समसामयिकी 2020/पर्यावरण/संसाधन
भारत ने नार्वे के साथ समुद्री प्लास्टिक कचरे और माइक्रोप्लास्टिक (Microplastics) को कम करने की दिशा में सहयोग हेतु एक संयुक्त वक्तव्य जारी किया
सम्पादनकाॅप-13 (COP-13) |
---|
|
- जैव विविधता पर ‘सुपर ईयर 2020’ के प्रारंभ होने पर दोनों देशों ने 2020 को जलवायु परिवर्तन की महत्त्वपूर्ण कार्रवाइयों के दशक के रूप में मनाने का निर्णय लिया है।
- दोनों देशों ने महासागरीय जलवायु परिवर्तन संबंधी मामलों समेत पर्यावरण और जलवायु पर पारस्परिक लाभकारी सहयोग जारी रखने तथा इसे और मज़बूत करने की इच्छा व्यक्त की है।
- जलवायु परिवर्तन और वायु प्रदूषण को लक्षित करने वाले कार्य विजयी स्थिति निर्मित करते हैं।दोनों पक्षों ने माना कि इस तरह के कार्यों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये,और इस एजेंडे को बढ़ाने के लिये मिलकर काम करने की आवश्यकता है।
- दोनों देशों का मानना है कि हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFC) के उपयोग को बढ़ाने के लिये मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल में किये गए किगाली संशोधन सदी के अंत तक 0.40 डिग्री सेल्सियस तक तापमान को बढ़ने से रोक सकता है।
- जलवायु परिवर्तन की दिशा में नार्वे द्वारा समर्थित परियोजनाओं के कुशलतम परिणामों को देखते हुए इन परियोजनाओं को जारी रखने पर सहमति हुई।
- यदि महासागरीय संसाधनों को ठीक से प्रबंधित किया जाता है,तो महासागर सतत विकास लक्ष्यों को पूरा करने की क्षमता रखते हैं।एकीकृत महासागर प्रबंधन एक स्थायी नीली अर्थव्यवस्था (Blue Economy) प्राप्त करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- वर्ष 2019 में दोनों देशों के प्रधानमंत्री ने भारत-नार्वे महासागर वार्ता में सतत विकास के लिये नीली अर्थव्यवस्था पर संयुक्त कार्य बल की स्थापना को लेकर सहमति व्यक्त की थी।
- दोनों देशों ने रसायनों और कचरे के स्थायी प्रबंधन के महत्व को स्वीकार किया तथा भारत और नॉर्वे के बीच स्टॉकहोम कन्वेंशन द्वारा जैविक प्रदूषकों पर कार्यान्वयन और समुद्री कचरे के न्यूनीकरण पर संतुष्टि व्यक्त की।
- दोनों देशों ने समुद्री प्लास्टिक कचरे और माइक्रोप्लास्टिक की वैश्विक और तात्कालिक प्रकृति की एक साझा समझ विकसित करने पर जोर देते हुए रेखांकित किया कि इस मुद्दे को अकेले किसी एक देश द्वारा हल नहीं किया जा सकता है।
- वे प्लास्टिक प्रदूषण को संबोधित करने के लिये वैश्विक कार्रवाई का समर्थन करने और प्लास्टिक प्रदूषण पर एक नया वैश्विक समझौता स्थापित करने के लिये प्रतिबद्ध हैं।
- दोनों देशों ने प्रवासी प्रजातियों तथा जंगली जानवरों के संरक्षण पर चर्चा की।
एक भारतीय वैज्ञानिक दल अंटार्कटिका के अध्ययन के लिये दक्षिण महासागर में पहुँचा
सम्पादन- भारतीय वैज्ञानिक दक्षिण अफ्रीकी समुद्र विज्ञान अनुसंधान पोत (Vessel) एसए अगुलहास (SA Agulhas) से इस मिशन पर गए हैं।
