सामान्य अध्ययन २०१९/राष्ट्रीय उद्यान, वन्यजीव अभयारण्य तथा आद्रभूमि
- एशियाई हाथी विशेषज्ञ समूह (Asian Elephant Specialist Group):-
4-6 दिसंबर,2019 तक इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंज़र्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) के एशियाई हाथी विशेषज्ञ समूह (Asian Elephant Specialist Group -AsESG) की 10वीं बैठक का आयोजन मलेशिया के सबाह प्रांत के कोटा किनबालु में किया गया। इसमें 130 से भी अधिक हाथी संरक्षणवादियों,साझेदार संगठनों और विशेषज्ञों ने इस बैठक में भाग लिया। इस बैठक के दौरान एशियाई एलीफैंट रेंज में शामिल राज्यों द्वारा हाथी संरक्षण के लिये राष्ट्रीय कार्य योजना,मानव-हाथी संघर्ष के प्रबंधन हेतु सर्वोत्तम अभ्यासों,हाथियों की अवैध हत्या की निगरानी में समूह के सदस्यों को शामिल करने के लिये तंत्र,बंदी बनाए गए हाथियों के कल्याण से संबंधित विषयों और हाथी संरक्षण में अफ्रीकी देशों के अनुभवों को साझा करने एवं इनसे सीखने जैसे विस्तृत मुद्दों पर चर्चा की गई। AsESG एशियाई हाथियों(वैज्ञानिक नाम-एलिफस मैक्सिमस) के अध्ययन,निगरानी,प्रबंधन एवं संरक्षण हेतु वैज्ञानिक और गैर-वैज्ञानिक दोनों प्रकार के विशेषज्ञों का एक वैश्विक नेटवर्क है। यह IUCN के स्पीशीज़ सर्वाइवल कमीशन (SSC) का एक अभिन्न अंग है। इसका उद्देश्य एशियाई हाथियों की आबादी को पर्याप्त स्तर पर बनाए रखने हेतु इनके दीर्घकालिक संरक्षण को बढ़ावा देना है। इसमें 18 देशों के लगभग 110 विशेषज्ञ शामिल हैं और वर्तमान में इस समूह के अध्यक्ष विवेक मेनन (भारत) हैं। एशियाई हाथी के लिये रेड लिस्ट प्राधिकरण के रूप में AsESG, IUCN की रेड सूची का नियमित आकलन करता है।
- सितंबर में उच्च तुंगता (High Altitude) वाले पारिस्थितिक तंत्र में बाघों के आवास (Habitats) की स्थिति पर एक रिपोर्ट जारी की गई है। इसके अनुसार, उच्च तुंगता पर भी पारिस्थितिकी बाघों की वृद्धि के लिये अनुकूल है। यह रिपोर्ट उच्च तुंगता पर बाघों के संभव आवासों, संपर्क गलियारों एवं मानवजन्य दबावों की पहचान करने के साथ ही उनके स्व-स्थाने (IN-SITU) संरक्षण के लिये रोडमैप उपलब्ध करवाती है।
यह रिपोर्ट ग्लोबल टाइगर फोरम (Globel Tiger Forum-GTF) के नेतृत्व में, भूटान, भारत और नेपाल के साथ-साथ संरक्षण भागीदारों (WWF और विशिष्ट सहयोगियों) और आई.यू.सी.एन. (IUCN) के एकीकृत बाघ आवास संरक्षण कार्यक्रम (Integrated Tiger Habitat Conservation Programme -ITHPC) एवं KfW (जर्मन विकास बैंक) द्वारा समर्थित है। हालाँकि रेंज के भीतर अधिक ऊँचाई वाले अधिकांश आवासों में बाघ की उपस्थिति, शिकार और निवास स्थान की स्थिति का मूल्यांकन नहीं किया गया है। इसलिये निवास स्थान की मैपिंग और भविष्य के रोडमैप के लिये स्थिति के विश्लेषण का मूल्यांकन किया जाना आवश्यक है। उच्च तुंगता वाले बाघ आवास एक उच्च मूल्य वाले पारिस्थितिकी तंत्र होते हैं जिसमें पारिस्थितिक तंत्र सेवाएँ प्रदान करने वाली कई हाइड्रोलॉजिकल और पारिस्थितिक प्रक्रियाएँ होती हैं
- जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को कम करने हेतु अनुकूलन के लिये उच्च तुंगता पर स्थित बाघ आवासों को भूमि के सतत् उपयोग द्वारा संरक्षित किये जाने की आवश्यकता है। दक्षिण एशिया के कई उच्च तुंगता वाले क्षेत्रों में बाघ की स्थानिक उपस्थिति है इसलिये उनके संरक्षण को सुनिश्चित करने के लिये सक्रिय स्व-स्थाने प्रयासों की आवश्यकता है।
- ग्लोबल टाइगर फोरम (Globel Tiger Forum-GTF)का गठन वर्ष 1993 में नई दिल्ली में आयोजित बाघ संरक्षण पर एक अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी की सिफारिशों पर किया गया था। इसका मुख्यालय नई दिल्ली, भारत में स्थित है।
GTF एकमात्र अंतर-सरकारी अंतर्राष्ट्रीय निकाय (intergovernmental international body) है जो बाघों के संरक्षण के लिये तैयार देशों के सहयोग से स्थापित किया गया है। एकीकृत बाघ आवास संरक्षण कार्यक्रम (Integrated Tiger Habitat Conservation Programme -ITHCP) को वर्ष 2014 में शुरू किया गया। ITHCP एक रणनीतिक वित्तपोषण तंत्र (Strategic Funding Mechanism) है जिसका उद्देश्य एशिया में बाघों को जंगलों में संरक्षित करना और उनके प्राकृतिक आवासों को बचाना है। यह छह देशों (बांग्लादेश, भूटान, भारत, इंडोनेशिया, नेपाल और म्याँमार) में 12 परियोजनाओं को सहायता प्रदान कर रहा है जिससे बाघ संरक्षण परिदृश्य का बेहतर प्रबंधन किया जा सके। यह ग्लोबल टाइगर रिकवरी प्रोग्राम (GTRP) में योगदान दे रहा है जो कि वर्ष 2022 तक बाघों की संख्या दोगुनी करने का वैश्विक प्रयास है।
टाइगर रिज़र्व
सम्पादन- मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ रिज़र्व फ़ॉरेस्ट में पहली बार हाथियों की एक बस्ती मिली है।
बांधवगढ़ टाइगर रिज़र्व (Bandhavgarh Tiger Reserve) इसे वर्ष 1968 में राष्ट्रीय उद्यान के रूप में अधिसूचित किया गया था तथा प्रोजेक्ट टाइगर नेटवर्क के तहत वर्ष 1993 में इसे एक बाघ आरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया। भौगोलिक रुप से यह मध्य प्रदेश की सुदूर उत्तर-पूर्वी सीमा और सतपुड़ा पर्वत शृंखला के उत्तरी किनारे पर स्थित है। वर्ष 2019 की बाघ जनगणना के अनुसार, मध्य प्रदेश में 526 बाघ (सबसे अधिक) दर्ज किये गए थे। नोट: हाथी वन्यजीव संरक्षण अधिनियम,1972 की अनुसूची-1 के तहत सूचीबद्ध एक प्रजाति है। भारत में एशियाई हाथियों की 50% आबादी पाई जाती है और वर्ष 2017 की हाथी जनगणना के अनुसार, देश में कुल 27,312 हाथी हैं जो वर्ष 2012 की जनगणना से लगभग 3,000 कम हैं।
- मध्य प्रदेश के पन्ना और छतरपुर ज़िलों में लगभग 576 वर्ग किलोमीटर में फैले पन्ना टाइगर रिज़र्व में बाघों की वर्तमान आबादी 55 तक पहुँच गई है।
1981 में स्थापित इस रिज़र्व को भारत के 22वें टाइगर रिज़र्व के रूप में शामिल किया गया था। अवस्थिति: मध्य प्रदेश के उत्तरी भाग में विंध्य पर्वत शृंखलाओं में पन्ना और छतरपुर ज़िलों में फैला हुआ है। इस टाइगर रिज़र्व में उत्तरी मध्य प्रदेश के बाघ निवास का अंतिम छोर शामिल है। इस रिज़र्व के मध्य में उत्तर से दक्षिण की ओर केन नदी बहती है। वनस्पति और जीव: पन्ना टाइगर रिज़र्व में व्यापक खुले वुडलैंड्स के साथ-साथ सूखी और छोटी घास पाई जाती है। यहाँ पठारों की सूखी खड़ी ढलानों पर बबूल के वृक्ष बहुतायत में पाए जाते हैं। बाघ के अलावा यह तेंदुए, नीलगाय, चिंकारा, चौंसिंगा, चीतल, चित्तीदार बिल्ली, साही और सांभर जैसे अन्य जानवरों का निवास स्थान भी है। यहाँ केन नदी में घड़ियाल और मगर भी पाए जाते हैं।
- नागार्जुनसागर श्रीशैलम टाइगर रिज़र्व (Nagarjunasagar Srisailam Tiger Reserve):-
