सामान्य अध्ययन २०१९/सूचना का अधिकार
लोकसभा ने सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक,2019 पारित किया [DoPT]
सम्पादनयह विधेयक सूचना का अधिकार अधिनियम,2005 में संशोधन का प्रस्ताव करती है। सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के अनुसार मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों का कार्यकाल 5 वर्षों का होता है।
- प्रस्तावित संशोधन के अनुसार, मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों का कार्यकाल केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित किया जाएगा।
- केंद्र और राज्य स्तर पर मुख्य सूचना आयुक्त एवं सूचना आयुक्तों के वेतन,भत्ते तथा अन्य रोज़गार की शर्तें भी केंद्र सरकार द्वारा ही तय की जाएंगी।
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 यह प्रावधान करता है कि यदि मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त पद पर नियुक्त होते समय उम्मीदवार किसी अन्य सरकारी नौकरी की पेंशन या अन्य सेवानिवृत्ति लाभ प्राप्त करता है तो उस लाभ के बराबर राशि को उसके वेतन से घटा दिया जाएगा, लेकिन इस नए संशोधन विधेयक में इस प्रावधान को समाप्त कर दिया गया है।
- [कार्मिक लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय]
- सूचना का अधिकार (Right to Information-RTI) अधिनियम, 2005 के प्रमुख प्रावधान हैं।
- भारत का कोई भी नागरिक किसी भी सरकारी प्राधिकरण से सूचना प्राप्त करने हेतु अनुरोध कर सकता है, यह सूचना 30 दिनों के अंदर उपलब्ध कराई जाने की व्यवस्था की गई है। यदि मांगी गई सूचना जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से संबंधित है तो ऐसी सूचना को 48 घंटे के भीतर ही उपलब्ध कराने का प्रावधान है।
- सभी सार्वजनिक प्राधिकरण अपने दस्तावेज़ों का संरक्षण करते हुए उन्हें कंप्यूटर में सुरक्षित रखेंगे।
- प्राप्त सूचना की विषयवस्तु के संदर्भ में असंतुष्टि, निर्धारित अवधि में सूचना प्राप्त न होने आदि जैसी स्थिति में स्थानीय से लेकर राज्य एवं केंद्रीय सूचना आयोग में अपील की जा सकती है।
- राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, संसद व राज्य विधानमंडल के साथ ही सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) और निर्वाचन आयोग (Election Commission) जैसे संवैधानिक निकायों व उनसे संबंधित पदों को भी सूचना का अधिकार अधिनियम के दायरे में लाया गया है।
- इस अधिनियम के अंतर्गत केंद्र स्तर पर एक मुख्य सूचना आयुक्त और 10 या 10 से कम सूचना आयुक्तों की सदस्यता वाले एक केंद्रीय सूचना आयोग के गठन का प्रावधान किया गया है।
- इसी के आधार पर राज्य में भी एक राज्य सूचना आयोग का गठन किया जाएगा।
इसके अंतर्गत सभी संवैधानिक निकाय, संसद अथवा राज्य विधानसभा के अधिनियमों द्वारा गठित संस्थान और निकाय शामिल हैं।
- केंद्रीय सूचना आयोग (Central Information Commission) की संरचना
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के अध्याय-3 में केंद्रीय सूचना आयोग तथा अध्याय-4 में राज्य सूचना आयोगों (State Information Commissions- SICs) के गठन का प्रावधान है। इस कानून की धारा-12 में केंद्रीय सूचना आयोग के गठन, धारा-13 में सूचना आयुक्तों की पदावधि एवं सेवा शर्ते तथा धारा-14 में उन्हें पद से हटाने संबंधी प्रावधान किये गए हैं। केंद्रीय सूचना आयोग में एक मुख्य सूचना आयुक्त तथा अधिकतम 10 केंद्रीय सूचना आयुक्तों का प्रावधान है और इनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
- ये नियुक्तियाँ प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में बनी समिति की अनुशंसा पर की जाती है, जिसमें लोकसभा में विपक्ष का नेता और प्रधानमंत्री द्वारा मनोनीत कैबिनेट मंत्री बतौर सदस्य होते हैं।
CJI का कार्यालय सार्वजनिक प्राधिकरण होने के कारण RTI के दायरे में
सम्पादन13 नवंबर, 2019 को पाँच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक निर्णय में मुख्य न्यायाधीश सहित दिया है। इस पीठ में मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई, एन.वी. रमन्ना, डी. वाई. चंद्रचूड, दीपक गुप्ता एवं संजीव खन्ना शामिल थे। इस निर्णय के बाद अब ‘सूचना का अधिकार’ (Right to Information- RTI) के तहत आवेदन देकर CJI के कार्यालय से सूचना मांगी जा सकती है। सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 2(f) के अनुसार सूचना का अर्थ है- अभिलेख, दस्तावेज़, ज्ञापन, ई-मेल, मत, सलाह, प्रेस-प्रकाशन, परिपत्र, आदेश, लॉग बुक, संविदा, रिपोर्ट, नमूने, आँकड़ा या यांत्रिक रूप में उपलब्ध कोई भी डेटा या सामग्री जिसकी जानकारी जन प्राधिकारी द्वारा विधिवत प्रदान की जा सकती है।
- पृष्ठभूमि
यह निर्णय आरटीआई कार्यकर्त्ता सुभाष अग्रवाल के वर्ष 2009 में सूचना के अनुरोध से संबंधित है। आरटीआई कार्यकर्त्ता ने पूछा था कि “क्या सुप्रीम कोर्ट के सभी न्यायाधीशों ने 1997 में पारित एक प्रस्ताव के बाद CJI के समक्ष अपनी संपत्ति और देनदारियों की घोषणा की थी?” सर्वोच्च न्यायालय के महासचिव और केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी (Secretary General and the Central Public Information Officer- CPIO) ने यह कहते हुए कि CJI का कार्यालय RTI अधिनियम के तहत एक सार्वजनिक प्राधिकरण नहीं है, सूचना देने से मना कर दिया था। यह मामला मुख्य सूचना आयुक्त के पास पहुँचा, जहाँ 6 जनवरी, 2009 को तत्कालीन मुख्य सूचना आयुक्त की अध्यक्षता में एक पूर्ण पीठ ने सूचना देने का निर्देश दिया। मुख्य सूचना आयुक्त के इस आदेश के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय के केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी ने दिल्ली उच्च न्यायालय में अपील की। जहाँ दिल्ली उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि भारत के मुख्य न्यायाधीश का कार्यालय RTI अधिनियम के तहत एक सार्वजनिक प्राधिकरण है। वर्ष 2010 में सर्वोच्च न्यायालय के केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी ने पुन: दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की जिसकी सुनवाई करते हुए संवैधानिक पीठ ने उपरोक्त निर्णय दिया है। स्वतंत्र न्यायपालिका v/s पारदर्शिता स्वतंत्र न्यायपालिका की अवधारणा को केशवानंद भारती मामले में “संविधान के आधारभूत ढाँचे” के अंतर्गत रखा गया था। अत: किसी भी रूप में इसमें हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है। सर्वोच्च न्यायालय ने इसे ध्यान में रखते हुए स्पष्ट किया कि पारदर्शिता के नाम पर न्यायपालिका को नष्ट नहीं किया जा सकता है, पारदर्शिता स्वतंत्र न्यायपालिका के कार्य में बाधक नहीं है बल्कि यह स्वतंत्र न्यायपालिका की अवधारणा को और सशक्त बनाती है। पारदर्शिता रहने से कोई भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से न्यायिक स्वायत्तता को संकुचित करने का प्रयास नहीं कर सकता।