- भारतीय वैज्ञानिकों का यह दल दक्षिण महासागर के 2 महीने के अभियान के लिये मॉरीशस के पोर्ट लुईस बंदरगाह से 11 जनवरी 2020 को रवाना हुआ जिसमें 34 भारतीय वैज्ञानिक शामिल हैं।
- वर्तमान में यह पोत अंटार्कटिका में भारत के तीसरे स्टेशन ‘भारती’ के तटीय जल क्षेत्र प्राइड्ज़ खाड़ी (Prydz Bay) में पहुँचा है।
- यह दक्षिण महासागर या अंटार्कटिक महासागर के लिये भारत का 11वाँ अभियान है, जबकि पहला अभियान दल वर्ष 2004 में भेजा गया।
- अभियान का उद्देश्य:
- नेशनल सेंटर फॉर पोलर एंड ओशन रिसर्च केंद्र (NCOPR) गोवा के नेतृत्व में 18 संस्थानों से मिलकर बनी एक टीम क्रूज ट्रैक (Cruise Track) के लगभग समानांतर 60 स्टेशनों से हवा और जल के नमूने एकत्र कर रही है। इन नमूनों के अध्ययन से इस दूरस्थ वातावरण के समुद्र और वायुमंडल की स्थिति की बहुमूल्य जानकारी मिलेगी जो जलवायु पर दक्षिण महासागर के प्रभावों को समझने में मदद करेगा।
- इस अभियान में भारतीय मानसून जैसी वृहद् पैमाने पर होने वाली मौसमी घटनाओं में परिवर्तन तथा इन परिवर्तनों के प्रभावों की पहचान करना शामिल है।
- दक्षिण महासागर की पारिस्थितिकी तथा वायुमंडलीय परिवर्तन और उष्णकटिबंधीय जलवायु व मौसम पर इसके प्रभावों का अध्ययन करना है।
- यह अभियान इन क्षेत्रों में CO2 आगत-निर्गत अनुपात चक्र को बेहतर तरीके से समझने में सहायता करेगा।
- सभी महासागर आपस में दक्षिण महासागर में मिलते हैं, ये महासागर ऊष्मा जैसे कारकों के परिवहनकर्त्ता के रूप में कार्य करते हैं। ये महासागर ऊष्मा को संतुलित करने वाली कन्वेयर बेल्ट (Conveyor Belt) के माध्यम से दक्षिण महासागर से जुड़ी हैं जो यह समझने में मदद करेगा कि मानवजनित कारणों से जलवायु कैसे प्रभावित होती है।
- इस अभियान की 4-5 मुख्य प्राथमिकताएँ हैं जिनमें इस समझ को व्यापक करने का प्रयास करना है कि जलवायु प्रणाली महासागरों से कैसे प्रभावित होती है।दक्षिणी महासागर एक अलग वातावरण नहीं है और वह विश्व के अन्य भागों को भी प्रभावित कर रहा है।
इस अभियान में मुख्यतः निम्नलिखित 6 परियोजनाओं का अध्ययन किया जाएगा।
- जलगतिकी और जैवभूरसायन (Hydrodynamics and Biogeochemistry):-हिंद महासागर क्षेत्र में जलगतिकी और जैवभूरसायन का अध्ययन किया जाएगा,जहाँ अलग-अलग गहराई से सागरीय पानी के
नमूने लिये जाएंगे।यह अंटार्कटिक के अगाध सागरीय जल की संरचना को समझने में मदद करेगा।
- ट्रेस गैसों का अवलोकन:-महासागर से वायुमंडल में प्रवेश करने वाली हैलोजन और डाइमिथाइल सल्फर जैसी ट्रेस गैसों का अवलोकन किया जाएगा जो वैश्विक मॉडलों में उपयोगी मापदंडों को बेहतर बनाने में मदद करेगा।
- कोकोलिथोपर्स जीवों का अध्ययन (Study of Organisms called Coccolithophores):-कोकोलिथोपर्स कई मिलियन वर्षों से महासागरों में मौजूद हैं जहाँ तलछट में उनकी सांद्रता पुरा-जलवायु को समझने में मदद करेगी।
- एरोसोल और उनके प्रकाशकी व विकिरण गुण:-इनका निरंतर मापन पृथ्वी की जलवायु पर इनके प्रभाव को समझने में मदद करेगा।
