समसामयिकी 2020/मुद्रा,बैंकिंग एवं बीमा

  • भारत सरकार ने एक गजट अधिसूचना के माध्यम से डिजिटल अर्थव्यवस्था पर सरकार के बढ़ते फोकस के मद्देनज़र ‘वित्तीय स्थिरता एवं विकास परिषद’ (Financial Stability and Development Council- FSDC) में केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के सचिव को शामिल किया था।

FSDC का गठन दिसंबर, 2010 में किया गया था। यह सांविधिक निकाय (Statutory Body) नहीं है। इसने ‘वित्तीय बाज़ारों पर उच्च स्तरीय समन्वय समिति’ (High-Level Coordination Committee on Financial Markets- HLCCFM) का स्थान लिया। इसका उद्देश्य वित्तीय स्थिरता को बनाए रखने वाली क्रियाविधि को मज़बूत एवं संस्थागत करना और अंतर-विनियामक समन्वय को बढ़ाना तथा वित्तीय क्षेत्र के विकास को बढ़ावा देना है। इस परिषद की अध्यक्षता केंद्रीय वित्त मंत्री करते हैं और इसके सदस्यों में भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर, वित्त सचिव या आर्थिक मामलों के विभाग के सचिव, वित्तीय सेवा विभाग के सचिव, वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार, भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड के अध्यक्ष आदि शामिल होते हैं। FSDC के उत्तरदायित्व: वित्तीय क्षेत्र का विकास वित्तीय स्थिरता और वित्तीय समावेशन वित्तीय साक्षरता अंतर-नियामक समन्वय अर्थव्यवस्था का वृहद विवेकपूर्ण पर्यवेक्षण

  • भारत सरकार ने 31 मार्च, 2020 को एक से तीन वर्ष की सावधि जमा (Fixed Deposite) पर ब्याज दर में 1.4% की कटौती करके 5.5% कर दिया गया है। पहले सावधि जमा पर 6.9% ब्याज मिलता था। वहीं पाँच वर्ष की सावधि जमा पर ब्याज दर 7.7% से घटाकर 6.7% कर दी गई। वित्त वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही अर्थात् अप्रैल-जून की अवधि के लिये सार्वजनिक भविष्य निधि (PPF) पर ब्याज दर को 7.9% से घटाकर 7.1% कर दिया गया है। वहीं राष्ट्रीय बचत प्रमाण पत्र (NSC) की दर को 7.9% से घटाकर 6.8% कर दिया।
  1. सार्वजनिक भविष्य निधि(PPF) निवेश की गई राशि पर कर रहित आकर्षक ब्याज दर और रिटर्न प्रदान करनेवाला एक दीर्घकालिक निवेश विकल्प है।वर्ष 1968 में भारत में छोटी बचत जुटाने के उद्देश्य से लाया गया था। इसे बचत-सह-कर बचत निवेश वाहन (Savings-Cum-Tax Savings Investment Vehicle) भी कहा जा सकता है। भारत में PPF का न्यूनतम कार्यकाल 15 वर्ष है जिसे व्यक्ति की इच्छानुसार 5 वर्ष की एक पूर्ण-अवधि के तहत बढ़ाया जा सकता है।
  2. राष्ट्रीय बचत प्रमाण पत्र एक निश्चित आय निवेश योजना है जिसे किसी भी डाकघर में शुरू किया जा सकता है।यह मध्यम आय वाले निवेशकों के लिये आयकर में बचत करने के उद्देश्य से निवेश करने के लिये एक बचत बांड (Savings Bond) है। 1950 के दशक में राष्ट्र-निर्माण हेतु धन एकत्र करने के लिये इसपर अधिक जोर दिया गया।
  3. किसान विकास पत्र पर लगाने वाली ब्याज दर जो पहले 7.6% थी उसे अब 6.9% कर दिया गया है। इंडिया पोस्ट; (India Post) ने वर्ष 1988 में इसकी शुरुआत एक छोटी बचत प्रमाण पत्र योजना के रूप में किया था। इसका प्राथमिक उद्देश्य लोगों में दीर्घकालिक वित्तीय अनुशासन को प्रोत्साहित करना है। वर्ष 2014 में इसमें संशोधन कर इसकी स्वामित्त्व अवधि को बढ़ाकर 118 महीने (9 वर्ष एवं 10 महीने) कर दिया गया है। इसमें न्यूनतम निवेश 1000 रुपए है किंतु इसकी कोई ऊपरी सीमा नहीं है। इसके जमाकर्त्ताओं का धन 118 महीनों में दोगुना हो सकता है।
  4. बालिका-केंद्रित सुकन्या समृद्धि योजना पर ब्याज दर को 8.4% से घटाकर 7.6 % कर दिया गया है। छोटी बचत योजनाओं के लिये ब्याज दरों को तिमाही आधार पर अधिसूचित किया जाता है।

COVID-19 महामारी के कारण भारतीय रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee-MPC) द्वारा रेपो दर में 75 आधार अंकों की कटौती कर 4.4% जबकि रिवर्स रेपो दर में 90 आधार अंकों की कटौती करके 4% कर दिये जाने के बाद भारत सरकार ने छोटी बचत योजनाओं (Small Savings Schemes) पर ब्याज दरों में कटौती की है।

  • पेमेंट काउंसिल ऑफ इंडिया (Payments Council of India- PCI) का गठन डिजिटल भुगतान उद्योग की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये वर्ष 2013 में इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन आफ इंडिया (IAMAI) के तत्त्वावधान में किया गया।

परिषद भुगतान उद्योग के विकास और कैशलेस सोसाइटी तथा वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के लिये काम करती है जिन्हें भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) और भारत सरकार द्वारा साझा किया जाता है। परिषद नियामकों यानी भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI), वित्त मंत्रालय या भारत को कैशलेस सोसाइटी बनाने वाले विभागों, निकायों या संस्थाओं के साथ मिलकर काम करती है।

इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन आफ इंडिया (Internet and Mobile Association of India-IAMAI):-

इसकी स्थापना वर्ष 2004 में प्रमुख ऑनलाइन प्रकाशकों द्वारा की गई थी। IAMAI, सोसायटी अधिनियम, 1896 के तहत पंजीकृत एक गैर-लाभकारी उद्योग निकाय है। इसका कार्य ऑनलाइन और मोबाइल आधारित मूल्य-वर्द्धित सेवाओं को बढ़ावा देना है। यह भारत में ऑनलाइन और मोबाइल मूल्य-वर्द्धित सेवा उद्योग का प्रतिनिधित्व करने वाला एकमात्र पेशेवर औद्योगिक निकाय है।

भारतीय रिज़र्व बैंक(RBI)की पहल सम्पादन

  • केंद्र सरकार द्वारा लाए गए एक अध्यादेश के माध्यम से RBI की शक्तियों में वृद्धि किया गया है। जिसके तहत सहकारी बैंकों के प्रमुख कार्यकारी अधिकारी की नियुक्ति RBI द्वारा की जाएगी। अध्यादेश से पूर्व सहकारी बैंक में अनियमितता के खिलाफ कार्रवाई के लिये RBI राज्य सरकार को सिर्फ सुझाव दे सकती थी परंतु अब RBI ऐसे मामलों में सीधे कार्रवाई कर सकेगी।इससे सहकारी बैंकों की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता में वृद्धि होगी तथा लोगों का इन बैंकों के प्रति विश्वास बढ़ेगा।
इससे पहले वर्ष 2005 में RBI द्वारा जारी ‘विज़न डॉक्यूमेंट’ जारी किया गया जिसके तहत राज्यों के सहकारी बैंकों में विनियमन की दोहरी व्यवस्था में व्याप्त त्रुटियों को दूर करने के लिये एक ‘टास्क फोर्स’ की स्थापना की बात कही गई परन्तु इसे लागू नहीं किया जा सका।

वर्तमान में देश में कुल 1482 शहरी सहकारी बैंक और 58 बहु-राज्य सहकारी बैंक सक्रिय हैं। केंद्र सरकार के इस निर्णय के माध्यम से सहकारी बैंकों के लगभग 8.6 करोड़ ग्राहकों के लगभग 4.84 लाख करोड़ रुपयों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकेगी। शहरी सहकारी बैंकों की अनियमितताएँ:-वर्ष 2014 में बनी ‘आर. गाँधी समिति’ (R. Gandhi Committee) द्वारा जारी रिपोर्ट में पाया गया कि जहाँ छोटे, गैर-अनुसूचित UCBs 10 लाख से कम के ऋण वितरण पर विशेष ध्यान दे रहे थे, वहीं बड़े और अनुसूचित UCBs अपने मुख्य उद्देश्य से हटते हुए व्यावसायिक बैंकों की तरह बड़े व्यापारिक ऋण वितरण में अधिक सक्रिय थे। जबकि इस दौरान ऐसे बैंकों ने सहकारी बैंकों के लिये निर्धारित कई प्रकार की छूट का लाभ भी प्राप्त किया। सहकारी बैंकों में अनियमितता की बढती घटनाओं को देखते हुए RBI हाल के वर्षों में नए UCBs को लाइसेंस जारी करने से बचता रहा है।

विनियमन की दोहरी व्यवस्था:-सहकारी बैंकों का पंजीकरण संबंधित राज्य के ‘सहकारी समिति अधिनियम' (Co-operative Societies Act) या ‘बहु-राज्यीय सहकारी समिति अधिनियम, 2002’ (Multi-State Co-operative Societies Act, 2002) के तहत किया जाता है।

सहकारी बैंकों के विनियमन का कार्य सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार और RBI द्वारा किया जाता है। इस व्यवस्था में RBI द्वारा ‘बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949’ के तहत सहकारी बैंकों की बैंकिंग प्रणाली की निगरानी का कार्य किया जाता है। जबकि सहकारी बैंकों के निदेशकों की नियुक्ति और बैंकों की ऑडिट प्रक्रिया की निगरानी सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार द्वारा की जाती है।

‘पंजाब और महाराष्ट्र सहकारी बैंक’ में वित्तीय गड़बड़ी का मामला सामने आने के बाद जनवरी 2020 सहकारी बैंकों के संदर्भ में RBI ने कई कड़े कदम उठाए थे।
  • अगस्त 2020 के ‘मौद्रिक नीति समिति’ की बैठक में RBI ने मौद्रिक नीतिगत दरों को यथावत बनाए रखने का निर्णय लिया है।

