समसामयिकी 2020/संवैधानिक तथा गैर-संवैधानिक आयोग

  • 1 जून 2005 के एक संकल्प के माध्यम से भारत सरकार ने 12 जुलाई, 2006 को राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग की स्थापना की थी।

वर्ष 2001 में भारतीय सांख्यिकी प्रणाली के पुनर्विलोकन के लिये गठित रंगराजन आयोग द्वारा दी गईं अनुशंसाओं के आधार पर राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग की स्थापना की गई थी। इस आयोग में अध्यक्ष के अतिरिक्त चार अन्य सदस्य होते हैं जो कि सांख्यिकी के विशेषज्ञ होते हैं।

  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 3 वर्ष की अवधि के लिये भारत के 22वें विधि आयोग को मंज़ूरी दे दी।

भारतीय विधि आयोग न तो एक संवैधानिक निकाय है और न ही वैधानिक निकाय। यह भारत सरकार के आदेश से गठित एक कार्यकारी निकाय है। यह प्रमुख रूप से कानूनी सुधारों हेतु कार्य करता है। यह विधि और न्याय मंत्रालय के लिये परामर्शदाता निकाय के रूप में कार्य करता है। सांगठनिक ढाँचा:-22वें विधि आयोग का गठन, आधिकारिक गजट में सरकारी आदेश के प्रकाशन की तिथि से 3 वर्ष की अवधि के लिये किया जाएगा। इसमें निम्मलिखित शामिल होंगे‑

  1. एक पूर्णकालिक अध्यक्ष
  2. चार पूर्णकालिक सदस्य (सदस्य-सचिव सहित)
  3. सचिव,कानूनी मामलों के विभाग पदेन सदस्य के रूप में
  4. सचिव,विधायी विभाग पदेन सदस्य के रूप में
  5. अधिक-से-अधिक पाँच अंशकालिक सदस्य

इसका अध्यक्ष सर्वोच्च न्यायालय का सेवानिवृत्त न्यायाधीश या उच्च न्यायालय का सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश होगा।

प्रथम विधि आयोग का गठन वर्ष 1834 में चार्टर एक्ट- 1833 के तहत लॉर्ड मैकाले की अध्यक्षता में किया गया था जिसने दंड संहिता और दंड प्रक्रिया संहिता को संहिताबद्ध करने की सिफारिश की।

स्वतंत्र भारत के प्रथम विधि आयोग का गठन वर्ष 1955 में भारत के तत्कालीन अटॉर्नी जनरल एम.सी. शीतलवाड़ की अध्यक्षता किया गया। तब से 21 विधि आयोग गठित किये जा चुके हैं जिनमें से प्रत्येक का कार्यकाल 3 वर्ष था। 21वें विधि आयोग जिसकी अध्यक्षता उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश बी. एस. चौहान द्वारा की गई,इसने 31 अगस्त,2018 को अपना तीन वर्ष का कार्यकाल पूरा किया था।

भारतीय विधि आयोग निम्न कार्य करेगा:-
  1. यह ऐसे कानूनों की पहचान करेगा जो अब अप्रासंगिक हो चुके हैं और जिन्हें तुरंत निरस्त किया जा सकता है।
  2. राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत के संदर्भ में मौजूदा कानूनों की जाँच करना तथा सुधार के सुझाव देना और नीति निर्देशक तत्वों को लागू करने के लिये आवश्यक कानूनों के बारे में सुझाव देना एवं संविधान की प्रस्तावना में निहित उद्देश्यों को प्राप्त करना।
  3. कानून और न्यायिक प्रशासन से संबंधित किसी भी विषय पर विचार करना और सरकार को अपने विचारों से अवगत कराना जिसे सरकार के विधि और न्याय मंत्रालय (कानूनी मामलों के विभाग) द्वारा विशेष रूप से संदर्भित किया जा सकता है।
  4. विश्व के देशों को अनुसंधान प्रदान करने के अनुरोधों पर विचार करना क्योंकि इसे सरकार द्वारा कानून और न्याय मंत्रालय के माध्यम से संदर्भित किया जा सकता है।
  5. वे सभी उपाय करना जो गरीबों की सेवा में कानून और कानूनी प्रक्रिया के लिये आवश्यक हो सकते हैं।
  6. सामान्य महत्त्व के केंद्रीय अधिनियमों को संशोधित करना ताकि उन्हें सरल बनाया जा सके और उनकी विसंगतियों, अस्पष्टताओं एवं असमानताओं को दूर किया जा सके।

अपनी सिफारिशों को अंतिम रूप देने से पहले आयोग नोडल मंत्रालयों/विभागों तथा ऐसे अन्य हितधारकों के साथ परामर्श करेगा जिन्हें वह इस उद्देश्य के लिये आवश्यक समझे।

  • COVID-19 की चुनौती से निपटने के लिये भारत सरकार ने ‘प्रधानमंत्री नागरिक सहायता एवं आपातकालीन स्थिति राहत कोष (Prime Minister’s Citizen Assistance and Relief in Emergency Situations or PM-CARES) के तहत विदेशी सहयोग को स्वीकार करने का निर्णय लिया है।

