सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा सहायिका/जीव विज्ञान

  • करक्यूमिन (Curcumin), हल्दी (Curcuma longa) का सक्रिय घटक है तथा हजारों वर्षों से इसका सेवन औषधीय प्रयोजनों के लिये किया जाता रहा है।
  • प्लेसेंटा विषैले पदार्थों को भ्रूण तक नहीं पहुँचने देता है। इसके अलावा प्लेसेंटा माता के शरीर में दूध बनने के लिये आवश्यक लैक्टोजन के निर्माण में भी सहायता करता है।
  • हाइड्रोजेल का pH मान 3 और 6 के बीच है,जबकि अधिक अम्लीय या क्षारीय होने पर इसका pH मान अस्थिर हो जाता है।

हाइड्रोजेल का कम pH मान जीवाणुरोधी गतिविधियों को बढ़ाने में सहायता करता है तथा साथ ही इसके pH मान में परिवर्तन कर इसे दवा के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।

  • आयोडीन एक खनिज पदार्थ है जो आमतौर पर समुद्री भोजन, डेयरी उत्पादों, अनाज और अंडे में पाया जाता है। दुनिया भर में आयोडीन की कमी एक गंभीर समस्या है।

थायराइड ग्रंथि (Thyroid Gland) के माध्यम से हमारे शरीर के उचित कामकाज और विकास को पूरा करने के लिये हमें आयोडीन की आवश्यकता होती है। आयोडीन का प्रयोग हृदय की गति को नियंत्रित करने के लिये किया जाता है।

  • फ्यूजेरियम विल्ट (Fusarium Wilt) जिसे उकटा रोग भी कहा जाता है फ्यूजेरियम ओक्सीस्पोरम (Fusarium oxysporum) नामक जीवाणु के कारण होता है।

इस रोग के कारण पत्तियाँ सूखकर गिर जाती है और और अंततः पौधे नष्ट हो जाते हैं। केला, तम्बाकू, टमाटर, शकरकंद आदि फसलों में इस रोग के होने की संभावना िक होती है।

  • ई. कोलाई [Escherichia coli- (E-Coli)] एक बैक्टीरिया हैं जो पर्यावरण,खाद्य पदार्थों और मनुष्यों तथा जानवरों की आंतों में पाया जाता है।

ई-कोलाई की साधारणतः बहुत सी प्रजातियाँ पाई जाती हैं जिनमें से कुछ बहुत ज़्यादा हानिकारक होती हैं। ई-कोलाई हमारे शरीर की आँत में इंफेक्शन फैलाकर हानि पहुँचाता है। यह तालाब, झीलों, पोखरों में पाया जाता है।

  • कुष्ठ रोग दीर्घकालिक संक्रामक रोग है,जो मुख्यतः माइकोबैक्टेरियम लेप्री (Mycobacterium leprae) के कारण होता है। संक्रमण के बाद औसतन पाँच साल की लंबी अवधि के पश्चात् रोग के लक्षण दिखाई देते हैं, क्योंकि माइकोबैक्टेरियम लेप्री धीरे-धीरे बढ़ता है। यह मुख्यत: मानव त्वचा, ऊपरी श्वसन पथ की श्लेष्मिका, परिधीय तंत्रिकाओं, आँखों और शरीर के कुछ अन्य हिस्सों को प्रभावित करता है।

रोग को पॉसीबैसीलरी (PB) या मल्टीबैसीलरी (MB) के रूप में वर्गीकृत किया जाता है,जो कि बैसीलरी लोड पर निर्भर करता है। PB कुष्ठ रोग अपेक्षाकृत कम घातक रोग है, जिसे कुछ (अधिकतम पाँच) त्वचा के घावों (पीला या लाल) द्वारा पहचाना जाता सकता है। जबकि MB कई (अधिक-से-अधिक) त्वचा के घावों, नोड्यूल, प्लाक/प्लैक, मोटी त्वचा या त्वचा संक्रमण से जुड़ा है।

