सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा सहायिका/मुगल काल
वली अहद इस काल के शासक अपने उत्तराधिकारी को कहते थे। शाहजहाँ के काल में उत्तराधिकारी को लेकर संकट उत्पन्न हो गया था तथा शाहजहाँ दाराशिकोह को अपना वली अहद (उत्तराधिकारी) बनाना चाहता था।
शेरशाह
सम्पादनइसका साम्राज्य बंगाल से लेकर सिंधु नदी तक फैला हुआ था, परन्तु उसमें कश्मीर शामिल नहीं था। पश्चिम में वह मालवा और राजस्थान को भी जीत चुका था। शेरशाह ने अपना अंतिम सैनिक अभियान कालिंजर के खिलाफ किया था, जो एक मज़बूत किला था। जिस पर अधिकार करके वह बुंदेलखंड पर पैर जमाना चाहता था। उसी समय एक तोप फटने से शेरशाह बुरी तरह घायल हो गया और उसकी मृत्यु हो गई।
- शेरशाह की ‘भू-राजस्व प्रणाली’ के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः
- दरों की सूची ‘रे’ का प्रचलन करवाया।
- भूमि उत्तम, मध्यम और निम्न दर्जे में बँटी थी।
- भूमि के लेखा-जोखा को ‘पट्टा’ कहा जाता था।
शेरशाह ने घोड़ों पर शाही निशान लगवाए, ताकि कोई उनके बदले घटिया दर्ज़े के घोड़े का इस्तेमाल न करे। उसने दाग प्रणाली का ज्ञान अलाउद्दीन खिलजी से उधार लिया था। शेरशाह हर सिपाही की सीधी भर्ती करता था और उसके रंगरूप और चरित्र की जाँच के लिये सबका व्यक्तिगत दस्तावेज़ तैयार करवाता था, जिसे वह ‘चेहरा’ कहता था। अतः कथन (3) सत्य है। वह नकद रूप में वेतन देता था, जबकि किसानों को छूट थी कि वह चाहें तो नकद या अनाज में भू-राजस्व दे सकते थे। अकबर ने 1572 ई. में अहमदाबाद पर आक्रमण करके गुजरात पर अधिकार कर लिया था। उस समय मानसिंह और आंबेर के भगवानदास उसके साथ थे। उन्होंने माही नदी पार करके मिर्ज़ाओं पर आक्रमण कर दिया था।
- मुगल उत्तराधिकारियों द्वारा लड़ी गई लड़ाइयों में औरंगज़ेब और दाराशिकोह के बीच लड़ी गई लड़ाइयों को कालक्रम।
15 अप्रैल 1658 ई.में धरमाट की लड़ाई >29 मई, 1658 ई. में सामूगढ़ की लड़ाई >मार्च 1659 ई. में ‘देवराल’(अजमेर के निकट) {धसद} में दाराशिकोह और औरंगज़ेब के बीच लड़ाई लड़ी गई, जिसमें दाराशिकोह पराजित हुआ।
- शाहजहाँ की पुत्री जहाँआरा को औरंगज़ेब द्वारा साम्राज्य की प्रथम नारी की उपाधि दी गई।
- औरंगज़ेब ने लगभग पचास वर्षों तक शासन किया था और उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण में जिंजी तक तथा पश्चिम में हिंदुकुश से लेकर पूर्व में चटगाँव तक साम्राज्य का विस्तार किया था।
औरंगज़ेब की ख्याति एक कट्टरवादी और ईश्वर से डरने वाले मुसलमान के रूप में थी। अतः इसे ‘ज़िंदा पीर’ कहा जाता था। औरंगज़ेब ने मुस्लिम कानून की हनीफी व्याख्या को अपनाया, जिसका पालन भारत में पारंपरिक रूप से किया जा रहा था।
अकबर
सम्पादनने 1586 ई. में मानसिंह के नेतृत्व में काबुल पर आक्रमण करवाया। जिसमें अकबर का विश्वासपात्र सेनापति बीरबल मारा गया था। अकबर के मनसब में दो मनसबदार गैर-राजपूत थे, राजा टोडरमल और बीरबल। इसमें बीरबल का नाम महेशदास था।