हालांकि वर्ष 2004 में हिंद महासागर में आयी सुनामी के समय भारत सरकार ने प्रधानमंत्री राष्ट्रीय आपदा कोष के तहत किसी भी प्रकार की विदेशी सहायता को लेने से इनकार कर दिया था। हालाँकि इस दौरान सहायता के इच्छुक राष्ट्र, विदेशी नागरिक आदि स्वयंसेवी संस्थाओं जैसे अन्य माध्यमों से सहायता भेज सकते थे।

पीएम केयर्स (PM-CARES) फंड की स्थापना 27 मार्च, 2020 एक सार्वजनिक धर्मार्थ ट्रस्ट (Public Charitable Trust) के रूप में की गई थी।

देश का प्रधानमंत्री इस फंड का अध्यक्ष होगा तथा केंद्रीय गृह मंत्री,केंद्रीय रक्षा मंत्री और केंद्रीय वित्त मंत्री भी इस फंड के सदस्य होंगे। इस फंड के तीन अन्य ट्रस्टियों को प्रधानमंत्री द्वारा नामित किया जाएगा,जो अनुसंधान,स्वास्थ्य,विज्ञान,सामाजिक कार्य,कानून,लोक प्रशासन और परोपकार (Philanthropy) के क्षेत्र में प्रतिष्ठित व्यक्ति होंगे। इस फंड के उद्देश्यों में सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल या कोई अन्य आपात स्थिति,आपदा या संकट,चाहे वह मानव निर्मित या प्राकृतिक,में किसी भी प्रकार की राहत या सहायता पहुँचाना। इसमें स्वास्थ्य सेवा या दवा सुविधाओं का निर्माण या उन्नयन, अन्य आवश्यक बुनियादी ढाँचे,प्रासंगिक अनुसंधान या किसी अन्य उद्देश्य के लिये आर्थिक सहायता उपलब्ध करना आदि शामिल है।

  • भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद(Indian Council of Medical Research- ICMR):

ICMR जैव चिकित्सा अनुसंधान के समन्वय और प्रचार के लिये दुनिया के सबसे पुराने चिकित्सा अनुसंधान निकायों में से एक है जिसका मुख्यालय नई दिल्ली में है। इसकी स्थापना वर्ष 1911 में इंडियन रिसर्च फंड एसोसिएशन (Indian Research Fund Association-IRFA) के नाम से हुई थी बाद में वर्ष 1949 में इसका नाम बदलकर ICMR रखा गया। इसे भारत सरकार के स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग द्वारा स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के माध्यम से वित्तपोषित किया जाता है।

  • प्रधानमंत्री नागरिक सहायता एवं आपातकालीन स्थिति राहत कोष की अध्यक्षता भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा की जाती है।

प्रधानमंत्री के अतिरिक्त इस कोष में केंद्रीय वित्त मंत्री, केंद्रीय रक्षा मंत्री और केंद्रीय गृह मंत्री को शामिल किया गया है। इस कोष के ट्रस्टियों को भारत के प्रधानमंत्री द्वारा नामित किया जाता है।

  • 1 अप्रैल 2020 को राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (National Pharmaceutical Pricing Authority- NPPA) ने केंद्रशासित प्रदेश जम्मू एवं कश्मीर में मूल्य निर्धारण एवं संसाधन इकाई (Price Monitoring & Resource Unit- PMRU) की स्थापना की।
केरल, ओडिशा, गुजरात, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, नागालैंड, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश और मिज़ोरम की तरह जम्मू एवं कश्मीर 12वाँ राज्य/संघ शासित प्रदेश बन गया है जहाँ मूल्य निर्धारण एवं संसाधन इकाई (PMRU) की स्थापना की गई है।
मूल्य निर्धारण एवं संसाधन इकाई दवा मूल्य की निगरानी के लिये स्थापित एक पंजीकृत सोसायटी है और संबंधित राज्यों के राज्य औषधि नियंत्रक (State Drug Controller) के प्रत्यक्ष नियंत्रण एवं पर्यवेक्षक के तहत कार्य करेगी।

राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण(NPPA) भारत सरकार के रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय के अंतर्गत कार्य करता है। जिसका अध्यक्ष भारतीय प्रशासनिक सेवा के सचिव स्तर का अधिकारी होता है। इसका अध्यक्ष राज्य के स्वास्थ्य सचिव होंगे तथा सहयोगी सचिव औषध नियंत्रक (Drugs Controller) होंगे। इसके अन्य सदस्यों में एक राज्य सरकार का प्रतिनिधि, निजी दवा कंपनियों के प्रतिनिधि तथा उपभोक्ता अधिकार संरक्षण मंचों के लोग शामिल किये जाएंगे। इस इकाई को राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (NPPA) द्वारा अपने आवर्ती एवं गैर-आवर्ती खर्चों के लिये वित्त पोषित किया जाएगा।