- भारतीय मानसून पर प्रभाव:-अभियान में भारतीय मानसून पर दक्षिणी महासागर के प्रभाव का अध्ययन किया जाएगा जो मुख्यतः सागरीय तल से ली गई तलछट कोर (Sediment Core) पर आधारित होगा।
- तलछट कोर:-यह एक प्रकार का चट्टानीय नमूना होता है जो अलग-अलग कालक्रम की तलछटों को विभिन्न स्तरीय परतों के रूप में संरक्षित रखता है(युवा तलछट शीर्ष पर और पुराने तलछट नीचे )।
- खाद्य जाल की गतिकी:-दक्षिणी महासागर में खाद्य जाल की गतिशीलता का अध्ययन करना ताकि सतत् मत्स्यपालन को बढ़ावा मिल सकेगा।
मिशन ने दक्षिणी महासागर के बड़े तलछट कोरों में से एक, 3.4 मीटर लंबाई का तलछट कोर की खोज की है जो कि 30,000 से एक मिलियन वर्ष पुराना हो सकता है। तलछट कोर न केवल पुरा-जलवायु को अपितु भविष्य के जलवायु परिवर्तनों को भी समझने में मदद करता है। पुरा-जलवायविक अध्ययन (Paleoclimate Studies):-दक्षिणी महासागर के तलछट कोर,अंटार्कटिका की झीलें,फियोर्ड तट जैसे प्राकृतिक अभिलेखागार का उपयोग अलग-अलग कालानुक्रम की जलवायु परिवर्तनशीलता का अध्ययन करने के लिये किया जाता है।
ग्रीनपीस साउथ ईस्ट एशिया एवं सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर द्वारा जारि “टॉक्सिक एयर:द प्राइस ऑफ फॉसिल फ्यूल (Toxic Air: The Price of Fossil Fuels)” नामक रिपोर्ट में तेल,गैस और कोयले से होने वाले वायु प्रदूषण से नुकसान का आकलन
सम्पादन- रिपोर्ट के अनुसार, वायु प्रदूषण से होने वाले नुकसान की वैश्विक लागत प्रतिवर्ष लगभग 2.9 ट्रिलियन डॉलर या प्रतिदिन 8 बिलियन डॉलर है। ध्यातव्य है कि यह लागत वैश्विक जीडीपी (Global GDP) का लगभग 3.3% है।
- वायु प्रदूषण से प्रतिवर्ष होने वाले नुकसान की लागत चीन में लगभग 900 बिलियन डॉलर,अमेरिका में 600 बिलियन डॉलर तथा भारत(3rd) में 150 बिलियन डॉलर या देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 5.4 % है।
- वैश्विक स्तर पर वायु प्रदूषण से होने वाले नुकसान की लागत के मामले में भारत चीन व अमेरिका के बाद तीसरे पायदान पर है।
- वैश्विक स्तर पर वायु प्रदूषण के कारण हर साल 4.5 मिलियन लोगों की अकाल मृत्यु होने का अनुमान है। वैश्विक स्तर पर PM2.5 के कारण लगभग 3 मिलियन मौतें होती हैं, जो दिल्ली सहित उत्तरी भारतीय शहरों में प्रमुख प्रदूषकों में से एक है।
- जीवाश्म ईंधन के उपयोग से होने वाले वायु प्रदूषण के कारण उत्पन्न PM 2.5 और ओज़ोन से प्रतिवर्ष 7.7 मिलियन लोग में अस्थमा से पीड़ित होते हैं, जबकि केवल PM 2.5 के कारण लगभग 2.7 मिलियन लोग अस्थमा से प्रभावित होते हैं।
- वायु प्रदूषण कम आय वाले देशों में बच्चों के स्वास्थ्य के लिये एक बड़ा खतरा है। ध्यातव्य है कि PM2.5 प्रदूषक के संपर्क में आने के कारण दुनिया भर में अनुमानतः 40,000 बच्चे अपने पाँचवें जन्मदिन से पहले मर जाते हैं।
- PM 2.5 के कारण प्रत्येक वर्ष लगभग 2 मिलियन बच्चों का जन्म समय से पहले या अपरिपक्व अवस्था में होता है। गौरतलब है कि इन 2 मिलियन अपरिपक्व बच्चों में लगभग 981,000 बच्चों का जन्म भारत में और लगभग 350,000 से अधिक बच्चों का जन्म चीन में होता है।
