सैद्धांतिक मंज़ूरी दे दी है। इसेे ‘लैंडलॉर्ड पोर्ट मॉडल’ (LandLord Port Model) के तहत विकसित किया जाएगा। इस मॉडल में बंदरगाह प्राधिकरण एक नियामक निकाय तथा ज़मीन के मुखिया के रूप में कार्य करता है,जबकि निजी कंपनियाँ बंदरगाह के संचालन (मुख्य रूप से कार्गो-हैंडलिंग गतिविधियाँ) का काम करती हैं।

इस पोर्ट के विकास के लिये जवाहरलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट (JNPT) के साथ एक स्पेशल पर्पज़ व्हीकल (SPV) का गठन किया जाएगा जो परियोजना में 50% या उससे अधिक के बराबर इक्विटी भागीदार होगा। स्पेशल पर्पज़ व्हीकल (SPV), बंदरगाह अवसंरचना का विकास करेगा बाकी सभी व्यावसायिक गतिविधियाँ निजी डेवलपर्स द्वारा पीपीपी माॅडल के तहत की जाएंगी।

नवी मुंबई स्थित जवाहरलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट (JNPT) को पहले न्हावा शेवा बंदरगाह के नाम से जाना जाता था। इसकी शुरुआत 26 मई, 1989 को हुई थी।
यह भारत का सबसे बड़ा तथा विश्व का 28वाँ सबसे बड़ा कंटेनर पोर्ट है जिसमें 5.1 मिलियन टीईयू (Twenty-Foot Equivalent Units-TEUs) ट्रैफिक वहन करने की क्षमता है। इस पोर्ट के चौथे टर्मिनल के पूरा होने के बाद तथा वर्ष 2023 तक 10 मिलियन टीईयू तक की क्षमता में वृद्धि के साथ यह विश्व में 17वाँ सबसे बड़ा कंटेनर पोर्ट बन जाएगा।

जवाहरलाल नेहरू पोर्ट का विस्तार महाराष्ट्र,उत्तरी कर्नाटक,तेलंगाना,गुजरात,मध्य प्रदेश,राजस्थान,राजधानी क्षेत्र दिल्ली,पंजाब और उत्तर प्रदेश को विश्व से जोड़ने की सुविधा प्रदान करता है।

जवाहरलाल नेहरू पोर्ट और मुंद्रा, भारत के दो सबसे बड़े कंटेनर हैंडलिंग पोर्ट (केवल मध्य आकार के कंटेनर जहाज़ों के लिये) हैं जिनकी गहराई क्रमशः 15 मीटर और 16 मीटर है, जबकि विश्व के सबसे बड़े कंटेनर में आधुनिक डीप पोर्ट का संचालन करने के लिये 18-20 मीटर की गहराई की आवश्यकता होती है।

मुख्य (Major) पोर्टस का विकास केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है,जबकि छोटे बंदरगाह राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र में आते हैं।

लाभ:-
  1. वधावन बंदरगाह के विकास से 16000-25000 टीईयू क्षमता के कंटेनर जहाज़ों का परिचालन आसान हो जाएगा जिससे परिवहन लागत में कमी आएगी।
  2. भारत विश्व के शीर्ष 10 कंटेनर बंदरगाहों वाले देशों में शामिल हो जाएगा।
  3. लॉजिस्टिक इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बनाने,मेक इन इंडिया पहल को निर्यातोन्मुखी बनाने तथा भारत में सोर्सिंग के निर्माण से संबंधित योजनाओं के बाद कंटेनर ट्रैफिक की मांग में और तेजी आएगी।
  • कर्नाटक उच्च न्यायालय ने सागरमाला परियोजना के तहत कारवार बंदरगाह का विस्तार करने की परियोजना के खिलाफ स्थानीय मछुआरों के विरोध को देखते हुए इसके दूसरे चरण के कार्यों पर रोक लगाने का आदेश दिया है।

