समसामयिकी 2020/चर्चित जनजातियाँ


  • प्रत्येक वर्ष 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस या विश्व के देशज़ लोगों का अंतर्राष्ट्रीय दिवस (International Day of the World’s Indigenous Peoples) मनाया जाता है।

इस वर्ष विश्व आदिवासी दिवस की थीम ‘COVID-19 और स्वदेशी लोगों का लचीलापन’ (COVID-19 and Indigenous Peoples’ Resilience) है।

विश्व आदिवासी दिवस का उद्देश्य विश्व की देशज़ आबादी के अधिकारों को बढ़ावा देना एवं उनकी रक्षा करना है।

प्रमुख बिंदु: 9 अगस्त, 1982 को जेनेवा (स्विट्ज़रलैंड) में देशज़ आबादी पर संयुक्त राष्ट्र कार्य समूह (United Nations Working Group on Indigenous Populations) की पहली बैठक आयोजित की गई थी। जिसके परिप्रेक्ष्य में प्रति वर्ष 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस मनाया जाता है। यह दिवस संयुक्त राष्ट्र की घोषणा के अनुसार, वर्ष 1994 से प्रत्येक वर्ष 9 अगस्त को मनाया जाता है। इस वर्ष विश्व आदिवासी दिवस पर मनाये जाने वाले समारोह आदिवासी भाषाओं के संरक्षण एवं प्रलेखन पर केंद्रित थे। मानवविज्ञानियों ने तमिलनाडु में अपनी अनूठी संस्कृति, जीवन शैली, विभिन्न प्रकार बोलियों का प्रयोग करने वाली 500 से अधिक जनजातियों की पहचान की है। इनमें से छह जनजातियों- थोडा (Thoda), पनियार (Paniyar), कट्टुनाइक्कर (Kattunaickar), इरुला (Irula), कुरुम्बा (Kurumba) और कोठार (Kothar) को नीलगिरी ज़िले में देखा जा सकता है जो पश्चिमी घाट से संबंधित हैं।

  • ‘अधिकार एवं जोखिम विश्लेषण समूह’ (Rights and Risks Analysis Group) ने अरुणाचल प्रदेश में चकमा (Chakma) एवं हजोंग (Hajong) समुदायों हेतु भोजन सुनिश्चित कराने के लिये भारतीय प्रधानमंत्री के हस्तक्षेप की मांग की है।चकमा एवं हाजोंग समुदायों को कथित तौर पर COVID-19 महामारी के मद्देनज़र केंद्र सरकार द्वारा घोषित COVID-19 आर्थिक राहत पैकेज में शामिल नहीं किया गया है। चूँकि दोनों समुदायों के सदस्य कानूनी रूप से भारत के नागरिक बन गए हैं इसलिए भोजन से वंचित करना संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है।
चकमा (Chakma) एवं हजोंग (Hajong) नृजातीय लोग हैं जो चटगाँव पहाड़ी इलाकों में रहते थे जिसका अधिकांश भाग बांग्लादेश में स्थित है।

चकमा मुख्य रूप से बौद्ध हैं जबकि हाजोंग लोगों का संबंध हिंदू धर्म से है। ये मुख्य रूप से पूर्वोत्तर भारत, पश्चिम बंगाल, बांग्लादेश एवं म्यांमार में निवास करते हैं। चकमा एवं हाजोंग शरणार्थी मूलतः पूर्वी पाकिस्तान के चटगाँव हिल ट्रैक्ट्स (Chittagong Hill Tracts) के निवासी थे किंतु बांग्लादेश में कर्नाफुली (Karnaphuli) नदी पर बनाए गए कपटाई बाँध के कारण जब वर्ष 1960 में उनका क्षेत्र जलमग्न हो गया तथा बांग्लादेश में धार्मिक उत्पीड़न का सामना करने के कारण इन दोनों समुदायों ने असम की लुशाई पहाड़ी (जिसे अब मिज़ोरम कहा जाता है) के माध्यम से भारत में प्रवेश किया। इसके पश्चात् भारत सरकार द्वारा अधिकांश शरणार्थियों को उत्तर-पूर्व सीमांत एजेंसी (जिसे अब अरुणाचल प्रदेश कहा जाता है) में बनाए गए राहत शिविरों में भेज दिया गया।

