सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा सहायिका/पर्यावरण से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय संगठन तथा सम्मेलन

  • कोडेक्स एलिमेंटेरियस या ‘खाद्य कोड’ कोडेक्स एलिमेंटेरियस आयोग द्वारा अपनाए गए मानकों, दिशा-निर्देशों और कूटों का एक संग्रह है।

ये मानक एवं दिशा-निर्देश यह सुनिश्चित करते हैं कि खाद्य उत्पाद उपभोक्ताओं के लिये सुरक्षित हैं तथा इनका व्यापार किया जा सकता है।

वर्ष 1962 में स्थापित कोडेक्स एलिमेंटेरियस कमीशन खाद्य और कृषि संगठन (FAO) तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के संयुक्त खाद्य मानक कार्यक्रम का मुख्य भाग है।
  • अंतर्राष्ट्रीय बीज संधि का उद्देश्य खाद्य और कृषि के लिये पादप आनुवंशिक संसाधनों का संरक्षण एवं सतत् उपयोग करना है और जैव-विविधता पर अभिसमय के अनुरूप उनके उपयोग से उत्पन्न होने वाले लाभों का उचित तथा न्यायसंगत साझाकरण सुनिश्चित करना है।
भारत इस संधि का हस्ताक्षरकर्त्ता देश है और भारत ने इसके अनुपालन हेतु पादप किस्मों का संरक्षण और किसान अधिकार (PPV&FR) अधिनियम, 2001 लागू किया है।

अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन सम्पादन

प्र. संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम कन्वेंशन के महत्त्व क्या है/हैं? (2016)

  1. इसका उद्देश्य अभिनव राष्ट्रीय कार्यक्रमों और सहायक अंतर्राष्ट्रीय भागीदारी के माध्यम से प्रभावी कार्रवाई को बढ़ावा देना है।
  2. इसका दक्षिण एशिया और उत्तरी अफ्रीका क्षेत्रों पर विशेष / विशेष ध्यान है और इसका सचिवालय इन क्षेत्रों के लिये वित्तीय संसाधनों के एक बड़े हिस्से के आवंटन की सुविधा प्रदान करता है।
  3. यह मरुस्थलीकरण का मुकाबला करने में स्थानीय लोगों की भागीदारी को प्रोत्साहित करते हुए एक निचले दृष्टिकोण के लिये प्रतिबद्ध है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3

:(c) केवल 1 और 3 [उत्तर]

(d) 1, 2 और 3
प्र. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:(2019)
  1. भ्रष्टाचार के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UNCAC) का भूमि, समुद्र और वायुमार्ग द्वारा प्रवासियों की तस्करी के विरुद्ध एक 'प्रोटोकॉल' होता है।
  2. UNCAC, वैश्विक रूप से अब तक का पहला विधितः बाध्यकारी सार्वभौम भ्रष्टाचार निरोधी लिखत है।
  3. राष्ट्र-पार संगठित अपराध के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन अगेंस्ट ट्रांसनैशनल ऑर्गेनाइज़्ड क्राइम (UNTOC) की एक विशिष्टता ऐसे एक विशिष्ट अध्याय का समावेशन है , जिसका लक्ष्य उन संपत्तियों को उनके वैध स्वामियों को लौटाना है जिनसे वे अवैध तरीके से ले ली गई थीं ।
  4. मादक द्रव्य और अपराध विषयक संयुक्त राष्ट्र कार्यालय [यूनाइटेड नेशंस ऑफिस ऑन ड्रग्स ऐंड क्राइम (UNODC)] संयुक्त राष्ट्र के सदस्य राज्यों द्वारा UNCAC और UNTOC दोनों के कार्यान्वयन में सहयोग करने के लिये अधिदेशित है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही है/हैं?