कारवार बंदरगाह का विस्तार कार्य अरब सागर तट पर स्थित उत्तरा कन्नड़ ज़िले में हो रहा था। इस समुद्री तट को रबींद्रनाथ टैगोर समुद्र तट (Rabindranath Tagore beach) भी कहा जाता है। कर्नाटक उच्च न्यायालय ने अधिकारियों को समुद्र तट को उसकी मूल स्थिति में बहाल करने का भी निर्देश दिया।

कारवार बंदरगाह, न्यू मंगलोर पोर्ट और मर्मुगाओ पोर्ट के बीच कारवार की खाड़ी में स्थित है। यह एक प्राकृतिक बंदरगाह है। यह वर्ष भर समुद्री जहाज़ों के लिये सुविधा प्रदान करता है।

यह राज्य सरकार के स्वामित्व वाला एकमात्र बंदरगाह है और इसका संचालन कर्नाटक सरकार द्वारा किया जाता है। यह उत्तरी कर्नाटक, गोवा और दक्षिणी महाराष्ट्र को सेवाएँ प्रदान करता है। भारत के पश्चिमी तट पर अवस्थित प्रमुख बंदरगाह हैं

  1. दीनदयाल पोर्ट (कांडला, गुजरात)
  2. मुंबई पोर्ट (महाराष्ट्र)
  3. जवाहरलाल नेहरू पोर्ट (न्हावा शेवा, महाराष्ट्र)
  4. मर्मुगाओ (गोवा)
  5. न्यू मंगलौर (कर्नाटक)
  6. कोच्चि (केरल)
  • कृष्णापट्टनम पोर्ट का नामकरण विजयनगर साम्राज्य के सम्राट कृष्णदेवराय के नाम पर किया गया है। चेन्नई से लगभग 180 किमी. दूर आंध्र प्रदेश के नेल्लोर ज़िले में अवस्थित है।

1980 के दशक में,भारत सरकार ने इस पोर्ट को छोटे पोर्ट की श्रेणी में शामिल कर दिया था। केंद्र सरकार बड़े पोर्ट के विकास के लिए ज़िम्मेदार है जबकि छोटे पोर्ट, संबंधित राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र में आते हैं।

  • केंद्रीय जहाज़रानी राज्य मंत्री (Minister of State for Shipping) ने मुंबई में भौचा ढाक्का (Bhaucha Dhakka) से मांडवा (Mandwa) के बीच रोपैक्स सेवा (ROPAX Service) का उद्घाटन किया। पूर्वी वाटरफ्रंट डेवलपमेंट के तहत रोपैक्स सेवा एक ‘जल परिवहन सेवा परियोजना’ (Water Transport Service Project) है। मुंबई से मांडवा के बीच सड़क के माध्यम से दूरी 110 किलोमीटर हैं, अत्यधिक यातायात जाम की स्थिति में 110 किलोमीटर की दूरी तय करने में 3-4 घंटे लगते है जबकि जलमार्ग से यह दूरी मात्र 18 किलोमीटर है और इसे रोपैक्स सेवा से तय करने में केवल एक घंटा ही लगेगा।

ईस्टर्न वाटरफ्रंट डेवलपमेंट (Eastern Waterfront Development): ईस्टर्न वाटरफ्रंट मुंबई पोर्ट ट्रस्ट की योजना है इस योजना के तहत मुंबई की पूर्वी तटीय बंदरगाह भूमि को सस्सून डॉक (Sassoon Dock) से वडाला तक विकसित किया जाएगा। मुंबई पोर्ट ट्रस्ट भारत सरकार के जहाज़रानी मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त निकाय है। इस परियोजना के तहत कुछ प्रमुख प्रस्तावों में हाजी बंदर (Haji Bunder) के पास 93 हेक्टेयर का पार्क तथा पर्यटन से संबंधित परियोजनाओं जैसे कि उन्नत सड़कों एवं किफायती आवासों के लिये 17 हेक्टेयर के पार्क का निर्माण शामिल है।

जहाज़रानी मंत्रालय के अनुसार,अर्थ-गंगा परियोजना से गंगा नदी के किनारे आर्थिक गतिविधियों में बढ़ोतरी होने के साथ-साथ रोज़गार के अवसर बढ़ेंगे सम्पादन

