समसामयिकी 2020/भारत-पूर्वी एशियाई देश
इंडोनेशिया के समुद्री क्षेत्र में चीन का हस्तक्षेप
सम्पादनफरवरी 2020 में चीनी तटरक्षकों के सहयोग से चीन के मछुआरों ने इंडोनेशिया के नातुना सागर क्षेत्र में प्रवेश किया जिसके कारण स्थानीय मछुआरों को पीछे हटना पड़ा। हालाँकि चीन स्वयं नातुना सागर क्षेत्र पर इंडोनेशिया के अधिकार को स्वीकार करता है परंतु चीनी विदेश मंत्रालय इसे ‘ट्रेडिशनल फिशिंग ग्राउंड (Traditional Fishing Ground) बताता है। इंडोनेशिया की समुद्री सीमा में प्रवेश कर चीन के मछुआरे अंतर्राष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन तो करते ही हैं साथ ही चीनी मछुआरों द्वारा प्रयोग किये जाने वाले स्टील उपकरण समुद्री जैव प्रणाली को भी नष्ट कर देते हैं।
- इंडोनेशिया की प्रतिक्रिया:-जनवरी 2020, में नातुना द्वीपसमूह की यात्रा के दौरान इंडोनेशियाई राष्ट्रपति ने क्षेत्र में अपने अधिकार और इंडोनेशिया की संप्रभुता की बात को दोहराया था।
इस दौरान इंडोनेशिया की वायु सेना और नौसेना ने क्षेत्र में अपनी उपस्थिति के माध्यम से चीन को कड़ा संदेश देने का प्रयास किया। स्थानीय लोगों के अनुसार, इंडोनेशियाई राष्ट्रपति के दौरे के अगले ही दिन चीनी मछुआरे और चीनी तट रक्षक पुनः क्षेत्र में वापस आ गए और वे यहाँ कई दिनों तक रहे। हालाँकि इंडोनेशिया के मत्स्य मंत्री (Fisheries Minister) ने इंडोनेशिया की समुद्री सीमा में किसी भी प्रकार के चीनी हस्तक्षेप से इनकार किया है।
- दक्षिण चीन सागर और नाइन-डैश लाइन विवाद (South China Sea and Nine-Dash Line Dispute):-विश्व के कुल समुद्री व्यापार का 30% दक्षिण चीन सागर से होकर गुजरता है। वर्ष 2017 में इस समुद्री मार्ग से प्रतिवर्ष होने वाले व्यापार की कीमत 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक बताई गई थी।
मलक्का जलसंधि (Malacca Strait) से होते हुए यह क्षेत्र हिंद महासागर और प्रशांत महासागर को जोड़ने वाला सबसे संक्षिप्त मार्ग प्रदान करता है। दक्षिण चीन सागर को समुद्री जैव-विविधता के साथ ही खनिज तेल और प्राकृतिक गैस के बड़े भंडार के रूप में देखा जाता है। वर्ष 1949 से ही चीन ‘नाइन-डैश लाइन’ (क्षेत्र के मानचित्र पर चीन द्वारा खींची गई 9 आभासी रेखाएँ) के माध्यम से दक्षिण चीन सागर के अधिकांश भाग (लगभग 80%) पर अपने अधिकार का दावा करता रहा है।
- वैश्विक प्रतिक्रिया:-इंडोनेशिया के अलावा क्षेत्र के अन्य देशों जैसे- वियतनाम,मलेशिया,ब्रुनेई और फिलीपींस आदि ने दक्षिण चीन सागर में चीन के आक्रामक हस्तक्षेप का विरोध किया है।
वर्ष 2013 में फिलीपींस ने अपने समुद्री क्षेत्र में चीन के हस्तक्षेप को ‘संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि’,1982 के तहत स्थायी मध्यस्थता न्यायालय में चुनौती दी। PCA ने जुलाई 2016 के अपने फैसले में दक्षिण चीन सागर में चीन के हस्तक्षेप को गलत बताया। न्यायालय के अनुसार,फिलीपींस के समुद्री क्षेत्र में चीन का हस्तक्षेप फिलीपींस के संप्रभु अधिकारों का उल्लंघन है,साथ ही ऐसी गतिविधियाँ ‘संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि’ (UNCLOS) के भी खिलाफ हैं। PCA के निर्णय पर प्रतिक्रिया देते हुए चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा कि चीन इन निर्णय का विरोध करता है और वह इस निर्णय के आधार पर किसी भी दावे या कार्रवाई को स्वीकार नहीं करेगा। क्षेत्र के देशों के अतिरिक्त विश्व के कई अन्य देशों (जैसे-अमेरिका) ने दक्षिण चीन सागर में चीन की आक्रामक नीति का विरोध किया है।
- भारत पर प्रभाव:- भारत अन्य देशों के मामलों में हस्तक्षेप न करने की नीति का समर्थन करता है,परंतु दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में चीन की कार्रवाई का प्रभाव भारत के व्यापारिक एवं सामरिक हितों पर पड़ सकता है।