(a) केवल 1और 3
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 2 और 4[उत्तर]
(d) 1, 2, 3 और 4
  • संयुक्त राष्ट्र मरूस्थलीकरण रोकथाम अभिसमय’(UNCCD)मरुस्थलीकरण को रोकने के लिये एक कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय समझौता है।
जून 1994 में पेरिस में अपनाया गया।

भारत वर्ष 1994 में इसका हस्ताक्षरकर्त्ता देश बन गया और उसने 1996 में इसकी पुष्टि की।

UNCCD एकमात्र अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जो पर्यावरण एवं विकास के मुद्दों पर कानूनी रूप से बाध्यकारी है। मरुस्थलीकरण की चुनौती से निपटने के लिये अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों के बारे में लोगों में जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से प्रत्येक वर्ष 17 जून को ‘विश्व मरुस्थलीकरण और सूखा रोकथाम दिवस’ मनाया जाता है।

कॉन्फ्रेंस ऑफ़ पार्टीज़ (COP) UNCCD का सर्वोच्च निर्णय लेने वाला निकाय है। COP की बैठकें वर्ष 2001 से प्रत्येक 2 वर्ष में आयोजित की जाती हैं।

  • बॉन चुनौती (Bonn Challenge) एक वैश्विक प्रयास है। इसके तहत दुनिया के 150 मिलियन हेक्टेयर गैर-वनीकृत एवं बंजर भूमि पर वर्ष 2020 तक और 350 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर वर्ष 2030 तक वनस्पतियाँ उगाई जाएंगी।

पेरिस में आयोजित संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन,2015 में भारत ने स्वैच्छिक रूप से बॉन चुनौती पर स्वीकृति दी थी। भारत ने 13 मिलियन हेक्टेयर गैर-वनीकृत एवं बंजर भूमि पर वर्ष 2020 तक और अतिरिक्त 8 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर 2030 तक वनस्पतियाँ उगाने की प्रतिबद्धता व्यक्त की है।

  • वर्ष 1992 में रियो डी जेनेरियो में आयोजित पृथ्वी सम्मेलन में सभी राष्ट्रों से जैव-विविधता के संरक्षण और इसके लाभों के सतत् उपयोग के लिये उचित उपाय करने का आह्वान किया गया था।

इस सम्मेलन में तीन रियो अभिसमयों की शुरुआत हुई:-

  1. जैव-विविधता पर अभिसमय (Convention on Biological Diversity- CBD);
  2. जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC);
  3. संयुक्‍त राष्‍ट्र मरुस्‍थलीकरण रोकथाम अभिसमय (UNCCD)।

मई 2010 में वैश्विक पर्यावरण सुविधा (Global Environment Facility- GEF) के चौथे सम्मेलन में इसमें संशोधन किया गया तथा इसे UNCCD का वित्तीय तंत्र बनाया गया। GEF, UNCCD की कॉप-13 (चीन) में अपनाया गया। UNCCD 2018-2030 रणनीतिक फ्रेमवर्क सहित इस कन्वेंशन के कार्यान्वयन में प्रत्यक्ष रूप से योगदान देता है।

  • पृथ्वी सम्मेलन की समीक्षा हेतु वर्ष 2002 में दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में सतत् विकास पर विश्व शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया,जिसमें 190 देशों ने वर्ष 2010 तक वैश्विक, क्षेत्रीय और स्थानीय स्तर पर जैव-विविधता के हानि की वर्तमान दर में कमी लाने हेतु प्रतिबद्धता जताई।
अधिक से अधिक जैविक संसाधनों की बायोप्रोस्पेक्टिंग से समृद्ध जैव-विविधता से संपन्न राष्ट्र बड़े पैमाने पर लाभार्जन कर सकते हैं। बायोप्रोस्पेक्टिंग आर्थिक महत्त्व के उत्पादों के निर्माण के लिये आण्विक, आनुवांशिक और प्रजातियों के स्तर की विविधता का पता लगाने और इनके व्यवसायीकरण की प्रक्रिया को संदर्भित करता है।

इस प्रक्रिया में संलग्न व्यक्तियों अथवा संस्थानों द्वारा इन जैविक संसाधनों और देशज ज्ञान पर विशेष एकाधिकार नियंत्रण (पेटेंट या बौद्धिक संपदा अधिकार) स्थापित करना तथा स्वदेशी समुदायों के ज्ञान एवं आनुवंशिक संसाधनों तथा उत्पन्न लाभों को देशज समुदायों के साथ साझा किये बिना अथवा क्षतिपूर्ति दिये बिना इनका उपयोग करना बायोपाइरेसी कहलाता है।