MPC ने रेपो दर (Repo Rate) को 4% पर, सीमांत स्थायी सुविधा दर (Marginal Standing Facility Rate) और बैंक दर (Bank Rate) को भी 4.25% पर यथावत बनाए रखने का निर्णय लिया है। मौद्रिक नीति का प्राथमिक उद्देश्य आर्थिक वृद्धि को ध्यान में रखते हुए मूल्य स्थिरता बनाए रखना होता है। अप्रैल और मई की कुछ आर्थिक गतिविधियों को लॉकडाउन के बाद पुन: प्रारंभ किया गया है जिससे ‘उच्च-आवृत्ति वाले आर्थिक संकेतकों’ में कुछ सुधार देखने को मिला। लेकिन महामारी के संक्रमण के फिर से बढ़ने से अनेक क्षेत्रों में पुन: लॉकडाउन लगाया गया जिससे आर्थिक संकेतकों में देखा गया सुधार समाप्त हो गया।

उच्च-आवृत्ति वाले आर्थिक संकेतक विभिन्न आर्थिक गतिविधियों का एक सूचकांक होता है । ये संकेतक नीति निर्माताओं को आर्थिक गतिविधियों से संबंधित आवश्यक जानकारी प्रदान करते हैं जिनके आधार पर वार्षिक और तिमाही जीडीपी वृद्धि का अनुमान लगाया जाता है।

भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम-1934 के अनुसार, भारत सरकार RBI से परामर्श करके प्रत्येक पाँच वर्षों में एक बार मुद्रास्फीति लक्ष्य को निर्धारित करेगी। केंद्र सरकार ने इसे 'उपभोक्ता मूल्य सूचकांक’ (CPI) के अनुसार, 5 अगस्त, 2016 से 31 मार्च, 2021 की अवधि के लिये 4 प्रतिशत निर्धारित किया है। जिसकी ऊपरी सीमा 6 प्रतिशत और निम्न सीमा 2 प्रतिशत है।

मौद्रिक नीति के साधन:
  1. रेपो दर (Repo Rate-RR)पर RBI→→ अन्य बैंकों को अल्पकालिकॠण प्रदान करता है।
  2. रिवर्स रेपो दर (Reverse Repo Rate-RRR)पर RBI ←← बैंकों से ओवरनाइट तरलता को अवशोषित करता है।
  3. तरलता समायोजन सुविधा (Liquidity Adjustment Facility-LAF)में ओवरनाइट तरलता के साथ-साथ टर्म रेपो की नीलामी भी शामिल है।
  4. सीमांत स्थायी सुविधा (Marginal Standing Facility- MSF) के तहत अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक अपने ‘वैधानिक तरलता अनुपात’ (SLR) पोर्टफोलियो में तक निश्चित सीमा तक कमी (Dipping) करके ओवरनाइट सुविधा के तहत अतिरिक्त राशि उधार ले सकते हैं।
  5. बैंक दर (Bank Rate)पर रिज़र्व बैंक →→बैंकों को दीर्घकालिक ऋण प्रदान करती है।
  6. खुले बाज़ार के परिचालन (Open Market Operations- OMO) में सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद और बिक्री दोनों शामिल हैं।
  7. बाज़ार स्थिरीकरण योजना (Market Stabilisation Scheme- MSS)अधिक स्थायी अधिशेष तरलता को लघु-दिनांकित सरकारी प्रतिभूतियों और ट्रेजरी बिलों की बिक्री के माध्यम से अवशोषित किया जाता है।

जून, 2016 में गठित मौद्रिक नीति समिति (MPC) का उद्येश्य नीतिगत ब्याज दर निर्धारण को अधिक उपयोगी एवं पारदर्शी बनाना था। इसके लिये वित्त अधिनियम 2016 द्वारा रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया अधिनियम-1934 में संशोधन किया गया, ताकि मौद्रिक नीति समिति को वैधानिक और संस्थागत रूप प्रदान किया जा सके। इसके छह सदस्यों में से तीन सदस्य RBI से होते हैं। RBI गवर्नर, समिति का पदेन अध्यक्ष होता है।

  • RBI द्वारा निज़ी क्षेत्रों के बैंकों के स्वामित्व, संचालन एवं कॉर्पोरेट संरचना की समीक्षा करने के लिये एक समिति/आंतरिक कार्य समूह का गठन किया गया है। इस पाँच सदस्यीय आंतरिक कार्य समूह का गठन सेंट्रल बोर्ड के निदेशक पी के मोहंती की अध्यक्षता में किया है।

यह कदम वर्ष 2020 की शुरुआत में आरबीआई तथा निजी क्षेत्र के बैंक कोटक महिंद्रा बैंक के बीच मे प्रवर्तकों की हिस्सेदारी की समीक्षा के संबंध में अदालत से बाहर हुए समाधान की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। केंद्रीय बैंक द्वारा कोटक महिंद्रा बैंक की हिस्सेदारी को 26 प्रतिशत पर सीमित रखने की अनुमति दी गई साथ ही वोटिंग के अधिकार की सीमा 15 प्रतिशत तय की गई।

भारतीय रिज़र्व बैंक के मौजूदा नियमों के तहत, निजी क्षेत्र के बैंक के प्रवर्तक को तीन वर्ष में अपनी हिस्सेदारी को घटाकर 40 प्रतिशत, दस वर्ष में 20 प्रतिशत और 15 वर्ष में 15 प्रतिशत पर आवश्यक रूप से लाने का प्रावधान किया गया है। यह समिति 30 सितंबर, 2020 तक अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी।

इस कार्य समूह द्वारा भारतीय निजी क्षेत्र के बैंकों के लिये स्वामित्त्व तथा कॉर्पोरेट ढाँचे पर मौजूदा दिशा निर्देशों की समीक्षा की जाएगी। भारत के निजी क्षेत्र के बैंकों के लाइसेंसिंग से संबंधित दिशा-निर्देशों तथा स्वामित्व और नियंत्रण से जुड़े नियमनों की समीक्षा करने के साथ-साथ उपयुक्त सुझाव भी प्रस्तुत करेगी । अपने सुझाव प्रस्तुत करते समय समिति को स्वामित्त्व और नियंत्रण पर अत्यधिक ध्यान देने वाले मुद्दे तथा अंतर्राष्ट्रीय व्यवहार एवं घरेलू ज़रूरतों पर विशेष ध्यान दिया जायेगा। समिति द्वारा शुरुआती-लाइसेंसिंग स्तर पर प्रवर्तकों की शेयरधारिता से संबंधित नियमों और शेयरधारिता घटाने की समय-सीमा की भी समीक्षा की जाएगी। गठित समूह बैंकिंग लाइसेंस के लिये आवेदन करने तथा सभी संबंधित मुद्दों पर सिफारिश करने के लिये व्यक्तियों/संस्थाओं के लिये पात्रता एवं मानदंडों की जाँच एवं समीक्षा करेगा। यह गैर-सहकारी वित्तीय होल्डिंग कंपनी (एनओएफएचसी) के माध्यम से वित्तीय सहायक कंपनियों के संचालन पर मौजूदा नियमों का अध्ययन करेगी तथा सभी बैंकों को एक समान विनियमन में स्थानांतरित करने हेतु अपने सुझाव प्रस्तुत करेगी ।

  • जुलाई में RBI द्वारा जारि वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (अर्द्धवार्षिक प्रकाशन) के 21वें अंक में COVID-19 महामारी और राष्ट्रीयव्यापी लॉकडाउन के प्रभावस्वरूप सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंकों (SCBs) का सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (GNPA) अनुपात मौजूदा परिस्थितियों के तहत मार्च 2020 में 8.5 प्रतिशत से बढ़कर मार्च 2021 तक 12.5 प्रतिशत हो सकता है। यह अनुपात मार्च 2000 के सकल NPA अनुपात (12.7 प्रतिशत) के बाद सबसे अधिक है।

मार्च 2020 में अनुसूचित वाणिज्य बैंकों (SCBs) का पूँजी पर्याप्तता अनुपात (CAR) घटकर 14.8 प्रतिशत हो गया है, जो कि सितंबर 2019 में 15 प्रतिशत था। मौजूदा परिस्थितियों में मार्च 2021 तक यह अनुपात 13.3 प्रतिशत पर पहुँच सकता है, और यदि आर्थिक परिस्थितियाँ और बिगड़ती हैं तो यह अनुपात 11.8 प्रतिशत तक पहुँच सकता है।

पूँजी पर्याप्तता अनुपात (Capital Adequacy Ratio-CAR) को पूँजी-से-जोखिम भारित संपत्ति अनुपात (Capital-to-Risk Weighted Assets Ratio-CRAR) के रूप में भी जाना जाता है। इसका उपयोग जमाकर्त्ताओं की सुरक्षा और विश्व में वित्तीय प्रणालियों की स्थिरता और दक्षता को बढ़ावा देने के लिये किया जाता है।
  • RBI द्वारा जून में जारी नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, भारत में ‘विदेशी मुद्रा भंडार’ पहली बार 500 बिलियन डॉलर के आँकड़े को पार कर गया है। जून के प्रथम सप्ताह के दौरान भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 8.2 बिलियन डॉलर बढ़ गया, जो कि सितंबर 2007 के बाद से सबसे बड़ी साप्ताहिक छलांग है। विदेशी मुद्रा परिसंपत्ति (Foreign Currency Assets- FCAs) जो ‘विदेशी मुद्रा भंडार’ का प्रमुख घटक है, में 8.42 बिलियन डॉलर की बढ़ोतरी के कारण अब यह 463.63 बिलियन डॉलर हो गया है।
विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Exchange Reserves):-
  1. किसी देश/अर्थव्यवस्था के पास उपलब्ध कुल विदेशी मुद्रा उसकी विदेशी मुद्रा संपत्ति/भंडार कहलाती है। 6, मार्च 2020 तक विदेशी मुद्रा भंडार अपने उच्चतम स्तर 487.23 बिलियन डॉलर पर था।
  2. किसी भी देश के विदेशी मुद्रा भंडार में निम्नलिखित 4 तत्त्व शामिल होते हैं-
  3. विदेशी परिसंपत्तियाँ (विदेशी कंपनियों के शेयर,डिबेंचर,बाॅण्ड इत्यादि विदेशी मुद्रा में)वर्ष 2020 में अब तक विदेशी मुद्रा भंडार 40 बिलियन डॉलर बढ़ गया, जबकि रुपए में इसी अवधि के दौरान 6% की गिरावट आई है। यह दर्शाता है
  4. स्वर्ण भंडार (Gold Reserves) 5 जून को 329 मिलियन डॉलर के कमी के कारण अब यह 32.352 बिलियन डॉलर हो गया है।
  5. IMF के पास रिज़र्व कोष (रिज़र्व ट्रैंच) 4.28 बिलियन डॉलर (120 मिलियन डॉलर की बढ़ोतरी) हो गई है।
  6. विशेष आहरण अधिकार (Special Drawing Rights-SDR):- यह बढ़कर 1.44 बिलियन डॉलर (10 मिलियन डॉलर की बढ़ोतरी) हो गया है।IMF की मुद्रा है,जिसे वर्ष 1969 में अपनाने के पश्चात वर्ष 1970 से मुद्रा के रूप में अपनाया। इसे लेखा मुद्रा, पेपर मुद्रा या कृत्रिम मुद्रा भी कहते हैं। SDR का मूल्य, बास्केट ऑफ करेंसी में शामिल मुद्राओं के औसत भार के आधार पर किया जाता है। वर्तमान में बास्केट ऑफ करेंसी में 5 मुद्राएँ शामिल हैं-अमेरिकी डॉलर,जापानी येन,यूरो,ब्रिटिश पाउंड स्टर्लिंग,चीनी रेमिंबी (RMB)
  • जून में देश भर में डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने के उद्देश्य से RBI ने में 500 करोड़ रुपए का ‘भुगतान अवसंरचना विकास कोष’ (Payments Infrastructure Development Fund-PIDF) स्थापित किया है। RBI 250 करोड़ रुपए के प्रारंभिक योगदान के साथ इस कोष की शुरुआत करेगा और शेष आधा हिस्सा कार्ड जारी करने वाले बैंकों और देश में परिचालित कार्ड नेटवर्कों द्वारा वहन किया जाएगा। इसका उद्देश्य मुख्यतः टियर-III से टियर-VI शहरों तथा पूर्वोत्तर राज्यों में अधिग्राहकों को पॉइंट ऑफ सेल (Point of Sale-PoS) से संबंधित अवसंरचना स्थापित करने हेतु प्रोत्साहित करना है।
RBI द्वारा गठित इस कोष को एक सलाहकार परिषद (Advisory Council) के माध्यम से शासित किया जाएगा, हालाँकि इसका प्रबंधन भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा स्वयं किया जाएगा। RBI द्वारा भारतीय शहरों को उनकी जनसंख्या के आधार पर विभिन्न टियर में विभाजित किया गया है-
  1. टियर I - 1,00,000 या उससे अधिक
  2. टियर II - 50,000 से 99,999
  3. टियर III - 20,000 से 49,999
  4. टियर IV - 10,000 से 19,999
  5. टियर V - 5,000 से 9,999 टियर VI - 5000 से कम