- रिपोर्ट के अनुसार, भारत में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2) भी बच्चों में अस्थमा के लगभग 350,000 नए मामलों का कारण है। ध्यातव्य है कि NO2 जीवाश्म ईधन के दहन से निकलने वाला उप-उत्पाद है और NO2 से वैश्विक अर्थव्यवस्था को लगभग 350 बिलियन डॉलर का नुकसान होता है।
- रिपोर्ट के अनुसार, भारत में जीवाश्म ईंधन के उपयोग के कारण होने वाला वायु प्रदूषण लगभग 490 मिलियन कार्य दिवसों के नुकसान का कारण है।
वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर द्वारा ‘ग्लोबल फ्यूचर्स: द ग्लोबल इकोनॉमिक इमपैक्टस ऑफ एन्वायरनमेंट चेंज टू सपोर्ट पॉलिसी मेकिंग’नामक एक रिपोर्ट जारी
सम्पादनइस रिपोर्ट में प्राकृतिक संसाधनों की कमी के कारणों पर वैश्विक आर्थिक प्रभावों का पता लगाने के लिये अत्याधुनिक मॉडलिंग का उपयोग करते हुए एक ऐतिहासिक अध्ययन किया गया है। इस रिपोर्ट को वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर द्वारा‘द ग्लोबल ट्रेड एनालिसिस प्रोजेक्ट’द्वारा ‘नेचुरल कैपिटल प्रोजेक्ट’ के सहयोग से तैयार किया गया है। यह अध्ययन 140 देशों और सभी प्रमुख उद्योग क्षेत्रों में पर्यावरण निम्नीकरण लागत की गणना के लिये नए आर्थिक और पर्यावरणीय मॉडल का उपयोग करता है।
द ग्लोबल ट्रेड एनालिसिस प्रोजेक्ट को वर्ष 1992 में स्थापित किया गया था।
यह 17,000 से अधिक व्यक्तियों के वैश्विक नेटवर्क के साथ 170 से अधिक देशों में व्यापार और पर्यावरण नीतियों के अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभावों का आकलन करता है। |
द नैचुरल कैपिटल प्रोजेक्ट (NatCap) चार विश्व स्तरीय शैक्षणिक संस्थानों- स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी,द चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज़, मिनसोटा विश्वविद्यालय और स्टॉकहोम रेजिलिएशन सेंटर तथा दुनिया के दो सबसे बड़े गैर सरकारी संगठनों की साझेदारी से बना समूह है। |
यह रिपोर्ट प्रकृति द्वारा प्रदत्त निम्नलिखित छह महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं का विश्लेषण करती है-
- कृषि के लिये पानी की आपूर्ति,लकड़ी की आपूर्ति,समुद्री मत्स्य पालन,फसलों का परागण,बाढ़,तूफान की वृद्धि और कटाव से सुरक्षा,जलवायु परिवर्तन से बचने के लिये कार्बन संग्रहण
- यह रिपोर्ट पर्यावरण और जैव विविधता के नुकसान की स्थिति में कार्रवाई करने में विफल रहने वाली वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं के लिये भविष्य की लागत का विश्लेषण करती है।
- इस रिपोर्ट को तैयार करने में अब ‘ग्लोबल कंज़र्वेशन’ (Global Conservation) के साथ -साथ 'बिज़नेस एज़ यूज़ुअल' (Business as Usual) नामक नया परिदृश्य जोड़ा गया है।
जिसका उद्देश्य यह बताना है कि प्रकृति के निरंतर नुकसान के गंभीर आर्थिक परिणाम होंगे तथा भविष्य में वैश्विक आर्थिक समृद्धि के लिये प्रकृति में निवेश किया जाना आवश्यक है।
वैश्विक स्थिति:
