समसामयिकी 2020/ग़रीबी एवं भूख से संबंधित विषय
- 15 जुलाई को ‘नीति आयोग’ ने सतत् विकास, 2020 को लेकर डिजिटल माध्यम से आयोजित संयुक्त राष्ट्र उच्च स्तरीय राजनीतिक मंच (United Nations High-level Political Forum-HLPF) पर दूसरी ‘स्वैच्छिक राष्ट्रीय समीक्षा’ (Voluntary National Review-VNR) जारी की है।
VNR समीक्षा रिपोर्ट स्वैच्छिक रूप से देशों द्वारा स्वयं तैयार की जाती है, जिसका उद्देश्य ‘सतत विकास एजेंडा’ को लागू करने में मिली सफलताओं और चुनौतियों समेत इस संबंध में प्राप्त सभी अनुभवों को साझा करने की सुविधा प्रदान करना है। ‘सतत् विकास लक्ष्य’- 1 अर्थात गरीबी की समाप्ति (NO POVERTY) है, जिसका लक्ष्य गरीबी को इसके सभी रूपों में हर जगह से समाप्त करना है। VNR रिपोर्ट में प्रस्तुत अनुमान, जुलाई 2019 'बहुआयामी गरीबी सूचकांक' (Multidimensional Poverty Index- MPI) के आधार पर तैयार किये गए थे।
- हाल ही में ‘संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम’ (United Nations Development Programme-UNDP) तथा ‘ऑक्सफोर्ड पॉवर्टी एंड ह्यूमन डवलपमेंट इनीशिएटिव’ (Oxford Poverty and Human Development Initiative- OPHI) द्वारा ‘वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक’ (Global Multidimensional Poverty Index, 2020-GMPI) से संबंधित आँकड़े जारी किये गए हैं।
बहुआयामी गरीबी से संबंधित इस अध्ययन का शीर्षक ‘चार्टिंग पाथवे आउट ऑफ मल्टीडायमेंशनल पावर्टी: अचिएविंग द एसडीजी’ (Charting pathways out of multidimensional poverty: Achieving the SDGs’ ) है। यह अध्ययन वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक पर आधारित था, जो प्रत्येक वर्ष व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से गरीब लोगों के जीवन की जटिलताओं की माप करता है। रिपोर्ट का सार:
प्रकाशित आँकड़ों के अनुसार, 107 विकासशील देशों में, 1.3 बिलियन लोग बहुआयामी गरीबी से प्रभावित हैं। बच्चों में बहुआयामी गरीबी की उच्च दर देखी गई है: बहुआयामी गरीबी आयु से ग्रसित गरीब लोगों (644 मिलियन) में आधे 18 वर्ष से कम आयु के बच्चे हैं। सब-सहारा अफ्रीका (558 मिलियन) और दक्षिण एशिया (530 मिलियन) में लगभग 84.3 प्रतिशत बहुआयामी गरीब लोग रहते हैं। बहुआयामी गरीबी से प्रभावित 67 प्रतिशत लोग मध्यम आय वाले देशों से संबंधित हैं। जहाँ बहुआयामी गरीबी का प्रभाव राष्ट्रीय स्तर पर 0 प्रतिशत से 57 प्रतिशत और उप-राष्ट्रीय स्तर पर 0 प्रतिशत से 91 प्रतिशत तक है। प्रकाशित आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2000 से वर्ष 2019 के मध्य 75 में से 65 देशों में बहुआयामी गरीबी के स्तर में कमी देखी गई है। इस अध्ययन में पूर्व, मध्य और दक्षिण एशिया, यूरोप, लैटिन अमेरिका और कैरिबियन, उप-सहारा अफ्रीका और प्रशांत के 75 देशों को शामिल किया गया है। इस अध्ययन में वैश्विक स्तर पर पाँच अरब लोगों की बहुआयामी गरीबी की एक व्यापक तस्वीर प्रस्तुत की गई है। आँकड़ों के अनुसार, 65 देश ऐसे हैं जिनके ‘बहुआयामी गरीबी सूचकांक’ के स्तर में कमी आई है। 