  • थैलेसीमिया एक आनुवंशिक विकार है, इसमें लाल रक्त कोशिकाएँ हीमोग्लोबिन का निर्माण करने वाले प्रोटीन का पर्याप्त उत्पादन नहीं कर पाती हैं। हीमोग्लोबिन लाल रक्त कोशिकाओं में उपस्थित प्रोटीन है जो ऑक्सीजन के वाहक के रूप में कार्य करता है। थैलेसीमिया में लाल रक्त कोशिकाओं का अत्यधिक ह्रास होता है जिसके परिणामस्वरूप एनीमिया हो जाता है।
वॉन हिप्पेल-लिंडौज (VHL) रोग एक दुर्लभ आनुवंशिक सिंड्रोम है जिसमें बाल्यावस्था में ही शरीर के अलग-अलग हिस्सों में ट्यूमर या अल्सर हो जाता है।

प्रो. विलियम जी. कैलिन ने ‘वॉन हिप्पेल-लिंडौ’ (Von Hippel Lindau-VHL) नामक एक वंशानुगत बीमारी पर अध्ययन किया जिसके लिये उन्हें वर्ष 2019 में चिकित्सा का नोबेल पुरस्कार दिया गया।

  • प्लाज़्मा पदार्थ की एक अवस्था है जिसे अक्सर गैसों के उपसमुच्चय के रूप में जाना जाता है,लेकिन ये दोनों ही अवस्थाएँ व्यवहार में बहुत अलग होती हैं। गैसों की तरह प्लाज़्मा का कोई निश्चित आकार या आयतन नहीं होता है और ठोस या तरल पदार्थों की तुलना में इसकी सघनता कम होती है। लेकिन साधारण गैसों के विपरीत प्लाज़्मा मुक्त इलेक्ट्रॉनों और धनावेशित आयनों (धनायनों) से बना होता है। गैस तटस्थ अणुओं और परमाणुओं से मिलकर बनी होती है,अर्थात् ऋणावेशित इलेक्ट्रॉनों की संख्या धनावेशित प्रोटॉनों की संख्या के बराबर होती है। प्लाज़्मा एक आवेशित गैस है जिसमें परस्पर विद्युतस्थैतिक क्रिया होती है।

प्लाज़्मा के कारण ही सूर्य और तारों में चमक होती है। यह द्रव्य की वह अवस्था है जो पूरे ब्रह्मांड में सबसे ज़्यादा पाई जाती है।

अनुप्रयोग:
  1. किसी सतह के संपर्क में आने पर प्लाज़्मा के कण उस सतह के गुणों (रासायनिक और भौतिक दोनों) को बदल देते हैं।
  2. चिकित्सा क्षेत्र में प्लाज़्मा की व्यापक प्रयोज्यता का कारण इसकी जीवाणुनाशक प्रभावशीलता और संकीर्ण स्थानों तक आसान पहुँच है।
  3. चिकित्सा विज्ञान में प्लाज़्मा का अनुप्रयोग प्लाज़्मा के ऊष्मीय प्रभावों पर निर्भर करता है। चिकित्सा क्षेत्र में उच्च तापमान और ऊष्मा का उपयोग ऊतक को हटाने,नसबंदी और शल्य चिकित्सा की प्रक्रिया में किया जाता है।
  4. शीतल प्लाज़्मा रक्त के जमाव और ऊतक नसबंदी में सहायता कर सकता है।
  5. प्लाज़्मा का उपयोग कैंसर जैसे रोगों,एंटिफंगल उपचार, घाव भरने, त्वचा रोग, दंत चिकित्सा देखभाल और लक्षित ऊतकों को हटाने जैसे विभिन्न प्रभावी चिकित्सा उपचारों में किया जाता है।
  6. प्लाज़्मा का उपयोग टेलीविज़न, नियॉन संकेत और प्रतिदीप्त प्रकाश में किया जाता है।

प्लाज़्मा उपचार:-जीवाणु जनित रोगों के निदान, तपेदिक और HIV के निदान,चिकित्सा पैकेजिंग एवं घाव की मरहम-पट्टी/ड्रेसिंग के लिये। जलस्नेही और जल-रोधी तंतुओं के निर्माण में।