हल्दीघाटी की लड़ाई हिन्दुओं और मुसलमानों या भारतीयों और विदेशियों के बीच की लड़ाई नहीं थी। भले ही हकीम खाँ के नेतृत्व में अफगान टुकड़ी ने राणा का साथ दिया था। हल्दीघाटी की लड़ाई अकबर और राणा प्रताप के बीच लड़ी गई थी। परंतु इसके निर्णायक रूप लेने से पहले ही 1597 ई. में तीर लगने से राणा की मृत्यु हो गई थी। राणा के भीलों के साथ मैत्री संबंध थे तथा उन्होंने छापामार पद्धति द्वारा राणा की मदद की थी। राणा प्रताप को विरासत में कुंभलगढ़ व (डूँगरपुर के निकट) चावंड की राजधानी मिली थी।
मेवाड़ के राजा उदयसिंह ने अकबर की अधीनता स्वीकारने से इनकार कर दिया। उसके बाद उनके पुत्र राणा प्रताप ने हल्दीघाटी की लड़ाई लड़ी और पराजय के बाद अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली थी।
अकबर सिख गुरुओं से बहुत प्रभावित था। वह उनसे मिलने अमृतसर जाया करता था, परंतु जहाँगीर के समय दोनों के बीच संघर्ष प्रारंभ हो गया था। जहाँगीर ने आरोप लगाया कि गुरु अर्जुनदास ने शाहजादा खुसरो की मदद पैसे और प्रार्थना से की। अतः उसने अर्जुनदास और उनके उत्तराधिकारी हरगोविंद को कैद में रखा था। सिख और मुगल शासकों के बीच संघर्ष का कारण धार्मिक न होकर व्यक्तिगत और राजनीतिक था।
अकबरकालीन प्रशासनिक व्यवस्था में वज़ीर की जगह पर दीवान-ए-आला को नियुक्त किया गया जो आय-व्यय हेतु ज़िम्मेदार था और खालसा, जागीर तथा इनाम भूमि पर नियंत्रण रखता था। सैन्य विभाग का प्रधान मीरबख्शी था। अकबर की प्रशासनिक व्यवस्था में न्याय विभाग चौथा प्रमुख विभाग था,जिसका प्रधान आला काज़ी या आला सदर था। मुगल काल में साम्राज्य के खुफिया और सूचना विभाग का प्रधान मीरबख्शी था, जिसमें खुफिया अधिकारी ‘बरीद’ था और सूचना अधिकारी वाकियानवीस था।
अकबर ने शेरशाह द्वारा अपनाई गई ‘चेहरा पद्धति’ और अलाउद्दीन खिलजी द्वारा अपनाई गई ‘दाग पद्धति’ का उपयोग अपनी सैन्य व्यवस्था को मज़बूत बनाने हेतु किया था।
अकबर को जागीर प्रथा पसंद नहीं थी, लेकिन उसकी जड़ें इतनी मज़बूत थी कि वह उसे मिटाने में असफल रहा।
अकबर ने हर अमीर या सरदार की सैन्य टुकड़ी में मुगल, पठान, हिन्दूस्तानी और राजपूत सैनिक रखने को अनिवार्य बनाया, ताकि कबायिली और संकीर्णतावादी शक्तियों को कमज़ोर कर सके।
अकबर ने सशक्त नौसेना पर विचार नहीं किया। एक सशक्त नौसेना का अभाव मुगलकाल में हमेशा बना रहा।
अकबर ने भूमि से राजस्व निर्धारण को ‘ज़ब्ती’ कहा जो दहसाला प्रणाली का सुधरा रूप था। अकबर के अधीन राजस्व निर्धारण की कई इकाइयाँ प्रचलित थीं। इनमें सबसे पुरानी प्रणाली बॉटाई या गल्ला-बख्शीं थी। इसमें ‘उपज’ निर्धारित अनुपात में किसानों व राज्य में बाँट दी जाती थी। अकबर ने एक तीसरी प्रणाली का भी उपयोग राजस्व निर्धारण में किया जिसे ‘नसक’ कहा जाता था। इसमें फसल का निरीक्षण और भविष्य का अंदाज़ा लगाकर पूरे गाँव द्वारा देय राशि तय की जाती थी। इसे ‘कंकूत’ भी कहते हैं। करोड़ी या आमिल भू-राजस्व वसूलने वाले अधिकारी थे जिन्हें एक करोड़ ‘दाम’ (2,50,000 रुपए) तक वसूलने का अधिकार था।