अखिल भारतीय बाघ अनुमान (All India Tiger Estimation-AITE) के चौथे चक्र के अनुसार, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में बाघों की संख्या में वृद्धि हुई है। एक अवधि तक लगातार गिरावट के बाद आंध्र प्रदेश के नागार्जुनसागर श्रीशैलम टाइगर रिज़र्व (Nagarjunasagar Srisailam Tiger Reserve- NSTR) में बाघों की संख्या में वृद्धि हो रही है। टाइगर रिज़र्व क्वे विषय में: NSTR भारत का सबसे बड़ा टाइगर रिज़र्व है। NSTR को वर्ष 1978 में अधिसूचित किया गया था तथा वर्ष 1983 में इसे प्रोजेक्ट टाइगर के संरक्षण के तहत शामिल किया गया। वर्ष 1992 में इसका नाम परिवर्तित कर राजीव गांधी वन्यजीव अभयारण्य कर दिया गया था। NSTR कृष्णा नदी के तट पर अवस्थित है तथा आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के 5 ज़िलों में विस्तारित है। इसके अलावा बहुउद्देशीय जलाशय- श्रीशैलम और नागार्जुनसागर NSTR में ही अवस्थित हैं। NSTR की जैव-विविधता: NSTR विभिन्न प्रकार के जंगली जानवरों का निवास स्थान है, यहाँ बंगाल टाइगर के अलावा, तेंदुआ, चित्तीदार बिल्ली, पेंगोलिन, मगर, इंडियन रॉक पायथन और पक्षियों की असंख्य किस्में पाई जाती हैं।
- मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले में स्थित सतपुड़ा टाइगर रिज़र्व के बफ़र क्षेत्र में एक महुआ के वृक्ष की उपस्थिति के कारण यह टाइगर रिज़र्व सुर्खियों में आया। यहाँ के स्थानीय लोगों के मध्य एक अंधविश्वास है कि महुआ का वृक्ष उनकी बीमारियों से तुरंत राहत दिला सकता है तथा उनके दुर्भाग्य को बदल सकता है।वर्ष 2000 में स्थापित यह रिजर्व नर्मदा नदी के दक्षिण में स्थित है।
- इसमें तीन संरक्षित क्षेत्र शामिल हैं-सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान,बोरी अभयारण्य,पंचमढ़ी अभयारण्य। यहाँ धूपगढ़ चोटी का भी विस्तार है।
जैव-विविधता यह रिज़र्व बाघों सहित कई अन्य लुप्तप्राय प्रजातियों का आवासीय क्षेत्र है। यहाँ पाई जाने वाली अन्य प्रमुख प्रजातियों में ब्लैक बक,तेंदुआ,ढोले,भारतीय गौर,मालाबार विशालकाय गिलहरी,स्लॉथ बीयर आदि शामिल हैं। महुआ भारतीय उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में उगने वाला वृक्ष है जो मुख्य रूप से मध्य और उत्तरी भारतीय मैदानों तथा जंगलों में पाया जाता है।
- 6 मई को राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने उत्तराखंड में पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील राजाजी टाइगर रिज़र्व में वाणिज्यिक वाहनों के उपयोग के लिये बनाई जा रही सड़क के कथित अवैध निर्माण पर एक तथ्यात्मक रिपोर्ट प्रदान करने हेतु समिति का गठन किया है।
1 मार्च,2017 को उत्तराखंड सरकार ने जैव-विविधता समृद्ध इस क्षेत्र पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों पर विचार किये बिना वाणिज्यिक वाहनों के लिये टाइगर रिज़र्व में लालढांग-चिलरखाल (Laldang-Chillarkhal) मार्ग खोलने का निर्णय लिया।
राष्ट्रीय उद्यान
सम्पादन- हाथियों का एक झुंड लखीमपुर स्थित दुधवा पार्क के गौरीफंटा रेंज की सीमा से सटे नेपाल के लाल झाड़ी कॉरिडोर में अब भी उत्पात मचा रहा है।
- वन विभाग और केरल एवं पूर्वोत्तर राज्यों के वन विशेषज्ञों ने पापिकोंडा नेशनल पार्क में तितली की प्रजातियों का पहला सर्वेक्षण शुरू किया है। 12 से 15 दिसंबर तक चलनेवाले इस सर्वेक्षण के अंतर्गत तितली की प्रजातियों का दस्तावेज़ीकरण किया जाएगा।
तितली की प्रजातियों में विविधता,राष्ट्रीय उद्यान के एक स्वास्थ्य संकेतक के रूप में माना जाता है।
- पापिकोंडा नेशनल पार्क आंध्र प्रदेश के पूर्वी और पश्चिमी गोदावरी ज़िलों एवं तेलंगाना के खम्मम ज़िले में 1012.86 वर्ग किलोमीटर में फैला है।
वर्ष 2008 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था। इस राष्ट्रीय उद्यान को वर्ष 2016 में बर्डलाइफ इंटरनेशनल द्वारा एक ‘महत्त्वपूर्ण पक्षी और जैव विविधता क्षेत्र’ के रूप में मान्यता दी गई थी। विशेषज्ञों का प्रयास पापिकोंडा नेशनल पार्क की मौजूदा जैव विविधता की एक तस्वीर पेश करेगा। तितली की प्रजातियों से संबंधित ‘निष्कर्ष एवं रिपोर्ट’वन्यजीवों की प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण (Conservation of Migratory Species of Wild Animals- CMS) पर 13वें COP में गुजरात के गांधीनगर में प्रस्तुत की जाएगी।
- दुधवा नेशनल पार्क को पर्यटन सीज़न शुरू होने पर पुन: पर्यटकों के लिये खोल दिया गया है।
यह पार्क पर्यटकों के लिये प्रतिवर्ष 15 नवंबर को खोला जाता है और 15 जून को बंद कर दिया जाता है। यह उत्तर प्रदेश के लखीमपुर-खीरी ज़िले में भारत-नेपाल सीमा पर स्थित है तथा यह उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र में प्राकृतिक जंगलों और घास के मैदानों का प्रतिनिधित्व करता है। इसके अंतर्गत तीन महत्त्वपूर्ण संरक्षित क्षेत्र शामिल हैं:
- दुधवा नेशनल पार्क
- किशनपुर वन्यजीव अभयारण्य
- कतर्निया घाट वन्यजीव अभयारण्य
राज्य में रॉयल बंगाल टाइगर के अंतिम व्यवहार्य निवास होने के कारण इन तीनों संरक्षित क्षेत्रों को प्रोजेक्ट टाइगर (Project Tiger) के तहत संयुक्त करके दुधवा टाइगर रिज़र्व के रूप में गठित किया गया है। दुधवा नेशनल पार्क और किशनपुर वन्यजीव अभयारण्य को वर्ष 1987 में तथा कतर्निया वन्यजीव अभयारण्य को वर्ष 2000 में दुधवा टाइगर रिज़र्व में शामिल किया गया था। यह क्षेत्र मुख्यतः बारहसिंगा और बाघों की प्रजातियों के लिये प्रसिद्ध है। इसके अलावा पक्षियों की विभिन्न प्रजातियाँ भी यहाँ पाई जाती हैं।
मुकुर्थी राष्ट्रीय उद्यान तमिलनाडु स्थित यह उद्यान नीलगिरी तहर की संख्या बढ़ने के कारण चर्चा में रहा। पश्चिमी घाट पर स्थिति और 78.46 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले इस उद्यान को की-स्टोन प्रजाति नीलगिरी तहर को संरक्षित करने के लिये बनाया गया था। यह नीलगिरी बायोस्फियर रिज़र्व का एक भाग है। इसमें पर्वतीय घास के मैदान व झाड़ियाँ पाई जाती है।
- नीलगिरि बायोस्फीयर रिज़र्व भारत का पहला बायोस्फीयर रिज़र्व था, जिसे वर्ष 1986 में स्थापित किया गया था।
- यह तमिलनाडु,केरल और कर्नाटक के कुछ हिस्सों को शामिल करता है। यहाँ प्रत्येक वर्ष 50 सेमी. से 700 सेमी. तक वर्षा होती है।
- यह मालाबार वर्षा वन के भौगोलिक क्षेत्र के अंतर्गत आता है।
मुदुमलाई वन्यजीव अभयारण्य, वायनाड वन्यजीव अभयारण्य, बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान, नागरहोल राष्ट्रीय उद्यान, मुकुर्थी राष्ट्रीय उद्यान और साइलेंट वैली इस आरक्षित क्षेत्र में मौजूद संरक्षित क्षेत्र हैं।
- पापीकोंडा नेशनल पार्क आंध्र प्रदेश के पूर्वी गोदावरी और पश्चिम गोदावरी जिलों में पापी की पहाड़ियों में स्थित है,और 1,012.86 किमी 2 (391.07 वर्ग मील) के क्षेत्र को थिथकवर करता है।यह एक महत्वपूर्ण पक्षी और जैव विविधता क्षेत्र है।2014 और उसके बाद पोलावरम बांध के निर्माण के बाद पूर्व और पश्चिम गोदावरी जिलों के बाहर पपिकोंडा का कोई हिस्सा नहीं बचा है।
- बालूखंड-कोणार्क वन्यजीव अभयारण्य बंगाल की खाड़ी के किनारे पर ओडिशा के शहरों पुरी और कोणार्क के बीच स्थित है। इस अभयारण्य में काजूरीना के पेड़ और काजू के बागान एवं समुद्र तट पर समुद्री ओलिव रिडले कछुए (Olive Ridley Sea Turtles) के घोंसले पाए जाते हैं।
चक्रवात फानी (Cyclone Fani) ने मई 2019 में भारत के पूर्वी तट पर तबाही मचाई थी। इसने ओडिशा के दो पारिस्थितिक हॉटस्पॉट - चिल्का झील (Lake Chilika) और बालुखंड-कोणार्क वन्यजीव अभयारण्य को गंभीर रूप से नुकसान पहुँचाया।