  1. इसका कार्य सस्ती कीमतों पर दवाओं की उपलब्धता एवं पहुँच सुनिश्चित करने में राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (NPPA) और राज्य औषधि नियंत्रक की मदद करना।
  2. सभी के लिये दवाओं की उपलब्धता एवं सामर्थ्य सुनिश्चित करने के लिये शिक्षा एवं संचार (Education & Communication- IEC) गतिविधियाँ के साथ-साथ सेमिनार का आयोजन, प्रशिक्षण कार्यक्रम एवं अन्य जानकारी उपलब्ध करना।
  3. दवाओं के नमूने एकत्र करना, दवाओं से संबंधित डेटा एकत्र करना एवं उसका विश्लेषण करना तथा औषधि मूल्य नियंत्रण आदेश (Drug Price Control Order- DPCO) के प्रावधानों के तहत कार्रवाई करने के लिये दवाओं की उपलब्धता एवं अधिक मूल्य निर्धारण के संबंध में रिपोर्ट बनाना।
  • द्वीप विकास एजेंसी (Island Development Agency) की छठी बैठक का आयोजन नई दिल्ली में किया गया। इसका गठन केंद्र सरकार ने भारतीय द्वीपों के विकास के लिये किया था।

इसकी अध्यक्षता केंद्रीय गृह मंत्री द्वारा की जाती है। ‘द्वीपों का समग्र विकास’ कार्यक्रम देश में पहली बार द्वीपों के सतत् विकास की पहल द्वीप विकास एजेंसी के मार्गदर्शन में की जा रही है। इन द्वीपों की पहचान वैज्ञानिक मूल्यांकन के परिप्रेक्ष्य में वहनीय क्षमता के आधार पर की गई है। पहले चरण में अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के चार द्वीपों और लक्षद्वीप समूह के पाँच द्वीपों का चयन किया गया है। इन द्वीपों पर द्वीपवासियों के लिए रोज़गार सृजन करने के उद्देश्य से पर्यटन को बढ़ावा देना तथा द्वीपों पर निर्मित समुद्री भोजन और नारियल आधारित उत्पादों के निर्यात को ध्यान में रखकर विकास योजनाओं का कार्यान्वयन किया जा रहा है। दूसरे चरण में अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के अन्य 12 द्वीपों और लक्षद्वीप समूह के अन्य 5 द्वीपों को इस कार्यक्रम में शामिल किया गया है।

विनियामक प्राधिकरण सम्पादन

  • केंद्रीय औषध मानक नियंत्रण संगठन औषध एवं प्रसाधन नियम,1940 एवं नियम 1945 के तहत दवाओं के अनुमोदन, चिकित्सीय परीक्षणों के संचालन,दवाओं के मानक तैयार करने,देश में आयातित दवाओं की गुणवत्ता नियंत्रण और राज्य दवा नियंत्रण संगठनों को विशेषज्ञ सलाह प्रदान करके ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट के प्रवर्तन में एकरूपता लाने के लिये उत्तरदायी है।
यह स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय के अंतर्गत स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय का राष्ट्रीय नियामक प्राधिकरण (National Regulatory Authority- NRA) है।

केंद्रीय औषध मानक नियंत्रण संगठन मुख्यालय नई दिल्ली में है।

सांविधिक आयोग सम्पादन

  • आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा एक अध्यादेश के माध्यम से 'राज्य निर्वाचन आयुक्त' के कार्यकाल में कटौती की गई है। अध्यादेश जिसके माध्यम से मद्रास उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश को उत्तराधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया है, जिसे पूर्व SEC ने असंवैधानिक घोषित करने के लिये उच्च न्यायालय में अपील की है।

जबकि मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया SEC सरकार से सलाह लिये बिना कार्य कर रहे थे तथा कुछ राजनीतिक नेताओं के इशारे पर काम कर रहे हैं। अध्यादेश के माध्यम से पंचायत राज अधिनियम, 1994 (Panchayat Raj Act, 1994) में संशोधन के माध्यम से SEC का कार्यकाल तीन वर्ष तक सीमित कर दिया गया। साथ ही अध्यादेश में उल्लेख किया गया है कि SEC को उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने के आधार एवं प्रक्रिया के अलावा किसी अन्य आधार पर नहीं हटाया जा सकेगा।

आंध्र प्रदेश में स्थानीय निकायों के चुनाव होने वाले थे लेकिन SEC ने COVID- 19 महामारी के प्रकोप का हवाला देते हुए चुनाव स्थगित कर दिये।

इसके बाद राज्य सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में मामले को ले जाना चाहा लेकिन अदालत ने इस मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। अपर्मिता प्रसाद सिंह बनाम स्टेट ऑफ उत्तर प्रदेश (2007) वाद में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि सेवा का कार्यकाल भी सेवा शर्तों का एक हिस्सा है। राज्य चुनाव आयोग सेवा कार्यकाल की सुरक्षा नहीं होने की स्थिति में अपने संवैधानिक दायित्त्वों का निर्वहन करने में सक्षम नहीं होगा। SEC के कार्यकाल को कम करने का संशोधन संविधान की सीमओं का अतिक्रमण है।