अकबर ने कृषि सुधार विस्तार पर विशेष बल दिया और अमलों को आदेश दिया कि वह किसानों को बीज, औज़ार और पशु आदि के लिये तकावी (ऋण) को आसान किस्तों में प्रदान करें। हर इलाके के ज़मींदार प्रत्येक अमल (करोड़ी) के प्रयत्नों पर सहयोग करते थे और उपज का एक हिस्सा वंशानुगत हक के रूप में वसूल करते थे। उसे मैरूसी कहा जाता था। दहसाला प्रणाली किसी भी प्रकार का दहसाला बंदोबस्त नहीं था और न ही यह स्थायी बंदोबस्त था। राज्य को उसमें परिवर्तन करने का अधिकार प्राप्त था। ज़ब्ती व्यवस्था (प्रणाली) का संबंध राजा टोडरमल से जोड़ा जाता है। अतः इसे टोडरमल प्रणाली भी कहते हैं। अकबर के शासन में टोडरमल एक मेधावी राजस्व अधिकारी था। इसने कुछ समय तक शेरशाह के अधीन भी कार्य किया था।
प्रशासनिक इकाई संबंधित अधिकारी शांति व्यवस्था : फौज़दार भू-राजस्व वसूली : अमलगुज़ार शाही खजाना : खालिसा विद्वान एवं धर्मज्ञ : इनाम
- अठारहवीं सदी में कोरोमंडल तट के चेट्टी और मालाबार के मुसलमान व्यापारी, जिनमें हिन्दुस्तानी एवं अरब दोनों शामिल थे, दक्षिण भारत के सबसे प्रमुख व्यापारिक समुदाय थे।
- मुगलकाल में व्यापारियों के हर समुदाय का अपना एक नगर सेठ या अगुआ होता था जो स्थानीय अधिकारियों से बात करता था।
- मुगलकाल में सामान्य दर से चुंगी वसूल की जाती थी। सड़कों पर वसूल किये जाने वाले शुल्क को ‘राहदारी’ कहा जाता था।
- मुगलकाल में नदियों और समुद्री तटों पर नावों के ज़रिये माल का परिवहन आज की अपेक्षा अधिक विकसित था। अतः जहाज़ बनाने हेतु गोदियाँ इन्हीं इलाकों में बनाई जाती थीं।
भूमि राजस्व संबंधित इकाई 1. दस वर्ष की औसत:-दहसाला(अकबर ने 1580 ई. में एक नई कर प्रणाली) इसमें पिछले दस वर्षों के दौरान अलग-अलग फसलों की औसत उपज और औसत कीमतों का हिसाब लगाया जाता था। 2. रकबे की माप : लग्गा 3. एक बीघा ज़मीन की:मन
- सही सुमेलन निम्न प्रकार से है।
मुगलकालीन व्यापारी संबंधित वर्ग
- अंतर्क्षेत्रीय स्तर के व्यापारी : गुमाश्त
- स्थानीय एवं फुटकर व्यापारी : बोहरा (मोदी)
- व्यापारियों का विशेष वर्ग : वणिक
- परिवहन एजेंट : बंजारा
- उपर्युक्त सभी युग्म सही सुमेलित हैं।
मुगलकालीन इकाई संबंधित तथ्य नफीस: मुगलकाल में कीमती वस्त्रों को कहा जाता था। दस्तरखान : पकवानों से सजी रसोई को कहा जाता था। मदद-ए-मआश : मुगल सम्राट, छोटे शासक, ज़मींदार सरदारों द्वारा विद्धानों व उलेमाओं को दान दी गई भूमि को कहा जाता था।
- मुगलकाल में सरदार वर्ग की एक मुख्य भूमिका थी, जिसमें हिन्दू सरदारों का काफी बोलबाला था। शिवाजी के पिता शाहजी शाहजहाँ के शासनकाल में प्रमुख मराठा सरदार थे।
- शाहजहाँ के शासनकाल में हिन्दुओं का अनुपात 24% था जो औरंगज़ेब के काल में 33 प्रतिशत हो गया था।