- कार्बेट नेशनल पार्क वर्ष 1936 में स्थापित भारत का पहला राष्ट्रीय पार्क है।स्थापना के समय इसका नाम हैली नेशनल पार्क (Hailey National Park) था,जिसे वर्ष 1957 में बदलकर कॉर्बेट नेशनल पार्क कर दिया गया। महान प्रकृतिवादी और संरक्षणवादी स्वर्गीय जिम कॉर्बेट की याद में इसे यह नाम दिया गया।
यह पार्क कुल 521 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है।पार्क से बहने वाली प्रमुख नदियाँ रामगंगा, सोनानदी, मंडल और पलायन हैं।
काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान और कारबी अंगलांग पर्वत श्रृंखला क्षेत्रों (असम)से उत्पन्न होने वाली नदियों के जलग्रहण क्षेत्र में खनन गतिविधियों पर प्रतिबंध हाल हीं में सुप्रीम कोर्ट द्वारा लगा दिया गया है।इसमें बाघ अभयारण्य क्षेत्र के साथ चिह्नित किये गए नौ पशु गलियारों के दायरे में आने वाले किसी निजी भूखंड पर नए निर्माण की अनुमति नहीं होगी। असम के पुलिस महानिदेशक और संबंधित पुलिस अधीक्षकों को इस क्षेत्र में अवैध खनन को रोकने का निर्देश दिया गया है। उन्हें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि कारबी अंगलांग पर्वत श्रृंखला से अवैध खनन सामग्रियों का परिवहन न हो। बन्नेरघट्टा राष्ट्रीय उद्यान कर्नाटक के बंगलूरू में 1972 में स्थापित और 1974 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया। पर्यावरण और वन मंत्रालय के इको-सेंसिटिव ज़ोन (Eco-Sensitive Zone-ESZ) की विशेषज्ञ समिति की 33वीं बैठक में इसके कुछ क्षेत्रों को इको-सेंसिटिव ज़ोन घोषित किया गया। 5 नवंबर, 2018 के ड्राफ्ट नोटिफिकेशन के आधार पर इस पार्क के आस-पास के लगभग 168.84 वर्ग किमी. क्षेत्र को ESZ क्षेत्र घोषित किया गया। 2016 में जारी पहले ड्राफ्ट नोटिफिकेशन से 268.9 वर्ग किमी. का ESZ क्षेत्र चिह्नित किया गया था। नए ESZ संरक्षित क्षेत्र की परिधि 100 मीटर (बंगलुरु की ओर) से 1 किलोमीटर (रामनगरम ज़िले) तक होगी। ESZ कमेटी के अनुमान के अनुसार, बन्नेरघट्टा नेशनल पार्क में 150 से 200 के बीच हाथी देखे गए।
- इको-सेंसिटिव ज़ोन में होने वाली गतिविधियाँ 1986 के पर्यावरण (संरक्षण अधिनियम) के तहत विनियमित होती हैं और ऐसे क्षेत्रों में प्रदूषणकारी उद्योग लगाने या खनन करने की अनुमति नहीं होती है।
- सामान्य सिद्धांतों के अनुसार,इको-सेंसिटिव ज़ोन का विस्तार किसी संरक्षित क्षेत्र के आसपास 10 किमी. तक के दायरे में हो सकता है। लेकिन संवेदनशील गलियारे,कनेक्टिविटी और पारिस्थितिक रूप से महत्त्वपूर्ण खंडों एवं प्राकृतिक संयोजन के लिये महत्त्वपूर्ण क्षेत्र होने की स्थिति में 10 किमी. से भी अधिक क्षेत्र को इको-सेंसिटिव ज़ोन में शामिल किया जा सकता है।
- पेड़ गिराना, भूजल दोहन, होटल और रिसॉर्ट्स की स्थापना सहित प्राकृतिक जल संसाधनों का वाणिज्यिक उपयोग आदि को इन क्षेत्रों में नियंत्रित किया जाता है।
- 2002 में उद्यान के एक हिस्से को जैविक रिज़र्व बना दिया गया जिसे बन्नेरघट्टा जैविक उद्यान कहा जाता है।
- 2006 में देश का पहला तितली पार्क यहीं स्थापित किया गया।
- कर्नाटक का चिड़ियाघर प्राधिकरण, कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय, बंगलूरू और अशोक ट्रस्ट फॉर रिसर्च इन इकोलॉजी एंड एन्वायरमेन्ट (ATREE), बंगलूरू इसकी सहयोगी एजेंसियाँ हैं।
- ओरांग राष्ट्रीय उद्यान(या राजीव गांधी ओरांग राष्ट्रीय उद्यान)(W.S,N.P,T.R) असम के दर्रांग और सोनितपुर ज़िलों में ब्रह्मपुत्र नदी के उत्तरी तट पर 78.81 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में स्थित गैंडों का एकमात्र राष्ट्रीय उद्यान है।इसे 1985 में एक वन्यजीव अभयारण्य के रूप में स्थापित किया गया था, लेकिन 1999 में राष्ट्रीय उद्यान के रूप में तथा 2016 में देश का 49वाँ टाइगर रिजर्व घोषित किया गया। इसे काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान (IUCN साइट) का छोटा रूप भी माना जाता है क्योंकि दोनों पार्कों में एक समान परिदृश्य है जो दलदल,जलधाराओं और घास के मैदानों से बना है।
अरुणाचल प्रदेश में कामलांग टाइगर रिजर्व को 50वाँ नवीनतम टाइगर रिज़र्व घोषित किया गया है।
वन्यजीव अभयारण्य
सम्पादन- आंध्र प्रदेश के कोल्लेरू स्थित अटापका पक्षी अभयारण्य दो प्रवासी पक्षियों (ग्रे पेलीकल और सारस) का अकेला सुरक्षित प्रजनन स्थल बन गया है। पश्चिमी गोदावरी और कृष्णा ज़िलों की सीमा पर कोल्लेरू झील में अवस्थित इस पक्षी अभयारण्य को पक्षियों का स्वर्ग भी कहा जाता है।
कोल्लेरू झील (Kolleru Lake) देश की सबसे बड़ी ताजे़ पानी की झीलों में से एक है। यह कृष्णा और गोदावरी नदी के डेल्टा के मध्य स्थित है। यह झील दोनों नदियों के लिये प्राकृतिक बाढ़-संतुलन जलाशय का कार्य करती है। इसे वर्ष 1999 में भारत के वन्य जीवन संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत एक वन्यजीव अभयारण्य (wildlife sanctuary) के रूप में अधिसूचित किया गया था। यह एक रामसर स्थल है।
- कर्नाटक में कावेरी वन्यजीव अभयारण्य के पास बिजली की चपेट में आने से हाथियों की मृत्यु के कई मामले सामने आए हैं।
नवंबर 2019 में कर्नाटक वन विभाग ने पशुओं के लिये चारे की उपलब्धता बढ़ाने हेतु कावेरी वन्यजीव अभयारण्य सहित माले महादेश्वरा पहाड़ी वन्यजीव अभयारण्य और बिलिगिरी रंगास्वामी मंदिर वन्यजीव अभयारण्य में घास भूमि प्रबंधन कार्य शुरू किया था। कावेरी वन्यजीव अभयारण्य की स्थापना वर्ष 1987 में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1973 के तहत वन्यजीव और उसके पर्यावरण की रक्षा, प्रसार या विकास के उद्देश्य से की गई थी। इसमें कर्नाटक राज्य के मांड्या, रामनगर और चामराजनगर ज़िलों के आरक्षित वन शामिल हैं। लगभग 102 कि.मी. वर्ग क्षेत्र में फैला यह वन्यजीव अभयारण्य पूर्व व उत्तर की ओर से कावेरी नदी तथा पश्चिम व उत्तर- पूर्व की ओर से तमिलनाडु राज्य से घिरा है। इसका नामकरण कावेरी नदी के नाम पर ही हुआ है। यहाँ की वनस्पति में पर्णपाती,जलीय व स्क्रब वन पाए जाते हैं। यह अभयारण्य चित्तीदार हिरण, जंगली सूअर, चीता, तेंदुआ, हाथी, सांभर, मालाबर की विशाल गिलहरी, चार सींगों वाले मृग आदि का निवास स्थान है।
- कावेरी वन्यजीव अभयारण्य संकटापन्न महासिर मछली के लिये प्रसिद्ध है ।
माले महादेश्वरा पहाड़ियाँ/ एमएम हिल्स:-कर्नाटक के चामराजनगर ज़िले में स्थित एमएम हिल्स का एक छोर बन्नेरघट्टा राष्ट्रीय उद्यान से भी जुड़ा है इसके अलावा तमिलनाडु का सत्यमंगलम टाइगर रिज़र्व भी इसके साथ अपनी सीमा बनाता है। लगभग 907 वर्ग किलोमीटर में फैला यह अभयारण्य 13 बाघों का निवास स्थान है। माले महादेश्वरा पहाडि़यों के जंगलों में चंदन की लकड़ी और बाँस के वृक्ष बहुतायत में पाए जाते हैं। बिलिगिरी रंगास्वामी मंदिर वन्यजीव अभयारण्य/ बीआरटी हिल्स पश्चिमी घाट की पूर्वी सीमा पर लगभग 539 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में स्थित एक पर्वतीय शृंखला है। यह कर्नाटक की दक्षिण पूर्वी सीमा पर स्थित है जो तमिलनाडु के इरोड ज़िले में स्थित सत्यमंगलम वन्यजीव अभयारण्य के साथ अपनी सीमा साझा करती हैं। यहाँ शुष्क और पर्णपाती वनस्पतियों से लेकर सदाबहार वनस्पतियों समेत कई किस्में पाई जाती हैं।