  • SDG-15 का विषय- स्थलीय जीवों की सुरक्षा, स्थलीय पारिस्‍थतिकी तंत्र का संरक्षण, पुनर्जीवन एवं संवर्द्धन, वनों का संधारणीय प्रबंधन, मरुस्‍थलीकरण का सामना और भूमि क्षय को रोकना तथा ठीक करना और जैव-विविधता क्षति को रोकना।
  • मिनामाटा कन्वेंशन मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण को पारा एवं इसके यौगिकों के प्रतिकूल प्रभावों से बचाने के लिये एक वैश्विक संधि है। अपने पूरे जीवनकाल में पारा के मानवजनित निर्गमन को नियंत्रित करना मिनामाटा कन्वेंशन के प्रमुख दायित्वों में से एक है।
मिनामाटा कन्वेंशन 16 अगस्त, 2017 से लागू हुआ। फरवरी 2020 तक भारत सहित 118 देशों ने इस कन्वेंशन की पुष्टि कर दी है।
  • रॉटरडैम अभिसमय के मूलपाठ (Text) को 10 सितंबर,1998 को रॉटरडैम, नीदरलैंड्स में प्लेनिपोटेंटियरीज कॉन्फ्रेन्स में अपनाया गया था। यह अभिसमय 24 फरवरी, 2004 को लागू हुआ।

इस अभिसमय के निम्नलिखित उद्देश्य हैं : मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण को होने वाले संभावित नुकसान से बचाने के लिये कुछ खतरनाक रसायनों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में सहयोगी देशों के बीच साझा ज़िम्मेदारी और सहकारी प्रयासों को बढ़ावा देना। उन खतरनाक रसायनों के पर्यावरणीय दृष्टि से उचित उपयोग में योगदान करने, उनकी विशेषताओं के बारे में जानकारी के आदान-प्रदान की सुविधा प्रदान करने तथा रसायनों के आयात और निर्यात पर निर्णयों को संबंधित सदस्य देशों तक पहुँचाने एवं निर्णय लेने की राष्ट्रीय प्रक्रिया प्रदान करना। यह अभिसमय पूर्व सूचित सहमति (PIC) प्रक्रिया के कार्यान्वयन के लिये कानूनी रूप से बाध्यकारी दायित्व है। यह स्वैच्छिक प्रक्रिया पर बनाया गया तथा 1989 में UNEP और FAO द्वारा शुरू किया गया था और 24 फरवरी 2006 को इस पर विराम लगा दिया गया।

  • स्टॉकहोम अभिसमय-2001 में अपनाया गया तथा इसके द्वारा स्थायी कार्बनिक प्रदूषक(POPs)को नियंत्रित किया जाता है। भारत ने मई 2002 में इस पर हस्ताक्षर किये और जनवरी 2006 में इसकी पुष्टि की थी।

स्टॉकहोम अभिसमय का उद्देश्य औद्योगिक रसायनों और कीटनाशकों में पाए जाने वाले सभी प्रकार के POPs के उत्पादन एवं उपयोग को खत्म करना या प्रतिबंधित करना है। ऑर्गेनोक्लोरिन कीटनाशक, जैसे- DDT,पॉलीक्लोरीनेटेड डाईबेंजो-p-डाईऑक्सिन्स (PCCDs) और डाईबेंजोफ्यूरॉन्स (PCDF), जिन्हें प्राय: 'डाइऑक्सिन' कहा जाता है आदि POPs के उदाहरण है।

स्थायी कार्बनिक प्रदूषक(POPs)कम खतरनाक रूपों में निम्नीकृत होने से पहले कई वर्षों तक पर्यावरण में बने रह सकते हैं। ये खाद्य शृंखला में जैव-आवर्द्धन और जीवों में जैव-संचयन करते हैं। इस प्रकार खाद्य शृंखला के शीर्ष जीवों में POPs की उच्चतम सांद्रता पाई जाती है। परिणामस्वरूप, मानव शरीर में मौजूद हो सकते है।