देश भर के छोटे व्यापारियों को डिजिटल भुगतान स्वीकार करने हेतु सक्षम बनाना इस कोष के गठन का प्रमुख उद्देश्य है। यह डिजिटल भुगतान स्वीकार करने वाले व्यापारियों की संख्या को बढ़ाने में काफी मददगार साबित होगा।

आवश्यकता:-कुछ वर्षों में देश में भुगतान पारिस्थितिकी तंत्र (Payments Ecosystem) विभिन्न प्रकार के विकल्पों के साथ विकसित हुआ है, जिसमें बैंक खाते, मोबाइल फोन, कार्ड इत्यादि शामिल हैं। देश में भुगतान प्रणालियों के डिजिटलीकरण के लिये और अधिक उत्साह प्रदान करने की आवश्यकता है। देश में अधिकांश PoS टर्मिनल टियर I और टियर II शहरों में स्थित हैं और अन्य सभी शहरों तथा क्षेत्रों में इस प्रकार की अवसंरचना का अभाव है।

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों के अनुसार, मार्च 2020 तक देश भर में लगभग 5.14 मिलियन सक्रिय PoS डिवाइस हैं।

देश भर के उन क्षेत्रों में PoS उपकरण स्थापित करना एक कारगर कदम नहीं होगा, जहाँ न्यूनतम व्यापारिक लेनदेन 10000 रुपए से भी कम होता है, क्योंकि इस प्रकार के उपकरण के रखरखाव की लागत ही काफी अधिक होती है।

वहीं नीति निर्माताओं के लिये आम लोगों को इस प्रकार के उपकरण के प्रयोग के प्रति जागरूक करना भी एक चुनौती होगी।

  • RBI द्वारा खुला बाज़ार परिचालन (OMO) के तहत सरकारी प्रतिभूतियों की एक साथ खरीद और बिक्री करने हेतु पुनः निर्णय लिया गया है। RBI वर्ष 2026-30 के बीच परिपक्व होने वाले 10 हज़ार करोड़ के बॉन्ड खरीदेगी तथा इतनी ही धनराशि की ट्रेज़री बिल की बिक्री करेगा। अतः इस निर्णय से 10 वर्ष के बॉन्ड पर बॉन्ड यील्ड में 20 आधार अंक की कमी आएगी।
बॉन्ड यील्ड बॉन्ड पर रिटर्न मिलने वाली धनराशि है। बॉन्ड की कीमत में उतार-चढ़ाव से बॉन्ड यील्ड पर विपरीत असर पड़ता है। जब बॉन्ड की कीमत बढ़ती है तो बॉन्ड यील्ड घटता है तथा बॉन्ड की कीमत घटती है तो बॉन्ड यील्ड बढ़ता है।

ऑपरेशन ट्विस्ट (Operation Twist) पहली बार वर्ष 1961 में अमेरिकी डॉलर को मज़बूत करने और अर्थव्यवस्था में नकदी प्रवाह को प्रोत्साहित करने के लिये लाया गया था। इसके अंतर्गत केंद्रीय बैंक दीर्घ अवधि के सरकारी ऋण पत्रों को खरीदने के लिये अल्पकालिक प्रतिभूतियों की बिक्री से प्राप्त आय का उपयोग करता है, जिससे लंबी अवधि के ऋणपत्रों पर ब्याज दरों के निर्धारण में आसानी होती है। ‘ऑपरेशन ट्विस्ट’ से अल्पकालिक प्रतिभूतियों को दीर्घकालिक प्रतिभूतियों में परिवर्तित किया जाता है।

खुला बाज़ार परिचालन (Open Market Operations-OMO) धन की कुल मात्रा को विनियमित या नियंत्रित करने के लिये मात्रात्मक मौद्रिक नीति उपकरणों में से एक है, जिसे RBI द्वारा अर्थव्यवस्था में मुद्रा आपूर्ति को नियंत्रित करने हेतु उपयोग में लाया जाता है।

RBI द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों की बिक्री या खरीद के माध्यम से मुद्रा आपूर्ति की स्थिति को समायोजित करने के लिये खुले बाज़ार का संचालन किया जाता है। केंद्रीय बैंक, आर्थिक प्रणाली के अंतर्गत तरलता में कमी लाने के लिये सरकारी प्रतिभूतियाँ बेचता है और इस प्रणाली को नियंत्रित रखने के लिये सरकारी प्रतिभूतियाँ खरीदता है। RBI द्वारा अर्थव्यवस्था में रुपए के मूल्य को समायोजित करने के लिये अन्य मौद्रिक नीति उपकरणों जैसे रेपो दर, नकद आरक्षित अनुपात और वैधानिक तरलता अनुपात के साथ OMO का उपयोग किया जाता है।

  • सर्वोच्च न्यायालय ने भारत में वर्चुअल करेंसी के व्यापार पर लगे प्रतिबंध को समाप्त कर दिया है, जिसे RBI द्वारा अप्रैल 2018 में एक आदेश के माध्यम से अधिरोपित किया गया था। न्यायालय ने अपने आदेश में वर्चुअल करेंसी (VC) पर लगे प्रतिबंध को असंगत बताते हुए कहा कि RBI ने स्वयं वर्चुअल करेंसी (VC) के व्यापार के किसी भी प्रतिकूल प्रभाव या नुकसान को स्पष्ट नहीं किया है।
RBI ने 2018 के अपने आदेश में कहा था कि रिज़र्व बैंक द्वारा विनियमित सभी इकाइयाँ वर्चुअल करेंसी में लेन-देन नहीं करेंगी तथा किसी व्यक्ति या इकाई को वर्चुअल करेंसी में लेन-देन के लिये भी सुविधा प्रदान नहीं करेंगी। वर्चुअल करेंसी के व्यापार में शामिल सभी विनियमित संस्थाओं को परिपत्र की तारीख से तीन महीने के भीतर सभी कार्य समाप्त करने होंगे।
सरकार ने बीते वर्ष क्रिप्टोकरेंसी प्रतिबंध एवं आधिकारिक डिजिटल मुद्रा नियमन विधेयक, 2019 का मसौदा तैयार किया था। यह विधेयक क्रिप्टोकरेंसी के व्यापार को पूर्णतः प्रतिबंधित करता है। जब तक क्रिप्टोकरेंसी को प्रतिबंध करने वाले मसौदे को इसके मौजूदा स्वरूप से नहीं बदला जाएगा तब तक देश में क्रिप्टोकरेंसी के माध्यम से व्यापार को शुरू नहीं किया जा सकेगा।
वर्चुअल करेंसी एक प्रकार की डिजिटल मुद्रा होती है,परंतु वैध मुद्रा नहीं होती है, जिसका अर्थ है कि यह देश के केंद्रीय बैंक (भारत की स्थिति में भारतीय रिज़र्व बैंक) द्वारा समर्थित नहीं होती है। क्रिप्टोकरेंसी (Cryptocurrency) वर्चुअल करेंसी का एक रूप है जो क्रिप्टोग्राफी द्वारा संरक्षित है। क्रिप्टोग्राफी मूल रूप से एक ग्रीक शब्द है, जो 'गुप्त' और 'लिखावट' का मिला-जुला अर्थ रूप है। यह एक प्रकार का कूट-लेखन (Encode) है, जिसमें भेजे गए संदेश या जानकारी को सांकेतिक शब्दों में बदल दिया जाता है। इसे भेजने वाला या पाने वाला ही पढ़ सकता या खोल सकता है। क्रिप्टोग्राफी का संबंध डेटा की सुरक्षा और उससे संबंधित विषयों, विशेषकर एनक्रिप्शन से होता है।

बिटकॉइन और एथेरम जैसी डिजिटल करेंसी ब्लॉकचेन तकनीक पर निर्भर करती हैं। जिस प्रकार हज़ारों-लाखों कंप्यूटरों को आपस में जोड़कर इंटरनेट का आविष्कार हुआ, ठीक उसी प्रकार डेटा ब्लॉकों (आँकड़ों) की लंबी श्रृंखला को जोड़कर उसे ब्लॉकचेन नाम दिया गया है। ब्लॉकचेन तकनीक में तीन अलग-अलग तकनीकों का समायोजन है, जिसमें इंटरनेट, पर्सनल 'की' (निजी कुंजी) की क्रिप्टोग्राफी अर्थात् जानकारी को गुप्त रखना और प्रोटोकॉल पर नियंत्रण रखना शामिल है। ब्लॉकचेन एक ऐसी तकनीक है जिससे बिटकॉइन तथा अन्य क्रिप्टो-करेंसियों का संचालन होता है। यदि सरल शब्दों में कहा जाए तो यह एक डिजिटल ‘सार्वजनिक बही-खाता’ (Public Ledger) है, जिसमें प्रत्येक लेन-देन का रिकॉर्ड दर्ज़ होता है। ब्लॉकचेन में एक बार किसी भी लेन-देन के दर्ज होने पर इसे न तो वहाँ से हटाया जा सकता है और न ही इसमें संशोधन किया जा सकता है। ब्लॉकचेन के कारण लेन-देन के लिये एक विश्वसनीय तीसरी पार्टी जैसे-बैंक की आवश्यकता नहीं पड़ती। नेटवर्क से जुड़े उपकरणों (मुख्यतः कंप्यूटर की श्रृंखलाओं, जिन्हें नोड्स कहा जाता है) द्वारा सत्यापित होने के बाद इसके अंतर्गत किया गया प्रत्येक लेन-देन का विवरण बही-खाते में रिकॉर्ड होता है।

