भारत में कार्बोफ्रयूरेन, मेथिल पैराथियॉन, फोरेटू और ट्राइऐजोफॉस के इस्तेमाल को आशंका से देखा जाता है। ये रसायन किस रूप में इस्तेमाल किये जाते हैं? (2019):-(d) प्रसाधन सामग्री में नमी बनाए रखने वाले कारक

  • भारत में जैविक कृषि के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

1- ‘जैविक उत्पादन के लिये राष्ट्रीय कार्यक्रम’ (एन.पी.ओ.पी.) केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के मार्गदर्शन एवं निदेश के अधीन कार्य करता है। 2- एन.पी.ओ.पी. के क्रियान्वयन के लिये ‘कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण’ (APEDA) सचिवालय के रूप में कार्य करता है। 3- सिक्किम भारत का पहला पूरी तरह से जैविक राज्य बन गया है। उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?:-(b) केवल 2 और 3

जैविक उत्पादन हेतु राष्ट्रीय कार्यक्रम (NPOP)? भारत वर्ष में राष्ट्रीय स्तर पर जैविक खेती के केन्द्रित व सुव्यवस्थित विकास हेतु भारत सरकार के वाणिज्य मंत्रालय द्वारा सन 2001 में अपने उपक्रम कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) के माध्यम से जैविक प्रमाणीकरण की प्रक्रिया को नियंत्रित करने के लिये NPOP की शुरुआत की गई। इस प्रमाणीकरण व्यवस्था के तहत NPOP द्वारा सफल प्रसंस्करण इकाइयों, भंडारों और खेतों को ‘इंडिया ऑर्गेनिक’ का लोगो प्रदान कराया जाता है। एपीडा द्वारा जैविक उत्पादों का प्रमाणीकरण विश्व के सभी देशों में मान्य है। क्या है PGS-I?

“भारत की सहभागिता प्रतिभूति प्रणाली” (पीजीएस-इंडिया) एक विकेंद्रीकृत जैविक कृषि प्रमाणन प्रणाली है। इसे घरेलू जैविक बाजार के विकास को बढ़ावा देने तथा जैविक प्रमाणीकरण की आसान पहुँच के लिये छोटे एवं सीमांत किसानों को समर्थ बनाने के लिये प्रारम्भ किया गया है। इसे कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के कृषि एवं सहकारिता विभाग द्वारा क्रियान्वित किया जा रहा है। यह प्रमाणीकरण प्रणाली उत्‍पादकों / किसानों, व्‍यापारियों सहित हितधारकों की सक्रिय भागीदारिता के साथ स्‍थानीय रूप से संबद्ध है। इस समूह प्रमाणीकरण प्रणाली को परंपरागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) का समर्थन प्राप्‍त है। एक प्रकार से यह जैविक उत्‍पाद की स्‍वदेशी मांग को सहायता पहुँचाती है और किसान को दस्‍तावेज़ प्रबंधन और प्रमाणीकरण प्रक्रिया से जुड़ी अन्‍य आवश्‍यकताओं से संबंधित प्रशिक्षण देती है। क्या है एपीडा?

कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (Agricultural and Processed Food Products Export Development Authority-APEDA) की स्थापना दिसंबर 1985 में संसद द्वारा पारित कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण अधिनियम के अंतर्गत भारत सरकार द्वारा की गई। यह प्राधिकरण, वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अंतर्गत कार्य करता है। देश के कृषि उपज के निर्यात के लिये बुनियादी संरचना उपलब्ध कराने के अतिरिक्त इसके प्रमुख कार्यों में कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देना, किसानों को बेहतर फसल और उनके उचित मूल्य की प्राप्ति सुनिश्चित करने के लिये मार्गदर्शन देना, वित्तीय सहायता प्रदान करना, कृषि उपज का सर्वेक्षण तथा संभावना का अध्ययन करना तथा अनुसूचित उत्पादों के निर्यात से संबद्ध उद्योगों का विकास करना भी शामिल हैं।

कृषि एवं सिंचाई पद्धति सम्पादन

  • ड्रिप सिंचाई के लाभों में पानी का कुशल उपयोग, मिट्टी के कटाव में कमी, अन्य फसलों के बीच खरपतवार की वृद्धि को नियंत्रित करना शामिल है।
मिट्टी की लवणता में कमी ड्रिप सिंचाई का लाभ नहीं है।
  • जैव उर्वरक में एक वाहक माध्यम होता है जो जीवित सूक्ष्म जीवों से समृद्ध होता है। बीज, मिट्टी या जीवित पौधों पर इनका छिड़काव किये जाने से मिट्टी के पोषक तत्त्वों में वृद्धि होती है या उन्हें जैविक रूप से उपलब्ध कराते हैं। वे मेजबान पौधों के साथ पारस्परिक रूप से लाभप्रद या सहजीवी संबंध बनाते हैं क्योंकि इनकी उत्पत्ति मिट्टी में होती है और अन्य उर्वरकों की तुलना में पौधों के लिये उपलब्ध नाइट्रोजन एवं फास्फोरस को बढ़ाते हैं।
  1. एलीलोपैथी पौधे की प्रजातियों द्वारा एक रासायनिक पदार्थों का निर्गमन है जो अन्य प्रजातियों के विकास को रोकती है। जब कोई फसल एक ही परिवार की किसी दूसरी फसल का अनुसरण करती है तब उपज में कमी होती है। उदाहरण के लिये- गेहूँ के बाद मक्का उगाना।

