सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा सहायिका/पंचायती राज,केंद्र शासित प्रदेश और लोकनीति

मुझे बिहार मे काम चाहेय मोटर ओनडिग काम भागलपुर पक्कीसराय पंचायत वाड नंबर 4 कुशाहा सर नेम - उदय कुमार पिता जी का नेम प्रकाश मंडल गाँव कुशाहा

केंद्र शासित प्रदेश

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पुर्तगालियों ने वर्ष 1954 तक दादरा और नागर हवेली की मुक्ति तक इस पर शासन किया। वर्ष 1961 तक लोगों द्वारा चुने गए प्रशासक द्वारा प्रशासन का संचालन किया गया। इसे 10वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1961 द्वारा दादरा और नागर हवेली को भारत के केंद्रशासित प्रदेश में परिवर्तित कर दिया गया। भारत में पुद्दुचेरी, कराइकल, माहे और यनम के नाम से विदित पुद्दुचेरी का क्षेत्र फ्रांसीसी नियंत्रण में था। फ्राँस ने वर्ष 1954 में इस क्षेत्र को भारत को सौंप दिया। इसे वर्ष 1962 तक 'अधिग्रहित क्षेत्र' के रूप में प्रशासित किया गया था, फिर 14वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1962 द्वारा इसे एक केंद्रशासित प्रदेश बनाया गया। वर्ष 1971 में केंद्रशासित राज्य हिमाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा देते हुए भारतीय संघ में 18वें राज्य के रूप में शामिल कर लिया गया। वर्ष 1992 में 69वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1991 द्वारा केंद्रशासित प्रदेश दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (पूर्ण राज्य का दर्जा दिए बिना) के रूप में विशेष दर्जा प्रदान किया गया।

संविधान की छठी अनुसूची में चार उत्तर-पूर्वी राज्यों असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम के जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन के लिये विशेष प्रावधान शामिल हैं। छठी अनुसूची में निहित प्रशासन की कुछ मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं: असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम के जनजातीय क्षेत्रों में स्वशासी ज़िलों का गठन किया गया है, लेकिन वे संबंधित राज्य के कार्यकारी प्राधिकार से बाहर नहीं हैं। राज्यपाल को स्वशासी ज़िलों को स्थापित करने और पुनर्गठित करने का अधिकार है। प्रत्येक स्वशासी ज़िले में 30 सदस्यों वाली एक ज़िला परिषद होती है।इनमें से चार सदस्य राज्यपाल द्वारा मनोनीत होते हैं तथा शेष 26 वयस्क मताधिकार के आधार पर चुने जाते हैं। ज़िला परिषदें अपने अधिकार क्षेत्र के तहत आने वाले क्षेत्रों में प्रशासन संबंधी उत्तरदायित्व संभालती हैं। ये भूमि, वन, नहर जल, स्थानान्तरण कृषि, ग्राम प्रशासन, संपत्ति के उत्तराधिकार, विवाह और तलाक, सामाजिक रीति-रिवाज़ जैसे कुछ विशिष्ट मामलों पर कानून बना सकती हैं, लेकिन ऐसे सभी कानूनों के लिये राज्यपाल की सहमति की आवश्यकता होती है। ज़िला और प्रादेशिक परिषदें अपने अधीन क्षेत्रों में जनजातियों से संबंधित मुकदमों और मामलों की सुनवाई के लिये ग्राम परिषदों या न्यायालयों का गठन कर सकती हैं। इन मुकदमों और मामलों पर उच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार राज्यपाल द्वारा निर्धारित किया जाता है। राज्यपाल स्वशासी ज़िलों या क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित किसी भी मामले पर जाँच और रिपोर्ट देने के लिये एक आयोग नियुक्त कर सकता हैं। राज्यपाल आयोग की सिफारिश पर ज़िला या क्षेत्रीय परिषदों को भंग कर सकता है।