क्रिप्टोकरेंसी के लाभ
  1. क्रिप्टोकरेंसी के ज़रिये लेन-देन के दौरान छद्म नाम (Pseudonym) एवं पहचान बताई जाती है। ऐसे में अपनी निजता को लेकर अत्यधिक संवेदनशील व्यक्तियों को यह माध्यम सर्वाधिक उपयुक्त जान पड़ता है।
  2. लागत अत्यंत ही कम होती है। घरेलू हो या अंतर्राष्ट्रीय किसी भी लेन-देन की लागत एक समान ही होती है।
  3. ‘थर्ड-पार्टी सर्टिफिकेशन’ (Third Party Certification) की आवश्यकता नहीं होती। अतः धन एवं समय दोनों की बचत होती है।

क्रिप्टोकरेंसी के नुकसान क्रिप्टोकरेंसी की संपूर्ण व्यवस्था ऑनलाइन होने के कारण इसकी सुरक्षा कमज़ोर हो जाती है और इसके हैक होने का खतरा बना रहता है। क्रिप्टोकरेंसी की सबसे बड़ी समस्या है इसका ऑनलाइन होना और यही कारण है कि क्रिप्टोकरेंसी को एक असुरक्षित मुद्रा माना जा रहा है। प्रत्येक बिटकॉइन लेन-देन के लिये लगभग 237 किलोवाट बिजली की खपत होती है और इससे प्रतिघंटा लगभग 92 किलो कार्बन उत्सर्जन होता है।

  • रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने लघु वित्त बैंकों (Small Finance Bank-SFB) के लिये ‘कभी भी’ (ऑन टैप बेसिस) लाइसेंस हेतु आवेदन करने की सुविधा पर दिशा-निर्देश जारी किये है।

इसके तहत न्यूनतम आवश्यक पूंजी को बढ़ाकर 200 करोड़ रुपए कर दिया गया है। रिज़र्व बैंक ने शहरी सहकारी बैंक जो कि ऐच्छिक रूप से लघु वित्त बैंक में परिवर्तित होना चाहते हैं, उनके लिये आवश्यक पूंजी की सीमा 100 करोड़ रुपए निर्धारित की है। उल्लेखनीय है कि ऐसे निकायों को परिचालन आरंभ होने के अगले 5 वर्षों में अपने निवल मूल्य को बढाकर 200 करोड़ रुपए करना होगा। निर्देश के अनुसार, लघु वित्त बैंकों को कारोबार शुरू करते ही अनुसूचित बैंक का दर्जा दिया जाएगा और इन्हें बैंकिंग आउटलेट्स खोलने की सामान्य अनुमति प्राप्त होगी। लघु वित्त बैंक के प्रवर्तकों को परिचालन शुरू होने के बाद से अगले 5 वर्षों तक बैंक की भुगतान योग्य इक्विटी पूंजी का न्यूनतम 40 प्रतिशत हिस्सा अपने पास रखना होगा। दिशा-निर्देश के अंतर्गत 5 वर्षों तक सफलतापूर्वक परिचालन करने वाले भुगतान बैंकों को ही लघु वित्त बैंक के लाइसेंस योग्य माना गया है। लघु वित्त बैंकों द्वारा 500 करोड़ के निवल मूल्य का लक्ष्य प्राप्त करने के 3 वर्षों के भीतर स्टॉक मार्केट में सूचीबद्ध होना अनिवार्य है। बैंकिंग तथा वित्त क्षेत्र में वरिष्ठ स्तर पर कम-से-कम 10 साल का अनुभव रखने वाले नागरिकों/पेशेवरों को भी लघु वित्त बैंक खोलने की पात्रता दे दी गई है। किसी भारतीय नागरिक के स्वामित्त्व वाली निजी क्षेत्र की ऐसी कंपनी या सोसायटी जिसने कम-से-कम पाँच सफलतापूर्वक परिचालन किया है, भी लघु वित्त बैंक की प्रवर्तक बन सकती हैं।

भुगतान बैंक:-रिज़र्व बैंक ने वर्ष 2014 में नाचिकेत मोर समिति की सिफारिश पर भुगतान बैंकों से संबंधित दिशा-निर्देश जारी किये। इसका मुख्य उद्देश्य वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देना, लघु बचत खाते उपलब्ध कराना, प्रवासी श्रमिक वर्ग, निम्न आय अर्जित करने वाले परिवारों, लघु कारोबारों, असंगठित क्षेत्र में कार्य करने वालों को भुगतान/विप्रेषण सेवाएँ प्रदान करना है। मांग जमा राशियों को स्‍वीकार कर सकता है तथा प्रारंभ में भुगतान बैंक प्रति व्‍यक्तिगत ग्राहक की अधिकतम 100,000 रुपए की शेष राशि रख सकता है।

एटीएम/डेबिट कार्ड जारी कर सकता है लेकिन क्रेडिट कार्ड जारी नहीं कर सकता।

  • RBI को अपनी भुगतान प्रणालियों जैसे- चेक ट्रंकेशन सिस्टम (CTS),राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक निधि अंतरण (NEFT),एकीकृत भुगतान इंटरफेस (Unified Payments Interface-UPI) और संदेशों को प्रसारित करने संबंधी समाधानों को लागू करने के लिये विदेशों से अनुरोध प्राप्त हुए हैं। इसके पश्चात वह विदेशों में अपनी भुगतान प्रणाली के विस्तार की संभावनाएँ तलाश रहा है।
भारत में कम लागत वाले नवीन डिजिटल भुगतान विकल्पों की उपलब्धता के कारण कई देशों ने भारतीय भुगतान प्रणाली में अपनी रुचि व्यक्त की है।

भारत के बाहर भुगतान प्रणाली की उपलब्धता: वर्तमान में RBI द्वारा अधिकृत भुगतान प्रणाली का ऐसा कोई भी ऑपरेटर नहीं है जो भारत के बाहर ऐसी किसी भी प्रकार की सेवा प्रदान करता हो। हालाँकि CTS, नेशनल ऑटोमेटेड क्लियरिंग हाउस (NACH) और NEFT के सहयोग से भूटान के साथ एक क्रॉस कंट्री को-ऑपरेशन पर कार्य किया जा रहा है। NEFT की सुविधा भारत से नेपाल में होने वाले एकतरफा अंतरण के लिये भी उपलब्ध है

RBI के अनुसार, भुगतान प्रणाली के मानकों में कुछ बदलाव और अंतर्राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय मंचों पर सक्रिय भागीदारी एवं आवश्यक सहयोग के माध्यम से भारतीय भुगतान प्रणालियों को वैश्विक मंच पर उपलब्ध कराया जा सकता है। इसमें प्रेषण को भी शामिल किया जा सकता है।

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर RuPay कार्ड योजना और UPI के ब्रांड मूल्य,दायरे,कवरेज़ और उपयोग को बढ़ाने एवं अधिक व्यापक रूप देने के विभिन्न प्रयास भी किये गए हैं।

विदेशी फंड्स (डिजिटल भुगतानों के माध्यम से प्राप्त होने वाले फंड्स)पर अत्यधिक निर्भरता भारत में संभावित तरलता जोखिम जैसे मुद्दों को बढ़ावा दे सकती है। विभिन्न देशों की अलग-अलग समय प्रणाली डिजिटल भुगतान में जोखिम पैदा कर सकती हैं।

भारत में खुदरा डिजिटल भुगतान का बढ़ता उपयोग नकदी के इस्तेमाल को प्रभावित करता प्रतीत हो रहा है। RBI के अनुसार,देश में डिजिटल भुगतान में मात्रा और मूल्य के मामले में क्रमशः 61% और 19% की वृद्धि देखी गई है। सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के लिये डिजिटल भुगतान का मूल्य भी वर्ष 2014-15 के 660% से बढ़कर वर्ष 2018-19 में 862% हो गया है। पॉइंट ऑफ सेल (PoS) टर्मिनल 35% की उच्च गति से बढ़ें हैं जबकि इसके विपरीत नए ATMs लगाने की गति कम (4%) हुई है।

  1. एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI)तत्काल भुगतान सेवा (IMPS)- कैशलेस भुगतान को तीव्र,आसान और सुगम बनाने के लिये राउंड-द क्लॉक (अर्थात् 24 घंटे उपलब्ध) सेवा,का एक उन्नत संस्करण है। UPI एक ऐसी प्रणाली है जो कई बैंक खातों को एक ही मोबाइल एप्लिकेशन (किसी भी भागीदार बैंक) में, कई बैंकिंग सुविधाओं,एक ही फंड में समेकित फंड रूटिंग और मर्चेंट भुगतान को, सन्निहित कर देती है।
  2. नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (NPCI) ने वर्ष 2016 में 21 सदस्य बैंकों के साथ UPI को लॉन्च किया था।
  3. NEFT की शुरुआत नवंबर 2005 में। इसकी कोई सीमा नहीं है। हालाँकि भारत के भीतर नकद आधारित प्रेषणों और भारत-नेपाल प्रेषण सुविधा योजना के तहत नेपाल के लिये होने वाले प्रेषण के लिये प्रति लेन-देन अधिकतम 50,000 रुपए की सीमा तय की गई है।
  4. RuPay कार्ड योजना भारत में अपनी तरह का पहला घरेलू डेबिट और क्रेडिट कार्ड भुगतान नेटवर्क है। यह नाम रुपे (Rupee) और, पेमेंट (Payment) दो शब्दों से मिलकर बना है जो इस बात पर ज़ोर देता है कि यह डेबिट और क्रेडिट कार्ड भुगतानों के लिये भारत की स्वयं की पहल है।इस कार्ड का उपयोग सिंगापुर, भूटान, संयुक्त अरब अमीरात (UAE), बहरीन और सऊदी अरब में लेन-देन के लिये भी किया जा सकता है।
  5. चेक ट्रंकेशन सिस्टम Cheque Truncation System (CTS) में आहरणकर्त्ता द्वारा जारी किये गए भौतिक (मूल) चेक को चेक के प्रस्तुतीकरण वाले बैंक से अदाकर्त्ता बैंक शाखा तक की यात्रा नहीं करनी पड़ती है। चेक के स्थान पर क्लियरिंग हाउस द्वारा इसकी इलेक्ट्रॉनिक फोटो अदाकर्त्ता शाखा को भेज दी जाती है जिसके साथ इससे संबंधित जानकारी जैसे- प्रस्तुति की तारीख, प्रस्तुत करने वाला बैंक इत्यादि भी भेज दी जाती है। इस तरह से चेक ट्रंकेशन के माध्यम से समाशोधन (Clearing) के प्रयोजनों हेतु कुछ अपवादों को छोड़कर, लिखतों की एक शाखा से दूसरी शाखा में जाने की आवश्यकता समाप्त हो जाती है। यह प्रभावी ढंग से चेक के एक स्थान से दूसरे स्थान जाने में लगने वाली लागत को समाप्त करता है, उनके संग्रहण में लगने वाले समय को कम करता है और चेक प्रोसेसिंग की समस्त प्रक्रिया को बेहतर बनाता है।
  6. राष्ट्रीय स्वचालित समाशोधन गृह(National Automated Clearing House (NACH)को भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (NPCI) द्वारा उपलब्ध कराई गई एक सेवा है। यह इलेक्ट्रॉनिक अंतरण/ट्रांसफर, हाई वॉल्यूम ट्रांसफर और आवधिक अंतर-बैंक लेन-देन के लये उपयुक्त है।
  • RBI द्वारा जारी घोषणा के अनुसार COVID-19 के प्रकोप के कारण अर्थव्यवस्था में आई मंदी के दौरान बैंकों को ‘काउंटरसाइक्लिकल कैपिटल बफर्स’ (Countercyclical Capital Buffers- CCyB) को सक्रिय करने की आवश्यकता नहीं है। कैपिटल बफर एक अनिवार्य पूंजी है जिसे वित्तीय संस्थानों द्वारा अन्य न्यूनतम पूंजी आवश्यकताओं के अतिरिक्त बफर के रूप में रखने की ज़रूरत होती है। CCyB व्यापार चक्र से संबंधित जोखिमों को दूर करने के लिये एक बैंक द्वारा रखी जाने वाली पूँजी है।