दिसंबर 2019 में संपन्न हुई राष्ट्रीय गंगा परिषद (National Ganga Council- NGC) की प्रथम बैठक में प्रधानमंत्री ने गंगा नदी से संबंधित आर्थिक गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित करने के साथ ही ‘नमामि गंगे’ परियोजना को ‘अर्थ-गंगा’ जैसे एक सतत् विकास मॉडल में परिवर्तित करने का आग्रह किया था।

  • अर्थ गंगा:-इस प्रक्रिया में किसानों को टिकाऊ कृषि पद्धतियों को अपनाने के लिये प्रोत्साहित किया जाएगा,जिसमें शून्य बजट खेती, फलदार वृक्ष लगाना और गंगा के किनारों पर पौध नर्सरी का निर्माण करना शामिल है। इन कार्यों के लिये महिला स्व-सहायता समूहों और पूर्व सैनिक संगठनों को प्राथमिकता दी जाएगी।
  • सरकार द्वारा उठाए गए कदम और उनकी महत्ता:
  1. राष्ट्रीय जलमार्ग-1(बनारस से हल्दिया तक के 1400 किमी० क्षेत्र में) पर किसानों,व्यापारियों और आम जनता के लिये कई प्रकार की गतिविधियाँ, जैसे- छोटे घाटों (Jetties) आदि का विकास किया गया है।
  2. परिणामस्वरूप इससे किसानों को अपनी उपज के लिये बेहतर लाभ मिलेगा क्योंकि माल का परिवहन आसान और वहनीय होगा।
  3. इसके अलावा इससे ईज़ ऑफ लिविंग (Ease of Living) में वृद्धि और व्यापार करने में आसानी (Ease of Doing Business) होगी।
  4. भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण माल/कार्गो के आसान और लागत प्रभावी परिवहन के लिये छोटे- छोटे घाटों (Jetties) और 10 रो-रो जहाज़ों को तैनात कर रहा है।
  5. इसके अलावा जहाज़रानी मंत्रालय अंतर्देशीय जलमार्ग के साथ तालमेल बनाने के उद्देश्य से वाराणसी (उत्तर प्रदेश) फ्रेट विलेज और साहिबगंज (झारखंड) औद्योगिक क्लस्टर-सह-लॉजिस्टिक्स पार्क को 200 करोड़ रुपए की लागत से विकसित कर रहा है।
  6. यह विशेष क्षेत्र में आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देते हुए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोज़गार पैदा करेगा।

अन्य तथ्य

  • भारत एक राष्ट्र के रूप में आर्थिक परिवर्तन हेतु सदैव नेपाल का समर्थन करता रहा है।
  • राष्ट्रीय जलमार्ग-1 त्रिपक्षीय तरीके से {वाराणसी से नौतनवा (280 किमी), रक्सौल (204 किमी) और साहिबगंज विराटनगर (233 किमी)} नेपाल के साथ संबंधों को सुधारने के लिये एक मुख्य संघटन के रूप में कार्य करेगा।
  • इससे पहले नेपाल माल परिवहन के लिये कोलकाता और विशाखापत्तनम पोर्ट से जुड़ा था।
  • अब भारत और नेपाल सरकार के मध्य कार्गो के पारगमन के लिये संधि (Treaty for Transit of Cargo) के तहत अंतर्देशीय जलमार्ग, विशेष रूप से NW-1 को अनुमति दी जाएगी।
  • इससे न केवल लॉजिस्टिक लागत घटेगी बल्कि कोलकाता पोर्ट पर भीड़ भी कम होगी।
  • वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि इस वर्ष निर्यात में महत्त्वपूर्ण सुधार आने और आयात में कमी होने के कारण देश के भुगतान शेष (Balance of Payments-BoP) की स्थिति काफी मज़बूत रहने की उम्मीद है।

सड़क सम्पादन

  • सीमा सड़क संगठन ने हिमस्खलन की आशंका वाले ज़ोजिल ला (Zojil La) दर्रे के सभी अवरोधों को हटा दिया है जिससे रणनीतिक श्रीनगर-लेह राजमार्ग मार्च महीने के अंत तक खुल सकता है। लद्दाख (भारतीय केंद्रशासित प्रदेश) में स्थित ज़ोजिल ला दर्रा श्रीनगर को कारगिल एवं लेह से जोड़ने वाला महत्त्वपूर्ण सड़क संपर्क मार्ग है।

