प्रतिवर्ष 16 मई को विश्व भर में यूनेस्को (UNESCO) द्वारा अंतर्राष्ट्रीय प्रकाश दिवस (International Day of Light-IDL) मनाया जाता है। यह एक वार्षिक पहल है जो विश्व स्तर पर आयोजित की जाती है ताकि रोज़मर्रा के जीवन में प्रकाश-आधारित प्रौद्योगिकियों द्वारा निभाई गई महत्त्वपूर्ण भूमिका के बारे में जागरूकता बढ़ाई जा सके। यह दिन वर्ष 1960 में लेज़र के पहले सफल संचालन को चिह्नित करने के लिये मनाया जाता है। पहला सफल लेज़र संचालन एक इंजीनियर एवं भौतिक विज्ञानी थियोडोर मैमन (Theodore Maiman) द्वारा किया गया था। IDL को UNESCO के ‘इंटरनेशनल बेसिक साइंस प्रोग्राम’ (IBSP) से प्रशासित किया गया है और इसका सचिवालय इटली के ‘अब्दुस सलाम इंटरनेशनल सेंटर ऑफ थ्योरेटिकल फिज़िक्स’ (ICTP), ट्राएस्टे में स्थित है।

  • गूगल (Google) कंपनी ने 15 अप्रैल, 2020 को कहा कि वह COVID-19 महामारी के दौरान अपने परिचालन हेतु संघर्षरत स्थानीय समाचार आउटलेट्स की मदद के लिये एक आपातकालीन फंड ‘पत्रकारिता राहत कोष’ (Journalism Relief Fund) लॉन्च करेगा। यह वित्तीय सहायता गूगल समाचार पहल के हिस्से के रूप में COVID-19 महामारी के आर्थिक संकट से प्रभावित स्थानीय समाचार-पत्रों के लिये है।

न्यूयॉर्क टाइम्स ने अनुमान लगाया है कि स्वास्थ्य संकट और बाद में इसके आर्थिक प्रभाव के परिणामस्वरूप समाचार आउटलेट्स ने 28,000 नौकरियों में कटौती की है। वहीँ 30 मार्च, 2020 को फेसबुक ने कोरोनावायरस महामारी से वैश्विक स्तर पर संकट से जूझ रहे समाचार संस्थाओं को समर्थन देने के लिये $ 100 मिलियन की घोषणा की थी।

  • गूगल और फेसबुक जैसी दिग्गज अमेरिकी टेक कंपनियाँ भारत के नए डिजिटल कर को कुछ समय (कम-से-कम छह माह) के लिये टालने की मांग कर रही हैं। भारत सरकार द्वारा जारी घोषणा के अनुसार 1 अप्रैल 2020 से देश में प्रदान की जाने वाली डिजिटल सेवाओं के लिये सभी विदेशी बिलों पर 2 प्रतिशत कर लगाया जाना था।

यहाँ विदेशी बिलों से अभिप्राय उन बिलों से है जिनमें कंपनियाँ भारत में ग्राहकों को प्रदान की जाने वाली सेवाओं की भुगतान राशि विदेश में प्राप्त करती हैं।

उन कंपनियों पर लागू होगा
  1. जो भारत में ई-कॉमर्स सेवाएँ प्रदान करते हैं।
  2. ऑनलाइन विज्ञापन के माध्यम से भारतीय ग्राहकों को लक्षित करते हैं।

इस कर का उल्लेख वित्त मंत्री द्वारा प्रस्तुत किये गए बजट में नहीं था,इसे कुछ समय पूर्व बजट 2020-21 में संशोधन के माध्यम से शामिल किया गया था। विशेषज्ञों के अनुसार,नए कर की शुरुआत महामारी के समय राजस्व संग्रहीत करने के एक उपाय के रूप में प्रतीत हो रहा है। कुछ समय पूर्व फ्रांँस ने भी बड़ी टेक कंपनियों पर गाफा कर(GAFA) लागू करने की योजना बनाई थी, किंतु गूगल ने फ्रांँस के इस निर्णय का विरोध किया था। हालाँकि गूगल के विरोध और अमेरिकी सरकार के हस्तक्षेप के पश्चात् फ्रांँस ने इस कर को कुछ समय तक टालने का निर्णय लिया है।

क्यों आवश्यक है कर को टालना?

भारत की डिजिटल कर योजना ऐसे समय में आई है जब गूगल और फेसबुक जैसी कंपनियाँ भारत में अपने व्यवसाय के विस्तार की योजना बना रही हैं, क्योंकि भारत दुनिया के तेज़ी से बढ़ते क्लाउड कंप्यूटिंग बाज़ारों में से एक है।

गूगल का भारत के डिजिटल भुगतान बाज़ार में भी एक विशेष स्थान है। कंपनी ने भारतीय ग्राहकों को ध्यान में रखते हुए ‘तेज़’ (Tez) नाम से एक विशिष्ट डिजिटल भुगतान एप भी लॉन्च किया था, कुछ समय पश्चात् इस मोबाइल एप का नाम परिवर्तित कर ‘गूगल पे’ (Google Pay) कर दिया गया है।

अनुमानानुसार, भारत का मोबाइल भुगतान बाज़ार वर्ष 2023 तक 1 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँच जाएगा, जो कि वर्ष 2018 में 200 बिलियन डॉलर था।

भारत का नया डिजिटल कर गूगल जैसी बड़ी कंपनियों की विस्तार परियोजनाओं के समक्ष एक बड़ी बाधा बन सकता है। यह कर ऐसे समय में आया है, जब विश्व की लगभग सभी कंपनियाँ COVID-19 महामारी के कारण संकट का सामना कर रही हैं।

सावेशी विकास और अंतर्राष्ट्रीय प्रायस

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  • दिल्ली सरकार के अनुसार, मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल 7 अक्तूबर, 2020 को प्रतिष्ठित ’डेयरिंग सिटीज़ 2020’ (Daring Cities 2020) सम्मेलन में बोलने वाले दुनिया भर के पाँच नेताओं में से एक होंगे। इस सम्मेलन को जर्मन सरकार के समर्थन से ICLEI और जर्मनी के सिटी ऑफ बॉन (City of Bonn) द्वारा आयोजित किया जा रहा है।
आईसीएलईआई - स्थिरता के लिये स्थानीय सरकारें(ICLEI – Local Governments for Sustainability):