ये हवा और जल के बहाव द्वारा सुदूर स्थानों तक पहुँच जाते हैं और दुनिया भर में पाए जा सकते हैं।

भारतीय संगठन तथा भारतीय प्रयास सम्पादन

  • जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) पर्यावरण, वन एवं जलवायु मंत्रालय (MoEF&CC) के तहत पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 द्वारा स्थापित एक सांविधिक निकाय है। अतः कथन 1 सही नहीं है।

GEAC, देश में खतरनाक सूक्ष्म जीवों या आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों और कोशिकाओं के निर्माण, उपयोग, आयात, निर्यात और भंडारण को नियंत्रित करने हेतु शीर्ष निकाय है।

  • वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो (WCCB),पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत स्थापित एक बहु-विषयक सांविधिक निकाय है।

वन्यजीव (सुरक्षा) अधिनियम, 1972 के तहत यह संगठित वन्यजीव अपराध गतिविधियों से संबंधित खुफिया जानकारी एकत्रित और समानुक्रमित करने तथा राज्य एवं अन्य प्रवर्तन एजेंसियों को तत्काल कार्रवाई के लिये सूचित करने हेतु अधिदेशित है।

  • CSIR- राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित ‘इंडएयर’ की स्थापना का उद्देश्य वायु गुणवत्ता अनुसंधान की जानकारी को सभी के लिये उपलब्ध कराना है। यह वायु गुणवत्ता पर शोध संकलन के लिये देश की पहली संवादात्मक ऑनलाइन रिपोेज़िटरी है।
  • भारत में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (United Nations Development Programme- UNDP) ने एक त्वरक प्रयोगशाला (Accelerator Lab) की स्थापना की है। इस परियोजना की स्थापना सरकार के अटल नवाचार मिशन (AIM) की सहभागिता से की गई थी और यह प्रयोगशाला कुछ प्रमुख मुद्दों जैसे- वायु प्रदूषण एवं सतत् जल प्रबंधन जैसी समस्याओं का समाधान नवाचारों के माध्यम से करने का प्रयास करेगी।

इसका उद्देश्य वर्ष 2030 तक सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) को प्राप्त करने के लिये तेज़ी से प्रगति करना है। एक्सलेरेटर प्रयोगशाला UNDP, जर्मनी और कतर द्वारा 21वीं सदी की जटिल एवं नई चुनौतियों के समाधान हेतु शुरू की गई एक नई पहल है। भारत की एक्सलेरेटर लैब 78 राष्ट्रों को कवर करने वाली 60 वैश्विक प्रयोगशालाओं के एक नेटवर्क का हिस्सा होगी जो जलवायु परिवर्तन और असमानता जैसी वैश्विक चुनौतियों के नए समाधान प्रस्तुत करेगी।

  • UNEP के सहयोग से भारत वर्ष 2018 में विश्व पर्यावरण दिवस का वैश्विक मेज़बान था, जिसका विषय ‘प्लास्टिक प्रदूषण को हराएँ’ था।

पिछले वर्ष भारत विश्व पर्यावरण दिवस पर ‘स्वच्छ समुद्र अभियान’ में शामिल हुआ। भारत 2022 तक एकल उपयोग वाले सभी प्रकार के प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा कर प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने के लिये साहसिक प्रतिबद्धता व्यक्त की।

  • राष्ट्रीय जैव-विविधता प्राधिकरण (National Biodiversity Authority- NBA) की स्थापना

जैव-विविधता अधिनियम (2002) को क्रियान्वित करने के लिये केंद्र सरकार द्वारा वर्ष 2003 में की गई थी। यह एक वैधानिक निकाय है, इस प्राधिकरण का उद्देश्य भारत की समृद्ध जैव-विविधता के ज्ञान को संरक्षित रखकर वर्तमान और भावी पीढ़ियों के कल्याण के लिये जैव-विविधता के लाभों के निष्पक्ष वितरण को सुनिश्चित करना है।