राज्य निर्वाचन आयोग (State Election Commission- SEC) संबंधी प्रावधान अनुच्छेद 243K तथा 243ZA में SEC संबंधी प्रावधान किये गए हैं। 73वें तथा 74वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 (Constitution Amendments Act, 1992) के तहत SEC का गठन किया गया था।

SEC भारत के निर्वाचन आयोग से स्वतंत्र इकाई है।

  • केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (Central Adoption Resource Authority-CARA) ने 15 जनवरी,2020 को नई दिल्ली में अपना 5वाँ वार्षिक दिवस समारोह मनाया। यह महिला एवं बाल विकास मंत्रालय,भारत सरकार का एक सांविधिक निकाय है।

केंद्रीय दत्तक संसाधन प्राधिकरण को किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम,2015 के प्रावधानों के तहत 15 जनवरी, 2016 को एक सांविधिक निकाय के रूप में नामित किया गया था। यह भारतीय अनाथ बच्चों के पालन-पोषण,देखभाल करने एवं उन्हें गोद देने के लिये एक नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करता है। यह देश भर के विभिन्न बाल देखभाल संस्थानों (Child Care Institutions) में अधिक उम्र और विशेष ज़रूरतों वाले बच्चों के पुनर्वास पर भी ज़ोर दे रहा है।

  • राष्ट्रीय महिला आयोग का गठन जनवरी 1992 में राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम,1990 के तहत एक सांविधिक निकाय के रूप में किया गया था। इसका उद्देश्य महिलाओं की संवैधानिक और कानूनी सुरक्षा को सुनिश्चित करना, उनके लिये विधायी सुझावों की सिफारिश करना, उनकी शिकायतों का निवारण करना तथा महिलाओं को प्रभावित करने वाले सभी नीतिगत मामलों में सरकार को सलाह देना है।

अर्द्ध-न्यायिक (Quasi-Judicial) सम्पादन

  • केंद्रीय कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय (Ministry of Personnel, Public Grievances and Pensions) ने कहा है कि केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (Central Administrative Tribunal- CAT) की जम्मू एवं कश्मीर खंडपीठ केंद्र सरकार तथा केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू एवं कश्मीर और लद्दाख के कर्मचारियों से संबंधित सेवा मामलों की सुनवाई करेगी।

गौरतलब है कि इससे पहले केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण की चंडीगढ़ खंडपीठ इन मामलों की सुनवाई करती थी। मुख्य बिंदु: केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण की स्थापना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 323-A के तहत की गई थी। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 323-A संसद को यह अधिकार देता है कि वह केंद्र व राज्य की लोक सेवाओं, स्थानीय निकायों, सार्वजनिक निगमों तथा अन्य सार्वजनिक प्राधिकरणों में नियुक्त व्यक्तियों की भर्ती व सेवा शर्तों संबंधी विवादों को सुलझाने के लिये प्रशासनिक अधिकरण की स्थापना कर सकती है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 323-A का अनुसरण करते हुए संसद ने प्रशासनिक अधिकरण अधिनियम, 1985 पारित किया। यह अधिनियम केंद्र सरकार को एक केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण और राज्य प्रशासनिक अधिकरण के गठन का अधिकार देता है। वर्ष 2006 में केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण अधिनियम, 1985 में संशोधन करके इसके सदस्यों की हैसियत उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के बराबर कर दी गई है। अधिकरण किसी भी मामले को तय करने के संदर्भ में ‘प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों’ का पालन करता है। उल्लेखनीय है कि केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण, सिविल प्रक्रिया संहिता-1908 की कानूनी प्रक्रियाओं के तहत बाध्य नहीं है।


  • ‘केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण’ का अखिल भारतीय एक दिवसीय वार्षिक सम्मेलन नई दिल्ली में आयोजित। इसमें CAT की सभी 17 न्यायपीठों के न्यायिक तथा प्रशासनिक सदस्यों ने भाग लिया। इस सम्मेलन में CAT की संरचनात्मक व संस्थागत समस्याएँ,अन्य कानूनी प्रणालियों पर CAT के कामकाज का प्रभाव, अधिकरण की कार्यप्रणाली जैसे मुद्दों पर चर्चा।

सदस्यों की कमी के बावजूद मामलों के निपटान में CAT की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। CAT के अनेक निर्णय,देश में सेवा क्षेत्र के विकास की दिशा में मील के पत्थर साबित हुए हैं।