- एक बाघ ने टिपेश्वर बाघ अभयारण्य से चलकर महाराष्ट्र और तेलंगाना होते हुए ज्ञानगंगा वन्यजीव अभयारण्य तक लगभग 1,300 किलोमीटर की दूरी तय की।
ज्ञानगंगा वन्यजीव अभयारण्य महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले में स्थित है तथा मेलघाट बाघ अभयारण्य का एक ही एक हिस्सा है। यह ज्ञानगंगा नदी के पास स्थित है जो कि ताप्ती की एक सहायक नदी है। यह अभयारण्य तेंदुए,स्लॉथ बीयर (Sloth Bear),भौंकने वाला हिरण (Barking Deer),नीलगाय,चित्तीदार हिरण,लकड़बग्घा,जंगली बिल्लियाँ और सियार आदि का आवास स्थल है।
- टिपेश्वर बाघ अभ्यारण्य महाराष्ट्र के यवतमाल ज़िले में स्थित है।
पूर्णा,कृष्णा,भीमा और ताप्ती नदियाँ इस अभयारण्य से होकर बहती हैं। यहाँ जल की पर्याप्त मात्रा उपलब्ध होने के कारण इसे महाराष्ट्र का ग्रीन ओएसिस (Green Oasis) भी कहा जाता है।
- अगस्त 2019 में वन विभाग ने कृष्णा वन्यजीव अभयारण्य (Krishna Wildlife Sanctuary-KWS) में शामिल करने के लिये लगभग 300 हेक्टेयर भूमि की पहचान की है।
KWS को मिलने वाले इस नए क्षेत्र को रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन द्वारा ली गई भूमि के मुआवज़े के रूप में देखा जा रहा है। चिह्नित गई भूमि को कृष्णा वन्यजीव अभयारण्य में शामिल करने की सिफारिश राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (National Board for Wildlife-NBWL) द्वारा की गई थी। कृष्णा वन्यजीव अभयारण्य आंध्र प्रदेश (भारत) में स्थित है। यह अभयारण्य आंध्र प्रदेश में मैंग्रोव वेटलैंड का एक हिस्सा है और कृष्णा डेल्टा के तटीय मैदान में स्थित है तथा आंध्र प्रदेश के कृष्णा और गुंटूर जिलों में फैला हुआ है। कृष्णा नदी का मुहाना कृष्णा वन्यजीव अभयारण्य से होकर गुजरता है। यह माना जाता है कि इस क्षेत्र में संभवतः मछली पकड़ने वाली बिल्लियों (Fishing Cats) की सबसे ज़्यादा आबादी है। मछली पकड़ने वाली बिल्लियाँ मछली पकड़ने वाली बिल्लियाँ दक्षिण और दक्षिण पूर्व-एशिया की एक मध्यम आकार की जंगली बिल्ली होती है। इसका वैज्ञानिक नाम प्रियनैलुरस विवरिनस (Prionailurus Viverrinus) है। इनकी संख्या में पिछले एक दशक में काफी ज़्यादा गिरावट देखने को मिली है। इसे IUCN की रेड लिस्ट में लुप्त हो चुके जानवर के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। भारत में इन बिल्लियों को भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची I में शामिल किया गया है, जिसके कारण भारत में इनके शिकार पर रोक है। राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड वैधानिक बोर्ड है जिसका गठन वर्ष 2003 में वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत आधिकारिक तौर पर किया गया था। NBWL की अध्यक्षता प्रधानमंत्री द्वारा की जाती है। यह एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण निकाय है क्योंकि यह वन्यजीव संबंधी सभी मामलों की समीक्षा करने और राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों में तथा आस-पास की परियोजनाओं को स्वीकृति देने के लिये सर्वोच्च निकाय के रूप में कार्य करता है। वर्तमान में राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की संरचना के तहत इसमें 15 अनिवार्य सदस्य और तीन गैर-सरकारी सदस्यों की नियुक्ति का प्रावधान है।
- रंगनाथिट्टू पक्षी अभयारण्य कर्नाटक स्थित यह अभयारण्य खुद को मानसून के अनुरूप तैयार कर रहा है। पिछले दिनों आई बाढ़ ने केरल तथा कर्नाटक के कई बड़े हिस्सों को नष्ट कर दिया था जिसमें यहाँ उपस्थित सैकड़ों घोंसले एवं द्वीप भी नष्ट हो गए थे।
पिछले वर्ष कृष्णा राजा सागर बांध का अतिरिक्त पानी छोड़ दिये जाने के परिणामस्वरूप इस अभयारण्य में कई ऐसे द्वीप जलमग्न हो गए थे जहाँ पक्षी अपना बसेरा एवं घोंसला बनाते थे।
- असोला भाटी वन्यजीव अभयारण्य (Asola-Bhatti Wildlife Sanctuary) के आस-पास के 1 किमी. क्षेत्र को MoEF ने पर्यावरण संवेदी क्षेत्र/इको सेंसिटिव ज़ोन (Eco-sensitive zone-ESZ) घोषित किया है। यह गुरुग्राम और फरीदाबाद में स्थित है।
इको सेंसिटिव ज़ोन घोषित किये जाने के बाद इन क्षेत्रों में वाणिज्यिक खनन, उद्योगों की स्थापना और प्रमुख जलविद्युत परियोजनाओं की स्थापना जैसी गतिविधियाँ प्रतिबंधित हो जाएंगी।
- फकीम वन्यजीव अभयारण्य नगालैंड स्थित इस अभयारण्य के एक फॉरेस्ट गार्ड,अलेम्बा यमचुंगर (Alemba Yimchunger) को अभयारण्य और उसके आसपास के जंगलों तथा जंगली जानवरों के संरक्षण हेतु ‘अर्थ डे नेटवर्क स्टार’से सम्मानित किया गया है।
- यह अभयारण्य म्यांमार सीमा के बहुत करीब पुंग्रो(pungro) सर्कल मुख्यालय में स्थित है।इस क्षेत्र में तेजपत्ता और दलचीनी के पेड़ भी देखने को मिलेंगे।
- इस अभयारण्य से निकटतम रेलवे स्टेशन दीमापुर, नागालैंड में स्थित है। NH 39 कोहिमा को गुवाहाटी (असम) से जोड़ता है।[१]
- यह सम्मान अमेरिका के अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण संगठन द्वारा दिया गया है जो दुनिया के 195 देशों के ग्रीन ग्रुप को एक साथ जोड़ता है। फकीम वन्यजीव अभयारण्य नगालैंड के कैफाइर ज़िले में स्थित है जो 642 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ है।
- बांदीपुर टाइगर रिज़र्वराष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण द्वारा जारी बाघ अभयारण्यों के आर्थिक मूल्यांकन के अनुसार,इस पर किया जाने वाला मौद्रिक मूल्य 6,405.7 करोड़ रुपए प्रतिवर्ष है।
- इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेस्ट मैनेजमेंट में सेंटर फॉर इकोलॉजिकल सर्विसेज मैनेजमेंट द्वारा यह आर्थिक मूल्यांकन किया गया।
- इस लाभ के तहत पार्क में जल संरक्षण, संरक्षण एवं प्रावधान के लिये राज्य द्वारा बचाई गई लागत, जलवायु विनियमन आदि की लागत का लगभग 700% से अधिक रिटर्न प्राप्त हुआ।
- रातापानी वन्यजीव अभयारण्यमध्य प्रदेश सरकार द्वारा इसे बाघ के लिये आरक्षित घोषित करने का निर्णय लिया गया है।
इसी अभयारण्य के लिये राज्य को 11 साल पहले राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (National Tiger Conservation Authority- NTCA) हेतु अनुमोदन प्राप्त हुआ था। यह अभयारण्य मध्य प्रदेश के भोपाल-रायसेन वन प्रभाग में 890 वर्ग किमी. के क्षेत्रफल में फैला है। अभयारण्य में बाघों की संख्या लगभग लगभग 40 है साथ ही भोपाल के वन क्षेत्र में 12 बाघों की आवाजाही भी देखी गई है। अतः बाघ अभयारण्य घोषित करने के लिये पूरे क्षेत्र को संयुक्त रूप में जोड़ा जाएगा। रायसेन, सीहोर तथा भोपाल ज़िलों का लगभग 3,500 वर्ग किमी का क्षेत्र बाघों के लिये आरक्षित किया गया है। 1,500 वर्ग किमी. क्षेत्र को कोर क्षेत्र के रूप में जबकि 2,000 वर्ग किमी को बफर ज़ोन के रूप में नामित किया जाएगा। इस क्षेत्र को बाघ अभयारण्य के रूप में घोषित किये जाने से अवैध खनन और अवैध शिकार की समस्या का सामना कर रहे बाघों को बेहतर संरक्षण प्राप्त होगा।
- कोरिंगा वन्यजीव अभयारण्य आंध्रप्रदेश के काकीनाडा के समीप स्थित है।
यह भारत में पश्चिम बंगाल के सुंदरवन डेल्टा के बाद देश का दूसरा सबसे बड़ा मैंग्रोव वन क्षेत्र है। यहाँ पक्षियों की 120 से अधिक प्रजातियाँ पाई जाती हैं।कुल क्षेत्रफल 235. 70 वर्ग किमी. है।