यह स्थानीय एवं क्षेत्रीय सरकारों का एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जिसने स्थायी विकास के लिये अपनी प्रतिबद्धता को बनाए रखा है। इस संगठन की स्थापना वर्ष 1990 में की गई थी। पूर्व में इसे स्थानीय पर्यावरण पहल के लिये अंतर्राष्ट्रीय परिषद (International Council for Local Environmental Initiatives) के रूप में जाना जाता था। इस संगठन की स्थापना सितंबर, 1990 में संयुक्त राष्ट्र में 43 देशों की 200 से अधिक स्थानीय सरकारों ने एक सतत् भविष्य के लिये स्थानीय सरकारों की विश्व काॅन्ग्रेस (World Congress of Local Governments for a Sustainable Future) के उद्घाटन सम्मेलन की गई थी। विशेषकर COVID-19 महामारी के संदर्भ में ‘डेयरिंग सिटीज़’ जलवायु आपातकाल से निपटने वाले शहरी नेताओं के लिये जलवायु परिवर्तन पर एक वैश्विक मंच है। अरविंद केजरीवाल को बोगोटा [कोलंबिया], साओ पोलो [ब्राज़ील], लॉस एंजेल्स [संयुक्त राज्य अमेरिका] और एन्तेबे [युगांडा] के शहरी नेताओं एवं निर्णय निर्माताओं के साथ जलवायु आपातकाल और पर्यावरणीय स्थिरता से निपटने के लिये बहुस्तरीय कार्रवाई पर चर्चा करने के लिये आमंत्रित किया गया है। यह कार्यक्रम इन पाँचों नेताओं को साहसी शहरी नेताओं के रूप में पहचाना है जो संबंधित स्थानीय संदर्भों में ठोस जलवायु कार्रवाई करने के लिये निश्चित की गई सीमाओं से अच्छा कार्य कर रहे हैं। इस सम्मेलन में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल दिल्ली में मौजूदा जलवायु आपातकाल, वायु प्रदूषण संकट, पूसा अपघटक (Pusa Decomposer) जैसे हालिया अभिनव समाधानों और दिल्ली में वायु प्रदूषण से निपटने के लिये इलेक्ट्रिक वाहन नीति (EV Policy) पर प्रतिक्रिया व्यक्त करेंगे।

समावेशी विकास के सरकारी प्रयास

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भारत की हरित कार्यवाई- वर्ष 2022 के अंत तक भारत द्वारा 175 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का लक्ष्य रखा था जिसे बढ़ाकर 450 गीगावाट करने की घोषणा भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा की गई। जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना के आठ मिशनों का संचालन। भारत का अभिप्रेत राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (INDC) की घोषणा। वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित संसाधनों से लगभग 40% विद्युत शक्ति स्थापित क्षमता प्राप्त करना। वर्ष 2030 तक 2.5-3 बिलियन टन CO2 के बराबर का कार्बन सिंक सृजित करना। इसके अलावा पर्यावरण प्रभाव आकलन, राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम, हरित कौशल विकास कार्यक्रम, जैविक कृषि को बढ़ावा आदि योजनाओं के संचालन द्वारा प्रयास किये जा रहे हैं।

  • ‘राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम’(NTPC) लिमिटेड (केंद्रीय विद्युत मंत्रालय) को कॉर्पोरेट उत्कृष्टता श्रेणी के अंतर्गत उत्कृष्ट उपलब्धि के लिये प्रतिष्ठित ‘सीआईआई-आईटीसी सस्टेनेबिलिटी पुरस्कार-2019’ (CII-ITC Sustainability Award- 2019) प्रदान किया गया। एनटीपीसी लिमिटेड को उसके निम्नलिखित कार्यों के लिए यह पुरस्कार प्रदान किया गया।
  1. बालिका सशक्तीकरण मिशन एनटीपीसी लिमिटेड का प्रमुख ‘कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसबिलिटी’(CSR) कार्यक्रम है। 4 सप्ताह के इस आवासीय कार्यक्रम के तहत एनटीपीसी लिमिटेड अपने पावर स्टेशन के आसपास प्रतिष्ठापित वंचित पृष्ठभूमि से आने वाली एवं स्कूल जाने वाली बालिकाओं को लाभ पहुँचाकर उनके समग्र विकास को बढ़ावा देता है।
  2. ठेकेदार श्रम सूचना प्रबंधन प्रणाली(Contractors Labour Information Management System- CLIMS) के माध्यम से ठेका श्रमिकों को परियोजना स्थलों पर महीने के अंतिम दिन भुगतान किया जाता है।

एनटीपीसी समूह की स्थापित वर्तमान क्षमता:-62110 मेगावाट की कुल स्थापित क्षमता के साथ ‘एनटीपीसी समूह’ के पास 70 पावर स्टेशन हैं जिनमें 24 कोयला, 7 संयुक्त चक्र गैस/तरल ईंधन, 1 हाइड्रो, 25 सहायक एवं जेवी पावर स्टेशनों (JV Power Stations) के साथ 13 नवीकरणीय स्टेशन शामिल हैं। सीआईआई-आईटीसी सस्टेनेबिलिटी पुरस्कार-2019: वर्ष 2006 में गठित ‘CII-ITC सस्टेनेबिलिटी पुरस्कार’ उन व्यवसायों में उत्कृष्टता के लिये प्रदान किये जाते हैं जो अपनी गतिविधियों में अधिक टिकाऊ एवं समावेशी होने के तरीके अपनाते हैं। यह पुरस्कार ‘सीआईआई-आईटीसी सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर सस्टेनेबल डवलपमेंट’ (CII-ITC Center of Excellence for Sustainable Development-CESD) के निरंतर प्रयासों का एक हिस्सा हैं जो व्यापार के सतत् तरीकों पर जागरूकता पैदा करने एवं व्यापारिक क्षमता को बनाए रखने की दिशा में कार्य करता है। देश में सस्टेनेबिलिटी की पहचान के लिये इसे सबसे विश्वसनीय पुरस्कार माना जाता है।

सेबी के कार्यकारी निदेशक सुजीत प्रसाद की अध्यक्षता में म्युनिसिपल बॉण्ड्स डेवलपमेंट कमेटी गठित

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  • सितंबर 2019 में सेबी ने स्मार्ट शहरों के साथ-साथ नगर नियोजन और शहरी क्षेत्रों के विकास के कार्यों को करने वाली संस्थाओं तथा नगरपालिकाओं को ऋण प्रतिभूतियों के माध्यम से धन जुटाने में मदद देने के लिये'मुनी बॉण्ड' (Municipal Bond) जारी करने के नियमों में ढील प्रदान की थी।
  • सेबी ने वर्ष 2015 में शहरी स्थानीय निकायों को मुनी बॉण्ड के माध्यम से पैसा जुटाने हेतु विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किये थे।
  • मुनी बॉण्ड शहरी स्थानीय निकायों द्वारा जारी किये गए बॉण्ड हैं, इनके माध्यम से विशेष रूप से नगरपालिका और नगर निगम (नगर निकाय के स्वामित्व वाली संस्थाएं) संरचनात्मक परियोजनाओं के वित्तपोषण हेतु धन जुटाती हैं।