वर्ष 2015 में सर्वोच्च न्यायालय ने भारत सरकार को अरुणाचल प्रदेश में रह रहे अधिकांश चकमा और हाजोंग शरणार्थियों को नागरिकता प्रदान करने का आदेश दिया था। ये दोनों समुदाय नागरिकता संशोधन अधिनियम (Citizenship Amendment Act- CAA), 2019 के दायरे में नहीं आते हैं क्योंकि अरुणाचल प्रदेश, CAA से छूट प्राप्त राज्यों में से एक है।

वर्तमान में चकमा एवं हाजोंग नागरिकता अधिनियम की धारा 3(1) के अनुसार जन्म से नागरिक हैं और इनके पास भारत के नागरिक के रूप में वोट देने का अधिकार है। इन्हें वर्ष 2004 में मतदान का अधिकार दिया गया था।

  • भारत सरकार के जनजाति मामलों के मंत्री ने 27 फरवरी, 2020 को भुवनेश्वर (ओडिशा) में ‘स्थानीय स्व- शासन में अनुसूचित जनजाति प्रतिनिधियों की क्षमता निर्माण हेतु कार्यक्रम’ के अवसर पर ‘1000 स्प्रिंग इनिशिएटिव्स’ (1000 Spring Initiatives) और जीआईएस-आधारित स्प्रिंग एटलस से संबंधित सूचनाओं के लिये एक ऑनलाइन पोर्टल लॉन्च किया गया।

इस पहल का उद्देश्य ग्रामीण भारत के कठिन एवं दुर्गम क्षेत्रों में रह रहे जनजातीय लोगों के लिये सुरक्षित एवं पर्याप्त जलापूर्ति में सुधार करना है। स्प्रिंग्स (Springs): स्प्रिंग्स मूल रूप से भूजल निर्वहन के प्राकृतिक स्रोत हैं जिनका उपयोग विश्व में पर्वतीय क्षेत्रों के साथ-साथ भारत में भी बड़े पैमाने पर किया जाता रहा है। स्प्रिंग्स वह स्रोत बिंदु है जहाँ किसी जलभृत (Aquifer) से जल निकलकर पृथ्वी की सतह पर बहता है। यह जलमंडल का एक घटक है। हालाँकि 75% से अधिक जनजातीय आबादी वाले मध्य एवं पूर्वी भारत में स्प्रिंग्स का कम उपयोग किया जाता है। मुख्य बिंदु: इस पहल में पेयजल के लिये पाइपों से जलापूर्ति हेतु बुनियादी ढाँचे का निर्माण करना शामिल है। जिससे सिंचाई और बैकयार्ड पोषण उद्यान (Backyard Nutrition Gardens) के लिये जल की व्यवस्था हो सके, परिणामतः जनजातीय लोगों के लिये स्थायी आजीविका के अवसर उत्पन्न किये जा सकेंगे। यह पहल बारहमासी स्प्रिंग्स के जल का उपयोग करने में सहायता करेगी जिसका उपयोग जनजातीय क्षेत्रों में पानी की कमी को दूर करने के लिये किया जाएगा। जीआईएस आधारित स्प्रिंग एटलस पर ऑनलाइन पोर्टल (Online portal on GIS-based Spring Atlas): इस ऑनलाइन पोर्टल को स्प्रिंग्स पर आधारित डेटा तक पहुँच में सुधार करने हेतु लॉन्च किया गया है। वर्तमान में स्प्रिंग एटलस पर 170 से अधिक स्प्रिंग्स का डेटा उपलब्ध है।

  • भारत सरकार के जनजाति मामलों के मंत्री ने 27 फरवरी, 2020 को भुवनेश्वर (ओडिशा) में ‘स्थानीय स्व शासन में अनुसूचित जनजाति प्रतिनिधियों की क्षमता निर्माण हेतु कार्यक्रम’ (Programme for Capacity Building of Scheduled Tribe Representatives in Local Self Governments) का शुभारंभ किया।