  • नवीन पहलों की आवश्यकता: सम्मेलन में निम्नलिखित पहलों की आवश्यकता पर बल दिया गया है जहाँ अविलंब सुधार करना है
  • CAT को आंतरिक न्यायिक अधिप्रभाव मूल्यांकन (In-house Judicial Impact Assessment) की आवश्यकता है।
  • वर्तमान में अधिकांश कानून अस्पष्टता के दायरे में हैं जहाँ शासन में अधिक पारदर्शिता व सरकार के प्रति प्रतिबद्धता के लिये न्याय-शास्त्र की शिक्षा व प्रशिक्षण दिये जाने की आवश्यक है।
  • अधिकरण के कामकाज में तेज़ी लाने के लिये कृत्रिम-बुद्धिमता के उपयोग की आवश्यकता है।
  • 'अधिकतम शासन, न्यूनतम सरकार' (Maximum Governance, Minimum Government) के प्रति प्रतिबद्धता की ज़रूरत है।
  • प्रदर्शन, सुधार और कायाकल्प’ (Perform, Reform, and Transform) सिद्धांत की प्राप्ति की दिशा में सेवा शर्तों के विभिन्न पहलुओं में सुधार लाने हेतु महत्त्वपूर्ण प्रयास किये जाने की आवश्यकता है।
  • CAT पिछले कुछ वर्षों में शिकायत-मुक्त सेवा वितरण प्रणाली की प्राप्ति की दिशा में सरकार का एक आवश्यक अंग रहा है और इसी दिशा में भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम तथा अन्य सेवाओं के मामलें में अनेक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किये गए हैं।
  • भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायाधिकरण के सदस्यों की सेवा शर्तों के बारे में बताते हुए इस बात पर भी ज़ोर दिया कि सदस्यों का कार्यकाल पर्याप्त अवधि का होना का होना चाहिये।
  • सेवा संबंधी मामलों में मुकदमेबाजी वर्तमान में काफी बढ़ गई है। CAT में लगभग 50,000 मामले लंबित हैं, अतः मामलों में कमी लाने के लिये निर्णय स्पष्ट, तर्कपूर्ण और संक्षिप्त होने चाहिये तथा न्यायिक आदेशों को सभी तथ्यों, संबंधित कानूनों और पूर्ववर्ती फैसलों को ध्यान में रखकर जारी करना चाहिये।

सम्मेलन में निर्णय लिया गया कि कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (Department of Personnel and Training-DoPT) के समन्वय से इन सुझावों को आगे बढ़ाया जाएगा।

  • आयकर अपीलीय अधिकरण (Income Tax Appellate Tribunal-ITAT) ने अपना 79वाँ स्थापना दिवस मनाया। इसकी स्थापना वर्ष 1941 में आयकर अधिनियम,1922 की धारा 5A के तहत किया गया था।

प्रारंभ में दिल्ली,कोलकाता (कलकत्ता) और मुंबई (बॉम्बे)इसकी तीन बेंच थीं,किंतु वर्तमान में इसकी लगभग सभी शहरों को कवर करने वाले 27 विभिन्न स्टेशनों पर 63 बेंच हैं। देश का सबसे पुराना अधिकरण होने के कारण इसे 'मदर ट्रिब्यूनल' भी कहा जाता है।

कार्य:-यह प्रत्यक्ष कर अधिनियम जैसे- आयकर अधिनियम,1961 के तहत की गई अपील से संबंधित सुनवाई करता है।

इसके द्वारा दिया गया निर्णय अंतिम माना जाता है। (किंतु यदि दिये गए निर्णय को लेकर कोई महत्त्वपूर्ण प्रश्न उठता है तो अपील उच्च न्यायालय में की जा सकती है।)

  • वित्त आयोग एक अर्द्धन्यायिक एवं सलाहकारी निकाय है।

अनुच्छेद 280(1) के तहत उपबंध है कि राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त्त किये जाने वाले एक अध्यक्ष और चार अन्य सदस्यों से मिलकर वित्त आयोग बनेगा। 27 नवम्बर, 2017 को एन.के. सिंह को 15वें वित्त आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। एन.के. सिंह भारत सरकार के पूर्व सचिव एवं 2008-2014 तक बिहार से राज्यसभा के सदस्य भी रह चुके हैं। इनके अलावा अन्य 4 सदस्यों में शक्तिकांत दास (भारत सरकार के पूर्व सचिव) और डॉ. अनूप सिंह (सहायक प्रोफेसर, जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय, वाशिंगटन डी.सी., अमेरिका) पूर्णकालिक सदस्य तथा डॉ. अशोक लाहिड़ी (अध्यक्ष, बंधन बैंक) और डॉ. रमेश चंद्र (सदस्य, नीति आयोग) इसके अंशकालिक सदस्य मनोनीत किये गए हैं।

  • अधिकरण संबंधी प्रावधान मूल संविधान में नहीं थे; इन्हें भारतीय संविधान में 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा शामिल किया गया।
  1. अनुच्छेद 323A प्रशासनिक अधिकरणों से संबंधित है। केवल लोक सेवाओं से संबंधित विषयों में अधिकरणों की स्थापना का उपबंध करता है,केवल संसद द्वारा इन अधिकरणों की स्थापना की जा सकती है। इसके अंतर्गत केंद्र के लिये और प्रत्येक राज्य के लिये या दो या दो अधिक राज्यों के केवल एक अधिकरण की स्थापना की जा सकती है। यहाँ अधिकरणों के पदानुक्रम (Hierarchy) की कोई स्थिति नहीं बनती।
  2. अनुच्छेद 323B अन्य मामलों के लिये अधिकरणों से संबंधित है। संसद और राज्य विधानमंडलों, दोनों द्वारा उनकी विधायी क्षमता के दायरे में शामिल विषयों के संबंध में स्थापित किये जा सकते हैं। इसके अंतर्गत अधिकरणों के एक पदानुक्रम का सृजन किया जा सकता है।