- मंजीरा वन्यजीव अभयारण्य तेलंगाना के मेडक ज़िलेमें स्थित मूल रूप से एक मगरमच्छ अभयारण्य है। किंतु पक्षियों की 70 से अधिक प्रजातियाँ यहाँ देखी जा सकती हैं।यह अभयारण्य सुभेद्य मगरमच्छ (Mugger Crocodile) का आवास है।
मगरमच्छ सबसे अधिक ताज़े जल के वातावरण जैसे-नदियों,झीलों,पहाड़ी नदियों और गाँव के तालाबों में पाए जाते हैं। ये ताज़े पानी और तटीय खारे पानी के लैगून में भी पाए जा सकते हैं। यह मगरमच्छ मानव निर्मित जलाशयों में भी रह सकता है तथा मौसम के अनुरूप पलायन नहीं करता है,बरसात और शुष्क दोनों मौसमों में एक ही स्थान पर रहता है।
- नंधौर वन्यजीव अभयारण्य-उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र में नंधौर नदी के पास स्थित है।जो 269.5 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैला हुआ है।
इसमें बाघों की बढ़ती संख्या के मद्देनज़र अधिकारियों ने इसे टाइगर रिज़र्व घोषित करने की मांग की है। 2012 में इस अभयारण्य के अस्तित्व में आने के समय यहाँ बाघों की संख्या केवल नौ थी जो 2018 में बढकर 27 हो गई। और इस साल इसके 32 के आँकड़े के पार कर जाने की संभावना है। टाइगर रिज़र्व का दर्ज़ा देने से इसे सरकार(केंद्र सरकार से) और राष्ट्रीय स्तर के जंतु वैज्ञानिकों की विशेषज्ञता हासिल हो सकेगी। भारत सरकार ने 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर के माध्यम से राष्ट्रीय पशु बाघ के संरक्षण हेतु एक अग्रणी पहल शुरू की थी। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (National Tiger Conservation Authority-NTCA) पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत एक सांविधिक/वैधानिक संस्था है, जो वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 में प्रदत्त कार्यों को करने के साथ-साथ अति-पर्यवेक्षणीय/समन्वय की भूमिका भी निभाती है।
- अमचंग वन्यजीव अभयारण्यअसम के गुवाहाटी में लगभग 78 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है।
जून 2004 में असम सरकार ने इसे वन्यजीव अभयारण्य घोषित किया। इसकी सीमा से लगी नरेंगी छावनी (गुवाहाटी) से हाथियों को दूर रखने के लिये सेना ने ज़मीन पर लोहे की मज़बूत कीलें लगाई थीं जिन्हें अब हटाना शुरू कर दिया गया है।कीलों की वज़ह से हाथियों को गंभीर चोटों का सामना करना पड़ रहा था, जो आगे चलकर सेप्टिसीमिया (Septicemia) में तब्दील हो जा रही थीं।यह में हाथियों की मौत की वजह बन रही थी। सेप्टिसीमिया रक्त प्रवाह का गंभीर संक्रमण है जिसे रक्त विषाक्तता के रूप में भी जाना जाता है।
- सोमेश्वरा वन्यजीव अभयारण्य कर्नाटक के उडुपी ज़िले में 88.4 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है।
वर्ष 1974 में वन्यजीव अभयारण्य घोषित इस अभयारण्य के दो अलग-अलग भाग हैं और छोटा भाग,मुख्य भाग के दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। कुद्रेमुख राष्ट्रीय उद्यान इस अभयारण्य के दक्षिण-पूर्व में स्थित है।
कुद्रेमुख राष्ट्रीय उद्यान |
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इसे वर्ष 1987 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया,इसका क्षेत्रफल 600 वर्ग किलोमीटर है।
मोंटेन घास के मैदान और उष्णकटिबंधीय वर्षावनों की प्रचुरता से परिपूर्ण यह राष्ट्रीय उद्यान पश्चिमी घाट के भीतर सबसे बड़ा संरक्षित ब्लॉक है। गौरतलब है कि कुद्रेमुख,कर्नाटक के चिक्कमगलुरु में स्थित एक पर्वत श्रृंखला और एक चोटी का नाम है। कुद्रेमुख कर्नाटक में मुल्लायनगिरि और बाबा बुदानगिरि के बाद तीसरी सबसे ऊँची चोटी है। |
द्वीप,आद्रभूमि तथा झील (Wetland and lake)
सम्पादन- राजस्थान की सांभर झील में लगभग 8 हज़ार पक्षियों की मौत हो गई। इन पक्षियों में बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षी शामिल हैं। पक्षियों की मृत्यु बॉटुलिज़्म (Botulism) नामक बीमारी से हुई है, यह बीमारी जीवों के तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करती है। रिपोर्ट के अनुसार, यह संक्रमण पक्षियों में संक्रमित कीड़ों को खाने के कारण फैला।
प्रारंभ में इन मौतों का कारण बर्ड फ्लू को माना गया, लेकिन भोपाल में स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाई सिक्योरिटी एनिमल डिज़ीज (National Institute of High Security Animal Diseases -NIHSAD) ने परीक्षण के बाद बर्ड फ्लू के अनुमान को खारिज कर दिया है।
- बॉटुलिज़्म पोल्ट्री में मृत्यु के सबसे आम कारणों में से एक है। यह संक्रमण क्लोस्ट्रीडियम बोटुलिनम (Clostridium Botulinum ) बैक्टीरिया द्वारा फैलता है।
इस संक्रमण से प्रभावित पक्षी आमतौर पर खड़े होने, ज़मीन पर चलने में असमर्थ हो जाते हैं, यह बीमारी पक्षियों के तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करती है। बॉटुलिज़्म का कोई विशिष्ट इलाज नहीं उपलब्ध है, इससे प्रभावित अधिकांश पक्षियों की मौत हो जाती है।
- सांभर झील राजस्थान राज्य में जयपुर के समीप स्थित है। यह देश की सबसे बडी खारे पानी की झील और नमक का बड़ा स्रोत है।
ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार सांभर शहर की स्थापना 551 ईसवी में चौहान वंश के राजा वासुदेव द्वारा की गई। इस पर सिंधियों, मराठों और मुगलों ने शासन किया, वर्ष 1709 में राजपूतों ने इसे पुनः प्राप्त किया। सांभर झील एक विश्व विख्यात रामसर साइट है। यहाँ नवम्बर से फरवरी के महीनों में उत्तरी एशिया और साइबेरिया से हज़ारों की संख्या में फ्लेमिंगो और अन्य प्रवासी पक्षी आते हैं। यहाँ अन्य दर्शनीय स्थलों में शाकम्भरी माता मंदिर , सरमिष्ठा सरोवर, भैराना, दादू द्वारा मंदिर, और देवयानी कुंड हैं।
- 9 सितंबर को केंद्रीय पर्यावरण,वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने प्राथमिक रूप से 130 आर्द्रभूमियों को अगले 5 सालों में पुनर्स्थापित करने का निर्णय लिया है। मंत्रालय ने 15 अक्तूबर तक सभी राज्यों से ‘एकीकृत प्रबंधन योजना (Integrated Management Plan)’ को प्रस्तुत करने के लिये कहा है।
इस योजना के तहत कई मापदंडों के आधार पर ‘आर्द्रभूमि स्वास्थ्य कार्ड’ (Wetland Health Card) जारी किया जाएगा। इस कार्ड की सहायता से आर्द्रभूमियों के पारिस्थितिकी तंत्र की निगरानी की जा सकेगी। मंत्रालय उपरोक्त चिन्ह्र्त आर्द्रभूमियों की देखभाल के लिये समुदाय की भागीदारी को बढ़ाते हुए ‘आर्द्रभूमि मित्र समूह’ (Wetland Mitras) का गठन करेगा। यह समूह स्व-प्रेरित व्यक्तियों का समूह होगा। वर्ष 2011 में देश की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो (ISRO) ने उपग्रह से प्राप्त चित्रों के आधार पर एक ‘राष्ट्रीय वेटलैंड्स एटलस’ (National Wetland’s Atlas) तैयार किया था]। इस एटलस में भारत के दो लाख वेटलैंड्स की मैपिंग की गई है जो कि देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र के लगभग 4.63% हिस्से को कवर करता हैं।
- चंडीगढ़ प्रशासन ने आर्द्रभूमि (संरक्षण और प्रबंधन) नियम, 2017 के तहत सुखना झील को आर्द्रभूमि घोषित करने के लिये एक मसौदा अधिसूचना जारी की है। सुखना झील चंडीगढ़ में हिमालय की तलहटी (शिवालिक पहाड़ियों) में अवस्थित एक जलाशय है।