इस क्षमता निर्माण पहल का उद्देश्य स्थानीय स्तर पर पंचायती राज संस्थाओं में जनजातीय प्रतिनिधियों के निर्णय लेने की क्षमताओं में सुधार करके उनको सशक्त बनाना है। मुख्य बिंदु: यह क्षमता निर्माण कार्यक्रम संवैधानिक एवं कानूनी प्रावधानों पर ध्यान केंद्रित करेगा जो जनजातीय लोगों के कल्याण एवं उनके अधिकारों के संरक्षण को बढ़ावा देता है। यह कार्यक्रम सरकारी नीतियों एवं कार्यक्रमों के क्रियान्वयन तथा निगरानी के कार्य में पंचायती राज संस्थाओं के जनजाति प्रतिनिधियों की अधिक-से-अधिक भागीदारी सुनिश्चित करेगा। इस क्षमता निर्माण कार्यक्रम के मॉड्यूल को संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (United Nations Development Programme) के संयोजन में विकसित किया गया है।

  • भारतीय संसद में लोकसभा ने ध्वनि-मत से संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश (संशोधन) विधेयक, 2019 पारित कर दिया। इस विधेयक में परिवारा (Parivara) और तलवारा (Talawara) समुदायों को अनुसूचित जनजाति वर्ग में शामिल करने का प्रयास किया गया है ताकि उन्हें सरकार द्वारा प्रदान किये जाने वाले आरक्षण एवं अन्य लाभ प्राप्त हों।

बेलागवी (Belagavi) और धारवाड़ (Dharwad) की सिद्दी जनजातियों को भी इसमें शामिल किया जाएगा। सिद्दी जनजाति के लोग इंडो-अफ्रीकी आदिवासी समुदाय से हैं। इन्हें हब्शी (Habshi) और बादशा (Badsha) जैसे विभिन्न नामों से भी जाना जाता है। सिद्दी लोग भारत के पश्चिमी तट पर स्थित गुजरात, महाराष्ट्र एवं कर्नाटक राज्यों में निवास करते हैं। ये मूल रूप से गुजरात के जूनागढ़ ज़िले में निवास करते हैं सिद्दी लोग ज़्यादातर रोमन कैथोलिक हैं किंतु कुछ लोग हिंदू और इस्लाम धर्म का पालन करते हैं। इनका पहनावा पारंपरिक हिंदू और मुस्लिम पहनावे का संयोजन है। भारत सरकार ने 8 जनवरी, 2003 को सिद्दी जनजाति को अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में वर्गीकृत किया था। सिद्दी विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूहों (Particularly Vulnerable Tribal Groups- PVTGs) में से एक है।

  • मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में गोंड रानी कमलापति (Rani Kamlapati) की 32 फुट ऊँची प्रतिमा का अनावरण किया गया।

1710 के दशक में भोपाल की ऊपरी झील के आसपास के क्षेत्र को मुख्य रूप से भील एवं गोंड जनजातियों द्वारा बसाया गया था। स्थानीय गोंड सरदारों में सबसे शक्तिशाली निज़ाम शाह ने अपने क्षेत्र पर गिन्नौर किले से शासन किया था। वर्तमान में गिन्नौर का किला मध्य प्रदेश के सिहोर ज़िले में है। गिन्नोर को एक अभेद्य किला माना जाता था जो लगभग 2000 फुट ऊँची चट्टान के शिखर पर स्थित था और घने जंगलों से घिरा हुआ था। चौधरी कृपा-रामचंद्र की बेटी रानी कमलापति निज़ाम शाह की सात पत्नियों में से एक थी। वह अपनी सुंदरता एवं प्रतिभा के लिये प्रसिद्ध थी। स्थानीय किवदंतियों में उन्हें परी से भी अधिक सुंदर बताया गया है। निज़ाम शाह की मृत्यु के बाद कुछ समय तक रानी कमलापति ने दोस्त मोहम्मद खान (Dost Mohammad Khan) की मदद से इस क्षेत्र पर शासन किया।

  • नगा और कुकी शांति समझौता(Naga and Kuki Peace Agreement)

नगा जनजातियों के संगठन नगा राष्ट्रीय राजनीतिक समूह (Naga National Political Groups- NNPGs) और कुकी जनजातियों के संगठन कुकी राष्ट्रीय संगठन (Kuki National Organisation- KNO) ने विवादास्पद मुद्दों और अंतर-सामुदायिक मतभेदों को शांतिपूर्वक निपटाने के लिये एक घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किये हैं।