अनुच्छेद 262: राज्य/क्षेत्रीय सरकारों के बीच अंतर-राज्य नदियों के जल संबंधी विवादों के संबंध में अधिनिर्णयन के लिये भारतीय संविधान के केंद्र सरकार की एक भूमिका तय कर रखी है।

केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण(Central Administrative Tribunal-CAT)

प्रशासनिक अधिकरण की स्थापना संसद के एक अधिनियम प्रशासनिक अधिकरण अधिनियम, 1985 (Administrative Tribunals Act, 1985) द्वारा की गई थी। इसकी उत्पत्ति संविधान के अनुच्छेद 323A से हुई है ।

इसके क्षेत्राधिकार में केंद्र सरकार या केंद्र शासित प्रदेश या भारत सरकार के अंतर्गत किसी स्थानीय या अन्य सरकार या केंद्र के स्वामित्व व नियंत्रण वाले निगमों के कार्मिकों के सेवा संबंधी मामले आते है। CAT की स्थापना 1 नवंबर, 1985 को की गई। इसकी 17 नियमित पीठें (Benches) हैं, जिनमें से 15 उच्च न्यायालयों की मुख्य पीठों से और शेष दो जयपुर और लखनऊ से संचालित होती हैं। ये पीठें उच्च न्यायालयों की अन्य सीटों पर भी सर्किट बैठक (Circuit Sittings) का आयोजन करती हैं। अधिकरण में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और अन्य सदस्य शामिल होते हैं। सदस्यों को न्यायिक और प्रशासनिक दोनों क्षेत्रों से चुना जाता है ताकि दोनों क्षेत्रों की विशेषज्ञताओं का लाभ मिल सके। प्रशासनिक अधिकरण के आदेशों के विरुद्ध अपील संबद्ध उच्च न्यायालय की खंडपीठ या डिविज़न बेंच के समक्ष की जा सकती है। राज्य प्रशासनिक अधिकरण (State Administrative Tribunal) अनुच्छेद 323B राज्य विधानमंडलों को किसी कर के उद्ग्रहण, निर्धारण, संग्रहण एवं प्रवर्तन तथा अनुच्छेद 31A के दायरे में शामिल भूमि सुधारों से संबंधित विषयों में अधिकरण स्थापित करने का अधिकार देता है। जल विवाद अधिकरण (Water Disputes Tribunal) अंतर-राज्यीय नदियों और नदी घाटियों के जल से संबंधित विवादों पर अधिनिर्णयन के लिये अंतर-राज्यीय नदी जल विवाद (Inter-State River Water Disputes-ISRWD) अधिनियम, 1956 अधिनियमित किया गया था जिसके उपबंधों के तहत विभिन्न जल विवाद अधिकरणों के गठन होते रहे हैं। एकल ट्रिब्यूनल (Standalone Tribunal): ISRWD अधिनियम, 1956 में संशोधन के लिये अंतर-राज्यीय नदी जल विवाद (संशोधन) विधेयक, 2019 पारित किया गया है जो प्रत्येक जल विवाद के लिये पृथक अधिकरण स्थापित करने की लंबी प्रक्रिया की समाप्ति कर सभी जल विवादों के लिये एक स्टैंडअलोन ट्रिब्यूनल के गठन का प्रावधान करता है। सशस्त्र बल अधिकरण (Armed Forces Tribunal- AFT) यह भारत का एक सैन्य अधिकरण है। इसकी स्थापना सशस्त्र बल अधिकरण अधिनियम, 2007 के तहत की गई थी। यह सेना अधिनियम 1950, नौसेना अधिनियम 1957 और वायु सेना अधिनियम 1950 के अध्यधीन व्यक्तियों के बारे में कमीशन, नियुक्तियों, अभ्यावेशनों और सेवा की शर्तों के संबंध में विवादों और शिकायतों का अधिनिर्णयन या सुनवाई एक सशस्त्र बल अधिकरण द्वारा किये जाने का उपबंध करता है। नई दिल्ली में प्रधान न्यायपीठ के अलावा चंडीगढ़, लखनऊ , कोलकाता, गुवाहाटी , चेन्नई, कोच्चि, मुंबई और जयपुर में AFT की क्षेत्रीय पीठें भी कार्यरत हैं। प्रत्येक पीठ या बेंच में एक न्यायिक सदस्य और एक प्रशासनिक सदस्य शामिल होते हैं। न्यायिक सदस्य के रूप में उच्च न्यायालय के सेवानिवृत न्यायाधीश और प्रशासनिक सदस्य के रूप में मेजर जनरल/समकक्ष या इससे ऊपर रैंक के सेवानिवृत सैन्य बल अधिकारी शामिल होते हैं। जज एडवोकेट जनरल (JAG), जो सेना का विधिक व न्यायिक प्रमुख होता है, भी प्रशासनिक सदस्य के रूप में नियुक्त किया जा सकता है। राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal- NGT) राष्ट्रीय पर्यावरण अधिकरण अधिनियम, 1995 और राष्ट्रीय पर्यावरण अपीलीय प्राधिकरण अधिनियम, 1997 अपर्याप्त सिद्ध हुए और एक ऐसे संस्थान की आवश्यकता थी जो पर्यावरणीय विषयों पर अधिक कुशल और प्रभावी तरीके से कार्रवाई कर सके। विधि आयोग ने अपनी 186वीं रिपोर्ट में आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में संचालित पर्यावरण न्यायालयों का संदर्भ देते हुए न्यायिक और तकनीकी जानकारी से संपन्न बहुआयामी न्यायालय स्थापित करने का सुझाव दिया । परिणामस्वरूप NGT का गठन एक विशेष फास्ट-ट्रैक, अर्द्ध-न्यायिक निकाय के रूप में किया गया जिसमें मामलों के शीघ्र निपटान के लिये न्यायाधीशों के साथ ही पर्यावरण विशेषज्ञों को भी शामिल किया जाता हैं। पर्यावरण संरक्षण और वनों एवं अन्य प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण से संबंधित मामलों के प्रभावी और शीघ्र निपटान के लिये राष्ट्रीय हरित अधिकरण की स्थापना वर्ष 2010 में राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, 2010 के तहत एक सांविधिक निकाय के रूप में की गई थी। यह पर्यावरण से संबंधित किसी कानूनी अधिकार के प्रवर्तन को भी सुनिश्चित करता है और व्यक्तियों एवं संपत्ति को पहुँची क्षति के लिये राहत और क्षतिपूर्ति प्रदान कराता है। अधिकरण को आवेदन या अपील प्राप्त करने के 6 माह के अंदर मामले की सुनवाई पूरी कर लेने का अधिदेश सौंपा गया है। NGT की मुख्य पीठ नई दिल्ली में है जबकि भोपाल, पुणे, कोलकाता और चेन्नई में इसकी चार क्षेत्रीय पीठे स्थापित की गई है। आयकर अपीलीय अधिकरण (Income Tax Appellate Tribunal) आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 252 में यह प्रावधान किया गया है कि केंद्र सरकार अधिनियम में प्रदत्त शक्‍तियों का प्रयोग करने और कृत्‍यों का निर्वहन करने के लिये उतने न्‍यायिक सदस्‍यों और लेखा सदस्‍यों से, जितना वह ठीक समझे, एक अपीलीय अधिकरण का गठन करेगी।