म्युनिसिपल बॉण्ड्स डेवलपमेंट कमेटी का कार्य:

  1. नगरपालिका ऋण प्रतिभूतियों के प्राथमिक और द्वितीयक बाज़ार के विनियमन और विकास से संबंधित मुद्दों पर सेबी को सलाह देना।
  2. प्राथमिक और द्वितीयक बाज़ार की प्रणालियों और प्रक्रियाओं में सरलीकरण तथा पारदर्शिता लाने के लिये कानूनी ढाँचे में परिवर्तन हेतु आवश्यक मामलों पर सेबी को सलाह देना।
  3. नगरपालिकाओं को नगरपालिका ऋण प्रतिभूति जारी करने की प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के उपायों पर सेबी को सिफारिश करना।
  4. प्राथमिक और द्वितीयक बाज़ार में निवेशक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये मध्यस्थों के विनियमन से संबंधित मामलों पर सेबी को सलाह देना।
  5. नगरपालिका ऋण प्रतिभूति बाज़ार के विकास से संबंधित नीतिगत मामलों पर सिफारिश करना।
  • SDGs की प्राप्ति हेतु नीति आयोग ने विकास के क्षेत्र में ऐतिहासिक रूप से पिछड़े राज्यों के साथ वित्तपोषण अभ्यास (Financing Exercise) शुरू करने की योजना बनाई है।

केरल सरकार द्वारा सीएफएल और फिलामेंट बल्ब की बिक्री पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने की घोषणा

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  • यह प्रतिबंध नवंबर 2020 से सतत् उर्जा नीति के तहत लगाया जाएगा।देश का पहला राज्य बन गया है।

केरल सरकार द्वारा अपने बजट में ऊर्जा क्षेत्र के लिये 1,765 करोड़ रुपए आवंटित किये गए हैं,वहीं केरल सरकार को सौर ऊर्जा उपकरणों से 500MW बिजली उत्पादन की उम्मीद है। सरकार द्वारा यह घोषणा वर्ष 2018 में राज्य के ‘उर्जा केरल मिशन’ के हिस्से के रूप में परिकल्पित ‘फिलामेंट-फ्री केरल’नामक सरकारी योजना को प्रारंभ करने के लिये की गई है।

‘फिलामेंट-फ्री केरल’ नामक योजना का कार्यान्वयन केरल राज्य विद्युत बोर्ड और ऊर्जा प्रबंधन केंद्र,केरल द्वारा किया जाएगा। इसके तहत सभी उपभोक्ताओं को LED बल्ब किये जाएंगे।

राज्य में उपभोक्ता मौजूदा फिलामेंट बल्ब के बदले KSEB वेबसाइट पर LED बल्ब के लिये ऑर्डर दे सकते हैं। LED बल्ब के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिये सरकार द्वारा नौ वॉट के बल्ब को काफी कम कीमत पर बेचा जा रहा है।

  • राज्य के सभी सरकारी कार्यालयों तथा स्ट्रीट लाइट्स में प्रयुक्त बल्बों को LED बल्बों में परिवर्तित किया जाएगा।
  • योजना का उद्देश्य:-पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता को कम करने और नवीकरणीय स्रोतों जैसे-सौर और जल-विद्युत की अधिकतम क्षमता स्थापित करने के लिये केरल सरकार की दीर्घकालिक सतत् ऊर्जा नीति का हिस्सा है।
  • LED बल्ब फिलामेंट या सीएफएल बल्ब की तुलना में ऊर्जा-कुशल होते हैं,इसलिये यह कम अपशिष्ट का उत्पादन करते हैं।
  • इसके अतिरिक्त फिलामेंट बल्ब में पारा तत्त्व होता है,जो टूटने पर प्रकृति में प्रदूषक का कार्य करता है।

KSEB द्वारा घरों और आवासीय परिसरों की छतों पर सौर पैनल स्थापित करने की योजना फिलामेंट-फ्री केरल योजना की दिशा में एक बढाया गया एक कदम है। वर्ष 2019 में कासरगोड (Kasaragod) जिले की पीलीकोड (Peelikode) पंचायत पूरी तरह से फिलामेंट-मुक्त देश की पहली पंचायत बन गई है। केरल सरकार द्वारा पीलीकोड पंचायत को ऊर्जा संरक्षण के क्षेत्र में पहल के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करने का निर्णय लिया गया है। केरल सरकार के अनुसार,सार्वजनिक खपत के लिये राज्य में बड़े पैमाने पर लगभग 2.5 करोड़ LED बल्बों का उत्पादन किया गया है।

भारत में LED बल्ब के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिये किये गए अन्य प्रयास

  1. उजाला योजना:-(Unnat Jeevan by Affordable LED and Appliances for All -UJALA):-वर्ष 2015 में ‘राष्ट्रीय एल.ई.डी. कार्यक्रम’ के रूप में प्रारंभ की गई थी। इस योजना का उद्देश्य कम लागत पर LED बल्ब उपलब्ध कराकर ऊर्जा की बचत करना और ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करना है।
  2. राष्ट्रीय सड़क प्रकाश कार्यक्रम:-5 जनवरी,2015 को प्रारंभ,लक्ष्य देश में 3.5 करोड़ पारंपरिक स्ट्रीट लाइटों को ऊर्जा कुशल LED लाइट्स से बदलकर देश में ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देना।
  3. सौभाग्य योजना:-सितंबर 2017 में आरंभ-दिसंबर 2018 तक पूरा किया जाना था,लेकिन बाद में इसकी समयावधि को 31 मार्च,2019 तक बढ़ा दिया गया।ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में सार्वभौमिक घरेलू विद्युतीकरण सुनिश्चित करने के लिये किया गया था।

इस योजना के तहत केंद्र सरकार द्वारा बैटरी सहित 200 से 300 वॉट क्षमता का सोलर पावर पैक दिया गया, जिसमें हर घर के लिये 5 LED बल्ब,एक पंखा भी शामिल था।

ग्रामीण क्षेत्रों का विकास

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ग्रामीण विकास मंत्रालय ने विभिन्न ग्रामीण विकास कार्यक्रमों के कार्यान्वयन में राज्यों के प्रदर्शन से संबंधित एक रिपोर्ट जारी की है। इसके अनुसार, समय पर मज़दूरी के भुगतान, ग्रामीण स्तर पर शिकायत निवारण, कौशल-निर्माण और बेहतर बाज़ार कनेक्टिविटी आदि देश में देश में ग्रामीण विकास कार्यक्रमों केंद्र में होने चाहिये। इस रिपोर्ट में वर्ष 2018-19 में मुख्यतः निम्नलिखित ग्रामीण विकास योजनाओं में विभिन्न राज्यों के प्रदर्शन का आकलन किया गया है:

  1. महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA):-वर्ष 2005 में नरेगा के रूप में प्रस्तुत तथा वर्ष 2010 में नरेगा (NREGA) का नाम बदलकर मनरेगा (MGNREGA) कर दिया गया। मनरेगा के तहत वर्ष 2018-19 में 69,809 करोड़ रुपए का रिकॉर्ड खर्च किया गया, जो कि इस कार्यक्रम के शुरू होने के बाद सबसे अधिक है।
  2. प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण):-वर्ष 2015 में लॉन्च,उद्देश्य पूर्ण अनुदान के रूप में सहायता प्रदान करके आवास इकाइयों के निर्माण और मौजूदा गैर-लाभकारी कच्चे घरों के उन्नयन में गरीबी रेखा (BPL) से नीचे के ग्रामीण लोगों की मदद करना है। रिपोर्ट के अनुसार, PMAY-G के तहत लक्षित एक करोड़ घरों में से करीब 7.47 लाख घरों का निर्माण पूरा होना अभी शेष है। इसमें से अधिकतर घर बिहार (26 प्रतिशत), ओडिशा (15.2 प्रतिशत), तमिलनाडु (8.7 प्रतिशत) और मध्य प्रदेश (आठ प्रतिशत) में हैं। रिपोर्ट के अंतर्गत राज्यों को समय-सीमा में सभी घरों को पूरा करने हेतु आवश्यक कदम उठाने के लिये कहा गया है।
  3. प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना:-दिसंबर 2000 में लॉन्च किया गया था।

इसका उद्देश्‍य निर्धारित आकार (2001 की जनगणना के अनुसार, 500+मैदानी क्षेत्र तथा 250+ पूर्वोत्‍तर, पर्वतीय, जनजातीय और रेगिस्‍तानी क्षेत्र) को सभी मौसमों के अनुकूल एकल सड़क कनेक्टिविटी प्रदान करना है ताकि क्षेत्र का समग्र सामाजिक-आर्थिक विकास हो सके।रिपोर्ट के अनुसार, PMGSY ने अपना 85 प्रतिशत लक्ष्य प्राप्त कर लिया है। अब तक, 668,455 किमी. सड़क की लंबाई स्वीकृत की गई है, जिसमें से 581,417 किमी. पूरी हो चुकी थी।

  1. दीनदयाल उपाध्‍याय ग्रामीण कौशल्य योजना:- गरीब ग्रामीण युवाओं को नौकरियों में नियमित रूप से न्यूनतम मज़दूरी के बराबर या उससे अधिक मासिक मज़दूरी प्रदान करने का लक्ष्य रखता है। यह ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारत सरकार के द्वारा ग्रामीण आजीविका को बढ़ावा देने के लिये की गई पहलों में से एक है।

रिपोर्ट के अनुसार, योजना के तहत 1.87 लाख ग्रामीण युवाओं को प्रशिक्षित किया गया है अर्थात् केवल 59 प्रतिशत लक्ष्य ही प्राप्त किया जा सका है। रिपोर्ट में राज्यों को ग्रामीण युवाओं के प्रशिक्षण को प्राथमिकता देने तथा लाभकारी रोज़गार तक पहुँच की सुविधा प्रदान करने की सलाह दी गई है।

  1. श्‍यामा प्रसाद मुखर्जी रुर्बन मिशन
  2. राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन

ज्ञात हो कि इन सभी कार्यक्रमों को केंद्र सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों के सतत् और समावेशी विकास के लिये राज्य सरकारों के माध्यम से लागू किया जा रहा है।

पूर्वोत्तर क्षेत्रों का विकास

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  • मिशन पूर्वोदय (Mission Purvodaya)

पूर्वी भारत में एक एकीकृत इस्पात केंद्र बनाने के लिये इस्पात मंत्रालय (Ministry of Steel) ने की शुरुआत की। इसका उद्देश्य पूर्वी भारत में एकीकृत इस्पात केंद्र की स्थापना के माध्यम से विकास में तेज़ी लाना है। मुख्य बिंदु: इस कार्यक्रम के माध्यम से सरकार लाॅजिस्टिक और ढाँचागत उपयोग में बदलाव लाना चाहती है जिससे पूर्वी क्षेत्र में सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य बदल सकता है। पूर्वी भारत में इस्पात क्षमताओं में 75% वृद्धि की संभावना, जिसमें अकेले ओडिशा का योगदान 100 मिलियन टन प्रतिवर्ष से अधिक है। इस मिशन को पूरा करने के लिये जापान, भारत का सहभागी देश है। जापानी तकनीकी विशेषज्ञता एवं निवेश से ओडिशा में इस्पात क्षेत्र को मज़बूती प्रदान करने में मदद मिलेगी जिससे पूर्वी भारत में सामाजिक-आर्थिक विकास को गति दी जा सकेगी। ओडिशा: महत्त्वपूर्ण क्यों? कच्चे माल की आसानी से उपलब्धता, रणनीतिक भौगोलिक अवस्थिति और सुदृढ़ एवं विकसित कनेक्टिविटी के साथ ओडिशा पूर्वी भारत के इस्पात हब का मुख्य केंद्र बनकर उभरेगा। कलिंग नगर: एक उपकेंद्र के रूप में ओडिशा में कलिंग नगर (Kalinga Nagar) को मिशन पूर्वोदय के एक उपकेंद्र के रूप में विकसित किया जाएगा। इसके लिये भारत सरकार, ओडिशा सरकार के साथ मिलकर काम कर रही है। भारत सरकार का उद्देश्य कलिंग नगर को वैश्विक इस्पात उद्योग का एक जीवंत केंद्र बनाना है।

गैर जीवाश्म ईंधन

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  • केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने हाइड्रोजन चालित वाहनों की सुरक्षा का मूल्यांकन करने के लिये टिप्पणियाँ मांगी हैं। केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने इस संबंध में 10 जुलाई, 2020 को एक मसौदा अधिसूचना जारी की थी। इस मसौदे में ऑटोमेटिव इंडस्ट्री स्टैंडर्ड (AIS) 157: 2020 के अनुसार, भारतीय मानक ब्यूरो अधिनियम, 2016 के तहत BIS विनिर्देश अधिसूचित होने तक संपीडित गैसीय हाइड्रोजन ईंधन सेल पर चलने वाली M और N श्रेणियों के मोटर वाहनों को शामिल करने का प्रस्ताव किया गया है।