भारतीय रिज़र्व बैंक ने 5 फरवरी, 2015 को काउंटरसाइक्लिकल कैपिटल बफर (CCyB) की रूपरेखा तैयार की थी जिसमें यह सलाह दी गई थी कि जब विपरीत परिस्थितियाँ सामने आयेंगी तो CCyB को सक्रिय किया जाएगा। यह रूपरेखा मुख्य संकेतक के रूप में क्रेडिट-टू-जीडीपी गैप (Credit-To-GDP Gap) की परिकल्पना करती है जिसका उपयोग अन्य पूरक संकेतकों के साथ संयोजन में किया जाता है।

बेसल III (Basel III) मानदंडों के अनुसार जब बैंकों द्वारा दिये गए ऋण की वापसी नहीं होती है तो बैंकों को अर्थव्यवस्था में मंदी के दौरान कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। ऐसी स्थितियों से निपटने के लिये बैंकों के पास स्वयं की अतिरिक्त पूंजी होनी चाहिए।
  • RBI ने पहली बार अपनी पारदर्शी पहल के तहत केंद्रीय निदेशक मंडल की 579वीं बैठक का विवरण जारी किया है।

भारतीय रिज़र्व बैंक के कामकाज से संबंधित सूचनाओं के प्रकटीकरण को जन जागरूकता बढ़ाने के तौर पर देखा जा रहा है। केंद्रीय निदेशक मंडल की बैठकों के विवरण को भारतीय रिजर्व बैंक की वेबसाइट पर सूचना का अधिकार (Right to Information-RTI) अधिनियम की धारा-4 के प्रावधानों के तहत अपलोड किया जाएगा।

RTI अधिनियम की धारा-4 में प्रत्येक सार्वजनिक प्राधिकारी द्वारा सूचना के प्रकटीकरण का प्रावधान है। अब तक नियामक ने RTI अधिनियम के तहत केवल प्रश्नों के जवाब मांगने पर ही बोर्ड की बैठकों के विवरण जारी किये हैं।

आगे से केंद्रीय बोर्ड की अगली बैठक की पुष्टि की तारीख से दो सप्ताह के भीतर विवरणों को भारतीय रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर डाला जाएगा।

  • वीडियो आधारित ग्राहक पहचान प्रक्रिया (Video based Customer Identification Process/V-CIP):-

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने KYC मानदंडों में संशोधन करते हुए बैंकों एवं अन्य उधार देने वाले संस्थानों को इसका उपयोग करने की अनुमति दी। इससे अब दूर बैठे हुए व्यक्ति की भी वीडियो के ज़रिये KYC हो सकेगी और ग्राहक को जल्द-से-जल्द सेवाएँ दी जा सकेंगी। V-CIP सहमति आधारित होगा। इस डिजिटल तकनीक से बैंकों और दूसरी रेगुलेटेड संस्थाओं के लिये RBI के KYC नियमों का पालन करना और आसान हो जाएगा।

विनियमित संस्थाओं को यह सुनिश्चित करना होगा कि V-CIP द्वारा वीडियो की रिकॉर्डिंग तिथि और समय के साथ सुरक्षित तरीके से संग्रहीत की जाए।

सर्कुलर के अनुसार, रेगुलेटेड संस्थानों को केवाईसी प्रोसेस के दौरान ग्राहक द्वारा दिखाए गए PAN कार्ड की साफ तस्वीर लेनी होगी। ग्राहक द्वारा e-PAN उपलब्ध कराने की स्थिति में ऐसा नहीं होगा। PAN का विवरण इसे जारी करने वाले प्राधिकरण के डेटाबेस से सत्यापित किया जाना चाहिये। आरबीआई ने अपने सर्कुलर में रेगुलेटेड संस्थाओं को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और चेहरे की मिलान वाली तकनीक जैसी आधुनिक उपलब्ध तकनीकी सहायता लेने के लिये प्रोत्साहित किया है, जिससे ग्राहक द्वारा दी गई जानकारी सुनिश्चित हो और प्रोसेस बिल्कुल ठीक तरीके से हो।

  • मणि एप(MANI App):- भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने करेंसी नोटों के मूल्य की पहचान करने में मदद के उद्देश्य से दृष्टिबाधित लोगों के लिये एक मोबाइल एप ‘मोबाइल एडेड नोट आइडेंटिफ़ायर’ (Mobile Aided Note Identifier- MANI) लॉन्च किया है।

वर्ष 2016 में दृष्टिबाधित लोगों को विमुद्रीकरण के बाद शुरू किये गए नए करेंसी नोटों की पहचान करने में समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था।

इस एप्लीकेशन द्वारा मोबाइल फोन के कैमरे का उपयोग करके करेंसी नोटों को स्कैन किया जा सकता है। हालाँकि यह एप किसी करेंसी नोट को वास्तविक या नकली के रूप में प्रमाणित नहीं करता है। यह एप्लीकेशन हिंदी और अंग्रेज़ी में ऑडियो आउटपुट भी प्रदान करता है।

यह एप्लिकेशन एंड्रॉइड (Android) और आईओएस (iOS) ऑपरेटिंग सिस्टम पर काम करेगा। एक बार इंस्टॉल होने के बाद यह ऑफलाइन मोड में काम करेगा।

क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक सम्पादन

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की स्थिति में सुधार के लिये 1,340 करोड़ रुपए की पुनर्पूंजीकरण योजना को मंज़ूरी दी है। 25 मार्च, 2020 को आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने इस योजना में केंद्र के हिस्से के रूप में 670 करोड़ के परिव्यय के लिये अपनी मंज़ूरी दी है। हालाँकि सरकार द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, इस योजना के तहत केंद्र के हिस्से की राशि को तभी जारी किया जाएगा जब प्रायोजक बैंकों द्वारा अपने आनुपातिक हिस्से की राशि जारी की जाएगी। केंद्रीय सरकार की इस योजना से क्षेत्रीय ग्रामीण बैकों के ‘पूंजी-जोखिम भारित परिसंपत्ति अनुपात’ (Capital-to-risk Weighted Assets Ratio- CRAR) में सुधार होगा। पूंजी-जोखिम भारित परिसंपत्ति अनुपात’ (Capital-to-risk Weighted Assets Ratio- CRAR): CRAR किसी बैंक की कुल संपत्ति और उसकी जोखिम भारित संपत्तियों का अनुपात होता है। इसे पूंजी पर्याप्तता अनुपात (Capital Adequacy Ratio-CAR) के नाम से भी जाना जाता है। यह योजना उन क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को एक अतिरिक्त वर्ष (वित्तीय वर्ष 2020-21) के लिये न्यूनतम विनियामक पूँजी (Minimum Regulatory Capital) प्रदान करेगी जो वर्तमान में न्यूनतम ‘पूंजी-जोखिम भारित परिसंपत्ति अनुपात’ (9%) बनाए रखने में असमर्थ थे। इस योजना से क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को संस्थागत मज़बूती प्रदान करने में सहायता प्राप्त होगी। COVID-19 के कारण देशव्यापी बंदी (Lockdown) के बीच ग्रामीण क्षेत्रों में वित्तीय तरलता सुनिश्चित करने के लिये ग्रामीण बैंकों का आर्थिक रूप से मज़बूत होना बहुत ही आवश्यक है। बैंकों का पुनर्पूंजीकरण: बैंक पुनर्पूंजीकरण से आशय, बैंकों के लिये अतिरिक्त पूंजी उपलब्ध कराना है, जिससे बैंक के सफल संचालन के लिये आवश्यक पूंजी पर्याप्तता मानदंडों को पूरा किया जा सके। भारत सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में सबसे बड़ी शेयरधारक है, अतः संकट की स्थिति में इन बैंकों के पुनर्पूंजीकरण की ज़िम्मेदारी भी सरकार की ही होती है। क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का पुनर्पूंजीकरण: क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के पुनर्पूंजीकरण की योजना को वित्तीय वर्ष 2010-11 में शुरू किया गया था। वित्तीय वर्ष 2010-11 में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के पुनर्पूंजीकरण ‘के.सी. चक्रवर्ती समिति’ के सुझावों के आधार पर किया गया। के.सी. चक्रवर्ती समिति ने 21 राज्यों के 40 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के पुनर्पूंजीकरण की योजना के तहत 2,200 करोड़ रुपए जारी करने का सुझाव दिया था। पुनर्पूंजीकरण के लिये बजटीय आवंटन: वित्तीय वर्ष 2010-11 में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के पुनर्पूंजीकरण के लिये केंद्र सरकार ने 1,100 करोड़ रुपए जारी किये थे। इसे बाद में वित्तीय वर्ष 2012-13, 2015-16 और पुनः वर्ष 2017 में वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिये बढ़ा दिया गया था।