- औरंगज़ेब के शासनकाल में एक प्रमुख सरदार मीर जुमला था, जिसके पास जहाज़ों का एक बेड़ा था और वह फारस की खाड़ी अरब और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ व्यापार किया करता था।
- मुगल सरदार वर्ग में कई असामान्य विशेषताएँ थीं। यह वर्ग नस्ली तौर से विभाजित था जो मिश्रित शासक वर्ग होता था। इनकी आय का श्रोत भूमि था। अतः इनका फ्युडल स्वरूप था।
- मुगलकाल में सरदार वर्ग का विशेष महत्त्व था, जिसमें अफगान, भारतीय मुसलमान और हिन्दू शामिल थे, जिसमें हिंदुओं का अनुपात बढ़ता रहा।
- हिन्दुओं के नए वर्ग ने मुगल सरदार वर्ग में प्रवेश किया, जो मराठा वर्ग था।
- पहला मुगल शासक जहाँगीर था, जिसने मराठों के वर्ग को "दक्षिण में मामलों का केंद्र" कहा था।
- मुगल सरदार वर्ग में कई असामान्य विशेषताएँ थीं। यह वर्ग नस्ली तौर से विभाजित था जो मिश्रित शासक वर्ग होता था। इनकी आय का श्रोत भूमि था। अतः इनका फ्युडल स्वरूप था।
- भारत टिन और तांबे का आयात काँसा बनाने हेतु अन्य देशों से करता था।
मध्यकाल में भारत में विदेशी व्यापार फल-फूल रहा था। सत्रहवीं सदी में भारत चांदी और सोने का खूब आयात करता था। भारत में पुर्तगालियों का आगमन पंद्रहवीं सदी के अंत में हुआ था और उनका ह्रास सोलहवीं सदी के उत्तरार्द्ध में हुआ था। 1622 ई. में फारसी फौज़ की सहायता से पुर्तगालियों ने ओरमुज़ (फारस की खाड़ी) पर अपना व्यापारिक केन्द्र बना लिया था और भारत में प्रवेश करने का प्रयास प्रारंभ किया।
व्याख्याः सही सुमेलन निम्न प्रकार से है। जोत का औसत : रकबा भूमिहीन किसान और मज़दूर : कमीन स्वयं की ज़मीन रखने वाले किसान : खुदकाश्त हल व बैल की मदद लेने वाले किसान : मुज़रियान
- अंग्रेज़ों ने 1622 ई. में फारसी फौज की मदद से पुर्तगालियों के अड्डे ‘ओरमुज़’ पर कब्ज़ा कर लिया था।
अंग्रेज़ों ने मद्रास में व्यापार के लिये ‘फोर्ट सेंट जार्ज’ में एक केन्द्र स्थापित किया था। साल्टपीटर से यूरोप के बारूद की कमी पूरी हुई तथा इसका प्रयोग जहाज़ों के भार को स्थिर करने के लिये भी किया जाता था।
- मुगलों की नीति अर्थव्यवस्था के वाणिज्यीकरण का विकास करना था। वे स्थायी सेना और उच्च प्रशासनिक पदाधिकारियों को (सरदारों को छोड़कर) नकद वेतन देते थे।
ज़ब्ती प्रणाली के तहत भूराजस्व का निर्धारण नकदी में किया जाता था।
- मुगलकाल का किसान रूढ़िवादी व परिवर्तन विरोधी नहीं था। सत्रहवीं सदी तक नई कृषि तकनीकों का आरंभ नहीं हुआ था। अतः भारतीय कृषि कुशलता की स्थिति में थी।
अकबर द्वारा प्रांरभ की गई मनसबदारी व्यवस्था जहाँगीर और शाहजहाँ के काल में काफी स्थिर स्थिति में थी। इन्होंने सरदार वर्ग को मनसब माना था। जिन राजपूतों को सरदार का दर्ज़ा दिया जाता था वे या तो वंशानुगत राजा होते थे या किसी राजा से संबंधित अभिजात परिवार के सदस्य होते थे। मनसबदारों को मुगलकाल में ‘जात’ एवं ‘सवार’ पद प्राप्त थे।
औरंगज़ेब