65 देशों में 50 ऐसे देश हैं जहाँ गरीबी में रहने वाले लोगों की संख्या में भी उल्लेखनीय कमी देखी गई है। आँकड़ों के अनुसार, भारत समेत चार देशों ने 5.5 से 10.5 वर्षों में अपनी वैश्विक बहुआयामी गरीबी को कम करके आधा कर लिया है। चीन में वर्ष 2010 से वर्ष 2014 के मध्य 70 मिलियन लोग तथा भारत के एक अन्य पड़ोसी देश बांग्लादेश में वर्ष 2014 से वर्ष 2019 के मध्य 19 मिलियन लोग बहुआयामी गरीबी के कुचक्र से बाहर निकलने में कामयाब हुए हैं। सतत विकास लक्ष्य और वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक
यह सूचकांक वर्ष 2030 से 10 वर्ष पहले ही वैश्विक गरीबी की एक व्यापक और गहन तस्वीर प्रदान करता है , जो कि सतत विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goal-SDG) को प्राप्त करने की नियत वर्ष है, जिसका पहला लक्ष्य हर जगह अपने सभी रूपों में गरीबी को समाप्त करना है। GMPI 2020 : आयाम, संकेतक
यह बताता है कि लोग तीन प्रमुख आयामों में किस प्रकार पीछे रह जाते हैं: स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर, जिसमें 10 संकेतक शामिल हैं। जो लोग इन भारित संकेतकों में से कम से कम एक तिहाई में अभाव का अनुभव करते हैं, वे बहुआयामी रूप से गरीब की श्रेणी में आते हैं। GMPI-2020
भारत की स्थिति
सम्पादनबहुआयामी गरीबी से बाहर निकलने वाले लोगों की सर्वाधिक संख्या भारत में देखी गई है। भारत में वर्ष 2005-06 से वर्ष 2015-16 के मध्य 27.3 करोड़ लोग गरीबी के कुचक्र से बाहर निकलने में सफल हुए हैं। अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2005-06 में भारत में 55.1 प्रतिशत लोग बहुआयामी गरीबी के अधीन थे जबकि वर्ष 2015-16 में यह स्तर घटकर 27.9 प्रतिशत हो गया है। वर्ष 2018 तक भारत में लगभग 37.7 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी से ग्रसित थे। वर्ष 2015-16 तक, लोगों के पास बुनियादी ज़रूरतों के अभाव की प्रतिशतता 43.9 थी, जबकि वर्ष 2015-16 में 8.8 प्रतिशत जनसंख्या गंभीर बहुआयामी गरीबी के कुच्रक में शामिल थी। वर्ष 2016 तक, भारत में 21.2 प्रतिशत लोग पोषण से वंचित थे। 26.2 प्रतिशत लोग के पास भोजन पकाने के ईंधन का अभाव रहा।
24.6 प्रतिशत लोग स्वच्छता और 6.2 प्रतिशत लोग पेयजल से वंचित रहे।
8.6 प्रतिशत लोग बिजली के अभाव में एवं 23.6 प्रतिशत लोग आवास के अभाव में रहे हैं । भारत तथा निकारगुआ द्वारा क्रमश पिछले 10 वर्षों एवं 10.5 वर्षों के दौरान बच्चों के बहुआयामी गरीबी सूचकांक को भी आधा कर लिया गया है। रिपोर्ट के अनुसार तीन दक्षिण एशियाई देश - भारत, बांग्लादेश और नेपाल - अपने MPI मूल्य को तीव्रता से कम करने वाले उन 16 देशों में शामिल है जिन्होंने सबसे तीव्र गति से MPI के मूल्य को कम किया है।
‘ऑक्सफोर्ड पॉवर्टी एंड ह्यूमन डवलपमेंट इनीशिएटिव’ (OPHI)