  • फागरस्ट्रोम टेस्ट निकोटीन की लत की तीव्रता का आकलन करने के लिये एक मानक साधन है। इसे सिगरेट धूम्रपान से संबंधित निकोटीन निर्भरता का एक क्रमिक माप प्रदान करने के लिये डिज़ाइन किया गया था जो सिगरेट की खपत की मात्रा, उपयोग करने की मज़बूरी और निर्भरता का मूल्यांकन करता है।
  • मिनामाटा रोग (Minamata Disease) मिथाइल मर्करी (Methyl Mercury) की विषाक्तता के कारण उन मनुष्यों में होता है जो मिथाइल मर्करी द्वारा संदूषित मछली और घोंघे का सेवन करते हैं। मिथाइल मर्करी को रासायनिक संयत्रों के अपशिष्ट द्वारा जल में छोड़ा जाता है। वर्ष 1956 में जापान के क्यूशू द्वीप (Kyushu Island) के दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र में स्थित मिनमाटा सिटी में पहली बार आधिकारिक रूप से इस रोग की पहचान की गई।

इटाई-इटाई रोग (Itai-Itai Disease) कैडमियम प्रदूषण (Cadmium Pollution) के कारण होता है। इस रोग की पहचान सबसे पहले जापान के जिनजु नदी (Jinzu River) के बेसिन में हुई। वर्ष 1968 में वैधानिक प्रक्रिया के बाद जापान में पर्यावरण प्रदूषण जनित इस बीमारी की पहचान इटाई-इटाई के रूप में की गई। यूशो रोग (Yusho Disease) पॉलीक्लोराइनेटेड बाइफिनाइल्स (Polychlorinated Biphenyls) के कारण होता है। क्यूशू स्थित कंपनी कनीमी द्वारा उत्पादित चावल की भूसी का तेल, PCB और पॉलीक्लोराइनेटेड डिबेंजोफुरन्स (Polychlorinated Dibenzofurans-PCDFs) से संदूषित था। इस अजीब बीमारी के लक्षण त्वचा पर मुँहासे, त्वचा का सफ़ेद होना और आँखों से तरल पदार्थ का बहना आदि थे। इस बीमारी को यूशो रोग (तेल रोग) नाम दिया गया।

  • 'भूरे रंग के वसा ऊतक' (Brown Adipose Tissue- BAT) या ब्राउन फैट मनुष्यों और अन्य स्तनधारियों में पाए जाने वाले दो प्रकार की वसा में से एक है। इसका मुख्य कार्य भोजन को शरीर की ऊष्मा में परिवर्तित करना है। कभी-कभी इसे ‘अच्छी वसा’ (Good Fat) भी कहा जाता है। भूरे रंग के वसा ऊतक तेज़ी से ऊष्मा उत्पन्न करते हैं और माइटोकॉन्ड्रिया (Mitochondrial) को प्रोटीन से अलग कर सक्रिय करके ग्लूकोज़ और लिपिड जैसे वृहत पोषक तत्त्वों का उपापचय करते हैं।

कॉफी का सेवन भूरे रंग की वसा के कार्यों पर सीधा प्रभाव डाल सकता है। इसके संभावित निहितार्थ बहुत अधिक हैं, उदाहरण के तौर पर मोटापा स्वास्थ्य के लिये एक प्रमुख चिंता का विषय है और मधुमेह की बीमारी भी एक महामारी के रूप में तेज़ी से बढ़ रही है, ऐसे में भूरे रंग की वसा इन समस्याओं से निपटने में सहायक सिद्ध हो सकती है। नवीनतम शोध के अनुसार, कॉफी के सेवन के बाद भूरे रंग के वसा ऊतकों की गतिविधियों में वृद्धि हो जाती है, इस कारण यह कहा जाता है कि कैफीन वज़न घटाने में सहायक हो सकता है। भूरे रंग के वसा ऊतक विशेष रूप से नवजात शिशुओं और सुप्तावस्था वाले (Hibernating) स्तनधारियों में प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। ये वयस्क मनुष्यों में भी मौजूद होते हैं और उपापचय क्रिया में सक्रिय रहते हैं परंतु मनुष्य की आयु में वृद्धि के साथ इनकी व्यापकता कम हो जाती है।