सम्पादनमुहतसिब औरंगज़ेब द्वारा प्रत्येक सूबे में नियुक्त अधिकारी जो नागरिकों के नैतिक धर्म को संरक्षण प्रदान करता था। इसका कार्य ‘शरा’ और ‘जवाबित’ में निषिद्ध कानून की देखभाल करना था ताकि लोग शराब, भाँग का प्रयोग न करें। मुहतसिबों की नियुक्ति के पीछे औरंगज़ेब का यह मानना था कि राज्य नागरिकों के नैतिक कल्याण के लिये ज़िम्मेदार है।
इसने नौरोज़ के त्यौहार पर प्रतिबंध लगा दिया था, क्योंकि वह जरथ्रुस्त्री रिवाज़ था जिसका ईरान के सफावी शासक पालन करते थे। अकबर द्वारा प्रारंभ की गई झरोखा प्रथा को औरंगज़ेब ने बंद करा दिया था, क्योंकि इसे वह अंधविश्वासपूर्ण रिवाज़ और इस्लाम के विरुद्ध मानता था। औरंगज़ेब ने अबवाव नामक ‘कर’ न लगाकर आमदनी के एक बड़े ज़रिये को इसलिये तिलाजंलि दी क्योंकि इसका प्रावधान शरा में नहीं था। उसने हिंदुओं पर जज़िया कर लगाया था।
जवाबित-ए-आलमगीरी नामक कृति में औरंगज़ेब द्वारा जारी धर्म-निरपेक्ष फरमानों का संकलन है। इसका उद्देश्य शरा की अनुपूर्ति करना था।
मराठा साम्राज्य एवं शिवाजी
सम्पादनशिवाजी के शासनकाल के संबंध में निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजियेः कार्य संबंधित तथ्य
- पंडितराव : पारमार्थिक
- स्थायी सेना : पगा
- अस्थायी सेना : सिलहदार
1665 ई. में मराठा शासक शिवाजी और औरंगज़ेब का विश्वासपात्र सलाहकार जयसिंह के बीच ‘पुरंदर की संधि’ की गई थी।
- 1674 ई. में शिवाजी ने रायगढ़ में विधिवत् राजमुकुट ग्रहण करने के बाद छत्रपति की उपाधि धारण की थी।
राजतिलक का संस्कार संपादित कराने वाले पुरोहित गंगा भट्ट ने यह घोषणा की कि शिवाजी उच्चवर्गीय क्षत्रिय हैं।
शिवाजी ने अपने शासनकाल में एक ठोस शासन प्रणाली की नींव डाली थी जिसमें उन्होंने आठ मंत्री नियुक्त किये जिन्हें अष्टप्रधान कहा गया था। अष्टप्रधान में शामिल सभी आठ मंत्री राजा के प्रति उत्तरदायी थे। शिवाजी ने राजस्व व्यवस्था के मामले में मलिक अंबर द्वारा अपनाई गई तद्विषयक व्यवस्था का अनुकरण किया था।
शिवाजी ने ‘देशमुखी’ या ‘ज़मींदारी’ प्रथा को समाप्त कर दिया था। शिवाजी ने अपने अधिकारियों को ‘मोकासा’ या ‘जागीरें’ नहीं दी थीं। शिवाजी ने अपने राज्य के निकट मुगल इलाकों में ‘कर’ लगाकर अपनी आय में वृद्धि की। यह कर भूराजस्व का एक-चौथाई होता था, जिसे ‘चौथ’ कहा जाता था।
औरंगज़ेब ने मराठों द्वारा स्थापित राज्य के लिये ‘स्वराज्य’ शब्द का इस्तेमाल किया था। सर्वप्रथम इस शब्द को मराठा इतिहासकारों ने शिवाजी द्वारा स्थापित राज्य के लिये प्रयुक्त किया था।
- दक्कनी राज्य गोलकुंडा, बीजापुर और कर्नाटक ने मिलकर मुगल सेना का साथ दिया और शिवाजी की अगुवाई में मराठा सेना ने मुगल सेना की रीढ़ तोड़ने का कार्य किया और उनके सभी संचार तंत्रों को हथिया लिया।
- गोलकुंडा के दो सेनापति ‘मदन्ना’ और ‘अखन्ना’ ने औरंगज़ेब की सेना का कई वर्षों तक जमकर सामना किया और उसे पराजित करने में सफल रहे।