सम्पादनयह ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में अंतर्राष्ट्रीय विकास विभाग के तहत स्थापित एक आर्थिक अनुसंधान और नीति केंद्र है। इसकी स्थापना वर्ष 2007 में की गई थी। OPHI का उद्देश्य लोगों के अनुभवों और मूल्यों के आधार पर बहुआयामी गरीबी को कम करने के लिये एक अधिक व्यवस्थित पद्धति एवं आर्थिक ढाँचे का निर्माण एवं प्रगति करना है। इस अध्ययन में कोरोना महामारी के संदर्भ में भी ज़िक्र किया गया है इसमे यह बताने की कोशिश की गई है कि यह अध्ययन महामारी के बाद दुनिया भर में गरीबी के बढ़ने का अनुमान नहीं लगा सकता परंतु यदि हम इस वैश्विक महामारी संकट को छोड़ दें तो आने वाले 3 से 10 वर्षों में 70 विकासशील देश पुनः वैश्विक प्रगति पर वापस आ सकते हैं। प्रतिरक्षा:
अध्ययन में बहुआयामी गरीबी और टीकाकरण के बीच संबंधों पर भी प्रकाश डाला गया है। डिप्थीरिया, टेटनस और पर्टुसिस टीकों की तीन खुराक प्राप्त करने वाले बच्चों का प्रतिशत इस बात का सूचक था कि विभिन्न देशों द्वारा नियमित टीकाकरण को कितनी गंभीरता से लिया जा रहा है। अध्ययन के अनुसार, 10 देशों में 60 प्रतिशत बच्चों में डिप्थीरिया, टेटनस और पर्टुसिस के लिये टीकाकरण नहीं हुआ है। अध्ययन में इस बात का अनुमान लगाया गया है कि घनी आबादी वाले विकासशील देशों में उच्च प्रतिरक्षण कवरेज होने के बावजूद बड़ी संख्या में ऐसे बच्चों की संख्या मौजूद है जो टीकाकरण से छूट सकते हैं। अध्ययन में भारत को एक उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया गया है जहाँ 2.6 मिलियन बच्चे टीकाकरण से वंचित हैं। बहुआयामी गरीबी:
‘ऑक्सफोर्ड पॉवर्टी एंड ह्यूमन डवलपमेंट इनीशिएटिव’ के अनुसार, बहुआयामी गरीबी के निर्धारण में लोगों द्वारा दैनिक जीवन में अनुभव किये जाने वाले सभी अभावों/कमी को समाहित किया जाता है। अध्ययन के अनुसार, ये वो गरीब एवं वंचित लोग हैं जो जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय गिरावट से सबसे अधिक पीड़ित हैं, यही वजह है कि वे एक ‘दोहरा बोझ’ उठाते हैं। वे पर्यावरण में गिरावट, वायु प्रदूषण, स्वच्छ पानी की कमी और अस्वस्थ स्वच्छता की स्थिति के प्रति कमज़ोर/ भेद्य हैं जिन्हें पर्याप्त पोषण या उचित आवास सुविधाएँ भी प्राप्त नहीं हैं। इसके निर्धारण में खराब स्वास्थ्य, शिक्षा की कमी, जीवन स्तर में अपर्याप्तता, काम की खराब गुणवत्ता, हिंसा का खतरा तथा ऐसे क्षेत्रों में रहना जो पर्यावरण के लिये खतरनाक होते हैं जैसे कारकों को शामिल किया जाता है। गरीबी:
गरीबी से आशय उस सामाजिक अवस्था से है जब समाज के एक वर्ग के लोग अपने जीवन की बुनियादी ज़रूरतों को पूरा नहीं कर पाते हैं।
गरीबी के प्रकार:
गरीबी को 2 रूपों में देखा जा सकता है- सापेक्ष गरीबी तथा निरपेक्ष गरीबी।
