समसामयिकी 2020/डिजिटल प्रौद्योगिकी तथा संबंधित अवधारणाएँ

  • केंद्र सरकार ने बजट 2020-21 में क्वांटम तकनीक और उसके अनुप्रयोग पर राष्ट्रीय मिशन (National Mission on Quantum Technologies & Applications- NMQTA) की घोषणा की है।

इस मिशन के अंतर्गत क्वांटम प्रौद्योगिकी के विकास हेतु 5 वर्षों के लिये 8000 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। इस मिशन का क्रियान्वयन विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science & Technology) द्वारा किया जाएगा। चूँकि नई अर्थव्यवस्था नवाचार पर आधारित है तथा वर्तमान आर्थिक व्यवस्था को बाधित करती है क्योंकि वर्तमान समय में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, इंटरनेट-ऑफ-थिंग्स, 3 डी प्रिंटिंग, ड्रोन, डीएनए डेटा स्टोरेज, क्वांटम कंप्यूटिंग आदि द्वारा दुनिया के आर्थिक विकास का पुनः निर्धारण किया जा रहा है इसलिये क्वांटम तकनीक के विकास एवं विस्तार की दिशा में उठाया गया यह कदम महत्त्वपूर्ण है। यदि भारत इस प्रौद्योगिकी (क्वांटम) में सफल रहता है तो भारत इस तकनीक में कामयाब होने वाला विश्व का तीसरा देश होगा।

  • कोरोनावायरस के प्रसार पर नियंत्रण के लिये 24 मार्च, 2020 को प्रधानमंत्री द्वारा देश में अगले 21 दिनों के लिये संपूर्ण लॉकडाउन लागू किये जाने की घोषणा की गई थी। इसके दौरान देश में इंटरनेट डेटा ट्रैफिक में अत्यधिक वृद्धि को देखते हुए टॉवर एंड इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोवाइडर्स एसोसिएशन (TAIPA) ने देश के दूरसंचार नेटवर्क क्षमता में शीघ्र ही वृद्धि किये जाने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया है। TAIPA के अनुसार, पिछले कुछ दिनों से लॉकडाउन और अधिकतर लोगों के घर से काम करने के कारण देश में डाटा ट्रैफिक में कम-से-कम 30% की वृद्धि हुई है। बंगलूरु और हैदराबाद में सेल्युलर नेटवर्क डेटा ट्रैफिक में 70% तक की वृद्धि देखने को मिली है।

लॉकडाउन के दौरान अधिकतर कंपनियों ने इंटरनेट के माध्यम से घर पर रहकर काम करने का विकल्प अपनाया। साथ ही स्कूलों और कॉलेजों द्वारा ई-लर्निंग जैसी पहल की शुरुआत के कारण दूरसंचार क्षेत्र पर दबाव बढ़ा है।

टॉवर एंड इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोवाइडर्स एसोसिएशन (Tower and Infrastructure Providers Association-TAIPA)

वर्ष 2011 में स्थापित भारतीय संस्था पंजीकरण अधिनियम 1860 के तहत पंजीकृत एक उद्योग प्रतिनिधि निकाय है। यह टेलीकॉम क्षेत्र के विकास के लिये नीति निर्माताओं,नियामकों,वित्तीय संस्थानों और अन्य हितधारकों के बीच समन्वय तथा विचार-विमर्श को बढ़ावा देने का कार्य करती है। TAIPA के अनुसार, देश में इंटरनेट डेटा की मांग को पूरा करने और दूरसंचार सेवाओं की 24x7 आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण और मज़बूत बुनियादी ढाँचे की आवश्यकता है।

टेलीकॉम क्षेत्र के कमज़ोर बुनियादी ढाँचे का कारण:-TAIPA महानिदेशक के अनुसार, देश के 36 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में से मात्र 16 ने ही बड़े पैमाने पर ‘राइट ऑफ वे’ पॉलिसी, 2016 के अनुरूप अपनी नीतियाँ बनाई हैं।