- जयसिंह के नेतृत्व में मुगल सेना ने कई बार दक्षिण अभियान किये लेकिन उसे सफलता नहीं मिली, इसलिये जब औरंगज़ेब ने खुद दक्षिण के लिये कूच किया उस समय जयसिंह उसके साथ नहीं था
- मुगल शासन प्रणाली अत्यधिक केन्द्रीकृत थी। औरंगज़ेब के समय इसे एक सुयोग्य शासक की आवश्यकता थी जिसे वज़ीरों ने संभालने की कोशिश की थी,लेकिन असफल रहे।
फैजी फारसी का बहुत बड़ा विद्वान था और अबुल फजल का भाई था। यह अकबर के अनुवाद विभाग से संबंधित था। महाभारत का फारसी अनुवाद फैजी की देखरेख में किया गया था।
मुगलकालीन सांस्कृतिक तथा धार्मिक तथा साहित्यिक गतिविधियाँ
सम्पादनअकबर(1542-1605)द्वारा निर्मित आगरा का लाल किला लाल बलुई पत्थर से बना है। इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए शाहजहाँ ने दिल्ली में लाल किले का निर्माण कराया था। अकबर विभिन्न धर्मों को मानने वाला मुगल शासक था। इसने पुर्तगाली पादरियों को अपने दरबार में नियुक्त करने हेतु अपना एक दूतमंडल गोवा भेजा था और निवेदन भेजा कि दो विद्वान मिशनरी दरबार में भेज दिये जाएँ। इनमें अक्वावीवा और मौनसेरट आए थे।
बुलंद दरवाजा का निर्माण अकबर ने गुजरात विजय की याद में 1602 ई. में फतेहपुर सीकरी में इसका निर्माण करवाया था। इस दरवाज़े में प्रयुक्त अर्द्धगुंबदीय शैली को मुगलों ने ईरान से ग्रहण किया था,जो बाद में मुगल इमारतों की खास विशेषता बन गई।
- दादू दयाल(1544-1603)[१]गुजरात में जन्में संत दादू ने ‘निपख’ यानी असांप्रदायिक पंथ की शिक्षा दी तथा ब्रह्म की अखण्डता पर ज़ोर दिया।
महाराष्ट्र के रामानंद ने ‘प्रवृत्ति दर्शन’ का प्रतिपादन किया था। नक्शबंदी सिलसिले के अनुयायी शेख अहमद सरहिंदी अकबर के काल में भारत आए और ‘तौहीद’ अर्थात् ईश्वर की एकता की अवधारणा का विरोध किया और उसे इस्लाम के खिलाफ बताकर उसकी तीव्र अलोचना की।
जहाँगीर(1605-1627) ने अपने शासनकाल के अंतिम वर्ष संगमरमर की इमारतें बनवाने और दीवारों को अर्द्ध-मूल्यवान (बलुआ पत्थर) पत्थरों से बनी फूल-पत्तियों की आकृतियों से सजाने का चलन प्रारंभ किया, जिसे पिएत्रा द्यूरा कहते हैं। शाहजहाँ ने इसका प्रयोग ताजमहल बनवाने में भी किया था।
शाहजहाँ के शासनकाल में मस्जिद निर्माण पराकाष्ठा पर पहुँच गया था। इसने आगरे के किले में मोती मस्जिद का निर्माण कराया था। जो ताज की तरह बनी हुई है। इसने लाल बलुआ पत्थर से दिल्ली में जामा मस्जिद का निर्माण कराया था जिसमें गुंबद मुख्य आकर्षण का केंद्र है। सिक्ख गुरु अर्जुनदास को अकबर के दरबार में संरक्षण प्राप्त था।
सही सुमेलन निम्न प्रकार से है।
- अकबर की धार्मिकता संबंधित तथ्य
- मदद-ए-मआश : काज़ियों को दी जाने वाली ज़मीन
- ड्राक्ट्रिन ऑफ इनफैलिबिलिटी : उलेमाओं द्वारा हस्ताक्षर किये गए घोषणापत्र
- तौहीद-ए-इलाही : एकेश्वरवाद
- शास्त्र : सूफियों द्वारा दिया गया मंत्र (दीक्षा)
नोटः ड्राक्ट्रिन ऑफ इनफैलिबिलिटी को ‘समरथ’ (अमोधत्व का आदेश) नाम से भी जानते हैं।