  1. राज्य स्तर पर राज्य जैव-विविधता बोर्ड (State Biodiversity Board- SBB) राज्य सरकारों को सलाह देने तथा केंद्र सरकार द्वारा जैव-विविधता के संरक्षण, इसके घटकों के सतत् उपयोग और जैविक संसाधनों के उपयोग से उत्पन्न लाभों के न्यायसंगत साझाकरण से संबंधित मामलों में दिये गए किसी भी दिशा-निर्देश के पालन पर ध्यान केंद्रित करता है।
  2. स्थानीय स्तर की जैव-विविधता प्रबंधन समितियाँ (Biodiversity Management committees- BMC) जीवों के संरक्षण, जैव-विविधता के सतत् उपयोग को बढ़ावा देने, जिसमें उनके आवासों का संरक्षण भी निहित है, भूमि विविधता, लोक किस्मों एवं कृषकों का संरक्षण, पशुओं और सूक्ष्मजीवों की नस्लों के संरक्षण के अलावा जैविक विविधता से संबंधित ज्ञान के संरक्षण के लिये उत्तरदायी हैं।
राज्य सरकार स्थानीय निकायों के साथ परामर्श कर, जैव-विविधता अधिनियम, 2002 के तहत जैव-विविधता महत्त्व वाले क्षेत्र को जैव-विविधता विरासत स्थल (Biodiversity Heritage Sites- BHS) के रूप में अधिसूचित कर सकती है,।
  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) का गठन जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के अंतर्गत सितंबर 1974 में एक सांविधिक संगठन के रूप में किया गया था।
वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के अंतर्गत शक्तियाँ व कार्य सौंपे गए।

CPCB के प्रमुख कार्य हैं:-जल प्रदूषण, निवारण एवं नियंत्रण के माध्यम से राज्यों के विभिन्न क्षेत्रों में नदियों तथा कुओं की सफाई को बढ़ावा देना। वायु की गुणवत्ता में सुधार करना तथा देश में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करना एवं रोकथाम। यह पर्यावरण (सुरक्षा) अधिनियम,1986 के प्रावधानों के अंतर्गत पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को तकनीकी सेवाएँ भी उपलब्ध कराता है।

  • जलीय पारितंत्र के संरक्षण हेतु राष्ट्रीय कार्ययोजना (NPCA) आर्द्रभूमियों और झीलों दोनों के लिए एक एकल संरक्षण कार्यक्रम है।

यह केंद्र प्रायोजित योजना (Central Sponsored Scheme) है जो वर्तमान में केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित की जा रही है। वर्ष 2015 में इसे ‘राष्ट्रीय झील संरक्षण योजना’ और ‘राष्ट्रीय आर्द्रभूमि संरक्षण कार्यक्रम’ के विलय से तैयार किया गया। NPCA को विभिन्न विभागों के मध्य बेहतर तालमेल को बढ़ावा देने और प्रशासनिक कार्यों के ओवरलैपिंग से बचने के लिये तैयार किया गया है।

  • भारतीय प्राणी विज्ञान सर्वेक्षण (Zoological Survey of India- ZSI) पर्यावरण और वन मंत्रालय के तहत एक संगठन है। समृद्ध जीवन के विभिन्न पहलुओं के बारे में जानकारी उपलब्ध कराने हेतु अग्रणी तथा सर्वेक्षण,अन्वेषण और अनुसंधान को बढ़ावा देने के उद्देश्य से भारतीय प्राणी विज्ञान सर्वेक्षण (ZSI) की स्थापना तत्कालीन 'ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य' में 1 जुलाई, 1916 को की गई थी।

इसका उद्भव 1875 में कलकत्ता के भारतीय संग्रहालय में स्थित प्राणी विज्ञान अनुभाग की स्थापना के साथ ही हुआ था। इसका मुख्यालय कोलकाता में है तथा वर्तमान में इसके 16 क्षेत्रीय स्टेशन देश के विभिन्न भौगोलिक स्थानों में स्थित हैं।