कारगिल ज़िले में स्थित यह दर्रा पश्चिम में कश्मीर घाटी को उत्तर-पूर्व में द्रास एवं सुरू घाटियों से जोड़ता है। इस मार्ग से गुज़रने वाली सड़क को राष्ट्रीय राजमार्ग (NH)-1D के रूप में निर्दिष्ट किया गया है। भारत सरकार ने सीमा सड़क संगठन (BRO) को सर्दियों के दौरान सड़क आवागमन को बनाए रखने के लिये इस मार्ग में आने वाले बर्फ अवरोधों को हटाने की ज़िम्मेदारी सौंपी है। इन सभी प्रयासों के बावजूद यह मार्ग दिसंबर से मध्य मई तक बंद रहता है। श्रीनगर से लेह तक दुर्गम सड़क मार्ग को आसान बनाने वाली रणनीतिक जोज़िला सुरंग को वर्ष 2018 में मंजू़री प्रदान की गई थी। सात वर्ष में पूरी होने वाली इस सुरंग की लंबाई 14.5 किलोमीटर है।

  • मई में 'एशियाई विकास बैंक' और भारत ने महाराष्ट्र में सड़कों के सुधार के लिये 177 मिलियन डॉलर के ऋण पर हस्ताक्षर किये। ADB द्वारा प्रदत इस ऋण की मदद से महाराष्ट्र के 2 प्रमुख ज़िलों की सड़कों, 450 किलोमीटर के 11 राज्यमार्ग, राष्ट्रीय राजमार्ग, अंतर्राष्ट्रीय सड़कों, बंदरगाह, हवाई अड्डे, ज़िला मुख्यालय, औद्योगिक क्षेत्र और कृषि क्षेत्र की सड़कों में सुधार किया जाएगा।

महाराष्ट्र लोक निर्माण विभाग की परियोजनाओं से जुड़े कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने पर ध्‍यान केंद्रित किया जाएगा ताकि सड़कों के डिज़ाइन, योजना और सड़क सुरक्षा पर कार्य करते समय उन्हें जलवायु परिवर्तन और आपदा के अनुकूल निर्मित किया जा सके। उद्देश्य:-राज्य में ग्रामीण क्षेत्रों और शहरी केंद्रों को जोड़ने वाली सड़कों में सुधार कर ग्रामीण लोगों को बेहतर बाज़ार, रोज़गार के अवसर और सेवाएँ उपलब्ध कराना। राज्य के प्रमुख शहरों और कस्बों तक बेहतर आवागमन का विस्तार करना जिससे विकास और आजीविका के अवसर में वृद्धि हो सके। उल्लेखनीय है कि ऐसे उपाय लोगों की आय में असमानता को कम करने में सहायक साबित हो सकते हैं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर की सर्वोत्तम कार्य प्रणाली के माध्यम से सड़क सुरक्षा हेतु एक रूप-रेखा तैयार करना। इस रूप-रेखा से सड़क दुर्घटना में कम आएगी। ADB द्वारा प्रदत इस ऋण का उद्देश्य सड़कों की रख-रखाव प्रणाली में सुधार भी करना है।

विमानपत्तन सम्पादन

  • जनवरी 2020 के नए प्रस्ताव के अनुसार, सरकार एयर इंडिया और एयर इंडिया एक्सप्रेस लिमिटेड में अपनी 100 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचेगी। साथ ही सरकार एयर इंडिया-SATS (एयर इंडिया और SATS लिमिटेड, सिंगापुर का संयुक्त उपक्रम) में अपनी 50 प्रतिशत हिस्सेदारी को भी बेचेगी। वहीं वर्ष 2018 में सरकार ने एयर इंडिया की मात्र 76 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचने का प्रस्ताव किया था, जो कि सरकार के प्रयास की विफलता का मुख्य कारण था।