भारतीय तार मार्ग के अधिकार नियम (Indian Telegraph Right of Way Rules, 2016),नवंबर 2016 में लागू किया गया था। भारत सरकार द्वारा ये नियम ‘भारतीय तार अधिनियम (Indian Telegraph Act),1885’ के तहत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए मोबाइल टावर और भूमिगत अवसंरचना (ऑप्टिकल फाइबर) को विनियमित करने के लिये बनाए गए थे। इन नियमों के तहत मोबाइल टावर लगाने, ऑप्टिकल फाइबर केबल बिछाने का लाइसेंस और अनुमति देने तथा समयबद्ध तरीके से विवादों को निपटाने की रूपरेखा प्रस्तुत की गई है।

हाल के वर्षों में टेलीकॉम क्षेत्र में सक्रिय बहुत सी कंपनियाँ घाटे में रही हैं और बकाया समायोजित सकल राजस्व (Adjusted Gross Revenue-AGR) के विवाद के कारण टेलीकॉम क्षेत्र की कंपनियाँ भारी दबाव में रहीं हैं। पिछले कुछ वर्षों में तकनीकी विकास,सस्ती टेलीकॉम सुविधाओं (स्मार्टफोन, डेटा शुल्क) की उपलब्धता और विभिन्न सरकारी तथा गैर-सरकारी सेवाओं के ऑनलाइन होने से इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या में भारी वृद्धि हुई है। समाधान: TAIPA द्वारा ‘दूरसंचार विभाग’ (Department of Telecommunication- DoT) के सचिव और राज्य सचिवों को लिखे पत्र में बढ़े इंटरनेट ट्रैफिक के दबाव से निपटने के लिये देश के दूरसंचार नेटवर्क क्षमता में शीघ्र ही वृद्धि किये जाने की आवश्यकता पर बल दिया गया। TAIPA के अनुसार, देश के दूरसंचार नेटवर्क क्षमता को बढ़ाने के लिये वर्तमान अवसंरचना के उन्नयन के साथ ही नए उपकरणों की मात्रा में भी वृद्धि करनी होगी। इसके तहत नेटवर्क टॉवर, सेल ऑन वील्स (Cell on Wheels) और ऑप्टिकल फाइबर केबल तंत्र के विकास पर विशेष ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है।

  • सेमीकंडक्टर चिप की एक प्रमुख उत्पादक कंपनी क्वालकॉम टेक्नोलॉजीज (Qualcomm Technologies) द्वारा नाविक के विकसित एक चिपसेट का सफल परीक्षण किया गया।

इस कंपनी के चिप जीपीएस, गैलीलियो (यूरोप), ग्लोनास (रूस) और बीडाउ (चीन) जैसे वैश्विक नौवहन सैटेलाइट प्रणालियों में कार्य कर सकते हैं।

नाविक- NavIC (Navigation in Indian Constellation) आठ उपग्रहों की क्षेत्रीय नेविगेशन उपग्रह आधारित स्वदेशी प्रणाली है जो अमेरिका के जीपीएस की तरह कार्य करती है।

12 अप्रैल 2019 को पीएसएलवी-सी41 (PSLV-C41) के माध्यम से श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से इसर द्वारा IRNSS-1 नौवहन (Navigation) उपग्रह का सफल प्रक्षेपण किया गया था। इसके माध्यम से स्थानीय स्थिति (Indigenous Positioning) या स्थान आधारित सेवा (Location Based Service- LBS) जैसी सुविधाएँ प्रदान की जा रही है। यह भारतीय उपमहाद्वीप पर 1,500 किलोमीटर के दायरे को कवर करता है।

NavIC की कार्यप्रणाली:

NavIC के उपग्रह दो माइक्रोवेव फ्रीक्वेंसी बैंड पर सिग्नल देते हैं, जो L5 और S के नाम से जाने जाते हैं। यह स्टैंडर्ड पोज़ीशनिंग सर्विस तथा रिस्ट्रिक्टेड सर्विस की सुविधा प्रदान करता है। इसकी 'रिस्ट्रिक्टेड सर्विस' सेना तथा महत्त्वपूर्ण सरकारी कार्यालयों के लिये सुविधाएँ प्रदान करने का काम करती है।