यह एक मानव-निर्मित झील है,जिसे चंडीगढ़ शहर के मुख्य वास्तुकार ले कोर्बुसीयर (Le Corbusier) द्वारा मुख्य अभियंता पी एल वर्मा के सहयोग से बनाया था। वर्ष 1958 में शिवालिक पहाड़ियों से बहकर नीचे आने वाली एक मौसमी धारा ‘सुखना चो’ के पानी को रोककर किया गया था। इन आर्द्रभूमियों की देखभाल ‘जलीय पारितंत्र के संरक्षण हेतु राष्ट्रीय कार्ययोजना’ (National Plan for Conservation of Aquatic Ecosystems-NPCA) के अंतर्गत एक समग्र योजना द्वारा की जाएगी। NPCA का उद्देश्य झीलों एवं आर्द्रभूमियों का संरक्षण तथा इनकी पुनर्स्थापना करना है। इन चिह्नित आर्द्रभूमियों की सर्वाधिक संख्या उत्तर प्रदेश (16) में है। इसके बाद आर्द्रभूमियों की सर्वाधिक संख्या मध्य प्रदेश (13), जम्मू और कश्मीर (12), गुजरात (8), कर्नाटक (7) और पश्चिम बंगाल (6) में है।
- गोगाबील झील को बिहार का पहला सामुदायिक रिज़र्व घोषित किया गया है,जो बिहार का 15वाँ संरक्षित क्षेत्र भी है।
गोगाबील बिहार के कटिहार ज़िलें में स्थित है जिसके उत्तर में महानंदा और कनखर तथा दक्षिण एवं पूर्व में गंगा नदी है। बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के इंडियन बर्ड कंज़र्वेशन नेटवर्क द्वारा गोगाबील को वर्ष 1990 में एक बंद क्षेत्र के रूप में अधिसूचित किया गया था। इस बंद क्षेत्र (Closed Area) की स्थिति को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 2000 के तहत संरक्षित क्षेत्र में बदल दिया गया। इंडियन बर्ड कंज़र्वेशन नेटवर्क द्वारा वर्ष 2004 में गोगाबील को बाघार बील और बलदिया चौर सहित भारत का महत्त्वपूर्ण पक्षी क्षेत्र घोषित किया गया था।
- राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने असम सरकार को दीपोर बील (गुवाहाटी के पश्चिमी किनारे पर एक प्रमुख आर्द्रभूमि) के आस-पास के क्षेत्र को पर्यावरण-संवेदी क्षेत्र या इको-सेंसिटिव ज़ोन घोषित करने का निर्देश दिया है। साथ हीं सरकार को आर्द्र्भूमि पर मौजूदा अतिक्रमण को हटाने और भविष्य में किसी भी अतिक्रमण को रोकने के लिये कदम उठाने और दीपोर बील (Deepor Beel) के पारितंत्र में स्थित नगरपालिका ठोस अपशिष्ट डंपिंग ग्राउंड का प्रबंधन करने का निर्देश भी दिया।
- दीपोर बील एक 'महत्त्वपूर्ण पक्षी क्षेत्र' और एक रामसर साइट है, जिसके निकट एक आरक्षित वन भी है।
दीपोर बील ताज़े पानी की एक झील है तथा अतिक्रमण के कारण लंबे समय से इसके क्षेत्र में कमी हो रही है। कभी 4,000 हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैला यह क्षेत्र अब घटकर 500 हेक्टेयर में सिमट गया है। वर्ष 2018 में राष्ट्र स्तरीय विश्व आर्द्रभूमि का आयोजन दीपोर बील में ही किया गया था। इको-सेंसिटिव ज़ोन में होने वाली गतिविधियाँ 1986 के पर्यावरण (संरक्षण अधिनियम) के तहत विनियमित होती हैं। EEZ क्षेत्र का विस्तार किसी संरक्षित क्षेत्र के आस-पास 10 किमी. तक के दायरे में हो सकता है। लेकिन संवेदनशील गलियारे, कनेक्टिविटी और पारिस्थितिक रूप से महत्त्वपूर्ण खंडों एवं प्राकृतिक संयोजन के लिये महत्त्वपूर्ण क्षेत्र होने की स्थिति में 10 किमी. से भी अधिक क्षेत्र को इको-सेंसिटिव ज़ोन में शामिल किया जा सकता है।
- श्रीनगर स्थित डल झील [कश्मीरी भाषा में ‘डल’ का अर्थ- ‘झील’ होता है] को"कश्मीर का मुकुट" या "श्रीनगर का गहना" भी कहा जाता है। यह वूलर झील(भारत की भी सबसे बड़ी झील) के पश्चात जम्मू-कश्मीर की दूसरी सबसे बड़ी झील है। 18 किलोमीटर क्षेत्र में फैली हुई यह झील तीन दिशाओं से शंकराचार्य पहाड़ियों से घिरी हुई है। यह प्राकृतिक आर्द्रभूमि का हिस्सा है जिसमें तैरते बगीचे [कश्मीरी भाषा में "राड" (Raad)] भी शामिल है। इसमें जुलाई और अगस्त के दौरान कमल के फूल खिलते हैं। आद्रभूमि को चार बेसिनों में विभाजित किया जाता है;गगरीबल,लोकुट डल,बोड डल तथा नागिन।
- लोकुट डल और बोड डल,दोनों के केंद्र में द्वीप स्थित हैं, जिन्हें क्रमशः ‘रूप लंक’ (या चार चिनारी) और ‘सोना लंक’ के रूप में जाना जाता है। डल झील के प्रमुख आकर्षक हाउसबोट (शिकारे) हैं जो श्रीनगर में पर्यटकों को आवास भी प्रदान करते हैं।
- मेघालय स्थित लिविंग रूट ब्रिज़ (Living Root Bridges) को शहरी संदर्भ में भविष्य में वानस्पतिक वास्तुकला के संदर्भ के रूप में माना जा सकता है। [साइंटिफिक रिपोर्ट पत्रिका के अनुसार]
इन ब्रिज़ को ज़िंग कीेंग ज़्रि (Jing Kieng Jri) भी कहा जाता है। इनका निर्माण पारंपरिक जनजातीय ज्ञान का प्रयोग करके रबर के वृक्षों की जड़ों को जोड़-तोड़ कर किया जाता है। सामान्यतः इन्हें धाराओं या नदियों को पार करने के लिये बनाया जाता है। ये लोचदार होते हैं। इन्हें आसानी से जोड़ा जा सकता है। ये पौधे उबड़-खाबड़ और पथरीली मिट्टी में उगते हैं। मुख्यतः मेघालय की खासी ओर जयंतिया पहाड़ियों में सदियों से फैले 15 से 250 फुट के ये ब्रिज़ विश्व प्रसिद्ध पर्यटन का आकर्षण भी बन गए हैं। लोकप्रिय पर्यटन स्थल: इनमें सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थल हैं-
- रिवाई रूट ब्रिज (Riwai Root Bridge)
- उम्शिआंग डबल डेकर ब्रिज (Umshiang Double Decker Bridge)।
- पावूर उलिया (Pavoor-Uliya) कर्नाटक के मैंगलोर में नेथरावती नदी के बीच में अवस्थित एक द्वीप है।
नेथरावती नदी का उद्गम कर्नाटक के चिक्कमगलुरु (Chikkamagaluru) से होता है। अरब सागर में गिरने से पहले यह नदी उप्पनंगडी में कुमारधारा नदी से मिल जाती है। नेथरावती नदी बंतवाल और मैंगलोर में जल का मुख्य स्रोत है।
- भारतीय नौसेना द्वारा कोच्चि स्थित विलिंग्डन द्वीप (Willingdon Island) पर फिट इंडिया और गो ग्रीननामक दो पहलों का आयोजन किया गया।
विलिंग्डन द्वीप भारत का सबसे बड़ा कृत्रिम द्वीप है। यह द्वीप केरल में अवस्थित वेम्बनाद झील का ही एक हिस्सा है। विलिंग्डन द्वीप कोच्चि बंदरगाह के साथ-साथ भारतीय नौसेना की कोच्चि नौसेना बेस के लिये भी महत्त्वपूर्ण है।
- लद्दाख स्थित पैंगोंग त्सो झील (Pangong Tso Lake) के समीप भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच तनाव की स्थिति देखने को मिली।
इसका जल खारा होने के कारण इसमें मछली या अन्य कोई जलीय जीवन नहीं है। परंतु यह कई प्रवासी पक्षियों के लिये एक महत्त्वपूर्ण प्रजनन स्थल है। इस झील का 45 किलोमीटर क्षेत्र भारत में स्थित है, जबकि 90 किलोमीटर क्षेत्र चीन में पड़ता है। वास्तविक नियंत्रण रेखा इस झील के मध्य से गुज़रती है।
- वैज्ञानिकों ने इसमें विदेशी मछलियों की प्रजातियों की मौज़ूदगी को लेकर चिंता जताई है,क्योंकि ऐसा कयास लगाया जा रहा है कि मूल प्रजातियों की तुलना में उनकी संख्या बढ़ जाएगी।
कोले वेटलैंड केरल के त्रिसूर ज़िले में स्थित है।[२] पक्षियों की संख्या के मामले में त्रिसूर कोले वेटलैंड ओडिशा के चिल्का झील और गुजरात के अमीपुर टैंक (Amipur Tank) के बाद भारत का तीसरा सबसे बड़ा वेटलैंड है। कोले भूमि अनूठे वेम्बनाड-कोले वेटलैंड पारिस्थितिकी तंत्र (Vembanad-Kole wetland ecosystem) का हिस्सा है जिसे 2002 में रामसर साइट के रूप में शामिल किया गया था।