1. सापेक्ष गरीबी सापेक्ष गरीबी यह स्पष्ट करती है कि विभिन्न आय वर्गों के बीच कितनी असमानता विद्यमान है। सापेक्ष गरीबी के निर्धारण के लिये लॅारेंज वक्र विधि तथा गिन्नी गुणांक विधि का प्रयोग किया जाता है। लॅारेंज वक्र विधि के माध्यम से आय तथा जनसंख्या के संचयी प्रतिशत को अभिव्यक्त किया जाता है। यदि सभी की आय बराबर हो अर्थात 10% लोगों के पास 10% हिस्सा हो तो एक विशेष प्रकार का लॅारेंज वक्र प्राप्त होगा जिसे निरपेक्ष समता रेखा कहते है। लॅारेंज वक्र निरपेक्ष समता रेखा से जितनी दूर होगा लोगों के बीच आय में असमानता उतनी ही अधिक होगी और यह वक्र निरपेक्ष समता रेखा के जितने पास होगा आय में असमानता उतनी ही कम होगी। Lawrence-curve
गिनी गुणांक विधि का प्रयोग आय या संपत्ति की असमानता को मापने के लिये किया जाता है। गिनी गुणांक लारेंज वक्र, निरपेक्ष समता रेखा (45 डिग्री) के बीच का क्षेत्रफल होता है। गिनी गुणांक का मूल्य 0 से 1 के बीच होता है जहाँ 1 निरपेक्ष असामनता की स्थिति तथा 0 निरपेक्ष समानता को स्थिति को दर्शाता है। 2. निरपेक्ष गरीबी:
निरपेक्ष गरीबी न्यूनतम आय अथवा उपभभोक्ता स्तर पर आधारित होती है। इसका निर्धारण करते समय मनुष्यों की पोषण आवश्यकताओं तथा अनिवार्यताओं के आधार पर आय या उपभोग व्यय के न्यूनतम स्तर को ज्ञात किया जाता है। इस न्यूनतम निर्धारित स्तर से कम व्यय करने वाले व्यक्ति को गरीब या गरीबी रेखा से नीचे रहने वाला कहा जाता है। गरीबी के इस प्रतिमान में हेड काउंट अनुपात (Head Count Ratio- HCR) का प्रयोग किया जाता है। हेड काउंट अनुपात समाज में लोगों का वह अनुपात या प्रतिशत है जिनकी आय या खर्च गरीबी रेखा से नीचे रहती है। गरीबी उन्मूलन हेतु भारत सरकार के प्रयास:
भारत सरकार द्वारा गरीबी उन्मूलन के लिये कई योजनाएँ क्रियान्वित की जा रही हैं जिनमे से कुछ इस प्रकार हैं-
प्रधानमंत्री जन धन योजना (Pradhan Mantri Jan Dhan Yojana-PMJDY): प्रधानमंत्री जन धन योजना का उद्देश्य समाज के वंचित वर्गो एवं कमज़ोर वर्गों को विभिन्न वित्तीय सेवाएँ यथा- मूल बचत बैंक खाते की उपलब्धता, आवश्यकता आधारित ऋण की उपलब्धता, विप्रेषण सुविधा, बीमा तथा पेंशन उपलब्ध कराना सुनिश्चित करना है। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (Mahatma Gandhi Employment Guarantee Act-MGNREGA): महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम के अंतर्गत प्रत्येक ग्रामीण परिवार के एक वयस्क सदस्य को स्वेच्छा से मांगने पर 100 दिनों का अकुशल रोज़गार प्रदान करने की गारंटी दी गई है। इनके अलावा ग्रामीण श्रम रोज़गार गारंटी कार्यक्रम (Rural Landless Employment Guarantee Programme- RLEGP), राष्ट्रीय पारिवारिक लाभ योजना (National Family Benefit Scheme-NFBS), प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना (Pradhan Mantri Gramin Awaas Yojana) आदि योजनाओं के माध्यम से गरीबी उन्मूलन हेतु प्रयास किये जा रहे हैं। वर्ष 2017 में नीति आयोग द्वारा गरीबी दूर करने के लिये एक विज़न डॉक्यूमेंट प्रस्तावित किया था जिसके अनुसार भारत में वर्ष 2032 तक गरीबी दूर करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।