वायुमंडल का संघटन एवं संरचना पृथ्वी के चारो ओर फैले हजारो किलोमीटर ऊंचाई तक गैसीय आवरण को वायुमंडल कहते है। स्थलमंडल और जलमंडल की भांति यह भी हमारे पृथ्वी का अभिन्न अंग है। इसमें उपस्थित विभिन्न गैस धूलकण जलवाष्प तापमान व दिन प्रतिदिन की घटने वाली मौसमी घटनाएं इसके उपस्थिति का एहसास कराती है। इस प्रकार वायुमंडल पृथ्वी को चारो ओर से घेरे हुए है और पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारन यह इससे अलग नहीं हो सकता |

वायुमंडल की सामान्य विशेषताएं

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वायु रंगहीन , गंधहीन ,व स्वादहीन है। वायुमंडल पृथ्वी तल पर सामान रूप से फैला हुआ है। वायुमंडल में घटने वाली समस्त वायमंडलीय घटनाओं एवम प्रक्रमों का मूल कारण सूर्य से विकीर्ण होने वाली ऊर्जा है। वायु की गतिशीलता (mobility),नमनशीलता (Elasticity) तथा सम्पीड़नशीलता (compressibility) इसके मुख्य गुण है। वायु के क्षैतिज सञ्चालन होने पर इसकी गतिशीलता की अनुभूति होती है इसमें सम्पीड़नशीलता के गुण के कारण ही धरातल से ऊंचाई में वृद्धि के साथ ही इसके घनत्व में कमी होती जाती है। वायुमंडल सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी किरणों से पृथ्वी की रक्षा करता है तथा पार्थिव विकिरणों को अवशोषित कर हरित गृह प्रभाव द्वारा पृथ्वी तल के तापमान को निचा नहीं होने देती है। जिसके परिणामस्वरूप वायमंडलीय तापमान जीवधारियों के लिए उपयुक्त बना रहता है। वायुमंडल में उपस्थित जलवाष्प विभिन्न प्रकार की मौसमी घटनाओं जैसे मेघ पवन तूफान आदि को जन्म देती है। मानसून एवम ऋतु परिवर्तन भी वायमंडलीय घटनाओं के ही परिणाम है। वायुमंडल का विस्तार

नवीनतम जानकारी के अनुसार वायुमंडल की ऊंचाई 8000 km से भी अधिक है। लेकिन 1600 KM के बाद वायुमंडल बहुत विरल हो जाता है।

वायुमंडल के संघटक

वायुमंडल का गठन अनेक प्रकार के गैसों, जल वाष्प, धुएं के कणों आदि से हुआ है

गैसें

वायुमंडल विभिन्न प्रकार के गैसों का मिश्रण है जिसमे मुख्यतः 9 प्रकार के गैस पाई जाती है। ऑक्सीजन ,नाइट्रोजन ,आर्गन ,कार्बन डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन ,निऑन ,हीलियम ,क्रिप्टॉन तथा ओजोन | इन सभी गैसों में नाइट्रोजन तथा ऑक्सीजन प्रमुख है। भारी गैसें वायुमंडल के निचली परतों में तथा हलकी गैसें वायुमंडल के ऊपरी परतों में स्थित होता है। विभिन्न गैसों के औसत मात्रा

जलवाष्प

यह वायुमंडल की सर्वाधिक परिवर्तनशील तत्व है। आद्रता तथा तापमान के अनुसार जलवाष्प की मात्रा में परिवर्तन होता रहता है। धरातल के निकट इसकी मात्रा 0-5 % तक पाई जाती है। वायु को जलवाष्प की प्राप्ति झीलों ,सागरों ,नदियों तथा वनस्पति के भीतर के वाष्पीकरण क्रिया द्वारा होती है। तापमान वायुमंडल में जलवाष्प की मात्रा को सर्वाधिक प्रभावित करता है। भूमध्य रेखा पर अधिक वर्षा व मेघों की उपस्थिति के कारण जलवाष्प की मात्रा अधिक होती है। वहीँ मरुस्थलीय क्षेत्रो में उच्च तापमान के कारण न्यूनतम जलवाष्प पाई जाती है। जलवाष्प वायुमंडल के निचली परत में पाई जाती है। ऊंचाई बढ़ने के साथ साथ जलवाष्प की मात्रा में कमीं होती जाती है। जलवाष्प वायुमंडल का बहुत महत्वपूर्ण तत्व है। यह आंशिक तौर पर सौर विकिरण तथा पार्थिव विकिरण को अवशोषित कर भूतल के तापमान को सम रखने में सहायक होती है। यह वायुमंडल में घनीभूत आद्रता के विविध रूपों जैसे बादल ,वर्षा ,कुहरा ,पाला ,हिम आदि का प्राप्त श्रोत है। जलवाष्प ही पृथ्वी के विभिन्न भागों में चलने वाली चक्रवातों प्रतिचक्रवातों तूफानों तड़ित झंझावात आदि को शक्ति प्रदान करता है। धूलकण