- इस रिपोर्ट के अनुसार, पर्यावरण का संरक्षण नहीं किये जाने से वर्ष 2050 तक दुनिया को लगभग 10 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान उठाना पड़ सकता है।
- छह पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं की विफलता के कारण वर्ष 2050 तक वार्षिक वैश्विक जीडीपी में 0.67 प्रतिशत की गिरावट आएगी।
- इस रिपोर्ट में बताया गया है कि अगर दुनिया ने जीवन यापन का उत्कृष्ट सतत् मॉडल अपनाया तो वार्षिक वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद वर्ष 2050 तक 0.02 प्रतिशत अधिक होगा।
- संयुक्त राज्य अमेरिका,जापान,ब्रिटेन,भारत और ऑस्ट्रेलिया जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को 'बिज़नेस एज़ यूज़अल' परिदृश्य के तहत वर्ष 2050 तक महत्त्वपूर्ण वार्षिक जीडीपी घाटे का सामना करना पड़ सकता है।
- अमेरिका और जापान को वर्ष 2050 तक एक वर्ष में $80 बिलियन से अधिक का आर्थिक नुकसान होने की संभावना है
भारत की स्थिति:
- ब्रिटेन और भारत को भी इस सदी के मध्य तक एक वर्ष में $20 बिलियन से अधिक का नुकसान उठाना पड़ सकता है।
- भारत को सर्वाधिक नुकसान पानी की कमी के कारण होगा।
- इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि चीन, भारत और अमेरिका द्वारा दुनिया का लगभग 45% फसल उत्पादन किया जाता है, जो कि गंभीर रूप से प्रभावित होगा।
प्राकृतिक असंतुलन का खतरा
- जंगल,आर्द्रभूमि और प्रवाल भित्ति जैसे प्राकृतिक आवासों के नष्ट होने से पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन प्रभावित हो रहा है। इससे मछलियों के भंडार में कमी हो रही है, इमारती और जलावन में उपयोग की जाने वाली लकड़ियाँ खत्म हो रही हैं तथा पादपों के परागण के लिये कीट समाप्त हो रहे हैं।
- मानवीय गतिविधियों के परिणामस्वरूप जलवायु परिवर्तन, मौसमी घटनाओं और बाढ़ में बढ़ोतरी, पानी की कमी, मिट्टी का क्षरण जैसी घटनाओं में बढ़ोतरी एवं प्रजातियाँ विलुप्त हो रही हैं।
खाद्य सुरक्षा भी होगी प्रभावित: अगर पर्यावरणीय क्षरण इसी प्रकार जारी रहा तो दुनिया में खाद्य पदार्थों की कीमतें आसमान छू सकती हैं। प्रकृति के नुकसान का सर्वाधिक नकारात्मक असर कृषि को झेलना पड़ता है। अनुमान के मुताबिक वर्ष 2050 तक लकड़ी 8 प्रतिशत तक महँगी हो सकती है। कॉटन, ऑयल सीड और फल व सब्जियों की कीमतों में क्रमश: 6, 4 एवं 3 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो सकती है। आगे की राह: प्रकृति को नुकसान पहुँचाने के गंभीर प्रतिकूल प्रभाव दिखने लगे हैं। असमय बाढ़, सूखा, मौसम चक्र में बदलाव, कृषि उत्पादकता में कमी, जैव विविधता का क्षरण और सबसे गंभीर समस्या ग्लोबल वार्मिंग के रूप में सामने आई है। ये कुछ ऐसे बदलाव हैं जिन्हें हम देख सकते हैं और महसूस कर सकते हैं। उपर्युक्त रिपोर्ट में प्रकृति से छेड़छाड़ के आर्थिक नुकसान का आकलन सामने आया है। अतः मानव समुदाय को इन बदलावों को देखते हुए सचेत होना चाहिये तथा पर्यावरण संरक्षण की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम उठाने चाहिये।
राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी द्वारा गोदावरी-कावेरी लिंक परियोजना की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करने का कार्य पूरा
सम्पादनराष्ट्रीय जल विकास एजेंसी |
---|
|
गोदावरी (इनचम्पल्ली / जनमपेट) - कावेरी (ग्रैंड एनीकट) लिंक परियोजना में 3 लिंक शामिल हैं:
- गोदावरी (इंचमपल्ली/जनमपेट) - कृष्णा (नागार्जुनसागर)
- कृष्णा (नागार्जुनसागर) - पेन्नार (सोमाशिला Somasila)
- पेनार (सोमाशिला) - कावेरी
प्रारूप के अनुसार,लगभग 247 TMC (Thousand Million Cubic Feet) पानी को गोदावरी नदी से नागार्जुनसागर बाँध (लिफ्टिंग के माध्यम से)और आगे दक्षिण में भेजा जाएगा जो कृष्णा,पेन्नार और कावेरी बेसिनों की जल आवश्यकताओं को पूरा करेगा। यह परियोजना आंध्र प्रदेश के प्रकाशम,नेल्लोर, कृष्णा, गुंटूर और चित्तूर ज़िलों के 3.45 से 5.04 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई की सुविधा प्रदान करेगी। परियोजना की अनुमानित लागत वर्ष 2018-19 में 6361 करोड़ रुपए थी। संबंधित राज्यों की सर्वसम्मति से DPR तैयार कर आवश्यक वैधानिक मंज़ूरी प्राप्त होने के बाद ही इस परियोजना के कार्यान्वयन का चरण पूरा हो पाएगा।
मन(Mana) कृष्णा अभियान,आंध्रप्रदेश सरकार द्वारा‘क्लीन कृष्णा-गोदावरी कैनाल्स मिशन’और‘प्लास्टिक विरोधी अभियान’के तहत कृष्णा नदी से निकाली गई नहरों की सफाई हेतु
सम्पादन- इस अभियान की शुरुआत आंध्रप्रदेश के रामावारप्पडू (Ramavarappadu) पंचायत से की गई।
- उद्देश्य: इसका उद्देश्य स्वच्छता को लेकर स्थानीय लोगों के बीच जागरूकता फैलाना और नहरों की सफाई करना है।
- लक्ष्य: आंध्रप्रदेश सरकार ने कृष्णा-गोदावरी डेल्टा क्षेत्र में कृष्णा, गुंटूर, पश्चिम गोदावरी तथा प्रकाशम ज़िलों की लगभग 7,000 किलोमीटर लंबाई की नदी एवं नहरों को प्रदूषण से मुक्त करने का लक्ष्य तय किया है।
- क्लीन कृष्णा-गोदावरी कैनाल्स मिशन (Clean Krishna-Godavari Canals Mission) के अध्यक्ष मुख्यमंत्री वाई.एस. जगन मोहन रेड्डी हैं। यह नहरों एवं नदियों को साफ रखने का एक सतत् मिशन है।
आर्सेनिक प्रतिरोधी चावल की नई किस्म मुक्तोश्री
सम्पादन- पश्चिम बंगाल सरकार ने शोधकर्त्ताओं द्वारा खोजी गई चावल की नई किस्म मुक्तोश्री (Muktoshri) के व्यवसायीकरण की अनुमति दी।
- मुक्तोश्री को आईईटी 21845 (IET 21845) नाम से भी जाना जाता है। इसे पश्चिम बंगाल के कृषि विभाग के अंतर्गत आने वाले राइस रिसर्च स्टेशन,चिनसुराह और राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान, लखनऊ द्वारा संयुक्त रूप से विकसित किया गया है।
- चावल की इस नई किस्म को वर्ष 2013 में विकसित किया गया था जबकि पश्चिम बंगाल सरकार ने वर्ष 2019 में मुक्तोश्री के व्यावसायिक उपयोग की अनुमति दी थी।
- महत्त्व:-पश्चिम बंगाल भूजल में आर्सेनिक की उच्चतम सांद्रता वाले राज्यों में से एक है जिसके सात ज़िलों के 83 ब्लॉकों में आर्सेनिक का स्तर सामान्य सीमा से अधिक है।