संवैधानिक आयोग सम्पादन

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) को संवैधानिक दर्जा देने से संबंधित संविधान संशोधन विधेयक को लोकसभा ने दो-तिहाई से अधिक बहुमत के साथ सर्वसम्मति से मंज़ूरी दे दी। सदन ने राज्यसभा द्वारा विधेयक में किये गए संशोधनों को निरस्त करते हुए संशोधनों के साथ ‘संविधान (123वाँ संशोधन) विधेयक, 2017’ पारित कर दिया। संविधान के अनुच्छेद 338क के बाद नया अनुच्छेद 338ख अंत:स्थापित किया जाएगा। इसमें सामाजिक एवं शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गो के लिये राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग नामक एक नया आयोग होगा| संसद द्वारा इस निमित्त बनाई गई किसी विधि के उपबंधों के अधीन आयोग में एक अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और तीन अन्य सदस्य होंगे| इस प्रकार नियुक्त अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और अन्य सदस्यों की सेवा शर्तें एवं पदावधि के संबंध में नियम राष्ट्रपति द्वारा अवधारित किये जाएंगे।

वर्तमान राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग सामाजिक कल्याण और अधिकारिता मंत्रालय के तहत चलने वाला वैधानिक आयोग है। 1993 में संसद में पारित कानून के तहत मौजूदा आयोग का गठन किया गया था।

इसका उद्देश्य अन्य पिछड़े वर्ग की सूची में नागरिकों को सम्मिलित करने और हटाने संबंधी शिकायतों को निपटाने तथा उनकी जाँच के बारे में सरकार को सलाह देना है। अधिनियम में प्रावधान है कि सरकार आयोग के परामर्श को मानने के लिये साधारणतया बाध्य होगी।

  • राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग का 16वाँ स्थापना दिवस 19 फरवरी,2020 को मनाया गया।

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने वर्ष 1999 में जनजातीय मामलों के लिये एक अलग मंत्रालय बनाया था।

अनुच्छेद 338 में संशोधन करके और संविधान (89वाँ संशोधन) अधिनियम, 2003 द्वारा संविधान में एक नया अनुच्छेद 338A सम्मिलित करके की गई थी।

इस संशोधन द्वारा अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के राष्ट्रीय आयोग को दो अलग-अलग आयोगों में प्रतिस्थापित किया गया।

  1. राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग(NCSC)
  2. राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (National Commission for Scheduled Tribes- NCST)