एयर इंडिया के खरीदार को कुल ऋण में से 23,286.50 करोड़ रुपए के ऋण का भी अधिग्रहण करना होगा, जबकि वर्ष 2018 में यह 33,392 करोड़ रुपए था। सरकार ने एयर इंडिया के निजीकरण को लेकर जो नया प्रस्ताव पारित किया है, उसमें एयर इंडिया के कर्मचारियों के रोज़गार संबंधी मुद्दे को संबोधित नहीं किया गया है। एयर इंडिया और एयर इंडिया एक्सप्रेस में वर्तमान में कुल 17,984 कर्मचारी हैं जिसमें से 9,617 स्थायी कर्मचारी हैं।

एयर इंडिया की शुरुआत 15 अक्तूबर, 1932 को जहाँगीर रतनजी दादाभाई टाटा (JRD Tata) द्वारा की गई थी। जे.आर.डी. टाटा की अगुवाई वाली टाटा संस (Tata Sons) की विमानन शाखा ने हवाई मेल भेजने के लिये इंपीरियल एयरवेज़ से कॉन्ट्रैक्ट लेने के पश्चात् टाटा एयर सर्विसेज़ (Tata Air Services) की स्थापना की थी।

वर्ष 1938 में टाटा एयर सर्विसेज़ का नाम बदलकर टाटा एयरलाइंस कर दिया गया। टाटा एयरलाइंस ने वर्ष 1939 से 1945 तक चले द्वितीय विश्वयुद्ध (World War II) के दौरान महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की। द्वितीय विश्वयुद्ध के समापन के पश्चात् 29 जुलाई, 1946 को टाटा एयरलाइंस एक सूचीबद्ध कंपनी बन गई और इसका नाम बदलकर एयर इंडिया कर दिया गया। वर्ष 1947 में स्वतंत्रता के पश्चात् भारत सरकार ने वर्ष 1948 में एयर इंडिया के 49 प्रतिशत हिस्सेदारी का अधिग्रहण कर लिया। वर्ष 1953 में भारत सरकार ने वायु निगम अधिनियम (Air Corporations Act) के माध्यम से एयर इंडिया की अधिकांश हिस्सेदारी का अधिग्रहण कर लिया और इसे ‘एयर इंडिया इंटरनेशनल लिमिटेड’ नया नाम दिया गया। हालाँकि जे.आर.डी. टाटा वर्ष 1977 तक ‘एयर इंडिया इंटरनेशनल लिमिटेड’ के अध्यक्ष बने रहे। एयर इंडिया की वित्तीय स्थिति वर्तमान में एयर इंडिया के बेड़े में कुल 121 विमान और एयर इंडिया एक्सप्रेस के बेड़े में कुल 25 विमान मौजूद हैं। इसमें एयर इंडिया के 4 बोइंग 747-400 जंबोजेट विमानों को शामिल नहीं किया गया है, क्योंकि एयर इंडिया के खरीदार को ये बोइंग विमान नहीं दिये जाएंगे। इसके अलावा एयर इंडिया के पास बिल्डिंग्स के रूप में कुछ अचल संपत्ति भी है, जिसे सरकार अपने पास बरकरार रखेगी। आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2018-19 में संसाधनों के अल्प-उपयोग और ईंधन की कीमतों में बढ़ोतरी के कारण एयर इंडिया को कुल 8,556.35 करोड़ रुपए के नुकसान का सामना करना पड़ा था, जो कि एयर इंडिया का अब तक का सर्वाधिक नुकसान था। मौजूदा समय में एयर इंडिया पर कुल 60,074 करोड़ रुपए का ऋण है। एयर इंडिया के निजीकरण का नया प्रस्ताव

  • राष्ट्रीय एयरोस्पेस प्रयोगशाला ने सरकार से सारस MK2 को व्यावसायिक रूप से व्यवहारिक बनाने का आग्रह किया।