हाल के वर्षों में भारत ने अपनी एक्ट ईस्ट नीति के तहत पूर्वी एशिया के देशों के साथ अपने संबंधों को और मज़बूत करने का प्रयास तेज़ किया है। इस पहल के तहत भारत ने क्षेत्र के कई देशों के साथ विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर विशेष ध्यान दिया है। उदाहरण के लिये वियतनाम ने दक्षिण चीन सागर के अपने अधिकार क्षेत्र में भारत को 7 तेल ब्लॉक (Oil Block) देने का प्रस्ताव प्रस्तुत किया था। इसके अतिरिक्त भारत ने ब्रूनेई के साथ भी ऊर्जा संधि पर हस्ताक्षर किये हैं।
- आगे की राह:-
दक्षिण चीन सागर में चीन की आक्रामक सैन्य गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिये संयुक्त राष्ट्र (United Nation) और आसियान (ASEAN) जैसे मंचों पर सामूहिक वैश्विक प्रयासों में में वृद्धि की जानी चाहिये। दक्षिण चीन सागर में चीनी मछुआरों द्वारा प्राकृतिक संपदा का अनियंत्रित दोहन और चीन सरकार द्वारा कृत्रिम द्वीपों के निर्माण आदि से समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को भारी क्षति हो रही है, अतः ऐसे मुद्दों को वैश्विक मंचों पर उठाया जाना चाहिये। क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज़ करने के लिए भारत को क्वाड (QUAD) जैसे बहु-राष्ट्रीय समूहों के माध्यम से निरंतर संयुक्त नौ-सैनिक अभ्यासों का आयोजन करना चाहिये।
- भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 02-04 नवंबर, 2019 तक थाईलैंड की आधिकारिक यात्रा की। इस यात्रा के दौरान उन्होंने 16वें भारत-आसियान शिखर सम्मेलन और पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (East Asia Summit- EAS) में भाग लिया, इसके अतिरिक्त म्याँमार, थाईलैंड एवं इंडोनेशिया के राष्ट्रप्रमुखों से द्विपक्षीय वार्ता की
16वाँ भारत-आसियान शिखर सम्मेलन के दौरान समुद्री सुरक्षा (Maritime Security) और नीली अर्थव्यवस्था (Blue Economy), व्यापार एवं निवेश, कनेक्टिविटी, विज्ञान व प्रौद्योगिकी तथा नवाचार के क्षेत्र में सहयोग के साथ-साथ भारत-आसियान रणनीतिक साझेदारी को बढ़ावा देने पर चर्चा हुई। सामाजिक-सांस्कृतिक मोर्चे पर लोगों के बीच जुड़ाव, सांस्कृतिक आदान-प्रदान, मानवीय सहायता और पर्यटन को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया गया। इस क्षेत्र में सामरिक संतुलन बनाए रखने के लिये भारत-प्रशांत क्षेत्र और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के संगठन (आसियान) के मध्य भारत के दृष्टिकोण को समन्वित रखने पर ज़ोर दिया गया, साथ ही दोनों क्षेत्रों में बढ़ती चीन की मुखरता को संतुलित करने की बात की गई। इसके साथ ही भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बैंकॉक में 'सवसदी पीएम मोदी ’ (Sawasdee PM Modi) कार्यक्रम में भारतीय समुदाय को संबोधित किया। थाई भाषा में, 'सवसदी' शब्द का प्रयोग अभिवादन और अलविदा के लिये प्रयोग किया जाता है।
- पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में आतंकवाद से निपटने हेतु बेहतर तैयारी, कट्टरपंथ और अंतर्राष्ट्रीय अपराध से निपटने के लिये वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (Financial Action Task Force- FATF) तथा इससे संबंधित अन्य संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों के साथ समन्वय को बेहतर बनाने की बात कही गई। इस सम्मेलन में एक घोषणापत्र जारी किया गया जिसमें आतंकी वित्तपोषण को रोकने के लिये प्रभावी उपायों को अपनाने का आह्वान किया गया। इसके अतिरिक्त संयुक्त राष्ट्र ऑफिस ऑन ड्रग्स एंड क्राइम (United Nations Office on Drugs and Crime- UNODC) के साथ FATF के बेहतर समन्वय के साथ क्रियान्वयन की बात कही गई।