के.सी. चक्रवर्ती समिति के सुझावों के अनुरूप आज तक केंद्र सरकार द्वारा 1,395.64 करोड़ रुपए क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के पुनर्पूंजीकरण के लिये जारी किये जा चुके हैं। क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक: क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की स्थापना ‘नरसिंहम समिति (1975)’ की सिफारिसों के आधार पर 26 सितंबर, 1975 को केंद्र सरकार द्वारा जारी अध्यादेश के तहत वर्ष 1975 में की गई थी। ‘क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक अधिनियम, 1976’ के माध्यम से इस अध्यादेश को संवैधानिक मान्यता प्रदान कर दी गई थी। इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि, व्यापार, वाणिज्य, उद्योग और अन्य उत्पादन गतिविधियों को आर्थिक तंत्र से जोड़कर उनका विकास करना तथा ग्रामीण क्षेत्रों में लघु और सीमांत कृषकों, कृषि श्रमिकों, कलाकारों और छोटे उद्यमियों को उनकी आवश्यकता के अनुरूप सहयोग प्रदान करना था। क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का संचालन भारत सरकार, राज्य सरकारों और प्रायोजक बैंकों के सहयोग से किया जाता है। इन बैंकों में भारत सरकार, प्रायोजक बैंकों और संबंधित राज्यों की हिस्सेदारी क्रमशः 50%, 35% और 15% होती है। क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का विनियमन ‘राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक’ (National Bank for Agriculture and Rural Development-NABARD) के द्वारा किया जाता है। क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को मज़बूती प्रदान करने और इनके पूंजी आधार को बढ़ने के लिये वर्ष 2011 के बाद सरकार ने तीन चरणों में इन बैंकों के समेकन (Consolidation) की शुरुआत की, जिससे देश में कुल क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की संख्या 196 (वर्ष 2005) से घटकर मात्र 45 रह गई है। निष्कर्ष: आज भी भारत की आबादी का एक बड़ा हिस्सा देश के सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में रहता है। इनमें से अधिकांश लोग कृषि, लघु और कुटीर उद्योग या ग्रामीण आवश्यकताओं से जुड़े छोटे व्यवसायों से जुड़े हैं। क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक ग्रामीण क्षेत्र की ज़रूरतों के अनुरूप ऋण एवं अन्य बैंकिग सेवाएँ उपलब्ध करा कर तथा सरकार की योजनाओं के माध्यम से इस आबादी को देश के आर्थिक तंत्र से जोड़ने का काम करते हैं। सरकार द्वारा क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के पुनर्पूंजीकरण की घोषणा से हाल के वर्षों में देश के विभिन्न व्यावसायिक क्षेत्रों में फैले आर्थिक दबाव और COVID-19 से उत्पन्न अनिश्चितता के बीच ग्रामीण क्षेत्रों की आर्थिक चुनौतियों को दूर करने में सहायता प्राप्त होगी।

अन्य सार्वजनिक बैंक सम्पादन

  • अगस्त 2020 में अखिल भारतीय बैंक कर्मचारी संघ (AIBEA) ने RBI द्वारा COVID-19 से प्रभावित ऋणों के पुनर्गठन पर विशेषज्ञ समिति के प्रमुख के रूप में के. वी. कामथ (K.V. Kamath) की नियुक्ति का विरोध किया है क्योंकि उनका नाम CBI की प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) में दर्ज है।

AIBEA ने आरोप लगाया कि आईसीआईसीआई बैंक के पूर्व सीईओ एवं गैर-कार्यकारी अध्यक्ष के. वी. कामथ भी उस पैनल के सदस्य थे जब चंदा कोचर (आईसीआईसीआई बैंक की पूर्व एमडी एवं सीईओ) ने वीडियोकॉन समूह को गलत तरीके से ऋण स्वीकृत किया था। इन ऋणों की जाँच वर्तमान में CBI द्वारा की जा रही है। AIBEA ने कहा है कि वर्ष 1999 के दौरान के. वी. कामथ ने बैंकों के गैर-निष्पादित ऋण पर भारतीय उद्योग परिसंघ द्वारा गठित एक टास्क फोर्स का नेतृत्त्व किया था। इस टास्क फोर्स ने कुछ भारतीय बैंकों को बंद करने और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) और बैंक ऑफ बड़ौदा (BOB) जैसे बैंकों के निजीकरण की सिफारिश की थी। के. वी. कामथ 'न्यू डेवलपमेंट बैंक' (New Development Bank- NDB) के प्रथम अध्यक्ष रह चुके हैं। वर्तमान में 'न्यू डेवलपमेंट बैंक' के अध्यक्ष ब्राज़ील के मार्कोस ट्रायजो (Marcos Troyjo) हैं।

अखिल भारतीय बैंक कर्मचारी संघ(All India Bank Employees’ Association- AIBEA) भारत में बैंक कर्मचारियों का सबसे पुराना एवं सबसे बड़ा राष्ट्रीय व्यापार संघ केंद्र है। 20 अप्रैल, 1946 को कोलकाता में स्थापित इस संघ ने वेतन और सेवा शर्तों में सुधार के लिये संघर्ष के अतिरिक्त बैंकों के राष्ट्रीयकरण के लिये भी अभियान चलाया था। परिणामतः जुलाई, 1969 में 14 प्रमुख बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया।
  • वैश्विक महामारी COVID-19 के प्रतिकूल प्रभावों के कारण देश की आर्थिक गतिविधियाँ अत्यधिक दबाव में हैं। गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियाँ के बढ़ने के कारण बैड बैंक की अवधारणा फिर से चर्चा का विषय हो गया है। बैड़ बैंक सर्वप्रथम वर्ष 1988 में मेल्लोन बैंक के पिट्सबर्ग (Pittsburgh) मुख्यालय में प्रस्तुत किया गया था। जब किसी बैंक की गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियाँ सीमा से अधिक हो जाती हैं, तब राज्य के आश्वासन पर एक ऐसे बैंक का निर्माण किया जाता है जो मुख्य बैंक की देयताओं को एक निश्चित समय के लिये धारण कर लेता है। बैड बैंक का नाम ‘पब्लिक सेक्टर एसेट रिहैबिलिटेशन एजेंसी’(Public Sector Asset Rehabilitation Agency) होगा और यह प्रयोग जर्मनी, स्वीडन, फ्रांस जैसे देशों में सफल रहा है।

भारतीय बैंक संघ की अनुशंसाएँ ‘भारतीय बैंक संघ’ (IBA) जो कि एक दबाव समूह है, ने ‘प्रोजेक्ट सशक्त’ की सिफारिशों को आधार बनाकर तीन संस्थाओं की स्थापना की सिफारिश की गई है-

  1. परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनी' (Asset Reconstruction Company- ARC) बैंकों और वित्तीय संस्थानों की बैलेंस शीट को स्वच्छ और संतुलित रखने में उनकी सहायता करने के लिये उनसे गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों या खराब ऋण खरीदती है। दूसरे शब्दों में ARC बैंकों से खराब ऋण खरीदने के कारोबार में कार्यरत वित्तीय संस्थान हैं।
  2. परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनी (Asset Management Company- AMC)परिसंपत्तियों का प्रबंधन, जिसमें प्रबंधन का अधिग्रहण या परिसंपत्तियों के पुनर्गठन जैसे कार्य करेगी। 500 करोड़ रुपए से अधिक के फँसे ऋण के लिये AMC की स्थापना की जाएगी। AMC बैंकों द्वारा NPA घोषित किये हुए ऋण को खरीदेगा जिससे इस कर्ज़ का भार बैंकों पर नहीं पड़ेगा। यह कंपनी पूरी तरह से स्वतंत्र होगी। इसमें सरकार का कोई दखल नहीं होगा। AMC सरकारी एवं निजी दोनों क्षेत्रों के निवेशकों से धन जुटाएगी।
  3. वैकल्पिक निवेश कोष (Alternative Investment Fund- AIF): परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनी’ (AMC) को AIF के माध्यम से वित्त पोषित किया जाएगा। IBA ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से बैड लोन की प्राप्ति के लिये एक स्वतंत्र ARC के गठन की सिफारिश की है।

वर्ष 2017 में प्रस्तुत आर्थिक सर्वेक्षण में सर्वप्रथम बैड बैंक की चर्चा की गई। बैंकों (खासकर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की) की गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियाँ तेज़ी से बढ़ीं हैं। वित्तीय वर्ष 2020-21 के अंत तक सकल गैर-प्रदर्शनकारी परिसंपत्ति 11 लाख करोड़ रुपए को पार करने की उम्मीद है। बैंकों के कुल ऋण का करीब 9.7 फीसदी गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियों में तब्दील हो चुका है और करीब 80 फीसदी गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियाँ सार्वजानिक क्षेत्र के बैंकों में हैं।

यदि बैड बैंक को निजी क्षेत्र के हवाले कर दिया गया, तो सबसे बड़ी समस्या गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियों के मूल्य को लेकर हो सकती है। निजी क्षेत्र का बैड बैंक अपने लाभ को ध्यान में रखते हुए गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियों का मूल्य तय करेगा। यदि यह मूल्य बहुत अधिक हुआ, तो बैड बैंक का कोई अर्थ नहीं रह जाएगा और यदि यह मूल्य बहुत ही कम हो गया, तो बैंकों को उनकी ऋण देयता के अनुपात में राशि नहीं मिल पाएगी।

भारतीय रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन के अनुसार, बैड बैंक की अवधारणा एक नैतिक संकट उत्पन्न कर सकती है और बैंकों को अनुत्तरदायित्वपूर्ण उधार प्रथाओं को जारी रखने के लिये प्रोत्साहित करेगी। NPA की समस्या समाधान के अन्य विकल्प? सर्वप्रथम, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में शीर्ष अधिकारियों की नियुक्ति और चयन व्यवस्था में बदलाव किये जाने की आवश्यकता है। इसके अंतर्गत कार्यकारी निदेशकों, बोर्ड के सदस्यों से लेकर अध्यक्ष तक सबके संदर्भ में बदलाव किये जाने की आवश्यकता है। दूसरे कदम के तौर पर वरिष्ठ बैंक कर्मचारियों के लिये मूल्यांकन परियोजना के तहत, आवश्यक प्रशिक्षण सुनिश्चित किया जाना चाहिये। नियमित बैंकिंग परिचालन की अपेक्षा वित्तीय परियोजनाओं में विभिन्न तरह के कौशल की आवश्यकता होती है। तीसरा कदम सतर्कता विभागों को सुदृढ़ करने का होना चाहिये। वर्तमान समय में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में कोई प्रभावी सतर्कता तंत्र मौजूद नहीं है। इस संबंध में चौथा कदम समयबद्ध जाँच की व्यवस्था का होना चाहिये। बड़े स्तर पर एनपीए के कुछ मामले ऐसे भी जो सार्वजनिक डोमेन में हैं या जहाँ जान-बुझकर चूक किये जाने के प्रमाण मौजूद हैं, ऐसे मामलों को केंद्रीय जाँच ब्यूरो (Central Bureau of Investigation - CBI) को सौंप देना चाहिये, ताकि निष्पक्ष एवं समयबद्ध जाँच की जा सके। किसी भी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक का मालिकाना हक सरकार के पास होता है और इसके प्रबंधन में भी सरकार की भूमिका बहुत अहम् होती है। आम तौर पर, बैंक बोर्ड की मीटिंग्स में सरकार का प्रतिनिधित्व वित्त मंत्रालय के नौकरशाहों द्वारा किया जाता है। यह कोई अनिवार्य घटक नहीं है कि इन अधिकारियों के पास बैंकिंग व्यवस्था से संबंधित अनुभव या ज्ञान होना आवश्यक हो। ऐसे में इनके द्वारा लिये जाने वाले निर्णय और की जाने वाली कार्यवाही की जवाबदेहिता का प्रश्न बहुत अहम् हो जाता है।

