सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा सहायिका/भारत तथा विश्व का भौतिक,सामाजिक एवं आर्थिक भूगोल

  • फेनी नदी का उद्गम दक्षिण त्रिपुरा ज़िले से होता है तथा यह सबरूम शहर से होकर बहती हुई बांग्लादेश में प्रवेश करती है।
  • ज्वार-भाटाओं की उत्पत्ति का कोरियॉलिस बल से कोई संबंध नहीं है।
  • अटलांटिक मेरिडिओनल ओवरटर्निंग सर्कुलेशन(AMOC)पृथ्वी की सबसे बड़ी जल संचलन प्रणालियों में से एक है। इसके तहत महासागरों की धाराएंँ उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों से गर्म और लवणीय जल को उत्तर दिशा जैसे कि पश्चिमी यूरोप की ओर ले जाती हैं तथा ठंडे जल को दक्षिण की ओर भेजती है।

यह एक ऐसी धारा प्रणाली है जो एक वाहक बेल्ट (Conveyor Belt) के रूप में तापमान और लवणता के अंतर (पानी का घनत्व) द्वारा संचालित होती है। इस प्रकार के समुद्री जल संचलन से महासागरों का तापमान संतुलित रहता है और चरम जलवायु के बजाय सामान्य जलवायु की उपस्थिति बनी रहती है। AMOC हज़ारों वर्षों से स्थिर बना हुआ था लेकिन पिछले 15 वर्षों से यह कमज़ोर पड़ रहा है। AMOC के कमज़ोर पड़ने से यूरोप और अटलांटिक रिम (Atlantic Rim) के अन्य हिस्सों में प्रभावशाली परिणाम देखने को मिल सकता है। हिंद महासागर क्षेत्र के अधिक गर्म होने से यहाँ अतिरिक्त वर्षा हो रही है। इस क्षेत्र में अधिक प्रबल निम्न दाब का निर्माण हो रहा है जिससे यह क्षेत्र विश्व के अन्य क्षेत्रों से भी हवाओं को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है, फलतः अटलांटिक महासागर जैसे क्षेत्र में वर्षा के लिये विपरीत स्थितियाँ उत्पन्न हो रही हैं। हिंद महासागर में अतिरिक्त वर्षा होने के कारण अटलांटिक महासागर में कम वर्षा होने की प्रवृति देखी जा रही है जिससे वहाँ के जल में लवणता का स्तर बढ़ रहा है। अटलांटिक में यह लवणीय जल जब AMOC के माध्यम से उत्तर की ओर आता है, तो अपेक्षाकृत जल्दी ठंडा होकर तेज़ी से नीचे बैठ जाता है। उपरोक्त प्रक्रिया AMOC को तीव्र करने के लिये प्रेरक के रूप में कार्य करते हुए इस संचरण को ओर तेज़ करेगी।

  • प्रशांत दशकीय दोलन (PDO) प्रशांत महासागर में होने वाला एक दीर्घकालिक जलवायविक उतार-चढ़ाव है,जो लगभग प्रत्येक 20 से 30 वर्षों में देखने को मिलता है।

उष्णकटिबंधीय प्रशांत क्षेत्र में एल-नीनो अथवा ला-नीना की तरह, PDO में समुद्र की सतह के तापमान में लंबे समय तक (दशकीय स्तर पर) परिवर्तन की परिघटना है और वायुमंडल के साथ इसके अंतर्संबंध का भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में ग्रीष्मकालीन मानसून पर प्रभाव पड़ता है। प्रशांत दशकीय दोलन (PDO), एल नीनो-दक्षिणी दोलन (ENSO) के समान ही प्रशांत महासागर में जलवायु परिवर्तनशीलता का एक पैटर्न है, लेकिन इसमें परिवर्तन वृहत् समयसीमा में देखने को मिलते हैं। प्रशांत दशकीय दोलन (PDO) 20 से 30 वर्षों तक एक ही अवस्था में रह सकता है, जबकि ENSO चक्र प्राय: 6 से 18 महीनों तक बना रहता है। भारत में वर्षा काफी हद तक मानसूनी वर्षा पर निर्भर करती है और यह पाया गया है कि इस क्षेत्र में वर्षा की कमी PDO से अंतर्संबंधित है। मानसून द्वारा कम वर्षा उपोष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में प्राकृतिक परिवर्तनों से जुड़ी परिघटना है।


  • उत्तरी विषुवतरेखीय धारा और दक्षिणी विषुवतरेखीय धारा, पूर्व से पश्चिम की ओर बहने वाली दो विषुवतरेखीय धाराएँ हैं।

प्रति विषुवतरेखीय धारा विषुवत रेखा के समानांतर पश्चिम से पूर्व की ओर प्रवाहित होती है। यह धारा स्पष्ट रूप से अटलांटिक एवं प्रशांत महासागर में देखी जाती है। हिंद महासागर में प्रतिविषुवतीय धारा पश्चिम में जंजीबार द्वीप के निकट आरंभ होकर पूर्व की ओर प्रवाहित होती है। वास्तव में महासागरों के पश्चिम भाग में विषुवत रेखा के समीप उत्तर तथा दक्षिण विषुवतरेखीय धाराओं के अभिसरण के कारण इतनी अधिक मात्रा में जलराशि एकत्रित हो जाती है कि पश्चिम से पूर्व की ओर सामान्य ढाल बन जाता है। इससे क्षतिपूर्ति के रूप में विषुवतीय धारा प्रवाहित होने लगती है ।

  • जलसंधि/जलडमरूमध्य (Strait) का तात्त्पर्य एक संकीर्ण जल निकाय से है, जो दो बड़े जल निकायों को जोड़ता है। जैसे- पाक जलडमरूमध्य तथा ज़िब्राल्टर जलडमरूमध्य आदि।

एक स्थलडमरूमध्य (Isthmus) का तात्पर्य भूमि की एक संकीर्ण पट्टी से है जो दो बड़े भू-भागों/भूखंडों को जोड़ती है और दो जल निकायों को अलग करती है। जैसे- उत्तरी अमेरिका और दक्षिणी अमेरिका को जोड़ने वाला पनामा स्थलडमरूमध्य।