  • इंटरनेट कॉरपोरेशन फॉर असाइन्ड नेम्स एंड नंबर्स(Internet Corporation for Assigned Names and Numbers-ICANN) एक गैर-लाभकारी संगठन है। यह इंटरनेट के नेमस्पेस और न्यूमेरिकल स्पेस से संबंधित कई डेटाबेस के रख-रखाव और विभिन्न प्रक्रियाओं के बीच समन्वय के लिये ज़िम्मेदार है जो नेटवर्क के स्थिर और सुरक्षित संचालन को सुनिश्चित करता है।

यह विभिन्न डेटाबेस के रखरखाव और कार्यप्रणाली के समन्वय जो अद्वितीय पहचानकर्त्ताओं के साथ, इंटरनेट के नेमस्पेस से संबंधित है, के लिये ज़िम्मेदार है। इस तरह यह नेटवर्क के स्थिर और सुरक्षित संचालन को सुनिश्चित करता है। ICANN विविध निदेशक मंडल द्वारा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संचालित होता है, जो नीति निर्माण प्रक्रिया की देखरेख करता है। I नेशनल एसोसिएशन ऑफ सॉफ्टवेयर एंड सर्विसेज कंपनीज(National Association of Software and Services Companies- NASSCOM) एक गैर-लाभकारी औद्योगिक संघ है जो भारत में IT उद्योग के लिये सर्वोच्च निकाय है। वर्ष 1988 में स्थापित NASSCOM के महत्त्वपूर्ण प्रयासों के कारण भारत के IT (Information Technology) और BPO (Business Process Outsourcing) उद्योग में काफी सहयोग मिल रहा है। इसने भारत के GDP, निर्यात, रोजगार, बुनियादी ढाँचे और वैश्विक दृश्यता में अभूतपूर्व योगदान दिया है।

वैश्विक परिप्रेक्ष्य

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  • सॉफ्टवेयर डिफाइंड नेटवर्क (SDN) के विकास ने पारंपरिक नेटवर्क के प्रतिमानों को विस्थापित किया है।

“SDN एक नवीन कंप्यूटर आर्किटेक्चर है जो पारंपरिक नेटवर्क की सीमाओं से परे जाकर नेटवर्क को लचीला और कुशल बनाता है।”

  • वैश्विक स्तर पर एज कंप्यूटिंग (Edge Computing) के माध्यम से लाखों कंप्यूटर या अन्य मशीनों से डेटा को संचालित (Handling), प्रोसेसिंग (Processing) तथा डिलीवर (Deliver) किया जा रहा है। एज कंप्यूटिंग का सर्वाधिक प्रयोग इंटरनेट ऑफ थिंग्स (Internet of Things- IoT), रियल टाइम कंप्यूटिंग (Real Time Computing) आदि के लिये किया जा रहा है।

तेज़ नेटवर्किंग तकनीकी के दौर में एज कंप्यूटिंग का प्रयोग रियल-टाइम एप्लीकेशन (Real-Time Application) के निर्माण तथा उनके संचालन के लिये अत्यावश्यक है। इन एप्लीकेशनों में वीडियो प्रोसेसिंग एवं एनालिटिक्स, स्वचालित कार, रोबोटिक्स, कृत्रिम बुद्धिमत्ता आदि शामिल हैं।

कई कंपनियों के लिये क्लाउड कंप्यूटिंग का प्रयोग महँगा साबित होता है क्योंकि अत्यधिक मात्रा में डेटा संग्रह और बैंडविड्थ के प्रयोग से इसकी लागत बढ़ जाती है। एज कंप्यूटिंग इस मामले में एक बेहतर विकल्प हो सकता है।

एज कंप्यूटिंग का सर्वाधिक लाभ यह है कि यह डेटा की प्रोसेससिंग तथा संग्रह तीव्रता से कर सकता है जिससे यूज़र के लिये आवश्यक रियल-टाइम एप्लीकेशन की दक्षता को बढ़ाया जा सके। उदाहरण के लिये किसी व्यक्ति के चेहरे की पहचान करने वाला स्मार्टफोन क्लाउड कंप्यूटिंग के अंतर्गत फेशियल रिकग्निशन एल्गोरिथम (Facial Recognition Algorithm) हेतु क्लाउड आधारित सेवा का उपयोग करता है जिसमें अधिक समय लगता है। लेकिन एज कंप्यूटिंग के प्रयोग से वह स्मार्टफोन स्वयं में उपस्थित या किसी स्थानीय एज सर्वर के प्रयोग से उस एल्गोरिथम का प्रयोग कर बिना देर किये व्यक्ति की पहचान कर सकता है। एज कंप्यूटिंग के प्रयोग से स्वचालित कारें (Self-Driving Cars), स्वचालित निर्माण प्रणाली (Automated Building System) तथा स्मार्ट सिटी (Smart City) जैसी महत्त्वाकांक्षी परियोजनाओं में मदद मिलेगी। एज कंप्यूटिंग को बढ़ावा देने