जब तक BIS विनिर्देश भारतीय मानक ब्यूरो अधिनियम, 2016 के तहत अधिसूचित नहीं हो जाते ईंधन सेल वाहनों के लिये हाइड्रोजन ईंधन विनिर्देश ISO 14687 के अनुसार होंगे। मोटर वाहन की M श्रेणी में यात्रियों को लाने-ले जाने वाले वाहन आते हैं। मोटर वाहन की N श्रेणी में माल ढुलाई वाले वाहन आते हैं।

हाइड्रोजन ईंधन सेल विद्युत वाहन (Fuel Cell Electric Vehicles-FCEV) एक ऐसा यंत्र है जो कि ईंधन स्रोत के तौर पर हाइड्रोजन तथा एक ऑक्सीकारक के प्रयोग से विद्युत-रासायनिक प्रक्रिया (Electrochemical) द्वारा विद्युत का निर्माण करता है। ईंधन सेल हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन को समिश्रित कर विद्युत धारा का निर्माण करता है तथा इस प्रक्रिया में जल उपोत्पाद (Byproduct) होता है।

परंपरागत बैटरियों की भाँति ही हाइड्रोजन ईंधन सेल भी रासायनिक उर्जा को विद्युत उर्जा में परिवर्तित करता है परंतु FCEV लंबे समय तक वहनीय है तथा भविष्य की इलेक्ट्रिक कारों के लिये एक आधार है। इलेक्ट्रिक वाहन तकनीक में FCEVs एक नई पीढ़ी की शुरुआत है। इसके अंतर्गत इलेक्ट्रिक मोटर को चलाने के लिये हाइड्रोजन का प्रयोग किया जाता है। व्यापार एवं विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (United Nations Conference on Trade and Development-UNCTAD) ने 'कमोडिटीज़ एट अ ग्लांस: स्पेशल इश्यू ऑन स्ट्रेटजिक बैटरी एंड मिनरल्स' (Commodities at a glance: Special issue on strategic battery and minerals) नामक रिपोर्ट जारी की है। आपूर्ति की अनिश्चितता: अंकटाड द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, रिचार्जेबल बैटरी का उत्पादन करने के लिये कच्चे माल की आपूर्ति अपर्याप्त है। रिचार्जेबल बैटरी के निर्माण के लिये लीथियम, प्राकृतिक ग्रेफाइट और मैंगनीज महत्त्वपूर्ण कच्चा माल है। मांग में वृद्धि: वैश्विक परिवहन के साधनों में इलेक्ट्रिक वाहनों की संख्या में वृद्धि से रिचार्जेबल बैटरी की मांग में भी इज़ाफा हुआ है। इलेक्ट्रिक वाहनों की संख्या वर्ष 2018 में 65 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 5.1 मिलियन तक पहुँच गई है, वर्ष 2030 तक इसकी संख्या 23 मिलियन तक पहुँचने की संभावना व्यक्त की गई है। कच्चे माल की मांग में वृद्धि: इलेक्ट्रिक वाहनों की बढ़ती संख्या के साथ रिचार्जेबल बैटरी और उनमें इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल की मांग भी बढ़ गई है। लीथियम आयन (lithium-ion) बैटरी के लिये उपयोगी कैथोड की बाज़ार हिस्सेदारी वर्ष 2018 तक 7 बिलियन डॉलर थी, जो वर्ष 2024 तक 58.8 बिलियन डॉलर तक पहुँच सकती है। आने वाले समय में रिचार्जेबल बैटरी बनाने के लिये उपयोग किये जाने वाले कच्चे माल की मांग तेजी से बढ़ेगी क्योंकि ऊर्जा के अन्य स्रोत अब अधिक प्रतिस्पर्द्धी नहीं रहे हैं। संबंधित चिंताएँ सीमित आपूर्तिकर्ता: आपूर्ति को सुनिश्चित करना सभी हितधारकों के लिये एक चिंता का विषय है क्योंकि कच्चे माल का उत्पादन कुछ देशों में केंद्रित है। विश्व में 60 प्रतिशत से अधिक कोबाल्ट कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में पाया जाता है जबकि वैश्विक लीथियम का 75 प्रतिशत से अधिक खनन ऑस्ट्रेलिया और चिली में किया जाता है। बाज़ार अस्थिरता: आपूर्ति में किसी भी प्रकार के व्यवधान से बाज़ार में अस्थिरता, मूल्य में वृद्धि और रिचार्जेबल बैटरी की लागत में भी वृद्धि हो सकती है। वर्ष 2018 में कोबाल्ट की मांग वर्ष 2017 के सापेक्ष 25 प्रतिशत बढ़कर 1,25,000 टन हो गई है, जिसमें 9 प्रतिशत कोबाल्ट का उपयोग इलेक्ट्रिक वाहनों में रिचार्जेबल बैटरी के लिये किया गया है। रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्ष 2023 तक कोबाल्ट की मांग 1,85,000 टन तक पहुँच जाएगी। लीथियम की मांग में वर्ष 2015 के बाद प्रतिवर्ष 13 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई है।

नवीकरणीय ऊर्जा

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  • नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (Ministry of New and Renewable Energy- MNRE) ने ओडिशा के कोणार्क सूर्य मंदिर और कोणार्क शहर को 100% सौर उर्जा से संचालित करने की योजना का शुभारंभ किया है। भारत सरकार की ओर से नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के माध्यम से लगभग 25 करोड़ रूपए की सहायता प्रदान की जाएगी।

इस योजना के तहत 10 मेगावाट ग्रिड कनेक्टेड सौर परियोजना और विभिन्न ऑफ-ग्रिड सौर अनुप्रयोगों, जैसे-सौर वृक्ष (Solar Trees), सौर पेयजल कियोस्क (Solar Drinking Water Kiosks), बैटरी स्‍टोरेज सहित ऑफ ग्रिड सौर संयंत्रों (Off-grid Solar Power Plants With Battery Storage) की स्थापना की परिकल्पना की गई है। इस योजना का कार्यान्‍वयन ओडिशा नवीकरणीय ऊर्जा विकास एजेंसी (Odisha Renewable Energy Development Agency-OREDA) द्वारा किया जाएगा। इस योजना के माध्यम से कोणार्क शहर की ऊर्जा संबंधी ज़रूरतों को भी पूरा किया जाएगा। उद्देश्य:

ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण ओडिशा के कोणार्क को 'सूर्य नगरी' के रूप में विकसित करना। सौर ऊर्जा के आधुनिक उपयोग, प्राचीन सूर्य मंदिर तथा सौर ऊर्जा के महत्त्व को बढ़ावा देना। सौर वृक्ष (Solar Trees):