मुख्य बिंदु: 1990 के दशक की शुरुआत में नगा और कुकी जनजातियों के बीच जातीय संघर्ष के बाद नगा अधिपत्य और उनके दावों से निपटने के लिए कई कुकी संगठनों का गठन हुआ। वर्ष 1993 में नगा जनजातियों और कुकी जनजातियों के बीच संघर्ष में 230 से अधिक लोगों की जान गई और 1,00,000 लोग विस्थापित हुए थे। इनमें से ज़्यादातर कुकी लोग थे।

  • कुकी भारत, बांग्लादेश और म्याँमार में पाए जाने वाले कुछ जनजातियों के समूह को कहते हैं, ये जनजातियाँ सामान्यतः पहाड़ी क्षेत्रों में ही निवास करती हैं।

निवास एवं नृजातीय समूह: भारत में अरुणाचल प्रदेश को छोड़कर कुकी जनजाति लगभग सभी उत्तर-पूर्वी राज्यों में पाई जाती है और इस जनजाति का संबंध मंगोलॉयड समूह (Mongoloid group) से है। संवैधानिक स्थिति: भारतीय संविधान में चिन-कुकी समूह की लगभग 50 जनजातियों को अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में रखा गया है। चिन-कुकी समूह (Chin-Kuki group) के बारे में म्याँमार के चिन प्रांत के लोगों के लिये ‘चिन’ पद का प्रयोग किया जाता है, जबकि भारतीय क्षेत्र में चिन लोगों को ‘कुकी’ कहा जाता है। चिन-कुकी समूह (Chin-Kuki group) में गंगटे (Gangte), हमार (Hmar), पेइती (Paite), थादौ (Thadou), वैपी (Vaiphei), जोऊ/ज़ो (Zou), आइमोल (Aimol), चिरु (Chiru), कोइरेंग (Koireng), कोम (Kom), एनल (Anal), चोथे (Chothe), लमगांग (Lamgang), कोइरो (Koirao), थंगल (Thangal), मोयोन (Moyon) और मोनसांग (Monsang) शामिल हैं। गौरतलब है कि अन्य समूहों जैसे- पेइती, जोऊ/ज़ो, गंगटे और वैपी अपनी पहचान ज़ोमी जनजाति के रूप में करते हैं तथा स्वयं को कुकी नाम से दूर रखते हैं।

  • नगा जनजातियाँ नगालैंड, मणिपुर व अरुणाचल प्रदेश में निवास करती हैं तथा इनका संबंध इंडो-मंगोलाॅयड प्रजाति से है।

मुख्य नगा जनजातियाँ: प्रत्येक नगा जनजाति कई वंशों में विभाजित है, कुछ मुख्य नगा जनजातियाँ हैं- अंगामी, चांग, कोन्याक, फोम्स, पोचुरी, संगमा, सेमा, कुकी, चखेसंग, लोथा, रेंगमा, ज़ेलिंग। भाषा एवं संस्कृति: नगा जनजातियों में प्रत्येक जनजाति की अपनी भाषा और सांस्कृतिक विशेषताएँ हैं। ये अधिकतर नागामी भाषा में संवाद करते हैं जो असमिया, बंगाली और हिंदी का मिश्रण है। नगा जनजातियों की 60 प्रकार की बोलियाँ हैं जिनका संबंध चीनी-तिब्बती भाषाओं से है। व्यवसाय एवं आहार: इनका मुख्य व्यवसाय कृषि, पशुपालन व मुर्गीपालन है और ये झूमिंग कृषि करते हैं। ये अधिकांशतः नग्नावस्था में घूमते हैं। इनका मुख्य आहार सब्जी, मछली, मांस के साथ-साथ चावल व बाजरा है। विवाह एवं धार्मिक रीति -रिवाज: नगा जनजातियाँ विवाह से संबंधित मामलों में रूढ़िवादी हैं। एक ही गोत्र के मध्य विवाह करना पूर्णतः प्रतिबंधित है। नगा लोग मुख्यत: तीन देवताओं (स्वर्ग का स्वामी- लुगं किनाजिंगबा, पृथ्वी का स्वामी- लिजबा, मृतक की देखभाल करने वाला- मोजूंग) को मानते हैं।

  • बैगा जनजाति विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूहों (Particularly Vulnerable Tribal Groups-PVTGs) में से एक है।