दिवालिया और शोधन अक्षमता कोड (IBC), 2016 के अनुसार किसी ऋणी के दिवालिया होने पर एक निश्चित प्रक्रिया पूरी करने के बाद उसकी परिसंपत्तियों को अधिकार में लिया जा सकता है। IBC के हिसाब से, यदि 75 प्रतिशत कर्ज़दाता सहमत हों तो ऐसी किसी कंपनी पर 180 दिनों (90 दिन के अतिरिक्त रियायती काल के साथ) के भीतर कार्रवाई की जा सकती है, जो अपना कर्ज़ नहीं चुका पा रही।
बैंकिंग व्यवस्था में समग्र सुधारों के उचित कार्यान्वयन के साथ ही बैड बैंक की अवधारणा पर बहस होनी चाहिये, जैसा की इंद्रधनुष योजना (IndraDhanush plan) में परिकल्पित किया गया है।
  • 21 जुलाई भारतीय स्टेट बैंक’ की एक रिपोर्ट में केंद्र सरकार के घाटे के वित्तपोषण के संभावित तरीके के रूप में ‘प्रत्यक्ष मौद्रीकरण’ (Direct Monetisation) को अपनाए जाने की सिफारिश की है। प्रत्यक्ष मौद्रीकरण में RBI सीधे तौर पर केंद्र सरकार के घाटे को पूरा करता है। वर्ष 1997 तक सरकार प्रतिभूतियों को सीधे RBI को बिक्री करती थी। यह सरकार के बजट घाटे को पूरा करने के लिये तकनीकी रूप से समतुल्य मुद्रा को छापने की अनुमति देता है। वर्ष 1997 के बाद में इसके मुद्रास्फीति प्रभाव तथा राजकोषीय प्रबंधन को बेहतर करने के लिये इसका प्रयोग बंद कर दिया गया।
यह RBI द्वारा अपनाई जाने वाली 'अप्रत्यक्ष मौद्रीकरण' से उपायों जैसे; ‘खुला बाज़ार परिचालन’ (Open Market Operations- OMOs) या द्वितीयक बाज़ार के संबंध में अपनाई जाने वाली बॉन्ड खरीद प्रक्रियाओं से भिन्न है। वर्ष 1997 में सरकार की प्राप्तियों और भुगतान में अस्थायी अंतर को पूरा करने के लिये ‘अर्थोपाय अग्रिम’ (Ways and Means Advances) उपायों को प्रारंभ किया गया।
अर्थोपाय अग्रिम (Ways and Means Advances)उपाय बजट के घाटे के वित्तीयन के स्रोत नहीं है। यह केवल सरकार की प्राप्तियों और भुगतान में दिन-प्रतिदिन के बेमेल (Mismatch) को कवर करने के लिये एक तंत्र है। इसपर राशि तथा समय की सीमा तय होती है। इसको बाज़ार से संबंधित ब्याज दर पर लिया जाता है।

प्रत्यक्ष मौद्रीकरण के लाभ:-घाटे के मौद्रीकरण से केंद्र सरकार बॉन्ड बाज़ारों पर दबाव डाले बिना कम लागत पर धन जुटा सकेगी जिससे निजी क्षेत्र के वित्तीयन पर अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा। सरकार द्वारा बाज़ार से कोई तरलता अवशोषित नहीं की जाती है, अत: ब्याज दर पर प्रत्यक्ष विमौद्रीकरण का कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं होगा। प्रत्यक्ष मौद्रीकरण से नुकसान:-आदर्श रूप से प्रत्यक्ष मौद्रीकरण उस समय समग्र मांग को बढ़ावा देने का अवसर प्रदान करता है जब निजी मांग में गिरावट आई है, परंतु यह मुद्रास्फीति तथा सरकारी ऋण के स्तर को बढ़ाता है जिससे मैक्रोइकॉनॉमिक अस्थिरता उत्पन्न हो सकती है। भारत सरकार द्वारा वर्ष 1991 के बाद प्रत्यक्ष मौद्रीकरण उपायों को अपनाया गया परंतु वर्ष 1997 में इस सुविधा को समाप्त कर दिया गया।

‘राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन’ (Fiscal Responsibility and Budget Management- FRBM) अधिनियम कुछ असाधारण परिस्थितियों (COVID-19 महामारी से उत्पन्न परिस्थिति)में घाटे के प्रत्यक्ष मौद्रीकरण की अनुमति देता है।

राजकोषीय घाटा बनाम आर्थिक वृद्धि:-हाल ही में भारत की ‘सकल घरेलू उत्पाद’ (GDP) वृद्धि दर में गिरावट दर्ज की गई है। GDP पतन से ऋण-से-जीडीपी अनुपात के कम-से-कम 4% तक बढ़ने की संभावना है। वित्त वर्ष 2021 में भारत का ऋण-से-जीडीपी अनुपात वित्त वर्ष 2020 के 72.2% (146.9 लाख करोड़ रुपए) से बढ़कर लगभग 87.6% (170 लाख करोड़ रुपए) होने का अनुमान है।

  • बैंक बोर्ड ब्यूरो (BBB) द्वारा न्यू इंडिया एश्योरेंस (New India Assurance- NIA) के महाप्रबंधक एस. एस. राजेश्वरी को दिल्ली स्थित ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी (OIC) के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक पद के लिये चयनित किया गया है। OIC के अध्यक्ष व प्रबंध निदेशक पद के लिये BBB द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र की 5 बीमा कंपनियों के वरिष्ठ महाप्रबंधकों के साक्षात्कार लिये गए थे। यह पहली बार है कि OIC के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक (Chairman and Managing Director- CMD) पद के लिये वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से साक्षात्कार लिया गया है।

इससे पूर्व जनरल इंश्योरेंस कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (General Insurance Corporation) और एग्रीकल्चर इंश्योरेंस कंपनी ऑफ इंडिया लिमिटेड (AIC) के CMD पदों के परिणाम साक्षात्कार के दिन ही घोषित कर दिये गए थे। केंद्रीय वित्त मंत्रालय द्वारा नियुक्ति की प्रक्रिया प्रारंभ की जाएगी। केंद्रीय वित्तमंत्री की अनुमति के बाद आधिकारिक नियुक्ति पत्र को केंद्रीय मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति के पास भेजा जाएगा, जहाँ से इसे प्रधानमंत्री की सहमति हेतु प्रधानमंत्री कार्यालय भेजा जाएगा। नियुक्ति के प्रभाव:-विशेषज्ञों के अनुसार, OIC के CMD की नियुक्ति इस बात का संकेत है कि केंद्र सरकार सार्वजनिक क्षेत्र की तीन सामान्य बीमा कंपनियों {नेशनल इंश्योरेंस कंपनी (National Insurance Company- NIC) और यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस और OIC) के विलय की योजना में कोई जल्दबाजी नहीं करना चाहती है। केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने लगभग दो वर्षों से सार्वजनिक क्षेत्र की चार बीमा कंपनियों के निदेशकों की नियुक्ति रोक दी थी। इसके कारण इन चार सार्वजनिक कंपनियों में अधिकांश निदेशकों के पद खाली हैं। बैंक बोर्ड ब्यूरो (Banks Board Bureau- BBB):-देश के बैंकिग क्षेत्र की चुनौतियों को दूर करने के लिये वर्ष 2014 में भारतीय रिज़र्व बैंक के तत्कालीन गवर्नर रघुराम राजन द्वारा एक्सिस बैंक के पूर्व अध्यक्ष ‘पी. जे. नायक’ की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था। पी. जे. नायक समिति की सिफारिशों के आधार पर 28 फरवरी’ 2016 को भारत सरकार ने ब्यूरो के गठन और इसकी संरचना की घोषणा की। भारतीय बैंकिग क्षेत्र ने आधिकारिक रूप से 1, अप्रैल 2016 से कार्य करना प्रारंभ किया था। इसका मुख्यालय मुंबई में स्थित है। BBB एक एक स्वायत्त संस्तुतिकर्ता संस्था के रूप में कार्य करती है। यह सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSBs) और वित्तीय संस्थाओं के निदेशक मंडल (पूर्णकालिक निदेशक और गैर- कार्यकारी अध्यक्ष) की नियुक्ति हेतु सरकार को सुझाव देना। PSBs/Fi और इनके अधिकारियों तथा निदेशक मंडल के कार्यनिष्पादन संबंधी डेटा का डेटा बैंक बनाना एवं इसे सरकार के साथ साझा करना। इनके प्रबंधकीय कर्मियों हेतु नीति और आचार संहिता बनाने तथा इसे लागू करने के संबंध में सरकार को परामर्श देना। बैंकों को व्यापार/कारोबार की रणनीति बनाने और पूँजी जुटाने की योजना में सहायता प्रदान करना, आदि।

  • कोरोनावायरस (COVID-19) के प्रकोप से प्रभावित लोगों और व्यवसायों की मदद हेतु इंडियन बैंक (Indian Bank) ने आम लोगों, निगमों, MSMEs एवं स्वयं सहायता समूहों (SHGs) आदि, को विशेष आपातकालीन ऋण उपलब्ध कराने की घोषणा की है।‘Ind-Covid आपातकालीन क्रेडिट लाइन’ के तहत 100 करोड़ रुपए की अधिकतम सीमा के साथ कार्यशील पूँजी का 10 प्रतिशत तक अतिरिक्त धन प्रदान किया जाएगा।