- ओडिशा वेटलैंड प्राधिकरण ने देश की सबसे बड़ी खारे पानी की लैगून चिल्का तथा राज्य की सबसे बड़ी मीठे पानी की झील अंसुपा (Ansupa) के लिये एक एकीकृत प्रबंधन योजना के कार्यान्वयन को मंज़ूरी दी है।
पाँच साल के लिये लाई जा रही इस प्रबंधन योजना का उद्देश्य इन दो जल निकायों पर निर्भर हज़ारों मछुआरों की आजीविका को मज़बूत प्रदान। इसके तहत पर्यटन को बढ़ावा देने एवं पारिस्थितिकी के संरक्षण में भी सहयोग प्राप्त होगा।
- ओडिशा की चिल्का झील एशिया की सबसे बड़ी एवं विश्व की दूसरी सबसे बड़ी समुद्री झील है।
यह एक अनूप झील है, अर्थात् यह समुद्र का ही एक भाग है जो महानदी द्वारा निक्षेपित गाद के जमाव के कारण समुद्र से छिटक कर एक छिछली झील के रूप में विकसित हो गई है। यह खारे पानी की एक लैगून है, जो भारत के पूर्वी तट पर ओडिशा राज्य के पुरी, खुर्दा और गंजम ज़िलों में विस्तारित है। यह भारत की सबसे बड़ी तटीय लैगून है।
- यह वर्ष 1981 में रामसर अभिसमय के तहत अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की 'आर्द्रभूमि' के रूप में नामित पहली भारतीय आर्द्रभूमि है।
अंसुपा झील लगभग 2 वर्ग किमी. में फैली है। सर्दियों के मौसम में लगभग 32 प्रवासी प्रजातियाँ यहाँ आती हैं। इसकी शांति,सुंदरता और वन कवरेज आगंतुकों को आकर्षित करती हैं। झील के आसपास के दो गाँवों के लगभग 250 मछुआरों को यहाँ पर किये जाने वाले निवेश से लाभ होगा। अंसुपा अपनी मीठे पानी की मछली के लिये भी प्रसिद्ध है।
- ग्रेटर नोएडा स्थित धनौरी (Dhanauri) को रामसर कन्वेंशन के तहत अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की आर्द्रभूमि के रूप में प्रस्तावित करने के लिये पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने उत्तर प्रदेश के वन विभाग से कहा है।
धनौरी सुभेद्य श्रेणी में आने वाले सारस क्रेन (Sarus Cranes) की एक बड़ी आबादी को आवास प्रदान करता है। यह आर्द्र्भूमि, रामसर स्थल/साइट घोषित किये जाने के लिये आवश्यक नौ मानदंडों में से दो को पूरा करता है, ये दोनों मानदंड हैं:-
- यहाँ पाए जाने वाले सारस क्रेन की जैव-भौगोलिक आबादी 1% से अधिक है।
- इस क्षेत्र में 20,000 से अधिक जलपक्षी और अन्य प्रकार की प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
- पुदुचेरी के औसुडू झील (Oussudu Lake) का सुभेद्यता आकलन अध्ययन किया गया। अध्ययन में इस जल निकाय में बढ़ते प्लास्टिक प्रदूषण पर चिंता जताई गई है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि नहरें प्लास्टिक की थैलियों, थर्माकोल, कप, प्लेट, पाइप और बोतल जैसे कचरे का डंपिंग ग्राउंड बन गई हैं। औसुडू झील को ऑस्टर झील (Ousteri Lake) भी कहा जाता है जो पुडुचेरी से लगभग 10 किमी. दूर स्थित एक मानव निर्मित झील है। इसे अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (International Union for Conservation of Nature-IUCN) द्वारा एशिया के महत्त्वपूर्ण वेटलैंड/आर्द्र्भूमि (Wetlands) में से एक के रूप में मान्यता दी गई है। इस झील में जल, आर्द्रभूमि और कीचड़ युक्त भूमि तीनों हैं। यह झील पुदुचेरी में ताज़े जल के सबसे बड़े जलग्रह (Catchment) के रूप में कार्य करती है। गर्मियों और सर्दियों के दौरान इस झील की वनस्पति (छोटी जड़ी-बूटियों से लेकर वृक्षों तक) प्रवासी पक्षियों (Migratory Avifauna) के साथ-साथ देशी पक्षियों को भी उपयुक्त वातावरण प्रदान करती है।
- पल्लीकरनई आर्द्रभूमि तमिलनाडु राज्य के चेन्नई शहर में एक ताज़े पानी का दलदल है जो 80 वर्ग किमी. क्षेत्र में विस्तारित है। यह शहर का एकमात्र जीवित आर्द्रभूमि पारिस्थितिकी तंत्र है और दक्षिण भारत की अंतिम कुछ प्राकृतिक आर्द्रभूमियों में से एक है।
यह रसेल वाइपर जैसे सरीसृपों का घर भी है और चमकदार आइबिस (Ibis), ग्रे-हेडेड लैपविंग्स (Grey-headed lapwings) और तीतर-पूंछ वाले जेकाना (Pheasant-tailed jacana) जैसे पक्षी भी यहाँ मिलते हैं। 50 वर्षों में हमने विकास और शहर के विस्तार के कारण 5,000 हेक्टेयर में फैले, पारिस्थितिकी तंत्र का 90% हिस्सा खो दिया है। वर्ष 2007 में शेष आर्द्रभूमि को और सिकुड़ने से बचाने के प्रयास के रूप में इस क्षेत्र में अविकसित क्षेत्रों को आरक्षित वन के रूप में अधिसूचित किया गया था। मार्च 2018 में राज्य सरकार ने घोषणा की कि वह आर्द्रभूमि की पर्यावरण-बहाली का कार्य शुरू करेगी।
- काकीनाडा होप आइलैंड का विकास, कोनसीमा (आंध्र प्रदेश) नामक परियोजना को वर्ल्ड क्लास कोस्टल एंड इको टूरिज्म सर्किट नाम दिया गया है। इसे स्वदेश दर्शन योजना के तहत स्वीकृत किया गया था।
- यह आंध्र प्रदेश के पूर्व गोदावरी ज़िले में रेत से निर्मित लगभग 200 साल पहले बना टैडपोल के आकार का एक द्वीप है। यह कोरिंगा वन्यजीव अभयारण्य और श्री कुक्कुटेश्वर स्वामी मंदिर से लगभग 10 किमी. की दूरी पर स्थित है।
- केंद्रीय समुद्री मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान (Central Marine Fisheries Research Institute- CMFRI) और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने तटीय आर्द्रभूमि को संरक्षित करने के लिये एक समझौते पर हस्ताक्षर किया है। दोनों संस्थान एक मोबाइल एप और एक केंद्रीकृत वेब पोर्टल विकसित करेंगे, जिसका उपयोग आर्द्रभूमि की वास्तविक समय में निगरानी और हितधारकों तथा तटीय क्षेत्र के लोगों को सलाह देने के लिये किया जाएगा। इस एप में देश भर के 2.25 हेक्टेयर से छोटी आर्द्रभूमियों का एक व्यापक डेटाबेस होगा, इस तरह की छोटी आर्द्रभूमियाँ देश भर में पाँच लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र को कवर करती हैं। सिर्फ केरल में ही 2,592 छोटी आर्द्रभूमियाँ हैं।
यह कदम CMFRI की परियोजना ‘जलवायु अनुकूल कृषि में राष्ट्रीय नवाचार’ (National Innovations in Climate Resilient Agriculture) द्वारा विकसित ‘मत्स्य पालन और आर्द्रभूमि के लिये राष्ट्रीय ढाँचा‘ (National Framework for Fisheries and Wetlands) के अंतर्गत उठाया गया है। इस परियोजना का उद्देश्य समुद्री मत्स्य पालन और तटीय क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करना है।
- केंद्रीय समुद्री मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान, भारत सरकार द्वारा 3 फरवरी, 1947 को कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के तहत स्थापित किया गया था। यह 1967 में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) में शामिल हो गया। यह दुनिया में एक प्रमुख उष्णकटिबंधीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान है। इसका मुख्यालय कोच्चि, केरल में है।
वन्यजीव संरक्षण के भारत सरकार के उपाय
सम्पादनबायो-फेंसिंग(Bio- Fencing)-उत्तराखंड की सरकार ने वनों के निकटवर्ती क्षेत्रों में जंगली जानवरों के प्रवेश को रोकने हेतु इसके प्रयोग का फैसला किया है।बायो-फेंसिंग पौधों या झाड़ियों की पतली या संकरी पट्टीदार लाइन होती है जो जंगली जानवरों के साथ-साथ हवा के तेज़ झोंकों और धूल आदि से भी रक्षा करती है। ग्रामीण क्षेत्रों में इसका प्रयोग प्राचीन समय से ही किया जाता रहा है क्योंकि यह लकड़ी, पत्थर और तारों की फेंसिंग से सस्ती और ज़्यादा उपयोगी है।
- बायो फेंसिंग के उद्देश्य