बैगा जनजाति मुख्य रूप से मध्य प्रदेश में पाई जाती है किंतु ये छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश राज्यों में भी निवास करते हैं। इनकी उप-जातियाँ हैं- बिझवार, नरोटिया, भारोटिया, नाहर, राय भैना और कढ भैना। बैगा लोग बैगानी (Baigani) बोली बोलते हैं जो गोंडी बोली से प्रभावित छत्तीसगढ़ी बोली का ही एक रूप है। परंपरागत रूप से बैगा लोग अर्द्ध-खानाबदोश जीवन जीते थे और झूम कृषि (जिसे ये बेवर या दहिया कहते हैं) करते थे किंतु अब ये आजीविका के लिये मुख्य रूप से लघु वनोंत्पादों पर निर्भर हैं। इनका प्राथमिक वन उत्पाद बाँस है। बैगा जनजाति की महिलाएँ अपने शरीर पर विभिन्न प्रकार के टैटू गुदवाने के लिये प्रसिद्ध हैं।

गोंड जनजाति विश्व के सबसे बड़े आदिवासी समूहों में से एक है। यह भारत की सबसे बड़ी जनजाति है इसका संबंध प्राक-द्रविड़ प्रजाति से है। इनकी त्वचा का रंग काला, बाल काले, होंठ मोटे, नाक बड़ी व फैली हुई होती है। ये अलिखित भाषा गोंडी बोली बोलते हैं जिसका संबंध द्रविड़ भाषा से है। ये ज़्यादातर मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, गुजरात, झारखंड, कर्नाटक, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और ओडिशा में पाए जाते हैं। गोंड चार जनजातियों में विभाजित हैं: राज गोंड, माड़िया गोंड, धुर्वे गोंड, खतुलवार गोंड गोंड जनजाति का प्रधान व्यवसाय कृषि है किंतु ये कृषि के साथ-साथ पशु पालन भी करते हैं। इनका मुख्य भोजन बाजरा है जिसे ये लोग दो प्रकार (कोदो और कुटकी) से ग्रहण करते हैं। गोंडों का मानना ​​है कि पृथ्वी, जल और वायु देवताओं द्वारा शासित हैं। अधिकांश गोंड हिंदू धर्म को मानते हैं और बारादेव (जिनके अन्य नाम भगवान, श्री शंभु महादेव और पर्सा पेन हैं) की पूजा करते हैं। भारत के संविधान में इन्हें अनुसूचित जनजाति के रूप में अधिसूचित किया गया है।

  • मध्यप्रदेश सरकार ने मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित एक परीक्षा में भील जनजाति (Bhil Tribe) की आपराधिक प्रवृत्ति के बारे में पूछे गए प्रश्नों पर विभागीय जाँच शुरू करने के आदेश दिये।

भील का अर्थ ‘धनुषधारी’ है। यह जनजाति प्रोटो-आस्ट्रेलायड प्रजाति की है। इनका कद छोटा व मध्यम,आँखे लाल, बाल रूखे व जबड़ा कुछ बाहर निकला हुआ होता है। भीलों में संयुक्त परिवार प्रथा प्रचलित है। ये सामान्यतः ‘कृषक’ हैं। यह जनजाति गुजरात,मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र,कर्नाटक और राजस्थान के साथ-साथ सुदूर पूर्वी भारत के त्रिपुरा में भी पाई जाती है। यह राजस्थान की दूसरी प्रमुख जनजाति है। भारत सरकार ने वर्ष 2013 में जनजातीय समुदायों पर प्रो. वर्जिनियस शाशा (Prof. Virginius Xaxa) की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया था।

शाशा समिति को जनजातीय समुदायों की सामाजिक,आर्थिक,शैक्षिक और स्वास्थ्य स्थिति की जाँच करने और उनमें सुधार के लिये उपयुक्त हस्तक्षेपकारी उपायों की सिफारिश करने का कार्यभार सौंपा गया था। समिति ने मई 2014 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।
  • ब्रू शरणार्थी समझौता:- ब्रू शरणार्थी संकट (Bru Refugee Crisis) को समाप्त करने के उद्देश्य से केंद्र सरकार त्रिपुरा और मिज़ोरम सरकार तथा ब्रू जनजाति के प्रतिनिधियों के बीच 16 जनवरी 2020 को समझौता किये जाने की उम्मीद है। संभावित नए समझौते के ड्राफ्ट के अनुसार, लगभग 35,000 ब्रू शरणार्थियों को त्रिपुरा में बसाया जाएगा और केंद्र व राज्य सरकार द्वारा इनके पुनर्वास में मदद करने के लिये सहायता दी जाएगी।
नवंबर 2019 में त्रिपुरा सरकार ने ब्रू शरणार्थियों के पुनर्वास के लिये स्वीकृति प्रदान की थी।