वायुमंडलीय गैसों जलवाष्प के अतिरिक्त जितने भी ठोस पदार्थ कणों के रूप में उपस्थित रहते है उन्हें धूलकण की संज्ञा दी जाती है। उत्पत्ति –मरुस्थल के रेत के उड़ने से होती है। ज्वालामुखी उद्ग़ार व उल्कापात तथा पुष्प परागों एवम धुएं से निकले कणों से होती है। इनका सौर विकिरण के परावर्तन प्रकीर्णन तथा अवशोषण करने में विशेष योगदान रहता है। धूलकणों का वायुमंडलीय गैसों के साथ मिलकर जो वर्णनात्मक प्रकीर्णन होता है उसके परिणामस्वरूप आकाश नीला दिखाई देता है तथा सूर्यास्त और सूर्योदय के समय इसका रंग लाल होता है। यह वर्षा कुहरा व मेघ निर्माण में मदद करते है।

वायुमंडल की संरचना

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वायुमंडल को अनेक सामानांतर परतों में विभाजित किआ गया है —

क्षोभ मंडल

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यह वायुमंडल की सबसे निचली सक्रिय तथा सघन परत है। इसमें वायुमंडल के कुल आणविक भार का 75 % केंद्रित है। इस परत में आद्रता जलकण धूलकण वायु धुन्ध तथा सभी प्रकार की वायुमंडलीय विक्षोभ व गतियां संपन्न होती है। धरातल से इस परत की ऊंचाई १४ KM है। यह परत ध्रुवों से भूमध्य रेखा की और जाती हुई पतली होती जाती है। भूमध्य रेखा पर इसकी ऊंचाई 18 km तथा ध्रुवों पर 8–10 km है। ऊंचाई बढ़ने के साथ इसके तापमान में कमी आती है। तापक्षय दर 6.5 °C / km है। तापक्षय की दर ऋतु परिवर्तन वायुदाब तथा स्थानीय धरातल की प्रकृति से भी प्रभावित होती है। समस्त मौसमी परिवर्तन इसी परत में होता है। यह परत सभी प्रकार के मेघों और तुफानो की बहरी सीमा बनाती है। वायु यहाँ पूर्णतः अशांत रहती है। इसमें निरंतर विक्षोभ बनते रहते है और संवाहन धाराएं चलती रहती है। यह भाग विकिरण , सञ्चालन ,संवाहन द्वारा गरम और ठंडा होता रहता है। संवाहन धाराएं अधिक चलने से इसे संवहनीय प्रदेश आ उदवेलित संवाहन स्तर (turbulent convective strata ) भी कहते है। क्षोभसीमा क्षोभमंडल व समतापमंडल को अलग करने वाली परत ओ क्षोभसीमा कहते है। यहाँ तापमान स्थिर रहती है व जेट पवनें चलती है।

समतापमंडल

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क्षोभमंडल के ऊपर 50 km तक इसका विस्तार हैं। इसके निचले 20 km तक तापमान स्थिर रहता हैं और उसके बाद तापमान में वृद्धि होती हैं। तापमान में वृद्धि का कारण हैं ओजोन परत के द्वारा पराबैंगनी किरणों का अवशोषण | यह मंडल मौसमी घटनाओं से मुक्त हैं। वायुयान चालको के लिए यह एक उत्तम मंडल हैं।

मध्य मंडल

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50 से 80 km तक की ऊंचाई वाला वायुमंडल को मध्य मंडल कहते हैं। यहाँ ऊंचाई के साथ तापमान में कमी आती हैं। 80 km की ऊंचाई पर तापमान -100 °C हो जाता हैं। इस न्यूनतम तापमान को मेसोपस कहते हैं।

आयन मंडल

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इसकी ऊंचाई 80 – 640 कम पाई जाती हैं। ऊंचाई के साथ तापमान में वृद्धि होती हैं। इस परत में आयनीकृत कणों की प्रधानता होने से इसे आयन मंडल भी कहते हैं। यहाँ विधुतीय एवम चुम्बकीय घटनाए घटित होती हैं। पारा बैंगनी विकिरण तथा वाह्य अंतरिक्ष से आने वाले परा बैंगनी गतिवान कण जब वायुमंडल के आण्विक ऑक्सीजन से टकराते हैं तो वायुमंडलीय ऑक्सीजन तथा नाइट्रोजन का आयनन हो जाता हैं। जिसके परिणामस्वरूम विधुत आवेश उत्पन्न होता हैं। 100 से 300 km के मध्य जहाँ स्वतंत्र आयनो की संख्या अधित होती हैं ,विस्मयकारी विधुत तथा चुम्बकीय घटनाएँ अधिक होती हैं।

बाह्य मंडल

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यह वायुमंडल की सबसे बाहरी परत हैं। इसकी ऊंचाई 640 –1000 km तक होती हैं। यहाँ हाइड्रोजन तथा हीलियम गैसों की प्रधानता होती हैं।