सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा सहायिका/अधिकारों के मुद्दे

  • बंधुआ मज़दूरी प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम, 1976 आर्थिक और सामाजिक रूप से कमज़ोर वर्गों के शोषण को रोकने के उद्देश्य वर्ष 1976 में इसे अधिनियमित किया गया था।

इस अधिनियम के तहत बंधुआ मज़दूरी को पूरी तरह से खत्म कर मज़दूरों को रिहा कर दिया गया और उनके कर्ज़ भी समाप्त कर दिये गए।

  • देश के कुछ लोगों के लिये कुछ विशेष परिस्थितियों के कारण संभव नहीं होता कि वे प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचन प्रक्रिया में भाग ले सकें। इस प्रकार की स्थिति में निर्वाचन आयोग ऐसे लोगों को पोस्टल बैलट के माध्यम से मतदान की सुविधा प्रदान करता है।

पोस्टल बैलट से निम्नलिखित लोगों को मतदान करने का अधिकार है: चुनाव कार्यों में कार्यरत अधिकारी सशस्त्र बलों के कर्मचारी देश के बाहर कार्यरत सरकारी कर्मचारी सेना अधिनियम, 1950 के तहत आने वाले सभी बल

  • विधेयक में ट्रांसजेंडर व्यक्ति को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि ट्रांसजेंडर व्यक्ति वह व्यक्ति है जिसका लिंग जन्म के समय नियत लिंग से मेल नहीं खाता। इसमें ट्रांसमेन (परा-पुरुष) और ट्रांस-विमेन (परा-स्त्री), इंटरसेक्स भिन्नताओं और जेंडर क्वीर (Gender-Queers) आते हैं। इसमें सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान वाले व्यक्ति, जैसे किन्नर, हिंजड़ा भी शामिल हैं। इंटरसेक्स भिन्नताओं वाले व्यक्तियों की परिभाषा में ऐसे लोग शामिल हैं जो जन्म के समय अपनी मुख्य यौन विशेषताओं, बाहरी जननांगों, क्रोमोसम्स या हार्मोंस में पुरुष या महिला शरीर के आदर्श मानकों से भिन्नता का प्रदर्शन करते हैं।

विधेयक के कुछ अन्य प्रावधान निम्नलिखित हैं- शैक्षिक संस्थानों, रोज़गार, स्वास्थ्य सेवाओं आदि में एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति के खिलाफ गैर-भेदभाव। ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की पहचान और उन्हें स्वयं के लिंग पहचान बताने या न बताने का अधिकार। माता-पिता और तत्काल परिवार के सदस्यों के साथ निवास के अधिकार का प्रावधान। ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की शिक्षा, सामाजिक सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिये कल्याणकारी योजनाओं और कार्यक्रमों के गठन का प्रावधान। अपने अधिकारों की सुरक्षा के लिये साधनों की निगरानी और मूल्यांकन के लिये ट्रांसजेंडर व्यक्तियों हेतु राष्ट्रीय परिषद (NCT) का प्रावधान। विधेयक केंद्र सरकार को केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री की अध्यक्षता में एक NCT के गठन का निर्देश देता है। NCT केंद्र सरकार को सलाह देने के साथ ही ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के संबंध में नीतियों, कानून और परियोजनाओं के प्रभाव की निगरानी करेगा। यह ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की शिकायतों का निवारण भी करेगा। अत: कथन 2 सही नहीं है। वर्ष 2018 में भारत के उच्चतम न्यायालय ने वयस्कों के बीच सहमति वाले समलैंगिक यौन संबंधों के संबंध में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 377 को असंवैधानिक घोषित करके समलैंगिकता का गैर-अपराधीकरण कर दिया।

  • उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (Consumer Protection Act), 1986 की धारा 21 में प्रावधान है कि एनसीडीआरसी के अधिकार क्षेत्र में निम्नलिखित को शामिल किया जाएगा:

एक करोड़ से अधिक मूल्य के वाद का निवारण करना; राज्य आयोग या ज़िला स्तरीय मंच के आदेश से अपील एवं पुनरीक्षण क्षेत्राधिकार के अनुरूप कार्य करना। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (Consumer Protection Act), 1986 की धारा 23 में यह प्रावधान है कि कोई भी व्यक्ति जो NCDRC के आदेश से संतुष्ट नहीं है, 30 दिनों के भीतर भारत के सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर सकता है। इस अधिनियम के प्रावधानों में 'वस्तुओं' के साथ-साथ 'सेवाओं' को भी शामिल किया जाता है। अपीलीय प्राधिकार (Appellate Authority): यदि कोई उपभोक्ता ज़िला फोरम के निर्णय से संतुष्ट नहीं है, तो वह राज्य आयोग में अपील कर सकता है। राज्य आयोग के आदेश के खिलाफ उपभोक्ता राष्ट्रीय आयोग में अपील कर सकता है।


अधिकारों का घोषणा पत्र संविधान द्वारा प्रदान किए गए और संरक्षित अधिकारों की सूची

भारत आठ कोर /मूलभूत ILO सम्मेलनों में से छह की पुष्टि कर चुका है।

  1. बलात श्रम कन्वेंशन, 1930 (नंबर 29),
  2. बलात श्रम कन्वेंशन का उन्मूलन, 1957 (नंबर 105),
  3. समान पारिश्रमिक कन्वेंशन, 1951 (नंबर 100),
  4. भेदभाव (रोजगार और व्यवसाय) कन्वेंशन, 1958 (नंबर 111),
  5. न्यूनतम आयु कन्वेंशन, 1973 (संख्या 138)
  6. और बाल श्रम का सबसे विकृत रूप कन्वेंशन, 1999 (संख्या 182)

भारत ने जिन कोर/मूलभूत कन्वेंशंस की पुष्टि नहीं की है उनमें फ्रीडम ऑफ एसोसिएशन और प्रोटेक्शन ऑफ ऑर्गनाइज कन्वेंशन, 1948 (नंबर 87) और संगठन की स्वतंत्रता और संरक्षण का अधिकार कन्वेंशन, 1948 शामिल हैं।

  • वयोश्रेष्ठ सम्मान वरिष्‍ठ नागरिकों की सराहनीय सेवा करने वाले संस्‍थानों और वरिष्‍ठ नागरिकों को उनकी उत्तम सेवाओं तथा उपलब्धियों के सम्‍मान स्‍वरूप प्रदान किये जाते हैं।

वयोश्रेष्‍ठ सम्‍मान की स्‍थापना सामाजिक न्‍याय और अधिकारिता मंत्रालय ने वर्ष 2005 में की थी और इसे वर्ष 2013 में राष्‍ट्रीय पुरस्‍कारों की श्रेणी में शामिल किया गया।