इस आयोग में एक अध्यक्ष,एक उपाध्यक्ष और तीन पूर्णकालिक सदस्य (एक महिला सदस्य सहित) शामिल हैं। कार्यकालतीन वर्ष इस आयोग के अध्यक्ष को केंद्रीय कैबिनेट मंत्री तथा उपाध्यक्ष को राज्य मंत्री का दर्जा प्राप्त है, जबकि अन्य सदस्यों को भारत सरकार के सचिव पद का दर्जा दिया गया है।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 338A के खंड(5)के तहत NCST आयोग को निम्नलिखित कर्त्तव्य एवं कार्य सौंपे गए हैं-
  1. अनुसूचित जनजाति के लिये प्रदान किये गए सुरक्षा उपायों से संबंधित मामलों की जाँच एवं निगरानी का अधिकार है।
  2. उनके सामाजिक-आर्थिक विकास की योजना प्रक्रिया में भाग लेना एवं सलाह देना तथा संघ और किसी भी राज्य के तहत उनके विकास की प्रगति का मूल्यांकन करना।
  3. रिपोर्ट: आयोग अनुसूचित जनजाति के कल्याण और उनके सामाजिक-आर्थिक विकास से संबंधित प्रोग्रामों/योजनाओं के प्रभावी कार्यान्वयन के लिये किये गए आवश्यक उपायों से संबंधित वार्षिक रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपता है।

निर्वाचन आयोग ने राजनीतिक दलों को चुनाव के दौरान मिलने वाली सरकारी फंडिंग/मदद के बारे में अपना मत व्यक्त करते हुए, इसका विरोध किया सम्पादन

मार्च 2020 में आयोग के अनुसार इससे यह तय करने में कठिनाई होती है कि चुनाव के दौरान किस राजनीतिक उम्मीदवार द्वारा कितना पैसा खर्च किया गया है। साथ हीं इससे उम्मीदवारों के खर्च पर नियंत्रण रख पाने में मुश्किल उत्पन्न होती है।

सरकार के प्रयास:-
  1. सरकार ने राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे में पारदर्शिता लाने और नकद लेन-देन को हतोत्साहित करने के लिये आयकर कानून में बदलाव किया गया है।
  2. अज्ञात स्रोतों से मिलने वाले चंदे की सीमा अब 2000 रुपए निर्धारित कर दी गयी है।
  3. वर्ष 2018 में चुनावी बाॅण्ड स्कीम की शुरुआत की गई जो राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे में पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से शरू की गई थी। इस योजना के क्रियान्वयन से राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे की ऑडिटिंग में आसानी होगी।
  4. आयकर विभाग द्वारा नॉन-फिलर्स मानीटरिंग सिस्टम ( Non-Filers Monitoring System -NMS) को लागू किया गया है,इसके तहत अन्य स्रोतों के माध्यम से ऐसे लोगों के बारे में जानकारी प्राप्त की जाती है जिन्होंने कोई बड़ा वित्तीय लेन-देन किया हो परंतु आय कर रिटर्न नहीं भरा हो।
चुनावी प्रणाली में व्यापक सुधार लाने के उद्देश्य से गठित समितियाँ एवं रिपोर्ट्स :-

इन्द्रजीत गुप्त समिति (1998)- राजनीतिक दलों को सरकारी खर्च पर चुनाव लड़ने का समर्थन करने की बात कही गई। केंद्र सरकार द्वारा 600 करोड़ रुपए के योगदान से एक अलग चुनाव कोष का निर्माण किया जाए तथा कोष में सभी राज्यों की उचित भागीदारी सुनिश्चित की जाए। समिति द्वारा सरकारी खर्च पर चुनाव लड़ने के लिये राजनीतिक दलों के लिये दो सीमाएँ निर्धारित की गईं-

  1. फंड उन्हीं राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय दलों को प्राप्त हो जिन्हें चुनाव चिह्न आवंटित किया गया हो।
  2. अल्पकालीन स्टेट फंडिंग के तहत मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों एवं उम्मीदवारों को यह मदद अन्य सुविधाओं के रूप में दी जाएगी।

समिति द्वारा निर्दलीय उम्मीदवार को यह खर्च न देने की बात कही गई।

लाॅ कमीशन की रिपोर्ट (1999) वर्ष 1999 में प्रकाशित लाॅ कमीशन की रिपोर्ट में राज्यों को आंशिक फंडिंग की बात कहीं गई। रिपोर्ट में सरकारी खर्च पर चुनाव तभी करने की बात कही गई है जब राजनीतिक दलों की किसी अन्य स्रोत से धन प्राप्ति पर पाबंदी हो।
संविधान समीक्षा आयोग (2001)ने सरकारी खर्च पर चुनाव के विचार को पूरी तरह नकार दिया गया।

आयोग द्वारा 1999 में प्रकाशित लाॅ कमीशन की उस सिफारिश पर विचार करने की बात की गई जिसमें स्टेट फंडिंग पर विचार करने से पहले राजनीतिक दलों को उपयुक्त नियामक तंत्र के दायरे में लाए जाने का प्रावधान है।

द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (2008) द्वारा अनैतिक एवं अनावश्यक फंडिंग को कम करने के उद्देश्य से आंशिक रूप से सरकारी खर्च पर चुनाव कराने की बात कही गई।