  • ‘मोटे अनाज’ ग्रामीनी (Gramineae) वर्ग से संबंधित छोटे बीजों वाली एवं कठोर पर्यावरणीय दशाओं में उगने वाली फसलें होती हैं। लंबे समय तक मोटे अनाज का सेवन शर्करा (Glucose) के धीमे विमोचन में सहायता करता है। चूँकि इनमें ग्लाइसेमिक इंडेक्स (Glycaemic Index) का स्तर कम होता है, अत: इनके नियमित सेवन से मधुमेह मेलिटस (Diabetes Mellitus) का खतरा कम हो जाता है। सीलिएक रोग (Celiac Disease) से पीड़ित व्यक्ति के आहार में ‘मोटे अनाज’ को शामिल किया जाता है।

बहुत से मोटे अनाज (बाजरा, जौ आदि) अत्यधिक पौष्टिक, ग्लूटेन रहित,अम्लीयता रहित और आसानी से पचने वाले खाद्य पदार्थ हैं।

  • जापान,भारत,संयुक्त राज्य अमेरिका और जॉर्डन के शोधकर्त्ताओं ने वसा ऊतकों के निर्माण में प्रोटीन Arid5a की भूमिका की जाँच की। खोज में यह पाया गया है कि Arid5a और प्रोटीन Ppar-γ2 (दोनों वसा कोशिका के निर्माण में प्रमुख नियामक हैं) एक दूसरे के प्रति प्रतिक्रियाशील हैं। Ppar-γ2 वसा कोशिका के निर्माण के दौरान Arid5a को रोकता है।

दोनों प्रोटीन वसा उतकों के निर्माण को रोकने के लिये एक साथ कार्य करते हैं। यह खोज वसा कोशिकाओं के निर्माण में शामिल आणविक प्रक्रियाओं पर प्रकाश डालती है जिससे मोटापे के खिलाफ प्रभावी कार्यवाही संभव हो सकती है।

  • 'मैलप्रॉपिज़्म', 'स्पूनरिज़्म', 'अफेज़िया’ शब्द वाक् संबंधी विकार से संबंधित हैं। मैलप्रॉपिज़्म: जब हम समान शब्द को अलग-अलग अर्थों में प्रतिस्थापित करके गलत शब्द का उच्चारण करते हैं, जैसे 'स्पेसिफिक तथा पैसिफ़िक'।

स्पूनरिज्म: यह एक वाक् विकार है जिसमें दो ध्वनियों का आदान-प्रदान होता है। इसका नाम 'विलियम स्पूनर' के नाम पर रखा गया था। अफेज़िया: इसमें मस्तिष्क के एक विशेष हिस्से को क्षति पहुँचने के कारण भाषा के प्रयोग में अवरोध उत्पन्न होता है जिसकी वज़ह से भाषा रूपों को समझने तथा बोलने में कठिनाई होती है।

  • हाइबरनेशन ऐसी परिघटना है जिसमें कुछ स्तनधारी तीव्र सर्दियों हेतु अनुकूलन के रूप में चयापचय गतिविधि को कम करते हुए अपने शरीर के तापमान को कम कर देते हैं।

ग्रीष्म निष्क्रियता (Aestivation) हाइबरनेशन की भाँती ही पशुओं में निष्क्रियता की एक अवस्था है, हालाँकि यह सर्दियों की बजाय गर्मियों में होती है। यह ग्रीष्म, शुष्क और तप्त शुष्क मौसम के दौरान होती है।

  • किसी पक्षी द्वारा ग्रहण किये गए भोजन को तोड़ने की प्रक्रिया उसके एक विशेष अंग में होती है जिसे गिज़ार्ड (gizzard) कहा जाता है।

यह Saclike Crop और आँत के बीच स्थित होता है। गिज़ार्ड एक बहुत कठोर माँसपेशियों की संरचना होती है जो भोजन को चबाने में मदद करती है।