रूस और ‘ओपन स्काई संधि' (Open Skies Treaty- OST) के अन्य सदस्यों ने वीडियो-कॉन्फ्रेंस के माध्यम से एक बैठक में हिस्सा लिया। इस बैठक में सदस्य देशों के बीच अमेरिका द्वारा मई माह में इस समझौते से बाहर होने की घोषणा की पृष्ठभूमि में समझौते के भविष्य पर चर्चा की गई। यह संधि सदस्य देशों को एक-दूसरे देश की सीमा में सैन्य गतिविधियों संबंधित मतभेद को दूर करने के लिये निगरानी उड़ानों की अनुमति देती है। ओपन स्काई संधि को वैश्विक सुरक्षा के एक महत्त्वपूर्ण स्तम्भ के रूप में देखा जाता है। यह संधि सदस्य देशों को एक-दूसरे की सीमा में गैर-हथियारबंद विमानों के माध्यम सैन्य ठिकानों की निगरानी की सुविधा प्रदान करती है। यह संधि सदस्य देशों के बीच पारदर्शिता, परस्पर विश्वास और पूर्वानुमान की स्थिति बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण रही है। गौरतलब है कि वर्ष 2019 में अमेरिका ‘मध्यम दूरी परमाणु बल संधि’ (Intermediate-Range Nuclear Forces-INF Treaty) से स्वयं को अलग कर लिया था। ‘INF संधि’ और ‘संयुक्त व्यापक कार्ययोजना’ (Joint Comprehensive Plan of Action, JCPOA) या ‘ईरान परमाणु समझौता’ के बाद OST तीसरी ऐसी हथियार नियंत्रण संधि होगी जिससे अमेरिकी राष्ट्रपति डाॅनल्ड ट्रंप ने अमेरिका को अलग किया है। आलोचकों के अनुसार, अमेरिकी राष्ट्रपति के इस निर्णय को रक्षा क्षेत्र पर गंभीर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। ‘ओपन स्काई संधि’ (Open Skies Treaty-OST) पर मार्च 1992 में फिनलैंड की राजधानी हेलसिंकी (Helsinki) में हस्ताक्षर किये गए थे। यह संधि वर्ष 2002 में पूर्णरूप से लागू हुई थी। यह संधि में 34 हस्ताक्षरकर्त्ता देशों (अमेरिका और रूस सहित) को संधि में शामिल अन्य देशों की सीमाओं में सैन्य गतिविधियों की जाँच के लिये गैर-हथियार वाले निगरानी विमानों की उड़ान की अनुमति देती है। वर्तमान में इस संधि में 34 सदस्य हैं। किर्गिस्तान ने इस संधि पर हस्ताक्षर किए थे परंतु इसे पूर्ण रूप से लागू नहीं किया है।

भारत इस संधि का हिस्सा नहीं है।

अमेरिकी राष्ट्रपति ने 21 मई, 2020 को ‘ओपन स्काई संधि’ (Open Skies Treaty-OST) से अमेरिका को अलग करने की चेतावनी दी थी। इस संधि से अलग होने के लिये संबंधित देश द्वारा संधि में शामिल अन्य सभी देशों को 6 माह पूर्व इसके बारे में सूचित करना अनिवार्य है। रूस द्वारा अमेरिका और कुछ अन्य देशों को का कालिलिनग्राद (Kaliningrad) और जॉर्जिया के कुछ सीमावर्ती क्षेत्रों जैसे- अब्खाज़िया में निगरानी में विमानों की उड़ानों की अनुमति नही दी गयी। अमेरिकी पक्ष के अनुसार, यदि दूसरा पक्ष (अमेरिका के अलावा) संधि में हुए समझौतों को पूरी तरह नहीं लागू करता है, तो यह द्वितीय विश्व युद्ध के बाद वैश्विक शांति के लिये बनी संपूर्ण बहु-पक्षीय संरचना (संयुक्त राष्ट्र) के अस्तित्त्व को निरर्थक बनाता है।

रूसी पक्ष के अनुसार अमेरिका और नाटो सदस्य देशों द्वारा कालिलिनग्राद में लंबी अवधि तक निगरानी विमानों की अनावश्यक उड़ाने संचालित की गई थी, जिससे क्षेत्र में सार्वजनिक विमानन परिवहन तथा सैन्य विमानों की आवाजाही प्रभावित होती है।

भारतीय रक्षा मंत्री (तीन दिवसीय) द्वितीय विश्व युद्ध की 75वीं विजय दिवस परेड में शामिल होने के लिये मास्को (रूस) पहुँचे