सारस MK2,19 सीटों वाला एक विमान है,जिसे 50 करोड़ रुपए की लागत से विकसित किया गया है,यह लागत इसी तरह के अन्य विमानों की तुलना में 20-25% कम है। इस पहले स्वदेशी हल्के परिवहन विमान का विकास राष्ट्रीय एयरोस्पेस प्रयोगशाला (NAL) ने किया है। NAL ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर संसदीय स्थायी समिति से कहा है कि सरकार सारस MK2 का उपयोग उड़ान (UDAN-Ude Desh Ka Aam Nagrik) के तहत करे, क्योंकि इसे अर्द्ध- निर्मित एवं कच्ची हवाई पट्टियों से भी संचालित किया जा सकता है। NAL ने वीआईपी (VIP) सेवाओं तथा प्राकृतिक आपदाओं के समय आपात स्थितियों से निपटने के लिये भी सारस MK2 का उपयोग करने का सुझाव दिया है।

राष्ट्रीय एयरोस्पेस प्रयोगशाला (National Aerospace Laboratory):- यह देश के नागरिक क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देने वाली भारत की पहली बड़ी और एकमात्र सरकारी एयरोस्पेस प्रयोगशाला है।

इसे वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (Council of Scientific and Industrial Research-CSIR) द्वारा वर्ष 1959 में दिल्ली में स्थापित किया गया था। इसके मुख्यालय को वर्ष 1960 में बंगलूरू स्थानांतरित कर दिया गया था।

रेलवे सम्पादन

  • पूर्वोत्तर भारत को बांग्लादेश से जोड़ने वाली रेल लाइन वर्ष 2021 तक बन कर तैयार होगी।

भारतीय क्षेत्र में 5.46 किलोमीटर रेल ट्रैक बिछाने की लागत का वहन पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय (Ministry of Development of North Eastern Region) द्वारा जबकि बांग्लादेशी क्षेत्र में 10.6 किलोमीटर ट्रैक बिछाने की लागत विदेश मंत्रालय (Ministry of External Affairs) द्वारा वहन की जा रही है। त्रिपुरा राज्य के अगरतला और बांग्लादेश के अखौरा के बीच यह रेल लाइन पूर्वोत्तर क्षेत्र से बांग्लादेश तक चलने वाली पहली ट्रेन का मार्ग प्रशस्त करेगी। यह रेल लिंक बांग्लादेश के गंगासागर (Gangasagar) को भारत के निश्चिन्तपुर (Nischintapur) और वहाँ से अगरतला को जोड़ेगा।

आस्कदिशा (ASKDISHA)चैटबॉट का उन्नयन सम्पादन

भारतीय रेलवे खानपान एवं पर्यटन निगम लिमिटेड (IRCTC) द्वारा इसका विकास ग्राहकों के साथ हिंदी भाषा में बातचीत करने और ई-टिकटिंग वेबसाइट www.irctc.co.in का उपयोग आसानी से करने के लिये किया गया है।

रेल यात्रियों को प्रदान की जाने वाली विभिन्न सेवाओं के संबंध में इंटरनेट पर रेल यात्रियों की समस्याओं के समाधान के लिये भारतीय रेलवे ने अक्तूबर 2018 में कृत्रिम बुद्धिमता आधारित आस्कदिशा नामक एक चैटबॉट की सुविधा शुरू की थी।

इस चैटबॉट की शुरुआत टिकटिंग वेबसाइट www.irctc.co.in एवं IRCTC की पर्यटन वेबसाइट www.irctctourism.com के उपयोगकर्त्ताओं को सुविधा प्रदान करने के लिये की गई है।

चैटबॉट (ChatBot) एक विशेष कंप्यूटर प्रोग्राम है जिसे मुख्य रूप से इंटरनेट पर उपयोगकर्त्ताओं के साथ वार्तालाप करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।

