3 अप्रैल- आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार 5.47 करोड़ परिवारों ने वित्तीय वर्ष 2019-20 में मनरेगा के तहत कार्यों की मांग की,जो कि वित्तीय वर्ष 2010-11 के पश्चात् सबसे अधिक है। उल्लेखनीय है कि वित्तीय वर्ष 2018-19 में तकरीबन 5.47 करोड़ परिवारों ने मनरेगा के तहत काम की मांग की थी।

शून्य व्यय वाली ग्राम पंचायतों की संख्या में भी गिरावट आई है। वित्तीय वर्ष 2019-20 में ऐसी पंचायतों की संख्या 9,144 और वित्तीय वर्ष 2018-19 में 10,978 थी। उल्लेखनीय है कि भारत में कुल 2.63 लाख ग्राम पंचायतें हैं। आँकड़ों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2019-20 में प्रति व्यक्ति औसत मनरेगा मज़दूरी 182.09 रुपए थी, जो कि वित्तीय वर्ष 2018-19 में 179.13 रुपए था। इसी दौरान सामग्री तथा अन्य संबंधित मदों पर आने वाली प्रति व्यक्ति प्रति दिन औसत लागत वित्तीय वर्ष 2018-19 में 247.19 रुपए से बढ़कर वित्तीय वर्ष 2019-20 में बढ़कर 263.3 रुपए हो गई।

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम अर्थात् मनरेगा को भारत सरकार द्वारा वर्ष 2005 में राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम, 2005 (NREGA-नरेगा) के रूप में प्रस्तुत किया गया था। वर्ष 2010 में नरेगा (NREGA) का नाम बदलकर मनरेगा (MGNREGA) कर दिया गया।
ग्रामीण भारत को ‘श्रम की गरिमा’ से परिचित कराने वाला मनरेगा रोज़गार की कानूनी स्तर पर गारंटी देने वाला विश्व का सबसे बड़ा सामाजिक कल्याणकारी कार्यक्रम है।
मनरेगा कार्यक्रम के तहत प्रत्येक परिवार के अकुशल श्रम करने के इच्छुक वयस्क सदस्यों के लिये 100 दिन का गारंटीयुक्त रोज़गार, दैनिक बेरोज़गारी भत्ता और परिवहन भत्ता (5 किमी. से अधिक दूरी की दशा में) का प्रावधान किया गया है।
सूखाग्रस्त क्षेत्रों और जनजातीय इलाकों में मनरेगा के तहत 150 दिनों के रोज़गार का प्रावधान है।