- कई अध्ययनों से पता चला है कि भूजल और मिट्टी के द्वारा आर्सेनिक धान के माध्यम से खाद्य शृंखला में प्रवेश कर सकता है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार लंबे समय तक आर्सेनिक-युक्त जल के पीने एवं खाना पकाने में उपयोग करने से विषाक्तता हो सकती है। आर्सेनिक के कारण त्वचा क्षतिग्रस्त एवं त्वचा कैंसर जैसी बीमारियाँ हो सकती हैं।
राजस्थान सरकार ने जल जीवन मिशन के लिये केंद्र सरकार द्वारा दी जाने वाली आर्थिक मदद के मानदंडों में बदलाव की मांग की
सम्पादनजल जीवन मिशन:-इसके अंतर्गत वर्ष 2024 तक प्रत्येक ग्रामीण परिवार को प्रति व्यक्ति प्रति दिन 55 लीटर पानी की आपूर्ति की योजना है ताकि राज्यों पर वित्तीय बोझ कम हो सके।
- वर्तमान में केंद्र और राज्य के बीच योजना लागत की हिस्सेदारी को 50:50 के अनुपात में निर्धारित किया गया है।
- केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय के अंतर्गत क्रियान्वित।
- विभिन्न प्रकार के जल संरक्षण जैसे- जल संभरण, लघु सिंचाई टैंकों की गाद निकलना, कृषि के लिये ग्रे-वाटर का उपयोग और जल स्रोतों के सतत् विकास) के प्रयासों पर आधारित है।
राजस्थान में जल जीवन मिशन का क्रियांवयन:
- वर्तमान में राजस्थान में केवल 12% घरों में पाइप से जलापूर्ति हो रही है। अतः राजस्थान सरकार ने लगभग 98 लाख घरों को जलापूर्ति प्रदान करने के लिये जल के स्रोतों का कायाकल्प करके जल जीवन मिशन को लागू करने के लिये नई कार्य योजना तैयार की है।
- राजस्थान में जल जीवन मिशन को ‘राज्य जल और स्वच्छता मिशन’ के तहत लागू किया जा रहा है।
- राज्य जल और स्वच्छता मिशन पहले से ही लागू है और इसके लिये विभिन्न जल स्रोतों का दोहन करने के साथ वर्षा जल संचयन को बढ़ावा दिया जा रहा है।
- राजस्थान में केवल 1.01% सतही जल मौजूद है और यहाँ भौगोलिक रूप से दुर्गम क्षेत्रों में पीने के पानी की आपूर्ति करना कठिन है जिसके कारण जल जीवन मिशन के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये केंद्र से अधिक सहायता की उम्मीद की थी।
न्यूयार्क यूनिवर्सिटी के शोधकर्त्ताओं ने अंटार्कटिका क्षेत्र में थ्वाइट्स ग्लेशियर (Thwaites) के नीचे गर्म जल का पता लगाया है जिसके कारण यह ग्लेशियर तेज़ी से पिघल रहा
सम्पादन- इस ग्लेशियर का आकार लगभग ब्रिटेन के आकार के बराबर है,इस ग्लेशियर के सबसे विस्तृत स्थान की अधिकतम चौड़ाई 120 किलोमीटर है।
- इसका क्षेत्रफल 1.9 लाख वर्ग किमी. है,अपने विस्तृत आकार के कारण इसमें समुद्री जल स्तर को आधा मीटर से अधिक बढ़ाने की क्षमता है।
- अध्ययन में पाया गया है कि पिछले 30 वर्षों में इसकी बर्फ पिघलने की दर लगभग दोगुनी हो गई है। प्रतिवर्ष बर्फ के पिघलने से समुद्र स्तर के बढ़ने में इसका 4% का योगदान है।
- शोधकर्त्ताओं ने अनुमान लगाया गया है कि यदि इसके पिघलने की दर इसी तरह रही तो यह 200-900 वर्षों में समुद्र में समा जाएगा।