यह निर्धारित संस्था द्वारा प्रदान की जाने वाली सुविधाओं से संबंधित जानकारी उपयोगकर्त्ताओं को प्रदान करता है। चैटबॉट के उदाहरण गूगल असिसटेंट, अलेक्सा और आस्कदिशा इत्यादि हैं। आस्कदिशा को पहले केवल अंग्रेजी भाषा में शुरू किया गया था किंतु ग्राहकों को बेहतर सेवाएँ प्रदान करने हेतु अब इसे हिंदी भाषा में भी शुरू किया गया। आस्कदिशा पर प्रतिदिन हिंदी भाषा में औसतन 3000 फोन काल की जाती हैं और यह संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है जो ग्राहकों में इसकी स्वीकार्यता को प्रदर्शित करता है। IRCTC की निकट भविष्य में कई अन्य अतिरिक्त सुविधाओं के साथ अधिक-से-अधिक भाषाओं में इसकी शुरुआत करने की योजना है। ASKDISHA को लॉन्च किये जाने के बाद से टिकट जारी करना,आरक्षण रद्द करना,रिफंड की स्थिति की जाँच करना, किराया, PNR सर्च, ट्रेन का रनिंग स्टेटस, रिटायरिंग रूम और पर्यटन संबंधी उत्पादों के बारे में पूछताछ के संबंध में 150 मिलियन से अधिक यात्रियों को लाभान्वित किया गया है।

रेल मंत्रालय और बर्मिंघम विश्वविद्यालय के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर सम्पादन

इस समझौते के तहत अगली पीढ़ी की परिवहन प्रणालियों के विकास के लिये एक उत्कृष्टता केंद्र की स्थापना की जाएगी। यह पहल राष्ट्रीय रेल एवं परिवहन संस्थान के छात्रों को बर्मिंघम सेंटर फॉर रेलवे रिसर्च एंड एजुकेशन (BCRRE) में रेलवे सिस्टम संबंधी विश्व स्तर की विशेषज्ञता और सुविधाओं तक पहुँच प्रदान करके लाभान्वित करेगी।

राष्ट्रीय रेल एवं परिवहन संस्थान(National Rail & Transportation Institute)वड़ोदरा (गुजरात) में स्थित भारत का पहला रेल विश्वविद्यालय है जो परिवहन प्रणाली से संबंधित शिक्षा,बहु-विषयक अनुसंधान और प्रशिक्षण पर केंद्रित है। यू.जी.सी. की नोवो श्रेणी (Novo Category) नियमन (Institutions Deemed to be Universities, Regulations), 2016 के अंतर्गत मानित विश्वविद्यालय के रूप में स्थापित किया गया है।

(NRTI) का उद्देश्य अंतःविषयक केंद्रों का विकास करना है जो परिवहन क्षेत्र में अनुसंधान एवं शिक्षा को बढ़ावा देने में सहायक होंगे। इस संस्थान को विशेष रूप से रेलवे तथा अन्य परिवहन क्षेत्र के लिये सर्वश्रेष्ठ श्रेणी के पेशेवरों का पूल निर्मित करने के लिये स्थापित किया गया है। (NRTI) भारत के परिवहन क्षेत्र की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये डिज़ाइन किये गए कार्यक्रमों को लागू करने की पेशकश करता है। यह संस्थान उद्योगों की प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए मांग आधारित पाठ्यक्रम को बढ़ावा देता है। राष्ट्रीय रेल एवं परिवहन संस्थान (NRTI) विश्व के शीर्ष विश्वविद्यालयों एवं संगठनों के साथ वैश्विक तथा राष्ट्रीय साझेदारी विकसित करने पर केंद्रित है।

बर्मिंघम विश्वविद्यालय (यूनाइटेड किंगडम) में स्थापित बर्मिंघम सेंटर फॉर रेलवे रिसर्च एंड एजुकेशन (BCRRE) में 150 से अधिक शिक्षाविद, शोधकर्त्ता और पेशेवर कर्मचारी काम करते हैं जो वैश्विक रेल उद्योग के लिये विश्व स्तरीय अनुसंधान, शिक्षा और नेतृत्व प्रदान करते हैं।

BCRRE यूरोप में विश्वविद्यालय आधारित रेलवे अनुसंधान एवं शिक्षा का सबसे बड़ा केंद्र है जिसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन, वायुगतिकी ( Aerodynamics) और अंतर्राष्ट्रीय बेंचमार्किंग, पावर सिस्टम और ऊर्जा उपयोग प्रणाली, रेलवे नियंत्रण एवं संचालन सिमुलेशन में उच्च शैक्षिक कार्यक्रमों, अनुसंधान एवं नवाचारों के साथ-साथ विश्व की अग्रणी नई तकनीकों को विकसित करना है।