Solar-Trees सौर ऊर्जा ‘नवीकरणीय ऊर्जा’ उत्पादन का एक अच्छा माध्यम है। किंतु बड़े स्तर पर सौर पैनल स्थापित करने के लिये भूमि की अनुपलब्धता एक सबसे बड़ी बाधा होती है। सौर वृक्ष उपर्युक्त समस्या को सुलझाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। सौर वृक्ष सामान्य वृक्ष जैसे ही होते हैं जिसमें पत्तियों के रूप में सौर पैनल लगे होते हैं तथा इसकी शाखाएँ धातु की बनी होती हैं। सौर वृक्ष सामान्य सौर ऊर्जा संयंत्रों के सापेक्ष 100 गुना कम स्थान घेरता हैं किंतु इन संयंत्रों से उत्पादित मात्रा के समान ही ऊर्जा का उत्पादन करता है। उदाहरण के लिये पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर में केंद्रीय यांत्रिक अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (Central Mechanical Engineering Research Institute-CMERI) ने सौर वृक्ष का निर्माण किया है, यह सौर वृक्ष 4 वर्ग फीट स्थान घेरता है तथा 3 किलोवाट ऊर्जा का उत्पादन करता है। ऑफ-ग्रिड सौर प्रणाली (Off-grid Solar systems):

ऑफ-ग्रिड सौर प्रणाली किसी भी ग्रिड से जुड़ा हुआ नहीं होता है। इस प्रणाली के साथ एक बैटरी जुड़ा होता है जो सौर उर्जा से उत्पादित विद्युत को संचित करती है। दरअसल ‘ऑफ-ग्रिड सौर प्रणाली’ में सौर पैनल, बैटरी, चार्ज नियंत्रक, ग्रिड बॉक्स, इन्वर्टर, इत्यादि होता है। यह सौर प्रणाली उन क्षेत्रों के लिये अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है जहाँ पावर ग्रिड की सुविधा उपलब्ध नहीं है। कोणार्क सूर्य मंदिर (Konark Sun Temple):

बंगाल की खाड़ी के तट पर स्थित कोणार्क सूर्य मंदिर भगवान सूर्य के रथ का एक विशाल प्रतिरूप है। यह मंदिर ओडिशा के पुरी ज़िले में स्थित है। रथ के 24 पहियों को प्रतीकात्मक डिज़ाइनों से सजाया गया है और सात घोड़ों द्वारा इस रथ को खींचते हुए दर्शाया गया है। कोणार्क सूर्य मंदिर का निर्माण 13वीं शताब्दी में गंग वंश के शासक नरसिंह देव प्रथम ने कराया था। ओडिशा स्थित कोणार्क सूर्य मंदिर को यूनेस्को (UNESCO) ने वर्ष 1984 में विश्व धरोहर स्थल घोषित किया था और भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India- ASI) इस मंदिर का संरक्षक है।

  • प्रत्येक वर्ष 10 अगस्त को मनाये जानेवाले ‘विश्व जैव ईंधन दिवस’ (World Biofuel Day) का उद्येश्य गैर-जीवाश्म ईंधनों के महत्त्व के बारे में जागरूकता पैदा करना है। साथ हीं जैव ईंधन के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा किये गये विभिन्न प्रयासों को उजागर करने के लिये मनाया जाता है। इस अवसर पर केंद्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने ‘जैव ईंधन की ओर आत्‍मनिर्भर भारत’ (Biofuels Towards Atmanirbhar Bharat) विषय पर एक वेबिनार का आयोजन किया। भारत में वर्ष 2015 से विश्व जैव ईंधन दिवस मनया जा रहा है।
10 अगस्त की तारीख सर रूडोल्फ डीज़ल द्वारा किये गये अनुसंधान प्रयोगों को भी सम्मान प्रदान करती है जिन्होंने वर्ष 1893 में मूंगफली के तेल से मशीन इंजन चलाया था। इन्होंने अपने अनुसंधान प्रयोगों के आधार पर कहा था कि वनस्पति तेल अगली शताब्दी में विभिन्न मशीनी इंजनों के ईंधन के लिये जीवाश्म ईंधनों का स्थान लेगा।

जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति, 2018 के द्वारा गन्ने का रस,चीनी युक्त सामग्री,स्टार्च युक्त सामग्री तथा क्षतिग्रस्त अनाज, जैसे- गेहूँ, टूटे चावल और सड़े हुए आलू का उपयोग करके एथेनॉल उत्पादन हेतु कच्चे माल के दायरे का विस्तार किया गया है। इस नीति में जैव ईंधनों को ‘आधारभूत जैव ईंधनों’ यानी पहली पीढ़ी (1G) के बायोएथेनॉल और बायोडीज़ल तथा ‘विकसित जैव ईंधनों’ यानी दूसरी पीढ़ी (2G) के एथेनॉल, निगम के ठोस कचरे (एमएसडब्‍ल्‍यू) से लेकर ड्रॉप-इन ईंधन, तीसरी पीढ़ी (3G) के जैव ईंधन, बायो सीएनजी आदि को श्रेणीबद्ध किया गया है, ताकि प्रत्‍येक श्रेणी के अंतर्गत उचित वित्तीय और आर्थिक प्रोत्‍साहन बढ़ाया जा सके।

जैव ईंधन के लाभ:-
  1. खनिज तेल के आयात में कमी।
  2. स्‍वच्‍छ वातावरण।
  3. किसानों की आय में वृद्धि।
  4. रोज़गार का सृजन।
  • मई 2020 में भारत सरकार के विद्युत मंत्रालय के तहत सार्वजनिक कंपनी ‘राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम लिमिटेड’(NTPC Ltd.)और पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय के तहत ‘ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉर्पोरेशन लिमिटेड’(ONGC) ने अक्षय ऊर्जा व्यापार (Renewable Energy Business) के लिये एक संयुक्त उपक्रम कंपनी’ बनाने के लिये समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये हैं।

इस समझौते के अनुसार, NTPC और ONGC भारत एवं विदेश में अपतटीय पवन (Offshore Wind) और अन्य अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं की स्थापना से जुड़ी संभावनाओं का पता लगाएंगी। दोनों कंपनियाँ संवहनीयता, भंडारण, ई-परिवर्तनीयता और ईएसजी (पर्यावरणीय, सामाजिक एवं प्रबंधन) के अनुकूल परियोजनाओं के क्षेत्र में भी संभावनाओं का पता लगाएंगी।

NTPC के पास अभी 920 मेगावाट की स्थापित अक्षय ऊर्जा परियोजनाएँ हैं और लगभग 2300 मेगावाट की अक्षय ऊर्जा परियोजनाएँ अभी निर्माण की प्रक्रिया में हैं।