वर्ष 2018 में हुए समझौते के अनुसार, ब्रू शरणार्थियों को मिज़ोरम में बसाया गया जबकि नए समझौते के ड्राफ्ट के अनुसार अब इन्हें त्रिपुरा में बसाया जाएगा।

  • संभावित नए समझौते के ड्राफ्ट के अनुसार, ब्रू समुदाय के प्रत्येक परिवार को कृषि भूमि के पट्टों के अलावा व्यक्तिगत भू-खंड भी आवंटित किये जाएंगे।
  • प्रत्येक व्यक्तिगत भू-खंड 2,500 वर्ग फीट का होगा। इसके अतिरिक्त प्रत्येक परिवार को आजीविका हेतु प्रतिमाह 5,000 रुपए की आर्थिक मदद तथा अगले दो वर्षों तक निशुल्क राशन प्रदान किया जाएगा।
  • ब्रू समुदाय को त्रिपुरा की मतदाता सूची में भी सम्मिलित किया जाएगा।
  • ब्रू समुदाय ब्रू भाषी पूर्वोत्तर भारत तथा बांग्लादेश के चटगाँव पहाड़ी क्षेत्र में रहने वाला एक जनजातीय समूह है।
  • मिज़ोरम में यह अनुसूचित जनजाति का एक समूह तथा त्रिपुरा में एक अलग जाति समूह माना जाता है,जिसे रिआंग (Reang) नाम से जाना जाता है।
  • वर्ष 1995 में मिज़ोरम राज्य के चुनावों में भागीदारी को लेकर ब्रू समुदाय और मिज़ो समुदाय के लोगों के मध्य तनाव उत्त्पन्न हो गया। मिज़ो समुदाय के लोगों का कहना था कि ब्रू समुदाय के लोग राज्य के निवासी नहीं हैं।

ब्रू और बहुसंख्यक मिज़ो समुदाय के लोगों के बीच वर्ष 1996 में हुआ सांप्रदायिक दंगा इनके पलायन का कारण बना। वर्ष 1997 में ब्रू नेशनल लिबरेशन फ्रंट (Bru National Liberation Front-BNLF) ने एक मिज़ो अधिकारी की हत्या कर दी जिसके बाद दोनों समुदायों के बीच विवाद के चलते दंगे भड़क गए और अल्पसंख्यक होने के कारण ब्रू समुदाय को अपना घर-बार छोड़कर त्रिपुरा के शरणार्थी शिविरों में आश्रय लेना पड़ा।


  • सरकार के कल्याणकारी कार्यक्रमों का सही से क्रियान्वयन न हो पाने के कारण ओडिशा के जनजातीय क्षेत्रों में निवास करने वाली जुआंग, पुडी भुइयां जैसी जनजातियाँ सबसे अधिक प्रभावित हो रही हैं।
जुआंग जनजाति (Juanga Tribe) ओडिशा के 13 विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूहों (PVTGs) में से एक है।

ये मुंडा भाषा की एक बोली ‘जुंगा’ बोलते हैं। ये अपने त्योहार और विवाह समारोहों में चंगू नृत्य का आयोजन करते हैं। जुआंग जनजाति के बीच कम उम्र में शादी का प्रचलन है।

पुडी भुइयां जनजाति (Pudi Bhuyan Tribe) ऐतिहासिक रूप से प्रसिद्ध भुइयां जनजाति का एक प्रमुख वर्ग है।

यह जनजाति प्रमुख रूप से बिहार,ओडिशा,पश्चिम बंगाल और असम में पाई जाती है। यह ओडिशा के 13 विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (PVTGs) में से एक है। ये स्थानीय ओडिया भाषा बोलते हैं जिसे अलग तरह से उच्चारित किया जाता है।