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वर्तमान में निर्धारित योजना के अनुसार, वर्ष 2021 के मध्य से रूस द्वारा भारत को S-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली की आपूर्ति प्रारंभ की जानी है। रक्षा क्षेत्र में रूस भारत को आवश्यक हथियारों एवं गोला-बारूद का प्रमुख आपूर्तिकर्त्ता रहा है। हालाँकि लंबे समय से भारतीय सशस्त्र बलों की यह शिकायत रही है कि रूस से महत्त्वपूर्ण पुर्जों एवं उपकरणों की आपूर्ति में बहुत अधिक समय लगता है, जो वहाँ से आयात किये गए महत्त्वपूर्ण रक्षा उपकरणों की मरम्मत और उनके रख-रखाव की प्रक्रिया को प्रभावित करता है। भारतीय रक्षा मंत्री की तीन दिवसीय रूस यात्रा का महत्त्व: COVID-19 महामारी की शुरुआत के बाद से यह किसी भारतीय आधिकारिक प्रतिनिधि मंडल की पहली विदेश यात्रा थी। भारतीय रक्षा मंत्री रूस में नाज़ीवाद पर विजय की 75वीं वर्षगाँठ के अवसर पर आयोजित की गई विजय दिवस परेड में शामिल होने के लिये गए थे साथ ही, इस परेड में भारतीय सशस्त्र बलों का एक ‘त्रि-सेवा दल’ (Tri-Service Contingent) ने भी हिस्सा लिया। रूस में प्रतिवर्ष 9 मई के दिन इस परेड का आयोजन किया जाता है परंतु इस वर्ष COVID-19 की महामारी के कारण इसे देरी (24 जून, 2020) को आयोजित किया गया था

भारत-रूस संबंधों में रक्षा क्षेत्र का सहयोग अत्यंत महत्त्वपूर्ण विषय रहा है, हाल के वर्षों में रूस से व्यापार और रक्षा सहयोग के मामले में कई पश्चिमी देशों के दबाव (जैसे-अमेरिका द्वारा CAATSA का प्रयोग) के बावज़ूद रक्षा क्षेत्र में सहयोग को बढ़ाए जाने की प्रतिबद्धता भारत-रूस संबंधों के भविष्य के लिये एक सकारात्मक संकेत है।

वर्तमान में भारत को रूस द्वारा परमाणु-पनडुब्बी ‘INS चक्र (SSN)’ प्रदान की गई है।

ब्रह्मोस मिसाइल, M-46 बंदूक का उन्नयन आदि रक्षा क्षेत्र में भारत-रूस के मज़बूत संबंधों के प्रमुख उदाहरण हैं। 5G के मामले में भी रूस में ‘हुआवेई' (Huawei) के साथ स्वीडिश कंपनी एरिक्सन (Ericsson) की उपस्थिति भी बनी हुई है।

भारत और रूस एस-400 (S-400) की खरीद समझौते पर हस्ताक्षर

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भारत और रूस ने वर्ष 2015 में शुरू हुई वार्ता को समाप्त करते हुए अक्टूबर 2019 में इस समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस वार्ता अवधि के दौरान अमेरिकी कांग्रेस ने CAATSA (Countering America’s Adversaries Through Sanctions Act) नाम से एक नया कानून पारित किया था, इस कानून का उद्देश्य अमेरिका के हितों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करने वाले देशों को प्रतिबधों के माध्यम से दंडित करना है। वर्ष 2017 में संयुक्त राज्य अमेरिका ने रूस से बड़े हथियारों की खरीद पर देशों के खिलाफ प्रतिबंध जारी किया था। इस विषय पर अमेरिका का कहना था कि इन प्रतिबधों का कारण सीरिया और यूक्रेन के विवादों में रूस की कुछ सैन्य भागीदारी है। समझौता पूर्ण होने से पूर्व कई बार अमेरिका ने भारत को प्रतिबधों की धमकी देते हुए अन्य विकल्पों की खोज करने की बात कही थी, परंतु इस विषय पर भारत का स्पष्ट कहना था कि उसके लिये अपने राष्ट्रीय हित सर्वोपरि हैं और यह समझौता उसके राष्ट्रीय हित में है। इस पूरे घटनाक्रम में यह प्रश्न अनिवार्य हो जाता है कि क्या भारत द्वारा रूस के साथ किये जाने वाले खरीद समझौते भारत और अमेरिका के रिश्तों को प्रभावित करेंगे।