अंतर्राष्ट्रीय संगठन सम्पादन

  • वैश्विक कार्बन परियोजना (Global Carbon Project-GCP) फ्यूचर अर्थ की वैश्विक अनुसंधान परियोजना और वर्ल्ड क्लाइमेट रिसर्च प्रोग्राम का अनुसंधान भागीदार है। इसकी स्थापना वर्ष 2001 में इंटरनेशनल जियोस्फीयर-बायोस्फीयर प्रोग्राम (IGBP), इंटरनेशनल ह्यूमन डाइमेनशन्स प्रोग्राम ऑन ग्लोबल एन्वायर्नमेंटल चेंजेस (IHDP), वर्ल्ड क्लाइमेट रिसर्च प्रोग्राम (WCRP) एवं डायवर्सिटस (DIVERSITAS) नामक अंतर्राष्ट्रीय शोध कार्यक्रम के बीच साझेदारी द्वारा की गई थी।
इस साझेदारी ने अर्थ सिस्टम साइंस पार्टनरशिप (ESSP) का गठन किया जो बाद में फ्यूचर अर्थ के रूप में विकसित हुआ।

यह अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक समुदाय के साथ कार्य करने हेतु विकसित किया गया था,जिसका उद्देश्य नीतिगत बहस और कार्रवाई द्वारा वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों की वृद्धि को रोकने के लिये पारस्परिक रूप से आम सहमति स्थापित करना है। जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये, GCP ने मुख्य रूप से अपना ध्यान वैश्विक जैव-भूरासायनिक चक्रों पर केंद्रित किया है, जो कि तीन ग्रीनहाउस गैसों- कार्बन डाइऑक्साइड (CO2),मीथेन (CH4),और नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) को नियंत्रित करते हैं।

  • वन्यजीवों और वनस्पतियों की संकटग्रस्‍त प्रजातियों में अंतर्राष्‍ट्रीय व्‍यापार पर अभिसमय’ (Convention on International Trade in Endangered Species of Wild Fauna and Flora-CITES) संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) द्वारा प्रशासित है और यह जिनेवा,स्विट्जरलैंड में स्थित है।
बाध्यकारी है अर्थात् उन्हें इसके प्रावधानों को विधि-निर्माण द्वारा लागू करना होगा, लेकिन यह राष्ट्रीय कानून का स्थान नहीं लेता है।
  1. परिशिष्ट-I:-सर्वाधिक संकटग्रस्त हैं। तथा जिन पर विलुप्ति का खतरा बना हुआ है और इन्हें व्यापार से और भी अधिक खतरा हो सकता है।

उदाहरण- गोरिल्ला, समुद्री कछुए, विशाल पांडा, आदि। वर्तमान में इसमें 931 प्रजातियाँ सूचीबद्ध हैं। CITES इन प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को प्रतिबंधित करता है लेकिन वैज्ञानिक अनुसंधान के लिये किये जा रहे आयात में कुछ छूट दी जाती है।

  1. परिशिष्ट-II :-निकट भविष्य में लुप्त होने का खतरा नहीं है लेकिन ऐसी आशंका है कि यदि इन प्रजातियों के व्यापार को सख्त तरीके से नियंत्रित नहीं किया गया तो ये लुप्तप्राय की श्रेणी में आ सकती हैं।

इस परिशिष्ट में अधिकांश CITES प्रजातियाँ सूचीबद्ध हैं, जिनमें अमेरिकी जिनसेंग (American Ginseng), पैडलफिश (Paddlefish), शेर, अमेरिकी घड़ियाल (American Alligators), महोगनी (Mahogany) और कई प्रवाल शामिल हैं। इसमें वर्तमान में 34,419 प्रजातियाँ सूचीबद्ध हैं।

इसमें तथाकथित ‘सादृश्य प्रजातियाँ’ (Look-alike Species) भी शामिल है, अर्थात् उन प्रजातियों के नमूने व्यापार में एक जैसे प्रतीत होते है। इसलिये संरक्षण उद्देश्यों से इन्हें भी सूचीबद्ध किया जाता है।