ग्राउंडिंग लाइन और ग्लेशियर के पिघलने का अध्ययन: शोधकर्त्ताओं ने थ्वाइट्स ग्लेशियर के ‘ग्राउंडिंग ज़ोन’ या ‘ग्राउंडिंग लाइन’ (Grounding Line) पर हिमांक बिंदु से सिर्फ दो डिग्री ऊपर जल होने की सूचना दी। अंटार्कटिक,आइस शीट की ग्राउंडिंग लाइन वह हिस्सा है जहाँ ग्लेशियर महाद्वीप सतह के साथ स्थायी न रह कर तैरते बर्फ शेल्फ बन जाते हैं।ग्राउंडिंग लाइन का स्थान ग्लेशियर के पीछे हटने की दर का एक संकेतक है। जब ग्लेशियर पिघलते हैं और उनके भार में कमी आती है तो वे उसी स्थान पर तैरते हैं जहाँ वे स्थित थे। ऐसी स्थिति में ग्राउंडिंग लाइन अपनी यथास्थिति से पीछे हट जाती है। यह समुद्री जल में ग्लेशियर के अधिक नीचे होने की स्थिति को दर्शाता है जिससे संभावना बढ़ जाती है कि यह तेज़ी से पिघल जाएगा। परिणामस्वरूप पता चलता है कि ग्लेशियर तेज़ी से बढ़ रहा है,बाहर की ओर खिंचाव हो के साथ पतला हो रहा है, अतः ग्राउंडिंग लाइन कभी भी पीछे हट सकती है। आइसफिन (Icefin): वैज्ञानिकों ने ग्लेशियर की सतह के नीचे गर्म जल का पता लगाने के लिये आइसफिन नामक एक महासागर-संवेदी उपकरण का प्रयोग किया जिसे 600 मीटर गहरे और 35 सेंटीमीटर चौड़े छेद के माध्यम से बर्फ की सतह के नीचे प्रवेश कराया गया। थ्वाइट्स ग्लेशियर का महत्त्व: यह अंटार्कटिका क्षेत्र के लिये अधिक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह समुद्र में स्वतंत्र रूप से बहने वाली बर्फ की गति को धीमा कर देता है।
- महाराष्ट्र के भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने वैनगंगा नदी पर गोसेखुर्ध सिंचाई परियोजना हेतु निविदाओं में अनियमितता के लिये विदर्भ सिंचाई विकास निगम के 12 वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज किया।
गोदावरी की एक प्रमुख सहायक नदी,वैनगंगा नदी का उद्गम मध्य प्रदेश के सिवनी (Seoni) ज़िले में स्थित महादेव पहाड़ियों से होता है। महादेव पहाड़ियों से निकलने के बाद यह नदी दक्षिण की ओर बहती हुई, वर्धा नदी से मिलने के बाद इन दोनों नदियों की संयुक्त धारा प्राणहिता नदी कहलाती है और आगे चलकर यह नदी तेलंगाना के कालेश्वरम में गोदावरी नदी से मिल जाती है।
- घाटप्रभा (Ghataprabha) कर्नाटक में प्रवाहित कृष्णा नदी की सहायक नदी है। कर्नाटक में बेलगावी ज़िले में घाटप्रभा नदी पर हिडकल परियोजना का निर्माण किया गया है। यह परियोजना वर्ष 1977 में बनकर तैयार हुई थी। इस बांध पर एक जलाशय का निर्माण करके इसे बहुउद्देशीय परियोजना में परिवर्तित किया गया।
- घाटप्रभा की सहायक नदियाँ- हिरण्यकेशी नदी और मार्कंडेय नदी।
कृष्णा नदी प्रायद्वीपीय भारत की दूसरी सबसे बड़ी नदी है। इसका उद्गम महाराष्ट्र के पश्चिमी घाट में स्थित महाबलेश्वर के पास से होता है। कृष्णा नदी महाराष्ट्र,कर्नाटक,तेलंगाना और आंध्र प्रदेश से होकर बहती है और अंत में बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है।
- कृष्णा की सहायक नदियाँ हैं- कोयना, घाटप्रभा, मालप्रभा, भीमा, तुंगभद्रा,आदि।
कृष्णा नदी विजयवाड़ा (आंध्र प्रदेश) के निकट अपना डेल्टा बनाती है।