इससे भारत की सबसे बड़ी विद्युत उत्पादक कंपनी NTPC को वर्ष 2032 तक 32 गीगावाट अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य को हासिल करने में मदद मिलेगी। नोट: NTPC समूह के पास कुल स्थापित क्षमता 62110 मेगावाट की है। इनमें NTPC के पास 70 ऊर्जा केंद्र हैं जिनमें 25 संयुक्त उपक्रम सहित,24 कोयला,7 संयुक्त गैस/द्रव्य,1 हाइड्रो और 13 अक्षय ऊर्जा केंद्र शामिल हैं।

ONGC के पास अभी 176 मेगावाट की अक्षय ऊर्जा परियोजनाएँ हैं जिसमें 153 मेगावाट पवन ऊर्जा परियोजनाएँ और 23 मेगावाट सौर ऊर्जा परियोजनाएँ शामिल हैं।

इस नए समझौते से अक्षय ऊर्जा व्यापार में ONGC की मौजूदगी बढ़ेगी और वर्ष 2040 तक यह अपने पोर्टफोलियो में 10 गीगावाट अक्षय ऊर्जा जोड़ने के लक्ष्य को हासिल करने में सक्षम होगी।

  • सतत् वैकल्पिक वहन योग्य परिवहन (Sustainable Alternative towards Affordable Transportation-SATAT) का प्रारंभ वर्ष 2018 में किया गया जिसके तहत उद्यमियों से संपीडित जैव-गैस (Compressed Bio Gas-CBG) उत्पादन संयंत्र स्थापित करने और ऑटोमोटिव ईंधन (परिवहन में प्रयुक्त होने वाला ईंधन) में CBG के उपयोग हेतु बाज़ार में इसकी उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिये कहा गया था।

महत्त्व:-अधिक किफायती परिवहन ईंधन, कृषि अवशेषों, मवेशियों का गोबर और नगरपालिका के ठोस अपशिष्ट के बेहतर उपयोग के साथ-साथ किसानों को अतिरिक्त राजस्व स्रोत प्रदान करने की क्षमता है।

  • केंद्रीय ऊर्जा (विद्युत) मंत्री ने 11 नवीकरणीय ऊर्जा प्रबंधन केंद्रों (REMCs) को राष्ट्र को समर्पित किया। यह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित नवीकरणीय ऊर्जा पूर्वानुमान एवं शेड्यूलिंग टूल से युक्त हैं और ये केंद्र ग्रिड ऑपरेटरों को विज़ुअलाइज़ेशन एवं संवर्द्धित स्थितिजन्य अधिक-से-अधिक जागरूकता प्रदान करते हैं।

भारत सरकार ने REMCs को केंद्रीय योजना के रूप में लागू करने की मंज़ूरी दे दी है और केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम पावरग्रिड (जिसे महारत्न का दर्जा प्राप्त है।) को विद्युत मंत्रालय (Ministry of Power) के तहत कार्यान्वयन एजेंसी के रूप में अनिवार्य माना है। इन REMCs का प्रावधान क्षेत्रीय स्तर पर पावर सिस्टम ऑपरेशन काॅर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (POSOCO) और राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर पर राज्य भार प्रेषण केंद्र (State Load Dispatch Centres- SLDC) द्वारा किया जा रहा है। वर्तमान में 11 REMCs द्वारा 55 गीगावाट (GW) नवीकरणीय ऊर्जा (सौर एवं पवन ऊर्जा) की निगरानी की जा रही है। गौरतलब है कि भारत सरकार ने वर्ष 2022 तक 175 गीगावाट का नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य तय किया है।

सूखाग्रस्त क्षेत्रोें में जल प्रबंधन

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  • भारत सरकार, हिमाचल प्रदेश सरकार और विश्व बैंक ने हिमाचल प्रदेश में कुछ चयनित ग्राम पंचायतों (ग्राम परिषदों) की जल प्रबंधन प्रक्रियाओं में सुधार लाने और कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिये 80 मिलियन अमेरिकी डॉलर के ऋण समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं। हिमाचल प्रदेश में जल की स्रोत स्थिरता और जलवायु लचीली वर्षा-आधारित कृषि के लिये एकीकृत परियोजना 10 ज़िलों की 428 ग्राम पंचायतों में लागू की जाएगी, इससे 4,00,000 से अधिक छोटे किसानों, महिलाओं और देहाती समुदायों को लाभ होगा। कृषि और इसकी संबद्ध गतिविधियों के लिये जलवायु लचीलेपन को बढ़ाना इस परियोजना का एक प्रमुख घटक है जिसके लिये पानी एक कुशल उपयोग केंद्र बिंदु है। इस परियोजना के तहत जल गुणवत्ता और मात्रा की निगरानी के लिये हाइड्रोलॉजिकल निगरानी स्टेशन भी स्थापित किये जाएंगे।
  • राजस्थान सरकार ने जल जीवन मिशन (Jal Jeevan Mission- JJM) के लिये केंद्र सरकार द्वारा दी जाने वाली आर्थिक मदद के मानदंडों में बदलाव की मांग की है।

जल जीवन मिशन के अंतर्गत वर्ष 2024 तक प्रत्येक ग्रामीण परिवार को प्रति व्यक्ति प्रति दिन 55 लीटर पानी की आपूर्ति की योजना है ताकि राज्यों पर वित्तीय बोझ कम हो सके। वर्तमान में जल जीवन मिशन के अंतर्गत केंद्र और राज्य के बीच योजना लागत की हिस्सेदारी को 50:50 के अनुपात में निर्धारित किया गया है। जल जीवन मिशन को केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय (Union Ministry for Jal Shakti) के अंतर्गत क्रियान्वित किया जा रहा है। जल जीवन मिशन विभिन्न प्रकार के जल संरक्षण जैसे- जल संभरण, लघु सिंचाई टैंकों की गाद निकलना, कृषि के लिये ग्रे-वाटर का उपयोग और जल स्रोतों के सतत् विकास) के प्रयासों पर आधारित है। राजस्थान में जल जीवन मिशन का क्रियांवयन: वर्तमान में राजस्थान में केवल 12% घरों में पाइप से जलापूर्ति हो रही है। अतः राजस्थान सरकार ने लगभग 98 लाख घरों को जलापूर्ति प्रदान करने के लिये जल के स्रोतों का कायाकल्प करके जल जीवन मिशन को लागू करने के लिये नई कार्य योजना तैयार की है। राजस्थान में जल जीवन मिशन को ‘राज्य जल और स्वच्छता मिशन’ (State Water and Sanitation Mission) के तहत लागू किया जा रहा है। राज्य जल और स्वच्छता मिशन पहले से ही लागू है और इसके लिये विभिन्न जल स्रोतों का दोहन करने के साथ वर्षा जल संचयन को बढ़ावा दिया जा रहा है। राजस्थान में केवल 1.01% सतही जल मौजूद है और यहाँ भौगोलिक रूप से दुर्गम क्षेत्रों में पीने के पानी की आपूर्ति करना कठिन है जिसके कारण जल जीवन मिशन के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये केंद्र से अधिक सहायता की उम्मीद की थी।