  • गूगल के अनुसार उसने संगणना (Computing) के क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है जिसे क्वांटम सुप्रीमेसी (Quantum Supremacy) कहा गया। क्वांटम सुप्रीमेसी शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग कैलिफ़ोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी के प्रोफेसर जॉन प्रेस्किल द्वारा 2012 में किया गया था। उनके अनुसार क्वांटम कंप्यूटर किसी भी ऐसी गणना को कर सकता है जिसे आधुनिक सुपर कंप्यूटर करने में सक्षम नहीं है।

गूगल ने साइकामोर नामक एक क्वांटम प्रोसेसर (Cycamore Quantum Processor) की सहायता से एक गणना को 200 सेकंड में हल कर दिया जिसे आधुनिक समय के एक सुपर कंप्यूटर से हल करने में 10,000 वर्ष का समय लगता। क्वांटम सिद्धांत आधुनिक भौतिकी का सिद्धांत है जिसके अंतर्गत किसी पदार्थ की प्रकृति तथा व्यवहार का अध्ययन उसके परमाण्विक स्तर पर किया जाता है। उदाहरण के लिये यदि हमें 10 लाख सोशल मीडिया प्रोफाइल में से किसी एक व्यक्ति की जानकारी प्राप्त करनी है तो एक पारंपरिक कंप्यूटर उन सभी प्रोफाइल को स्कैन करेगा जिसमें उसे 10 लाख चरणों से गुज़रना होगा। जबकि क्वांटम कंप्यूटर उसे एक हज़ार चरणों में संपन्न कर सकता है। इसकी सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विशेषता इसकी रफ्तार है। यह कई पारंपरिक कंप्यूटर द्वारा एक समय में समानांतर तौर पर किए जाने वाले कार्य को अकेले ही कर सकता है।

डिजिटल मुद्रा

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कोरोनावायरस (COVID-19) महामारी और वैश्विक वित्तीय संकट के बीच चीन आने वाले समय में विश्व की पहली डिजिटल मुद्रा लॉन्च करने की तैयारी कर रहा है। इस डिजिटल मुद्रा या डिजिटल युआन को आधिकारिक तौर पर डिजिटल मुद्रा/इलेक्ट्रॉनिक भुगतान (Digital Currency/Electronic Payment-DC/EP) परियोजना के रूप में जाना जा रहा है। चीन के केंद्रीय बैंक पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना (People’s Bank of China-PBC) के अनुसार, चीन की आधिकारिक डिजिटल मुद्रा का अनुसंधान और विकास कार्य तेज़ी से आगे बढ़ रहा है, और चीन के चार शहरों (शेन्झेन, सुज़हौ, चेंगदू और शिंजियांग) में इसका परीक्षण किया जा रहा है।

सोशल मीडिया

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कुछ दिन पूर्व संयुक्त राज्य अमेरिका में एक अफ्रीकी-अमेरिकी युवक की मृत्यु के बाद बड़े पैमाने पर हिंसक विरोध प्रदर्शन को दौर प्रारंभ हो गया। यह हिंसक विरोध प्रदर्शन स्वतः परंतु सोशल मीडिया द्वारा विनियोजित था। हमने पूर्व में अरब की सड़कों पर शुरू हुए प्रदर्शनों (जिसने कई तानाशाहों की सत्ता को चुनौती दी) में भी सोशल मीडिया के व्यापक प्रभाव का अनुभव किया है। सोशल मीडिया के माध्यम से लोग अपने विचारों को एक-दूसरे के साथ साझा कर एक नई बौद्धिक दुनिया का निर्माण कर रहे हैं। भारत में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पहले से ही सूचना प्रौद्योगिकी (IT) अधिनियम, 2008 के दायरे में आते हैं।