बड़े निगम और मध्यम उद्यम, जो मानक श्रेणी में हैं, वे इस ऋण के लिये पात्र होंगे। ऋण की अवधि 36 महीने की होगी। ‘Ind-MSE COVID आपातकालीन ऋण’ सभी MSMEs को अधिकतम 50 लाख रुपए की सीमा के साथ कार्यशील पूँजी सीमा का 10 प्रतिशत अतिरिक्त धन प्रदान किया जाएगा। इस ऋण की अवधि 60 महीने की होगी। स्वयं सहायता समूहों (SHGs) को कोरोनावायरस के कारण उत्पन्न संकट से उबारने के लिये इंडियन बैंक ने ‘SHG-Covid-Sahaya’ ऋण लॉन्च किया है। इसके तहत प्रत्येक सदस्य 5,000 रुपए और प्रत्येक SHG 1 लाख रुपए का ऋण प्राप्त कर सकता है। इस ऋण की अवधि भी 36 महीने की होगी। ‘Ind-Covid आपातकालीन वेतन’ ऋण वेतनभोगी कर्मचारियों को नवीनतम मासिक सकल वेतन के 20 गुना के बराबर राशि तक दिया जाएगा, जो कि 2 लाख रुपए से अधिक नहीं हो सकता। इस ऋण का उद्देश्य वेतनभोगी लोगों की चिकित्सा एवं अन्य आवश्यकताओं को पूरा करना है। यह ऋण रियायती दर पर प्रदान किया जाएगा और इसके तहत किसी भी प्रकार का शुल्क नहीं लिया जाएगा। ‘Ind-Covid आपातकालीन पेंशन’ ऋण मासिक पेंशनभोगियों को उसकी पेंशन के 15 गुना के बराबर राशि तक प्रदान किया जाएगा। इसके पुनर्भुगतान कि अवधि 60 महीने की होगी। यह ऋण भी रियायती दर पर प्रदान किया जाएगा और इसके तहत किसी भी प्रकार का शुल्क नहीं लिया जाएगा। कोरोनावायरस- एक महामारी के रूप में COVID-19 वायरस मौजूदा समय में भारत समेत दुनिया भर में स्वास्थ्य और जीवन के लिये गंभीर चुनौती बना है। अब संपूर्ण विश्व में इसका प्रभाव स्पष्ट तौर पर दिखने लगा है। WHO के अनुसार, COVID-19 में CO का तात्पर्य कोरोना से है, जबकि VI विषाणु को, D बीमारी को तथा संख्या 19 वर्ष 2019 (बीमारी के पता चलने का वर्ष ) को चिह्नित करता है। कोरोनावायरस (COVID -19) का प्रकोप तब सामने आया जब 31 दिसंबर, 2019 को चीन के हुबेई प्रांत के वुहान शहर में अज्ञात कारण से निमोनिया के मामलों में हुई अत्यधिक वृद्धि के कारण विश्व स्वास्थ्य संगठन को सूचित किया गया। ध्यातव्य है कि इस खतरनाक वायरस के कारण चीन, इटली में अब तक हज़ारों लोगों की मृत्यु हो चुकी है और यह वायरस धीरे-धीरे संपूर्ण विश्व में फैल रहा है। नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, वैश्विक स्तर पर अब तक कोरोनावायरस के कारण 21000 से अधिक लोगों कि मृत्यु हो गई है और लगभग 400000 से अधिक लोग इसकी चपेट में आ गए हैं। भारत में भी इसके कारण 13 से अधिक लोगों कि मृत्यु हो चुकी है और लगभग 600 से अधिक मामले सामने आ चुके हैं। कोरोनावायरस महामारी की गंभीरता को देखते हुए सरकार ने देश में 21 दिनों के लॉकडाउन की घोषणा की है, जो कि महामारी को रोकने की दृष्टि से सराहनीय कदम है।

निजी क्षेत्रक बैंक सम्पादन

देश में निज़ी क्षेत्र का चौथा सबसे बड़ा बैंक ‘यस बैंक (YES BANK)’ संकट के इसी दौर से गुज़र रहा है। बैंक ने प्रति खाताधारक 50000 रुपए प्रतिमाह निकासी की सीमा आरोपित कर दी है। ऐसे में खाताधारकों के सामने मुद्रा का संकट गहरा गया है। इस आलेख में बैंकों की खस्ता हालत के कारणों, उसके प्रभाव तथा सरकार व भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा किये जा रहे प्रयासों की समीक्षा की जाएगी।

पृष्ठभूमि वर्ष 2004 में राना कपूर व अशोक कपूर ने मिलकर यस बैंक की स्थापना की। वर्ष 2005 में यह बैंक शेयर बाज़ार में सूचीबद्ध हुआ। बैंक का प्राथमिक उद्देश्य काॅरपोरेट क्षेत्र को लोन उपलब्ध कराना था, बाद में सामान्य खाताधारकों के लिये भी बैंकिंग गतिविधियाँ संचालित की गई। वर्ष 2018 के मध्य में भारतीय रिज़र्व बैंक ने अपनी जाँच रिपोर्ट में पाया कि यस बैंक ने निर्धारित विनियमन दिशा-निर्देशों तथा गोपनीयता के सिद्धांत का उल्लंघन किया है। परिणामस्वरूप यस बैंक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी को पद से इस्तीफा देना पड़ा और उसके बाद यस बैंक के शेयरों में 81% तक की तीव्र गिरावट दर्ज़ की गई। हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक ने यस बैंक की बैंकिंग गतिविधियों पर प्रतिबंध (MORATORIUM) लगाते हुए कार्य संचालन प्रक्रिया को अपने हाथों में ले लिया है। यस बैंक के अतिरिक्त कुछ समय पूर्व पीएमसी बैंक, ग्लोबल ट्रस्ट बैंक, वेस्टर्न बैंक इत्यादि पर RBI द्वारा प्रतिबंध लगाया गया था। बैंकिंग संकट का कारण पिछले कुछ वर्षों में बैंकों द्वारा दिये जा रहे लोन गैर निष्पादित परिसंपत्तियों (Non-performing assets-NPAs) में बदल गए हैं। यस बैंक द्वारा भी रिलायंस ग्रुप, IL&FS, DHFL, जेट एयरवेज़, एस्सार शिपिंग, कैफे कॉफी डे जैसी कंपनियों को लोन दिया गया, जो बाद में NPA में बदल गया। गैर निष्पादित परिसंपत्तियों के मामले में सरकारी बैंकों की स्थिति निज़ी बैंकों से ज़्यादा खराब है। वर्ष 2018 में वाणिज्यिक बैंकों में कुल NPA 10.3 ट्रिलियन रुपए था, जो बैंकों द्वारा दिये गए कुल ऋणों और अग्रिमों का 11.2% था। इस NPA में सरकारी बैंकों का हिस्सा 8.9 ट्रिलियन रुपए था, जो बैंकों के कुल NPA का 86% था। सरकारी बैंकों द्वारा दिये गए अग्रिमों तथा ऋणों में सकल NPA 14.6% था अर्थात दिये गए हर 100 रुपए में से 14.6 रुपए NPA में बदल गए। गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ सामान्य रूप से वह संपत्ति जिस पर ब्याज/मूलधन 90 दिनों तक बकाया हो, उसे गैर-निष्पादनकारी संपत्ति कहा जाता है। समयावधि के आधार पर इसे तीन वर्गों में बाँटा गया है- सब-स्टैंडर्ड एसेट्सः 12 माह या इससे कम अवधि तक NPA के रूप में बने रहने वाली संपत्ति। डाउटफुल एसेट्सः अगर कोई संपत्ति 12 माह तक सब-स्टैंडर्ड श्रेणी में बनी रहे। लॉस एसेट्सः यह न वसूल की जा सकने वाली और अत्यंत कम मूल्य वाली संपत्ति होती है। बैंक द्वारा इसके परिसंपत्ति के रूप में बने रहने की पुष्टि नहीं की जाती है। 2007-08 में कुल NPA केवल 566 बिलियन रुपए (आधा ट्रिलियन से कुछ अधिक) था जो कुल अग्रिमों का केवल 2.26% था, लेकिन 2008 के बाद NPA में हुई वृद्धि चौंका देने वाली है। इसके लिये आंशिक रूप से वर्ष 2004-05 से 2008-09 के क्रेडिट बूम को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है, जब विशेषकर देश के सरकारी बैंकों ने मुक्तहस्त से बिना कोई अधिक ना-नुकुर किये बड़ी मात्रा में लोगों को भारी भरकम कर्ज़ दिये। इस अवधि में वाणिज्यिक ऋण की मात्रा दोगुनी हो गई। यह वह समय था जब विश्व अर्थव्यवस्था के साथ-साथ भारतीय अर्थव्यवस्था भी तेज़ी से आगे बढ़ रही थी। आने वाले विकास के अवसरों का लाभ उठाने के लिये भारतीय फर्मों ने बैंकों से भारी मात्रा में कर्ज़ लिया। इनमें से अधिकांश निवेश बुनियादी ढाँचे तथा टेलीकॉम, बिजली, सड़क, विमानन, इस्पात जैसे क्षेत्रों में हुआ। इस दौर में उद्यमियों और व्यवसायियों में उत्साह था क्योंकि भारत ने 9% आर्थिक वृद्धि के दौर में प्रवेश कर लिया लेकिन जल्दी ही स्थिति प्रतिकूल हो गई। भूमि अधिग्रहण और पर्यावरणीय मंज़ूरी प्राप्त करने में निरंतर समस्याएँ आ रही थीं, जिसकी वज़ह से कई परियोजनाएँ ठप हो गईं और जो परियोजनाएँ काम कर रही थीं उनकी लागत कई गुना बढ़ गई। वित्तीय वर्ष 2007-08 में वैश्विक वित्तीय संकट की शुरुआत हुई और 2011-12 के बाद अर्थव्यवस्था में मंदी आ गई, जिसकी वज़ह से राजस्व की प्राप्ति अपेक्षा से कम हुई। वित्तीय संकट की प्रतिक्रिया में देश में नीतिगत दरों को सख्त किया गया, जिसकी वज़ह से वित्तपोषण की लागत में वृद्धि हुई। प्रभाव NPA के चलते बैंकों को मिलने वाला लाभ कम हो जाता है, जिससे सरकार के पास राजस्व कम पहुँचता है, ऐसे में सरकार की निवेश करने की क्षमता में गिरावट आती है। निवेश कम होने से अर्थव्यवस्था की विकास दर कम हो जाती है, साथ ही बेरोज़गारी की समस्या में बढ़ोतरी होती है। बैंकों में NPA की वृद्धि से नए लोगों को ऋण मिलने में कठिनाई होती है, जिससे अर्थव्यवस्था का आकर सिकुड़ता है। जमाकर्त्ताओं का बैंक पर विश्वास कमज़ोर हो जाता है और वे बैंक में पैसा जमा करने से कतराते हैं। NPA के रूप में जब बैंक का लोन फँस जाता है तो उसकी प्रोविजनिंग के लिये उसे मुनाफ़े से एक निश्चित राशि अलग रखनी होती है, मुनाफ़ा कम होने का असर बैंक के विस्तार और ग्राहक सेवाओं पर पड़ता है।

सन्दर्भ सम्पादन