वर्ष 2005 में स्थापित पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन हिंद-प्रशांत क्षेत्र के सामने मौज़ूद प्रमुख राजनीतिक, सुरक्षा और आर्थिक चुनौतियों पर रणनीतिक बातचीत एवं सहयोग के लिये 18 देशों का एक मंच है। इसकी संकल्पना वर्ष 1991 में मलेशिया के तात्कालीन प्रधानमंत्री महाथिर बिन मोहम्मद द्वारा की गई थी। इसका पहला शिखर सम्मेलन वर्ष 2005 में मलेशिया के कुआलालंपुर में आयोजित किया गया था। इस सम्मेलन के दौरान कुआलालंपुर घोषणा (Kuala Lumpur Declaration) की गई थी। इस घोषणा के अनुसार- यह पूर्वी एशिया में शांति,आर्थिक समृद्धि और क्षेत्रीय एकीकरण को बढ़ावा देने के लिये रणनीतिक, राजनीतिक एवं आर्थिक मुद्दों पर बातचीत के लिये एक खुला मंच है। सदस्य:-इसमें आसियान के 10 देश (ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्याँमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड, वियतनाम), क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) के 6 देश (ऑस्ट्रेलिया, चीन, जापान, भारत, न्यूज़ीलैंड, दक्षिण कोरिया) और रूस एवं संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं। भारत इस संगठन का संस्थापक सदस्य है। यह मंच विश्व की जनसंख्या का लगभग 54% और वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 58% कवर करता है। यह एक आसियान केंद्रित मंच है, इसकी अध्यक्षता केवल आसियान सदस्य ही कर सकते हैं। इस वर्ष इसकी अध्यक्षता थाईलैंड कर रहा है, इसके पहले वर्ष 2018 में इसकी अध्यक्षता सिंगापुर द्वारा की गई थी। सहयोग के क्षेत्र:-पर्यावरण और ऊर्जा शिक्षा वित्त वैश्विक स्वास्थ्य मुद्दे और महामारी रोग प्राकृतिक आपदा प्रबंधन आसियान कनेक्टिविटी भारत सभी छह प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में क्षेत्रीय सहयोग का समर्थन करता है।
सम्मेलन में अन्य देशों के साथ द्विपक्षीय बैठक:
- भारत-म्याँमार:-भारत की एक्ट ईस्ट पाॅलिसी (Act East Policy) यानी पूर्व की ओर देखो नीति के तहत म्याँमार की अवस्थिति भारत के दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। भारत म्याँमार के माध्यम से सुदूर दक्षिण-पूर्व एशिया तक अपनी पहुँच स्थापित कर सकता है, इसलिये भारत इस क्षेत्र में स्थिरता और शांतिपूर्ण सीमा प्रबंधन पर ज़ोर दे रहा है।भारत की योजना है कि नवंबर 2019 के अंत में यंगून में CLMV देशों (कंबोडिया, लाओस, म्याँमार और वियतनाम {Cambodia, Laos, Myanmar, and Vietnam CLMV)} के लिये एक व्यावसायिक कार्यक्रम आयोजित किया जाए।
- भारत और इंडोनेशिया ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में समुद्री सहयोग, शांति एवं सुरक्षा जैसे मुद्दों पर मिलकर काम करने हेतु सहमति व्यक्त की है। भारत इंडोनेशिया के साथ मिलकर रक्षा, सुरक्षा, संपर्क, व्यापार, निवेश और लोगों के बीच आदान-प्रदान को मज़बूत करने का कार्य कर रहा है।
भारत ने इंडोनेशिया के बाज़ार में भारतीय कमोडिटीज, फार्मास्युटिकल, ऑटोमोटिव और एग्रीकल्चर प्रोडक्ट्स की ज़्यादा पहुँच की आवश्यकता पर ज़ोर दिया। 2019 में भारत और इंडोनेशिया बीच वर्ष राजनीतिक संबंधों की स्थापना की 70वीं वर्षगाँठ मनाई गई।
भारत-थाईलैंड: भारत एवं थाईलैंड ने व्यापार, संस्कृति एवं रक्षा उद्योग क्षेत्र जैसे क्षेत्रों में सहयोग हेतु सहमति व्यक्त की। इसके अतिरिक्त दोनों देशों ने भौतिक और डिजिटल कनेक्टिविटी को और मज़बूत करने की आवश्यकता पर बल दिया। थाईलैंड 4.0 के माध्यम से स्वयं को मूल्य-आधारित अर्थव्यवस्था (Value-Based Economy) में बदलने की पहल कर रहा है। भारत द्वारा क्रियान्वित की जा रही है डिजिटल इंडिया, स्किल इंडिया, स्वच्छ भारत मिशन, स्मार्ट सिटी और जल जीवन मिशन इत्यादि योजनाओं में दोनों देशों के बीच सहयोग की असीम संभावना है।