तकनीकी रूप से, उसी फसल से नुकसान (जैसे मक्का द्वारा मक्का का अनुसरण) को ऑटोटॉक्सिसिटी (Autotoxicity) कहा जाता है।

  1. डबल-क्रॉपिंगपहली फसल के तुरंत बाद दूसरी फसल लगाने की विधि है। इससे एक वर्ष में एक ही खेत से दो फसलों की कटाई की जा सकती है।
  2. रिले इंटरक्रॉपिंग एक ऐसी तकनीक है जिसमें विभिन्न फसलों को एक ही खेत में अलग-अलग समय पर लगाया जाता है।
  3. इंटरक्रॉपिंग एक ही समय में एक ही खेत में दो या अधिक फसलों की उपस्थिति है,ये ऐसे क्रम में लगाई जाती हैं जिसके परिणामस्वरूप फसलों में एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्द्धा होती है।
  4. स्ट्रिप क्रॉपिंग एक ही खेत में दो या दो से अधिक फसलों को बोने की विधि है जिसमें फसलों को पट्टीदार विधि यानी स्ट्रिप्स में इस प्रकार लगाया जाता हैं कि दो भिन्न फसलों के बजाय एक ही फसल के पौधों के बीच प्रतिस्पर्द्धा होती है। इसमें इंटरक्रॉपिंग और मोनोक्रॉपिंग दोनों के तत्त्व हैं।
  5. मिश्रित अंतर फसली में किसी निश्चित पंक्ति पैटर्न के बिना सभी फसलें एक साथ एक ही भूमि पर उगाई जाती हैं।
  • एकीकृत कृषि प्रणाली दृष्टिकोण फसल के पैटर्न में अधिकतम उत्पादन तथा संसाधनों के सर्वोत्कृष्ट उपयोग के लिये कृषि तकनीक में बदलाव का परिचय देती है। विभिन्न कृषि उद्यमों जैसे- फसल उत्पादन, पशुपालन, मत्स्य, वानिकी आदि के एकीकरण से कृषि अर्थव्यवस्था में विकास की काफी संभावनाएँ बढ़ जाती हैं।
IFS सुअर, मुर्गी पालन और कबूतर पालन जैसी पशु गतिविधियों से प्राप्त अवशिष्ट के प्रभावी पुनर्चक्रण के माध्यम से पर्यावरणीय संधारणीयता और संरक्षण में सहायता करता है।
  • बहुफसली पद्धति के आर्थिक लाभ
  1. अधिकतम उत्पादकता
  2. पशुओं के लिये चारा संग्रहण
  3. खाद्य सुरक्षा
  4. एकाधिक उपयोग
  5. कीट प्रबंधन
  6. खरपतवार का प्रबंधन
  7. एक सतत् कृषि पद्धति
  • जैविक विविधता पर अभिसमय (CBD) के अनुसार कृषि जैव विविधता एक व्यापक शब्द है जिसमें खाद्य और कृषि से संबंधित जैव-विविधता के सभी घटक शामिल होते हैं। इसमें जैविक विविधता के सभी घटक जो कृषि पारिस्थितिकी प्रणालियों का गठन करते हैं, जिन्हें कृषि-पारितंत्र भी कहा जाता है, भी शामिल होते है। इसके अतिरिक्त इसमें आनुवांशिक, प्रजातीय और पारितंत्र के स्तर पर जानवरों, पौधों और सूक्ष्मजीवों की विविधता को भी शामिल किया जाता है जो कृषि-पारिस्थितिकी तंत्र के सुचारू संचालन हेतु आवश्यक होते हैं।

कृषि जैव-विविधता आनुवंशिक संसाधनों, पर्यावरण तथा किसानों द्वारा उपयोग की जाने वाली प्रबंधन प्रणालियों और प्रथाओं के बीच पारस्परिक प्रभाव का परिणाम है। यह सहस्राब्दियों से विकसित प्राकृतिक चयन और मानव युक्तियों दोनों का परिणाम है। विश्व स्तरीय महत्त्वपूर्ण कृषि विरासत प्रणाली (GIAHS) ऐसे उत्कृष्ट भू-परिदृश्य हैं जो कृषि जैव-विविधता, सुदृढ़ पारिस्थितिकी तंत्र और मूल्यवान सांस्कृतिक विरासत को जोड़ते हैं। दुनिया भर में स्थित ये विशिष्ट स्थल लाखों छोटे किसानों को कई वस्तुओं और सेवाओं, खाद्य एवं आजीविका की सुरक्षा प्रदान करते हैं। दुनिया भर में 37 स्थलों को GIAHS के रूप में नामित किया गया है, जिनमें से तीन कश्मीर (केसर), कोरापुट (पारंपरिक कृषि) और कुट्टनाद (समुद्र-स्तर से नीचे कृषि कि विधि) भारत में स्थित हैं।

  • निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये:

आनुवंशिक रूप से प्रदत्त विशेषता जीवों के उदाहरण

  1. शाकनाशी के प्रति सहिष्णुता सोयाबीन
  2. कीट प्रतिरोधकता-मक्का
  3. परिवर्तित फैटी एसिड संरचना-राई
  4. विषाणु प्रतिरोधकता-बेर

उपर्युक्त युग्मों में से कौन-से सुमेलित हैं?[D-1, 2, 3 और 4]

  • कपड़े की रानी के नाम से जाना जाने वाला ‘मूगा रेशम’ अपने राजसी और प्राकृतिक सुनहरे रंग के लिये प्रसिद्ध है। इसकी निम्नलिखित किस्में हैं जैसे - मूगा टसर, ओक टसर और ईरी टसर। वर्ष 2014 में ट्रेडमार्क उद्देश्यों के लिये इसे भौगोलिक संकेतक का दर्जा प्रदान किया गया।

मूगा सिल्क वार्म स्थानिक रूप से पूर्वोत्तर क्षेत्र में पाया जाता है। यह ब्रह्मपुत्र घाटी में भी संकेंद्रित है। मूगा सिल्क वार्म, एक हॉलोमेतबोलौस (holometalbolous) कीट है यानी यह संपूर्ण रूप भेदन प्रक्रिया (metamorphosis) से गुजरता है। इस प्रकार इसके जीवन चक्र में निम्नलिखित चरण शामिल हैं: अंडा-लार्वा-प्यूपा-कोकून-वयस्क पतंग। रेशम कीट के सिर में उपस्थित रेशम स्राव ग्रंथियों से रेशम का उत्पादन और स्राव होता है। रेशम फाइबर मूल रूप से दो प्रोटीन से बना होता है- फाइब्रॉइन (fibroin), मूल फाइबर को बनाना और सेरिसिन (sericin), एक मोम पदार्थ जो फाइब्रॉइन को घेरता है।

सतत् कृषि के लिये राष्ट्रीय मिशन (NMSA) सम्पादन

इस मिशन का गठन वर्षा आधारित क्षेत्रों में एकीकृत कृषि,जल उपयोग दक्षता, मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन और संसाधन संरक्षण द्वारा कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिये किया गया है। मिशन के उद्देश्य:

  1. कृषि में स्थान विशिष्ट एकीकृत/संयुक्त कृषि प्रणालियों को बढ़ावा देकर कृषि को अधिक उत्पादक, सतत्, लाभकारी और जलवायु प्रत्यास्थ बनाना।
  2. उपयुक्त मृदा और नमी संरक्षण उपायों के माध्यम से प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करना।
  3. मृदा उर्वरता मानचित्रों, वृहत् एवं सूक्ष्म पोषक तत्त्वों के मृदा परीक्षण आधारित समुचित उर्वरकों के प्रयोग इत्यादि के आधार पर व्यापक मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन पद्धतियाँ अपनाना।
  4. प्रति बूंद अधिक फसल प्राप्त करने हेतु कुशल जल प्रबंधन के माध्यम से जल संसाधनों का इष्टतम उपयोग करना।

जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना (NAPCC) का शुभारंभ 30 जून,2008 में किया गया था। NAPCC के तहत आठ मिशन हैं:-

  1. राष्ट्रीय सौर मिशन
  2. संवर्द्धित ऊर्जा दक्षता के लिये राष्ट्रीय मिशन
  3. संधारणीय आवास पर राष्ट्रीय मिशन
  4. राष्ट्रीय जल मिशन
  5. हिमालय पारिस्थितिकी तंत्र हेतु राष्ट्रीय मिशन
  6. हरित भारत राष्ट्रीय मिशन
  7. सतत् कृषि हेतु राष्ट्रीय मिशन (NMSA)

जलवायु परिवर्तन हेतु रणनीतिक ज्ञान पर राष्ट्रीय मिशन। NMSA के पाँच प्रमुख कार्यक्रम घटक या गतिविधियाँ निम्नलिखित हैं:

  1. वर्षा आधारित क्षेत्र विकास (RAD)
  2. कृषि वानिकी पर उप-मिशन (SMAF)
  3. राष्ट्रीय बाँस मिशन (NBM)
  4. मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन (SHM)
  5. जलवायु परिवर्तन और सतत् कृषि: निगरानी, मॉडलिंग और नेटवर्किंग (CCSAMMN)।