नीति आयोग ने 30 दिसंबर, 2019 को सतत् विकास लक्ष्य भारत सूचकांक का दूसरा संस्करण जारी किया

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पिछले वर्ष की ही तरह इस बार भी केरल इस सूची में प्रथम स्थान पर रहा। सतत् विकास लक्ष्य(Sustainable Development Goal-SDG) वर्ष 2015 में संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly- UNGA) में सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने विकास के 17 लक्ष्यों को आम सहमति से स्वीकार किया। UN ने विश्व के बेहतर भविष्य के लिये इन लक्ष्यों को महत्त्वपूर्ण बताया तथा वर्ष 2030 तक इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये इसके क्रिन्वयन की रूपरेखा सदस्य देशों के साथ साझा की।

सतत् विकास लक्ष्य भारत सूचकांक

नीति आयोग ने संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित लक्ष्यों के आधार पर भारत की प्राथमिकताओं के अनुरूप अपना सूचकांक तैयार किया है। इस वर्ष नीति आयोग की रिपोर्ट में UN के 17 में से 16 लक्ष्यों को शामिल किया गया है जबकि वर्ष 2018 में इसमें केवल 13 लक्ष्यों को ही शामिल किया गया था। नीति आयोग UN के 232 सूचकांकों की प्रणाली पर आधारित 100 निजी सूचकांकों पर राज्यों के प्रदर्शन की समीक्षा करता है, जिनमें शामिल हैं-आकांक्षी (Aspirant): 0–49 परफार्मर (Performer): 50-64 फ्रंट रनर (Front Runner): 65–99 अचीवर (Achiever): 100 ‘सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय’, संयुक्त राष्ट्र संघ की भारतीय शाखा और वैश्विक हरित विकास संस्थान (Global Green Growth Institute-GGGI) के सहयोग से तैयार इस सूचकांक में केरल (70) का प्रदर्शन सबसे बेहतर रहा जबकि बिहार (50) इस सूची में सबसे निचले स्थान पर रहा। इस सूचकांक में पिछले वर्ष के मुकाबले उत्तर प्रदेश (55), ओडिशा (58) और सिक्किम (65) के प्रदर्शनों में सबसे अधिक सुधार देखने को मिले।

इस सूचकांक में 69 अंकों के साथ हिमाचल दूसरे और आंध्रप्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु 67 अंकों के साथ संयुक्त रूप से तीसरे स्थान पर रहे।

भुखमरी से मुक्ति और लैंगिक समानता के क्षेत्र में लगभग सभी राज्यों का प्रदर्शन खराब रहा, इन क्षेत्रों में भारत को राष्ट्रीय स्तर पर 100 में से क्रमशः मात्र 35 और 42 अंक ही प्राप्त हुए। सभी 16 क्षेत्रों में भारत को संयुक्त रूप से 60 अंक प्राप्त हुए, पिछले वर्ष इसी श्रेणी में भारत को 57 अंक प्राप्त हुए थे। भारत के इस प्रदर्शन का कारण नवीकरणीय ऊर्जा और स्वच्छता के क्षेत्र में हुई प्रगति (88), शांति, न्याय और सशक्त संस्थानों (72) तथा सस्ती एवं स्वच्छ ऊर्जा (70) आदि क्षेत्रों में हुए सफल प्रयास हैं। दूसरे SDG ‘भुखमरी से मुक्ति’ में राज्यों के प्रदर्शन में ह्रास देखने को मिला केरल, गोवा और पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों को छोड़कर 22 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को 50 से कम अंक प्राप्त हुए। मिज़ोरम (67), नगालैंड (70), अरुणाचल प्रदेश (66) और सिक्किम (66) को भुखमरी से मुक्ति में 65 से अधिक अंक प्राप्त हुए जबकि मध्य भारत के राज्यों झारखंड (22), मध्यप्रदेश (24), बिहार (26) और छत्तीसगढ़ (27) को इस श्रेणी में 30 से भी कम अंक प्राप्त हुए। (इस श्रेणी में प्राप्त अंक राज्य के भीतर बच्चों में कुपोषण, बाल-विकास, एनीमिया तथा खाद्य उत्पादन और वितरण की दिशा में किये गए कार्यों को दर्शाते हैं)

पाँचवें SDG- ‘लैंगिक समानता’ के क्षेत्र में सभी राज्यों का प्रदर्शन बहुत ही खराब रहा। केवल जम्मू और कश्मीर-J&K (53), हिमाचल (52) तथा केरल (51) को छोड़कर सभी राज्य 50 का आँकड़ा पार करने में असफल रहे। (यह गणना J&K राज्य के विभाजन से पूर्व की हैं ) इस सूचकांक में महिलाओं के खिलाफ अपराध, महिलाओं के साथ लिंग के आधार पर होने वाले भेदभाव तथा गर्भधारण से संबंधित स्वास्थ्य सेवाओं की कमी को देखा गया।

इसके साथ ही महिलाओं के आर्थिक और राजनीतिक सशक्तीकरण तथा इन क्षेत्रों में उनके लिये नेतृत्व के अवसरों की उपलब्धता पर विशेष ध्यान दिया गया। भारत का असमान लैंगिक अनुपात 896/1000, कार्यक्षेत्रों में केवल 17.5% महिलाओं की भागीदारी और 3 में से 1 महिला के वैवाहिक उत्पीड़न के मामलों को इस खराब प्रदर्शन का कारण माना जा रहा है।

छठे SDG ‘स्वच्छ जल और सफाई’ (Clean Water and Sanitation) में बेहतर प्रदर्शन का श्रेय स्वच्छ भारत मिशन को जाता है, यद्यपि इसका एक कारण यह भी है कि इस लक्ष्य के सात संकेताकों में से चार शौचालय और स्वच्छता से जुड़े हुए थे जबकि एक सुरक्षित और साफ पेयजल से संबंधित था।

दिल्ली को छोड़कर सभी केन्द्रशासित प्रदेशों को इस सूचकांक में 65 से अधिक अंक प्राप्त हुए। दिल्ली का प्रदर्शन स्वच्छता के मामले में बहुत ही ख़राब रहा।

7वें SDG लक्ष्य ‘सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा’ (Affordable and Clean energy) में बेहतर प्रदर्शन का कारण सरकार की घर-घर बिजली और भोजन पकाने के लिये LPG वितरण की योजनाओं को माना जा रहा है।

सन्दर्भ

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