मुगल शासक दाराशिकोह स्वभाव से विद्वान और सूफी था। उसे धर्मतत्त्वज्ञों के सम्मेलन में आनंद मिलता था। उसने काशी के पंडितों की मदद से ‘गीता’ का फारसी भाषा में अनुवाद कराया था। दारा ने वेदों का संकलन भी कराया और वेदों को दिव्य ग्रंथ की संज्ञा दी थी और उन्हें पाक कुरान से मेल खाता हुआ बताया। वह हिन्दू व इस्लाम धर्म में मूलभूत अंतर नहीं मानता था।
- सही सुमेलन निम्न प्रकार से है-
- मुगलकालीन बाग संबंधित स्थान
- निशात बाग : कश्मीर
- शालीमार बाग : लाहौर
- पिंजौर बाग : पंजाब
- सही सुमेलन निम्न प्रकार से है-
- मुगल स्थापत्य संबंधित स्थान
- पंचमहल : फतेहपुर सीकरी
- एतमादुद्दौला का मकबरा : आगरा
- दीवान-ए-खास : दिल्ली का लाल किला
- मुसम्मन बुर्ज : आगरे का किला
जहाँगीर चित्रकला का पारखी विद्वान था। उसके काल में चित्रकला अपनी पराकाष्ठा तक पहुँच गई थी। वह दावा करता था कि वह किसी भी चित्र में अलग-अलग चित्रकारों की कला को पहचान सकता है। चित्रकारी की परंपरा शाहजहाँ के काल तक ही जारी रही, क्योंकि औरंगज़ेब को चित्रकला में कोई रुचि नहीं थी। मंसूर जहाँगीर के दरबार का प्रसिद्ध चित्रकार था जिसे मानव व पशु की एकल आकृति बनाने में महारत हासिल थी।
औरंगज़ेब ने अपने शासनकाल में बनारस के प्रसिद्ध विश्वनाथ मंदिर और जहाँगीर के शासनकाल में बीरसिंह बुंदेला द्वारा मथुरा में बनवाया गया केशवराय मंदिर को तुड़वा दिया था। और उसके स्थान पर मस्जिदें बनवा दी थीं।
औरंगज़ेब को संगीत में रुचि नहीं थी। उसने अपने दरबार से गायन को खत्म कर दिया था, लेकिन वाद्ययंत्रों को रहने दिया था, क्योंकि वह कुशल वीणावादक था। औरंगज़ेब के शासनकाल में ही सर्वाधिक भारतीय शास्त्रीय संगीत पर फारसी में पुस्तकों की रचना की गई थी। संगीत के क्षेत्र में कुछ घटनाएँ मोहम्मद शाह के शासनकाल में घटी थीं।
सिख आंदोलन का मूल गुरु नानक की शिक्षाओं में निहित था तथा उनका विकास गुरु परंपरा से घनिष्ठ रूप से संबंधित था। पाँचवे गुरु अर्जुनदास ने सिखों के धर्मग्रथ 'आदिग्रंथ' का संकलन किया था। अर्जुनदास ने कहा कि गुरु में आध्यात्मिक और अधिभौतिक दोनों प्रकार का नेतृत्व समाहित है। इस विचार पर ज़ोर देते हुए ऐश्वर्यपूर्ण जीवन शैली अपनाने पर ज़ोर दिया था।
राजस्थानी शैली की चित्रकारी में पश्चिम भारतीय या जैन शैली की पूर्ववर्ती परम्पराओं का मिश्रण मुगल शैली की चित्रकारी में किया गया। इसमें पुराने विषयों का समावेश किया गया, जैसे- शिकार के दृश्य, राधा-कृष्ण की प्रेमलीला जैसे मिथकीय विषयों, बारहमासा और रागों का चित्रण प्रमुख रूप से हुआ है। पंजाबी पहाड़ी शैली ने भी राजस्थानी शैली की परम्पराओं को जारी रखा।
- मुस्तैद खाँ ने ‘मआसिर-ए-आलमगीरी’ नामक ग्रंथ लिखा, जिसमें उसने मथुरा के केशवराय मंदिर के विध्वंस की चर्चा की थी।
मोहम्मद ताहिर ‘शाहजहाँनामा’ का लेखक है। मुहम्मद काज़िन ने ‘आलमगीर नामा’ लिखा है। भीमसेन द्वारा नुश्खा-ए-दिलकुशा लिखा गया था।