- मानव और पशुओं के मध्य संघर्ष को कम करना
- जंगली जानवरों को आवासीय क्षेत्रों (Residential Areas) में प्रवेश करने से रोकना
- वनों से सटे क्षेत्रों में फसलों और पशुधन की रक्षा करना
अब तक राज्य वन विभाग आवासीय क्षेत्रों में जंगली जानवरों के प्रवेश को रोकने के लिये जंगल में सौर ऊर्जा से संचालित तार की बाड़, दीवारों और गड्ढों जैसे पारंपरिक तरीकों का उपयोग करता रहा है। बायो-फेंसिंग से लाभ
- किसानों को जंगली जानवरों से सुरक्षा प्राप्त होगी एवं उनकी फसल भी बर्बाद नहीं होगी।
- किसान लेमनग्रास (Lemongrass) उगाकर अच्छी कमाई भी कर सकते हैं,क्योंकि यह तेल का एक अच्छा स्रोत है।
- सरकार को अनावश्यक खर्चों से राहत।अबतक दीवारों के निर्माण, गड्ढों की खुदाई और सौर ऊर्जा से संचालित वायर फेंसिंग पर खर्च किया जाता है।
29 जुलाई 2019 को विश्व बाघ दिवस के अवसर पर वर्ष 2018 में हुई बाघों की गणना के चौथे चक्र के आँकड़े जारी किये गए। भारतीय वन्यजीव संस्थान द्वारा जारी आँकडों के अनुसार,वर्ष 2018 में भारत में बाघों की संख्या बढ़कर 2,967 हो गई है। यह भारत के लिये एक ऐतिहासिक उपलब्धि है क्योंकि देश ने बाघों की संख्या को दोगुना करने के लक्ष्य को चार साल पहले ही प्राप्त कर लिया है।[३]
- 29 जुलाई, 2010 में रूस के सेंट पीटर्सबर्ग शहर में एक टाइगर समिट के दौरान दुनिया भर के बाघों की घटती संख्या के संदर्भ में एक समझौता किया गया था।
- इस समझौते के तहत वर्ष 2022 तक विश्व में बाघों की आबादी दोगुनी करने का लक्ष्य रखा गया था।
चौथे चक्र की रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष।
- बाघों की संख्या में 33 प्रतिशत की वृद्धि विभिन्न चक्रों के बीच दर्ज अब तक की सर्वाधिक वृद्धि है।
- बाघों की संख्या में वर्ष 2006 से वर्ष 2010 तक 21 प्रतिशत तथा वर्ष 2010 से वर्ष 2014 तक 30 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई थी।
- बाघों की संख्या में वर्तमान वृद्धि वर्ष 2006 से बाघों की औसत वार्षिक वृद्धि दर के अनुरूप है।
- मध्य प्रदेश 526 बाघों के साथ पहले स्थान पर,कर्नाटक 524 के साथ दूसरे और उतराखंड 442 की संख्या के साथ तीसरे स्थन पर है।
- छत्तीसगढ़ और मिज़ोरम में बाघों की संख्या में गिरावट देखने को मिली,जबकि ओडिशा में इनकी संख्या अपरिवर्तनशील रही।
- बाघों के सभी पाँच प्राकृतिक वासों में उनकी संख्या में वृद्धि देखने को मिली।
- तीन टाइगर रिज़र्व बक्सा (पश्चिम बंगाल), डंपा (मिज़ोरम) और पलामू (झारखंड) में बाघों की अनुपस्थिति दर्ज की गई है।
बाघ अभ्यारण्य प्रबंध प्रणाली
- मध्य प्रदेश स्थित पेंच बाघ अभ्यारण्य में बाघों के संरक्षण लिये सबसे अच्छा प्रबंधन पाया गया, जबकि तमिलनाडु स्थित सत्यामंगलम बाघ अभ्यारण्य में पिछले चक्र के बाद से सबसे अच्छा प्रबंध देखने को मिला, जिसके लिये उसे पुरस्कृत किया गया।
- 42 प्रतिशत बाघ अभ्यारण्य प्रबंधन श्रेणी में बहुत अच्छी स्थिति में हैं जबकि 34 प्रतिशत अच्छी श्रेणी में तथा 24 प्रतिशत मध्यम श्रेणी में हैं।
प्लान बी (Plan Bee)पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे द्वारा अपनाई गई अनोखी रणनीति। ट्रेन हादसों में हाथियों की मौत को रोकने तथा उन्हें रेलवे पटरियों से दूर रखने के लिये बनाए गए इस रणनीति के लिए भारतीय रेलवे ने सर्वश्रेष्ठ नवाचार पुरस्कार प्रदान किया है। इस रणनीति के अंतर्गत क्रॉसिंग पर ऐसे ध्वनि यंत्र लगाए जाते हैं जिनसे मधुमक्खियों की भिनभिनाहट जैसी आवाज़ निकलती है, इस आवाज़ के कारण हाथी रेल की पटरियों से दूर रहते हैं और ट्रेन हादसों का शिकार होने से बच जाते हैं। पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे के उत्तर-पूर्व के क्षेत्रों, पश्चिम बंगाल और बिहार में कुल 29 हाथी गलियारे चिन्हित किये गए हैं जहाँ पर ट्रेनों की गति को धीमा करना और निर्दिष्ट गति का पालन करना आवश्यक है। सबसे पहले यह यंत्र गुवाहाटी रेलवे स्टेशन के पास स्थापित किया गया। वर्तमान में 46 उपकरण ऐसे सुभेद्य बिंदुओं पर स्थापित हैं। इस ध्वनि यंत्र की आवाज़ को 600-700 मीटर की दूरी पर स्थित हाथियों द्वारा सुना जा सकता है और इस तरह यह उन्हें पटरियों से दूर रखने में मदद करता है। वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार, भारत में वैश्विक स्तर पर हाथियों की रेल दुर्घटनायें सबसे अधिक हैं। पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे ज़ोन अधिकारियों के अनुसार, प्लान बी और अन्य उपायों द्वारा वर्ष 2014 से जून 2019 तक 1,014 हाथियों को बचाया गया है।
इकोटूरिज़्म गाँव कोट्टूर केरल में भारत का पहला हाथी पुनर्वास केंद्र स्थापित किया जा रहा है। श्रीलंका में स्थित पिनावाला हाथी अनाथालय की तर्ज़ पर यह योजना बनाई जा रही है। इस पुनर्वास केंद्र का मुख्य उद्देश्य परित्यक्त, अनाथ, घायल और बूढ़े हाथियों को सुरक्षा प्रदान करना है। इससे लोगों को हाथियों के बारे में अधिक जानने का अवसर प्राप्त होगा। यह वन्यजीव शोधकर्त्ताओं और पशुचिकित्सा संबंधी छात्रों के लिये भी अत्यंत सहायक होगा। संभवतः इस पुनर्वास केंद्र में एक हाथी संग्रहालय, महावत प्रशिक्षण केंद्र, सुपर-स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, जानवरों के लिये एक सेवानिवृत्ति घर और श्मशान गृह बनाया जाएगा।
मथुरा(यूपी)के एक वन्यजीव SOS में पहला वाटर क्लिनिक खोला गया है। हाल ही में देश के एकमात्र एलीफेंट हॉस्पिटल में अब हाथियों को पुराने दर्द जैसे गठिया, जोड़ों के दर्द और पैरों की बीमारियों से निजात दिलाने को हाइड्रो थैरेपी की सुविधा शुरू की गई है। इस थैरेपी के लिये जंबो पूल का निर्माण किया गया है। आगरा-दिल्ली हाईवे पर मथुरा के निकट चुरमरा नामक स्थान पर इस ‘हाइड्रो थैरेपी केंद्र’ को स्थापित किया गया है, जो हाथी संरक्षण और देखभाल केंद्र (Elephant Conservation and Care Centre-ECCC) के निकट स्थित है। यह उत्तर प्रदेश वन विभाग और गैर सरकारी संगठन वन्यजीव एस.ओ.एस. (Wildlife SOS) की एक संयुक्त पहल है।इसके लिये वृहद हाइड्रोथेरेपी जलाशय का निर्माण कराया गया है जिसकी गहराई 11 फुट है। इसमें 21 उच्च-दाब वाले जेट स्प्रे लगाए गए हैं जो उपचार के तौर पर हाथियों के पैरों और शरीर की मालिश करता है। यह मांसपेशियों के ऊतकों तक ऑक्सीजन और महत्त्वपूर्ण खनिजों की आपूर्ति भी करता है।
गंगा डेटा संग्राहक (Ganga Data Collector) मोबाइल एप्लीकेशन को देहरादून स्थित भारतीय वन्यजीव संस्थान द्वारा केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय की जैव विविधता और गंगा संरक्षण परियोजना के तहत लॉन्च किया गया है। इसके माध्यम से गंगा के पानी की गुणवत्ता और जलीय जीवों से संबंधित अधिक प्रामाणिक डेटा का तेज़ी से संग्रह किया जा सकेगा। WII, गंगा बेसिन से संबंधित राज्यों के वन विभाग के लगभग 550 गंगा प्रहरियों और कर्मचारियों को इस एप्लीकेशन के संचालन हेतु प्रशिक्षित करेगा। पहले चरण में पांँच राज्यों- उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल के स्वयंसेवकों और कर्मचारियों को प्रशिक्षण दिया जाएगा। दूसरे चरण में गंगा बेसिन के अन्य छह राज्यों के कर्मचारियों को प्रशिक्षण दिया जाएगा।