भारत ने अक्तूबर 2018 में नई दिल्ली में 19वें भारत-रूस वार्षिक द्विपक्षीय सम्मेलन के दौरान पाँच एस-400 प्रणालियों की खरीद के लिये रूस के साथ 5.43 बिलियन डॉलर के समझौते पर हस्ताक्षर किये थे। भारत वर्ष 2021 में रूस से S-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली का पहला शिपमेंट प्राप्त करेगा। उल्लेखनीय है कि एस-400 दुनिया की सबसे उन्नत वायु रक्षा प्रणालियों में से एक है जो एक साथ कई विमानों, मिसाइलों और यूएवी को कुछ सौ किलोमीटर के दायरे में ट्रैक कर सकती है तथा उन्हें बेअसर कर सकती है। इसके महत्त्व को इसी बात से समझा जा सकता है कि भारत के विदेश मंत्री ने कहा था कि “हम यह बिलकुल भी पसंद नहीं करेंगे की कोई और राष्ट्र हमें यह बताए कि हमें रूस से क्या लेना है और क्या नहीं।”

क्या है CAATSA? 2 अगस्त, 2017 को अधिनियमित और जनवरी 2018 से लागू इस कानून का उद्देश्य दंडनीय उपायों के माध्यम से ईरान, रूस और उत्तरी कोरिया की आक्रामकता का सामना करना है। यह अधिनियम प्राथमिक रूप से रूसी हितों, जैसे कि तेल और गैस उद्योग, रक्षा एवं सुरक्षा क्षेत्र तथा वित्तीय संस्थानों पर प्रतिबंधों से संबंधित है। यह अधिनियम अमेरिकी राष्ट्रपति को रूसी रक्षा और खुफिया क्षेत्रों (महत्त्वपूर्ण लेनदेन) से जुड़े व्यक्तियों पर अधिनियम में उल्लिखित 12 सूचीबद्ध प्रतिबंधों में से कम-से-कम पाँच लागू करने का अधिकार देता है। इन दो प्रतिबंधों में से एक निर्यात लाइसेंस प्रतिबंध है जिसके द्वारा अमेरिकी राष्ट्रपति को युद्ध, दोहरे उपयोग और परमाणु संबंधी वस्तुओं के मामले में निर्यात लाइसेंस निलंबित करने के लिये अधिकृत किया गया है। यह स्वीकृत व्यक्ति के इक्विटी या ऋण में अमेरिकी निवेश पर प्रतिबंध लगाता है।

‘एक्ट फार ईस्ट पॉलिसी’ (Act Far East policy) की शुरुआत

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रूस में आयोजित ईस्टर्न इकोनाॅमिक फोरम (Eastern Economic Forum- EEF) में प्रधानमंत्री मोदी ने रूस के सुदूर पूर्वी क्षेत्र (Russia’s Far East Region) में विकास कार्यों को गति देने एवं रूस से रिश्तों को और अधिक मज़बूत करने के लिये ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ (Act East policy) की ही तरह ‘एक्ट फार ईस्ट पॉलिसी’ (Act Far East policy) की शुरुआत की है।

प्रमुख बिंदु: एक्ट फार ईस्ट पॉलिसी के तहत भारत ने रूस के फार ईस्ट (Far East) में विकास कार्यों के लिये 1 बिलियन डॉलर की लाइन ऑफ क्रेडिट (Line of Credit) की भी घोषणा की है। भारत की इस नीति से भारतीय आर्थिक कूटनीति के विकास को एक नई राह मिलेगी एवं रूस के साथ संबंधों को और अधिक घनिष्ट किया जा सकेगा। उल्लेखनीय है कि अपनी एक्ट ईस्ट पॉलिसी के तहत भारत पूर्वी एशिया (East Asia) के साथ सक्रिय रूप से कार्य कर रहा है। क्या है लाइन ऑफ क्रेडिट? लाइन ऑफ क्रेडिट (Line of Credit-LOC) एक प्रकार का ‘सुलभ ऋण’ (Soft Loan) होता है जो एक देश की सरकार द्वारा किसी अन्य देश की सरकार को रियायती ब्याज दरों पर दिया जाता है। आमतौर LOC इस प्रकार की शर्तों से जुड़ा हुआ होता है कि उधार लेने वाला देश उधार देने वाले देश से कुल LOC का निश्चित हिस्सा आयात करेगा। इस प्रकार दोनों देशों को अपने व्यापार और निवेश संबंधों को मज़बूत करने का अवसर मिलता है।

भारत ने अब तक SAARC सदस्यों को लाइन ऑफ क्रेडिट दिया है, जिनमें बांग्लादेश को 8 बिलियन डॉलर, श्रीलंका को 2 बिलियन डॉलर और अफगानिस्तान को 1.2 बिलियन डॉलर का ऋण शामिल है, परंतु अभी तक भारत ने किसी विकसित अर्थव्यवस्था को लाइन ऑफ क्रेडिट नहीं दिया था।