CITES के तहत इन प्रजातियों के लिये कोई आयात परमिट आवश्यक नहीं है (हालाँकि कुछ देशों में एक परमिट की आवश्यकता होती है जिन्होंने CITES की तुलना में कठोर कदम उठाए हैं)।

  1. परिशिष्ट-III:- किसी एक पक्ष/देश द्वारा नियंत्रण/संरक्षण के लिये पहचान की गई है। इस परिशिष्ट में शामिल प्रजातियों के व्यापार को नियंत्रित करने के लिये दूसरे पक्षों का सहयोग अपेक्षित है।

इसमें मैप टर्टल (Map Turtles), दरियाई घोड़ा, जैसी प्रजातियाँ शामिल हैं। वर्तमान में इसमें 147 प्रजातियाँ सूचीबद्ध हैं। इस परिशिष्ट में सूचीबद्ध प्रजातियों से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को केवल उचित परमिट या प्रमाण-पत्र की प्रस्तुति पर ही अनुमति दी जाती है।

  • पर्यावरण एवं विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCED) 1992 में रियो डी जनेरियो में आयोजित एक प्रमुख संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन था। इसे रियो डी जेनेरियो अर्थ समिट, रियो समिट, रियो सम्मेलन और पृथ्वी शिखर सम्मेलन के रूप में भी जाना जाता है।
सतत् विकास पर विश्व शिखर सम्मेलन (WSSD) 2002 में जोहान्सबर्ग में आयोजित किया गया था,जिसके परिणामस्वरूप सतत् विकास पर जोहान्सबर्ग घोषणा की गई थी। इसे रियो +10 के नाम से भी जाना जाता है।

मानव पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन 1972 में स्टॉकहोम में आयोजित किया गया था। इसने संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) की स्थापना की।

  • ट्रैफिक (TRAFFIC) वन्यजीव व्यापार निगरानी नेटवर्क, WWF और इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंज़र्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) का संयुक्त कार्यक्रम है।

TRAFFIC यह सुनिश्चित करने का काम करता है कि जंगली वनस्पतियों और जानवरों का व्यापार प्रकृति के संरक्षण के लिये खतरा नहीं है। TRAFFIC ने लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES) का समर्थन करने के लिये सर्वश्रेष्ठ प्रतिष्ठा हासिल की है। TRAFFIC विश्वव्यापी प्रजातियों के नवीनतम व्यापार जैसे- बाघों के अंगों, हाथी दाँत और गैंडे के सींग आदि के व्यापार संबंधी मुद्दों पर संसाधनों, विशेषज्ञता और जागरूकता का लाभ उठाने पर ध्यान केंद्रित करता है।

  • जैव विविधता पर अभिसमय (Convention on Biological Diversity-CBD) कानूनी रूप से बाध्यकारी एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है। इसका सचिवालय मॉन्ट्रियल,कनाडा में अवस्थित है।

लक्ष्य:- जैव विविधता का संरक्षण तथा सतत् उपयोग। आनुवंशिक संसाधनों के उपयोग से होने वाले लाभों का उचित एवं न्यायसंगत साझाकरण। यह सभी स्तरों-पारिस्थितिक तंत्र,प्रजातियाँ तथा आनुवंशिक संसाधन पर जैव विविधता को शामिल करता है। यह जैव सुरक्षा पर कार्टाजेना प्रोटोकॉल के माध्यम से जैव प्रौद्योगिकी को भी शामिल करता है। CBD का शासी निकाय पक्षकारों का सम्मेलन (Conference Of the Parties-COP) है। सभी सरकारों (या पार्टियों) के अंतिम प्राधिकारी जिन्होने इस संधि की पुष्टि की है, प्रत्येक दो वर्ष में प्रगति की समीक्षा करने, प्राथमिकताएँ निर्धारित करने तथा कार्य योजनाओं के लिये प्रतिबद्धता व्यक्त करने हेतु बैठक करते हैं।